जॉर्ज फ्लॉयड की मौत, यूरोप में भी बजी ख़तरे की घंटी, जानें अमेरिका में नस्लीय नफ़रत से भड़के दंगों का इतिहास+ फ़ोटो
(last modified Thu, 04 Jun 2020 03:45:46 GMT )
Jun ०४, २०२० ०९:१५ Asia/Kolkata
  • जॉर्ज फ्लॉयड की मौत, यूरोप में भी बजी ख़तरे की घंटी, जानें अमेरिका में नस्लीय नफ़रत से भड़के दंगों का इतिहास+ फ़ोटो

अमेरिका में पुलिस के हाथों जॉर्ज फ्लॉयड की हुई निर्मम हत्या पर जहां अमेरिका हिंसक विरोध-प्रदर्शनों की आग में जल रहा है वहीं अब यह आग यूरोपीय देशों तक पहुंच गई है। बुधवार को फ्रांस की राजधानी पेरिस में हुए विशाल विरोध-प्रदर्शनों में लोगों ने मांग की कि, वर्ष 2016 में फ्रांस में हुई एक अफ़्रीक़ी मूल के व्यक्ति की हत्या में शामिल पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ तुरंत कार्यवाही की जाए।

अमेरिका और यूरोपीय देशों में अश्वेतों की हत्याओं का इतिहास बहुत पुराना है। दुनिया में अपने आपको सबसे ज़्यादा विकसित और मानवाधिकार का डंका पीटने वाले पश्चिमी देशों काले लोगों की हमेशा से हत्याएं होती आ रही हैं, यहां तक कि वे इन देशों की पुलिस के हाथों भी मारे जाते रहे हैं। इन लोगों का केवल एक ही गुनाह है और वह यह है कि वे काले हैं। अमेरिका में हो रहे घटनाक्रम को देखकर कुछ यूरोपीय लोगों ने सोशल मीडिया पर यह टिप्पणी की है कि उनके देशों में ऐसा नहीं होता है। लेकिन यूरोप में रहने वाले अश्वेत लोग इस बात से सहमत नहीं दिखते। यूरोप में भी नस्लवाद है, भले ही पुलिस द्वारा वहां होने वाली हिंसा को ख़बरों में इतनी जगह ना मिलती हो। यही वजह है कि जॉर्ज फ्लॉएड की निर्मम हत्या को लेकर अमेरिका से बाहर भी लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। यूरोपीय देशों में जिस व्यापकत स्तर से विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं उससे लगता है कि वहां के लोगों पुराने घाव फिर से हरे हो गए हैं।

अश्वेत लोगों के प्रति पश्चिमी समाजों के रवैये में ज़्यादा अंतर नहीं है। इस बारे में उनके विचार कुछ ऐतिहासिक घटनाओं से प्रेरित हैं: ग़ुलामी और उपनिवेशवाद। ब्रिटिश लेखक जॉनी पिट्स ने अपनी किताब "एफ्रोपियन: नोट्स फ्रॉम ब्लैक यूरोप" में लिखा है कि ग़ुलामों के ट्रांस अटलांटिक व्यापार ने पश्चिम में नस्ल की अवधारणा को आकार देने में अहम भूमिका निभाई है। दुर्भाग्य से मीडिया और स्कूली पाठ्यक्रमों में नस्ल के प्रति लोगों के नज़रिए को बदलने के लिए बहुत कोशिश नहीं की गई है। यूरोपीय देशों में नस्लवाद को लेकर जागरूकता की बहुत कमी है। इन देशों में अश्वेतों के साथ आज भी ग़ुलामों जैसा बर्ताव किया जाता है। अमेरिकी पुलिस द्वारा जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद जिस तरह पूरे अमेरिका में विरोध-प्रदर्शन हुए और फिर देखते ही देखते वह हिंसा और लूट-पाट में बदल गए, कुछ इसी तरह की स्थिति अब यूरोपीय देशों में देखने को मिल रही है। बुधवार को फ्रांस की राजधानी पेरिस में हुए विरोध-प्रदर्शन में लगभग 20 हज़ार लोगों ने भाग लिया। प्रदर्शनकारी जहां अमेरिका में हुई जॉर्ज फ़्लॉयड की हत्या पर अपना रोष व्यक्त कर रहे थे वहीं प्रदर्शनकारी यह भी मांग कर रहे थे कि, 19 जुलाई 2016 को अफ़्रीक़ी मूल के अदामा तरावरी की हत्या के ज़िम्मेदार पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ तत्काल कार्यवाही की जाए।

वैसे अमेरिका जो दुनिया को हमेशा मानवाधिकार का लेक्चर देता आया है, लेकिन वह कभी भी अपने गरिबान में झांक कर नहीं देखता कि ख़ुद अमेरिका में मानवाधिकार की क्या स्थिति है। अमेरिका जो दुनिया के लगभग हो कोने में हिंसा और युद्ध की आग भड़काने का मुख्य ज़िम्मेदार है आज एक बार फिर वह अपनी इसी आग में जल रहा है। आइये एक नज़र डालते हैं बीते 60 साल में अमेरिका में हुए दंगों पर।

 

अगस्त 1965
लॉस एंजेलिस शहर में पुलिस ने आईडेंटिटि चेक के लिए दो अश्वेत पुरुषों को रोका और फिर उन्हें पुलिस स्टेशन ले जाया गया। पुलिस पर आरोप लगा कि उसने ऐसा नस्लीय घृणा के चलते किया। इसके बाद 11 से 17 अगस्त तक लॉस एंजेलिस में भयानक देंगे हुए। इन दंगो में 34 लोगों की मौत हुई।

 

जुलाई 1967
दो गोरे पुलिस अधिकारियों ने एक मामूली ट्रैफ़िक नियम के उल्लंघन के आरोप में एक अश्वेत टैक्सी ड्राइवर को गिरफ़्तार करके उसे बेरहमी से मारा-पीटा। इस घटना को लेकर अमेरिका के नवार्क में 12 जुलाई से 17 जुलाई तक दंगे हुएष इन दंगों में 26 लोगों की मौत हुई और 1500 से अधिक लोग घायल हुए। इसके एक सप्ताह बाद डेट्रॉएट और मिशीगन में भी दंगे भड़क गए जिसमें 43 लोगों की मौत हुई और 2 हज़ार से अधिक लोग घायल हुए।

 

 

अप्रैल 1968
मार्टिन लूथर किंग की हत्या के बाद टेनेसी में हिंसा भड़ गई। 4 अप्रैल से 11 अप्रैल तक चले इन दंगों में 46 लोग मारे गए और 2,600 से ज़्यादा घायल हुए। हिंसा इतनी भयानक थी कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन बी जॉनसन को दंगा रोकने के लिए सेना भेजनी पड़ी।

 

 

मई 1980
दिसंबर 1979 में चार श्वेत पुलिस अधिकारियों पर एक अश्वेत मोटरसाइकिल सवार को पीट पीटकर मार डालने का आरोप लगा। सुनवाई के बाद मई में पुलिस अधिकारियों को बरी कर दिया गया। इससे नाराज़ अश्वेत समुदाय ने मियामी लिबर्टी सिटी में भारी हिंसा हुई। चार दिनों तक चले इन दंगों में 18 लोग मारे गए।

 

 

अप्रैल 1992
लॉस एंजेलिस के दंगों में 59 लोग मारे गए। अश्वेत कार चालक की पिटाई के वीडियो बनाने वाले श्वेत पुलिस अधिकारियों की रिहाई की वजह से यह दंगे हुए। यह दंगे अटलांटा, कैलिफोर्निया, लॉस वेगस, न्यूयॉर्क, सैन फ्रांसिस्को और सैन जोस में भी फैले।

 

 

अप्रैल 2001
19 साल के अश्वेत युवक टिमोथी थॉमस को एक पुलिस अधिकारी ने मार डाला। इसके बाद सिनसिनैटी शहर में दंगे भड़क उठे। चार रातों तक शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा।

 

 

अगस्त 2014
श्वेत पुलिस अधिकारी के हाथों एक निहत्थे अश्वेत किशोर की मौत के बाद फर्गुसन शहर में दंगे हुए। 9 अगस्त से 19 अगस्त तक चली इस हिंसा में काफ़ी आर्थिक नुक़सान हुआ। नवंबर में आरोपी पुलिस अधिकारी से हत्या की धाराए हटाने के बाद शहर में फिर तनाव लौट आया।

 

 

अप्रैल 2015
25 साल के अश्वेत युवा फ्रेडी ग्रे को गिरफ़्तार करते समय पुलिस ने इतनी ताक़त लगाई कि युवक की पुलिस वैन में मौत हो गई। फ्रेडी की गिरफ्तारी का वीडियो भी सामने आया। वीडियो के प्रसारित होने के बाद बाल्टीमोर में भारी हिंसा हुई जिसकी वजह से इमरजेंसी लगानी पड़ी।

 

सितंबर 2016
पुलिस फायरिंग में 43 साल के कीट लैमॉन्ट स्कॉट की मौत के बाद शारलोटे शहर में दंगे हुए। प्रशासन को हिंसा रोकने के लिए कर्फ्यू लगाना पड़ा और सेना बुलानी पड़ी।

 

मई 2020
मिनियापोलिस शहर में पुलिस अधिकारियों ने जॉर्ज फ्लॉएड नाम के एक अश्वेत व्यक्ति को गिरफ्तार किया। गिरफ्तारी के दौरान फ्लॉएड ने पुलिस को अपनी बीमारी के बारे में बताया, इसके बावजूद पुलिस अधिकारियों ने उन पर ताक़त आज़माई। फ्लॉएड की मौक़े पर ही मौत हो गई। उनकी मौत के एक दिन बाद से ही अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में प्रदर्शन हो रहे हैं।

(RZ)

 

 

 

 

    

 

   

 

 

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