Jun २८, २०२२ १८:०५ Asia/Kolkata

इस कार्यक्रम में हम हफ्ते तीर अर्थात 27 जून की घटना की जानकारी देने जा रहे हैं।

आज हम आतंकी गुटएमकेओ की उस जघन्य कार्यवाही के बारे में बताने जा रहे हैं जो "हफ्ते तीर" अर्थात 27 जून 1981 को राजधानी तेहरान में अंजाम दी गई।  इस आतंकवादी घटना में ईरान के तत्कालीन न्यायपालिका प्रमुख आयतुल्लाह बहिश्ती और उनके 72 साथी शहीद हो गए थे।  आतंकवादी गुट, मुजाहेदीने ख़ल्क़ संगठन "एमकेओ" का गठन तो सन 1960 में हुआ था किंतु उस समय उसके सदस्यों की संख्या बहुत कम थी।  ईरान में फरवरी 1979 में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद इस आतंकी गुट ने अपने सदस्यों की संख्या बढ़ाने का काम शुरू किया।  बाद में सन 1981 में इस आतंकवादी गुट ने ईरान की इस्लामी शासन व्यवस्था के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष का काम आरंभ कर दिया।

इस आतंकी गुट ने अबतक ईरान के हज़ारों आम लोगों और अधिकारियों को शहीद किया है।  एक रिपोर्ट के अनुसार 1980 के दशक से लेकर अबतक इस आतंकी गुट के हाथों सत्रह हज़ार से भी अधिक लोग मारे जा चुके हैं।  बाद वाले चरण में एमक्यूएम ने 15 वर्षों तक सद्दाम शासन का खलुकर साथ दिया।  सद्दाम द्वारा ईरान पर थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध में इस आतंकी गुट ने ईरानी लोगों के साथ ही इराक़ के लोगों का भी पूरी शक्ति के साथ दमन किया।  सन 1991 में जब इराक़ के उत्तरी क्षेत्र में शिया मुसलमानों ने आन्दोलन किया था तो इसी गुट ने अमरीकी इशारों पर उनका कड़ाई से दमन किया था।

सद्दाम के शासनकाल के अन्तिम दिनों में यह आतंकवादी गुट, सद्दाम के विशेष सैन्य बलों का हिस्सा बन गया था।   इस गुट के नेता यही सोचते थे कि सद्दाम और उसके शासन के बाक़ी रहने की स्थति में ही वे बच सकते हैं इसलिए उन्होंने सद्दाम का हर प्रकार से सहयोग किया।  अमरीकी विदेश मंत्रालय में आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष के संयोजक "डैनियल बेंजामिन" ने सन 2009 से 2012 के बीच इस आतंकी गुट की हिंसक एक आतंकी कार्यवाहियों का उल्लेख किया है।  उन्होंने बताया है कि शहीद आयतुल्लाह बहिश्ती सहित ईरान के कई अधिकारी, इसी मनुाफ़ेक़ीन गुट की कार्यवाही के कारण शहीद हुए।

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एमकेओ के सबसे बड़े समर्थक सद्दाम की सत्ता के धराशाई हो जाने के बाद इस गुट का इराक़ में बाक़ी रहना बहुत कठिन हो गया था।  इसका कारण यह था कि एमकेओ के अपराधों और हिंसक कार्यवाहियों के कारण वहां के लोग इस आतंकी गुट से नफ़रत करने लगे थे।  इसी विषय के दृष्टिगत अमरीका ने इराक़ में मौजूद अशरफ छावनी से इन आतंकियों को निकालकर बग़दाद के निकट स्थित लिबर्टी छावनी में स्थानांतरित करवाया।  बाद में जब उसने देखा कि इन आतंकियों के बारे में इराक़ियों का क्रोध समाप्त नहीं हो रहा है तो उसने इन आतंकवादियों को यूरेप के एक छोटे से देश अल्बानिया भिजवाया।

जबसे आतंकवादी गुट "एमकेओ" ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष की घोषणा की उसके बाद से उसकी सबसे ख़तरनाक आतंकी कार्यवाही 27 जून 1981 की घटना है।  इस घटना में ईरान के तत्कालीन न्यायपालिका प्रमुख आयतुल्लाह बहिश्ती और उनके 72 साथी शहीद हुए थे।  यह घटना अर्थात भीषण बम विस्फोट, राजधानी तेहरान के सरचश्मे नामक स्थान पर जम्हूरी इस्लामी पार्टी के मुख्यालय में हुआ था।  विस्फोट के समय आगामी राष्ट्रपति चुनाव के चयन की समीक्षा के बारे में विचार-विमर्श चल रहा था।  इस घटना के दौरान दो बहुत ही भीषण विस्फोट हुए जिसमें आयतुल्लाह बहिश्ती सहित देश के कई जानेमाने लोग शहीद हो गए।  यह  बम विस्फोट इतने अधिक शक्तिशाली थे कि जिसके परिणाम स्वरूप इमारत का एक भाग गिर गया था।

एमकेओ के आतंकियों का यह मानना था कि इतना बड़ा काम करने के बाद वे अपने सशस्त्र संघर्ष को बढ़ाते हुए ईरान की इस्लामी शासन व्यवस्था को पराजित कर देंगे लेकिन स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी की दूरदर्शिता और उनके सटीक फैसलों ने शत्रु की चाल को विफल बना दिया।  जम्हूरी इस्लामी पार्टी के मुख्यालय में होने वाले भीषण विस्फोटों के बारे में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि "एमकेओ" ने कभी भी आधिकारिक रूप में इस विस्फोट की ज़िम्मेदारी स्वीकार नहीं की।  इसका मुख्य कारण पश्चिमी देशों में शरण के लिए उनके प्रयासों को ठेस न पहुंचे।

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यदि वे एसा करते और जम्हूरी इस्लामी पार्टी के मुख्यालय में होने वाले विस्फोट की ज़िम्मेदारी आधिकारिक रूप में स्वीकार कर लेते तो उनको यह डर था कि कहीं उन्हें इन देशों की ब्लैक लिस्ट में न डाल दिया जाए।  हालांकि इस आतंकी गुट के नेताओं ने कई स्थानों पर इनडायरेक्ट वे में इस बात को स्वीकार किया है।  इस बारे में  "एमकेओ" के एक पूर्व सदस्य सईद शाहसवंदी कहता है कि जम्हूरी इस्लामी पार्टी के मुख्यालय में बम विस्फोट की घटना की योजना भी उसी ने बनाई तथा उसको लागू भी उसीके आतंकियों ने किया था।

वह कहता है कि विस्फोट की रात हम विभिन्न चैनलों से यह जानने की कोशिश कर रहे थे कि इससे नुक़सान कितना हुआ है।  इराक़ में जब सद्दाम शासन का पतन हुआ तो उसके बाद वहां पर सद्दाम के गु्पतचर विभाग के महत्वपूर्ण लोगों के साथ "एमकेओ" के प्रमुख मसूद रजवी की कई गोपनीय बैठकों का पता चला।  इन गोपनीय मुलाक़ातों के आडियो और वीडियो दोनों ही मौजूद हैं।  इनमे से कुछ को तो यूरोप में दिखाया भी जा चुका है।

सद्दाम के गुप्तचर अधिकारियों के साथ "एमकेओ" के प्रमुख की एक मुलाक़ात में मसूद रजवी को 27 जून 1981 की आतंकी घटना के बारे में बोलते हुए सुना जा सकता है।  सन 1999 में इराक़ की गुप्तचर सेवा के तत्कालीन प्रमुख मेजर जनरल ताहिर जलील हबूश के साथ भेंटवार्ता में मसूद रजवी, विगत में अमरीका और फ्रांस के साथ अपने संबन्धों का उल्लेख करते हुए कहता है कि जैसाकि आप जानते हैं कि सन 1981 से लेकर 1986 तक मैं फ्रांस की राजधानी पेरिस में था।  उस दौरान हमको आतंकवादी नहीं कहा जाता था।  अमरीका और फ्रांस को हमारे बारे मे पूरी जानकारी है।  उनको अच्छी तरह से पता है कि तेहरान में स्थित जम्हूरी इस्लामी पार्टी के कार्यालय में किसने विस्फोट किया था।  उनको सबकुछ पता है किंतु वे हमको आतंकवादी कहकर नहीं पुकारते हैं।  इससे यह पता चलता है कि जब भी पश्चिम के हितों की बात होगी उस समय वे एमकेओ सहित किसी भी आतंकी गुट की आतंकी एवं विध्वंसक कार्यवाहियों से अपनी आंखें मूंद लेंगे।

एसा भी हो सकता है कि उन आतंकी गुटों को पश्चिमी देशों की आतंकी सूचि से बाहर कर दिया जाए जो उनकी सेवा करते हैं जैसा कि एमकेओ के साथ किया गया।  इस्लामी क्रांति की सफतला के आरंभिक दिनों में वह इंसान जिसको बहुत ज़्यादा मुनाफ़िक़ों या मिथ्याचारियों एवं वामपंथी विचारधारा वाले समाचार पत्रों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा वे शहीद बहिश्ती थे।  उस समय उनके विरुद्ध कई निराधार आरोप लगाए गए लेकिन शहीद बहिश्ती ने उन सबको सहन करते हुए जनसेवा का काम जारी रखा।  आतंकवादी गुट एमकेओ यह समझता था कि आयतुल्ला बहिश्ती और उनके साथ कई गणमान्य लोगों की हत्या करके वे अपनी योजना में सफल हो जाएंगे।  उनका यह मानना था कि इस आतंकी कार्यवाही के बाद इस्लामी गणतंत्र ईरान के लिए बहुत कठिन समस्याएं सामने आएंगी। 

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इस संबन्ध में आतंकवादी गुट एमकेओए की सदस्यता छोड़ने वाले उसके एक सदस्य मूसद ख़ुदाबंदे कहते हैं कि इस बारे में उनके सारे ही समीकरण ग़लत साबित हुए।  इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमेनी ने आयतुल्लाह बहिश्ती और उनके साथियों की शहाद के बाद ईरानी राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा था कि मैं पहले भी कई बार यह बात कह चुका हूं कि आयतुल्लाह बहिश्ती ने वास्तव में मज़लूमियत में ज़िंदगी गुज़ारी।   लोगों ने उनपर और उनके कुछ साथियों की आलोचनाएं कीं।  वे एसे थे जिनको मैं पिछले 20 वर्षों से जानता था।  मेरी नज़र में वे निष्ठावान, ईमानदार, सदाचारी और समाज के सेवक थे।  वे इस्लाम से प्रेम करते थे।

इस प्रकार से मिथ्याचारियों की सोच के विपरीत आयतुल्लाह बहिश्ती और उनके साथियों की शहादत, इस्लामी क्रांति और इस्लामी शासन व्यवस्था की अधिक से अधिक मज़बूती का कारण बनी।  दक्षिणी तेहरान में स्थित बहिश्ते ज़हरा नामक क़ब्रिस्तान में शहीद बहिश्ती और उनके 72 साथियों की क़ब्रे हैं जहां पर बहुत बड़ी संख्या में लोग जाकर फ़ातेहाख़ानी करते हैं।  जम्हूरी इस्लामी पार्टी का वह मुख्यालय जहां पर 27 जून 1981 में विस्फोट की घटना हुई थी उसको अब "इस्लामी क्रांति के शहीदों के सांस्कृतिक काम्पलेक्स" के रूप में बनाया गया है। 

यह बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि शहीद आयतुल्लाह डाक्टर, सैयद मुहम्मद हुसैनी बेहिश्ती, ईरान की इस्लामी क्रांति की एक अति महत्वपूर्ण हस्ती थे।  उन्होंने अपना पूरा जीवन कुशल प्रशासन, गहन चिंतन, अथक प्रयासों और जनसेवा में व्यतीत किया।  शहीद आयतुल्लाह बहिश्ती सदैव स्वंय को युवाओं के सामने ज़िम्मेदार समझते थे।  वे युवाओं के सांस्कृतिक एवं वैचारिक विकास के लिए यथासंभव प्रयास करते रहते थे।  

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