जॉर्ज फ्लॉयड की मौत, यूरोप में भी बजी ख़तरे की घंटी, जानें अमेरिका में नस्लीय नफ़रत से भड़के दंगों का इतिहास+ फ़ोटो
अमेरिका में पुलिस के हाथों जॉर्ज फ्लॉयड की हुई निर्मम हत्या पर जहां अमेरिका हिंसक विरोध-प्रदर्शनों की आग में जल रहा है वहीं अब यह आग यूरोपीय देशों तक पहुंच गई है। बुधवार को फ्रांस की राजधानी पेरिस में हुए विशाल विरोध-प्रदर्शनों में लोगों ने मांग की कि, वर्ष 2016 में फ्रांस में हुई एक अफ़्रीक़ी मूल के व्यक्ति की हत्या में शामिल पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ तुरंत कार्यवाही की जाए।
अमेरिका और यूरोपीय देशों में अश्वेतों की हत्याओं का इतिहास बहुत पुराना है। दुनिया में अपने आपको सबसे ज़्यादा विकसित और मानवाधिकार का डंका पीटने वाले पश्चिमी देशों काले लोगों की हमेशा से हत्याएं होती आ रही हैं, यहां तक कि वे इन देशों की पुलिस के हाथों भी मारे जाते रहे हैं। इन लोगों का केवल एक ही गुनाह है और वह यह है कि वे काले हैं। अमेरिका में हो रहे घटनाक्रम को देखकर कुछ यूरोपीय लोगों ने सोशल मीडिया पर यह टिप्पणी की है कि उनके देशों में ऐसा नहीं होता है। लेकिन यूरोप में रहने वाले अश्वेत लोग इस बात से सहमत नहीं दिखते। यूरोप में भी नस्लवाद है, भले ही पुलिस द्वारा वहां होने वाली हिंसा को ख़बरों में इतनी जगह ना मिलती हो। यही वजह है कि जॉर्ज फ्लॉएड की निर्मम हत्या को लेकर अमेरिका से बाहर भी लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। यूरोपीय देशों में जिस व्यापकत स्तर से विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं उससे लगता है कि वहां के लोगों पुराने घाव फिर से हरे हो गए हैं।
अश्वेत लोगों के प्रति पश्चिमी समाजों के रवैये में ज़्यादा अंतर नहीं है। इस बारे में उनके विचार कुछ ऐतिहासिक घटनाओं से प्रेरित हैं: ग़ुलामी और उपनिवेशवाद। ब्रिटिश लेखक जॉनी पिट्स ने अपनी किताब "एफ्रोपियन: नोट्स फ्रॉम ब्लैक यूरोप" में लिखा है कि ग़ुलामों के ट्रांस अटलांटिक व्यापार ने पश्चिम में नस्ल की अवधारणा को आकार देने में अहम भूमिका निभाई है। दुर्भाग्य से मीडिया और स्कूली पाठ्यक्रमों में नस्ल के प्रति लोगों के नज़रिए को बदलने के लिए बहुत कोशिश नहीं की गई है। यूरोपीय देशों में नस्लवाद को लेकर जागरूकता की बहुत कमी है। इन देशों में अश्वेतों के साथ आज भी ग़ुलामों जैसा बर्ताव किया जाता है। अमेरिकी पुलिस द्वारा जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद जिस तरह पूरे अमेरिका में विरोध-प्रदर्शन हुए और फिर देखते ही देखते वह हिंसा और लूट-पाट में बदल गए, कुछ इसी तरह की स्थिति अब यूरोपीय देशों में देखने को मिल रही है। बुधवार को फ्रांस की राजधानी पेरिस में हुए विरोध-प्रदर्शन में लगभग 20 हज़ार लोगों ने भाग लिया। प्रदर्शनकारी जहां अमेरिका में हुई जॉर्ज फ़्लॉयड की हत्या पर अपना रोष व्यक्त कर रहे थे वहीं प्रदर्शनकारी यह भी मांग कर रहे थे कि, 19 जुलाई 2016 को अफ़्रीक़ी मूल के अदामा तरावरी की हत्या के ज़िम्मेदार पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ तत्काल कार्यवाही की जाए।
वैसे अमेरिका जो दुनिया को हमेशा मानवाधिकार का लेक्चर देता आया है, लेकिन वह कभी भी अपने गरिबान में झांक कर नहीं देखता कि ख़ुद अमेरिका में मानवाधिकार की क्या स्थिति है। अमेरिका जो दुनिया के लगभग हो कोने में हिंसा और युद्ध की आग भड़काने का मुख्य ज़िम्मेदार है आज एक बार फिर वह अपनी इसी आग में जल रहा है। आइये एक नज़र डालते हैं बीते 60 साल में अमेरिका में हुए दंगों पर।
(RZ)