Sep ०४, २०२१ १७:५२ Asia/Kolkata
  • ईरान के बाग़ जो स्वर्ग की तसवीर पेश करते हैं+तसवीरें+वीडियोज़

ईरान के 9 बाग़ युनेस्को की इंटरनैशनल हेरीटेज की सूची में शमिल हैं। यह बाग हैं पासारगाद, इरम, चेहेलसुतून, फ़ीन, अब्बासाबाद, शाज़दे, दौलताबाद, पहलवानपुर और अकबरिया बाग़।

इन बाग़ों में हरियाली और खुली हुई जगहों में पानी की सप्लाई के दो अलग अलग सिस्टम होते थे जो अपने आप में बेनज़ीर थे। ईरानी वास्तुकारों ने पानी के महत्व के भरपूर बोध और इंसान से उसके गहरे संबंध पर गहरी तवज्जो के साथ पानी को इमारतों के भीतरी भाग तक पहुंचाते थे। अलग अलग गहराई वाले हौज़ का निर्माण और फिर पानी को कहीं झरने तो कहीं फ़ौवारे के रूप में प्रदर्शित करना और उसे नालियों और छोटी नहरों के माध्यम से प्रवाहित करना वह इंतेज़ाम थे जो पानी के आध्यात्मिक पहलुओं को सामने लाने और उसकी सुंदरता को नज़रों के सामने रखने के लिए किए जाते थे। अलबत्ता यह सब कुछ पानी के किफ़ायती इस्तेमाल के साथ किया जाता था। इस बात को हमेशा प्राथमिकता में रखा जाता था कि पानी हरगिज़ बर्बाद न होने पाए।

ईरानी बाग़ों की डिज़ाइन

 

बाग़ों को सजाने और व्यवस्थित करने की प्रक्रिया की शुरुआत हख़ामनेशी काल से हुई। 6 शताब्दी ईसा पूर्व बादशाहों के निजी बाग़ों और महल के आसपास के बाग़ों के निर्माण के लिए बहुत सटीक डिज़ाइन मौजूद था। बाद में सासानी शासन काल में यही डिज़ाइन नमूना बन गया और इस्लाम के बाद इसमें और भी निखार आया।

पासारगाद बाग़ इन बाग़ों का पहला नमूना है। इन बाग़ों की सिंचाई के लिए पत्थर की नालियों का एक जाल तैयार कर दिया जाता था जिसे आबनमा के नाम स जाना जाता था। आबनमा बाग़ की सिंचाई के साथ ही बाग़ की सजावट के काम भी आता था। बाग़ के दो तरफ़ दो महल बनाए जाते थे जिन्हें विश्राम करने और बाग़ के दिलफ़रेब नज़ारों का आनंद उठाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। सारे महल बाग़ के भीतर हुआ करते थे यानी हर महल के आसपास हरा भरा और बहुत शांत वातावरण होता था। शाही बाग़ों का पानी पुलवार नदी से निकलने वाली जल शाखाओं से आता था। आबनमा दो भागों पर आधारित होता था। एक भाग में हौज़ होते थे और दूसरे भाग में पानी की नालियां।

पासारगाद बाग़ का डिज़ाइन

 

हर साढ़े नौ या साढ़े तेरह मीटर लंबी नाली के बाद एक छोटा हौज़ बनाया जाता था। हौज़ का काम पानी को छोटी नालियों में बांटने और उसके तेज़ प्रवाह को शांत करने का होता था। इसके अलावा पानी में अगर कीचड़ या कोई और गंदगी है तो वह भी इसी हौज़ में नीचे बैठ जाती थी। यह हौज़ 87 बाई 87 सेंटीमीटर के होते थे और इनकी गहराई 52 सेंटीमीटर होती थी। पथरीली नालियों की गहराई लगभग 25 सेंटीमीटर और नालियों और हौज़ की किनारियों की चौड़ाई लगभग 16 सेंटीमीटर होती थी। पासारगाद बाग़ के आबनमा का लगभग 1100 मीटर भाग खोजा जा चुका है और मिट्टी की खुदाई करके इसके बाहर निकाल लिया गया है।

 

चेहेलसुतून बाग़ इस्फ़हान शहर के बीच में स्थित है। इस बाग़ के बीच में एक बड़ा सुंदर महल बना हुआ है जिसमें की गई चित्रकारी और सजावट विश्व ख्याति रखती है। सफ़वी काल के वास्तुकारों ने चेहेलसुतून बाग़ में पानी के प्रवाह को दो शैलियों में प्रदर्शित किया है। इमारत के पूर्वी और पश्चिमी भाग में बने बड़े हौज़ों के अंदर ठहरा हुआ पानी और हाल का संगमरमर का हौज़ और दक्षिणी सिरे पर बना हुआ हौज़। इमारत के आसपास प्रवाहित जल के लिए बनी नालियों की चौड़ाई अलग अलग है। रास्ते में जगह जगह फ़ौवारे बनाए गए हैं और पानी को पम्प करने और उसे कई भागों में बांटने के लिए बड़े सटीक सिस्टम का इस्तेमाल किया गया है। यह पानी को बेहतरीन रूप में प्रयोग करने और पानी से वातावरण को सजाने के लिए इस्तेमाल की गई ख़ास शैलियां हैं। पानी के वितरण के ढांचे के लिए बहुत तवज्जो से किया गया काम यह दर्शाता है कि इसे शैख़ बहाई की जल वितरण शैली की तर्ज़ पर बनया गया है।

हश्त बेहिश्त बाग़ का एक दृष्य

 

ज़ायंद रूद ईरान के भीतर मीठे पानी की वह नदी है जिससे हमेशा पानी का बंदोबस्त किया जाता रहा है। इस्फ़हान और आसपास के सूखे इलाक़ों को उचित ढंग से पानी पहुंचाने के लिए नदी के पानी के वितरण का बहुत व्यवस्थित इंतेज़ाम किया गया था। जल वितरण का आख़िरी पुराना सिस्टम तूमारे शैख़ बहाई के नाम से जाना जाता है।

इसफ़हान में सफ़वी काल के बाग़ों में पानी नालियों और रास्तों से प्रवाहित होता था। अधिकतर बाग़ों में शतरंज रूपी नालियों का जाल बिछा दिया जाता था। यह बाग़ आम तौर पर चार भागों में बंटे होते थे और बीच में एक इमारत होती थी जिसके सामने बहुत ख़ास क़िस्म का वातावरण पैदा कर दिया जाता था। सफ़वी बाग़ों का ढांचा उसके भीतर बहने वाली नहरों, नालियों, वहां नज़र आने वाली फुलवारियों और पेड़ों की मदद से जीवन और काम के लिए बेहद उत्कृष्ट माहौल पैदा कर देते थे।

 

सफ़वी काल के बचे हुए बाग़ों में पानी का करिश्मा बहुत साफ़ नज़र आता है। जैसे हश्त बेहिश्त इमारत में पानी के इस्तेमाल से पैदा की गई सुंदरता बिल्कुल निराली नज़र आती है। इमारत के उत्तरी हाल में चौकोर हौज़ है जिसका पानी फ़ौवरे के ज़रिए आता है और जब हौज़ भर जाता है तो ढलवां पत्थरों से झरने के रूप में नीचे गिरता है। आठ कोणों वाली बड़ी इमारत के बीच में आठ कोनों वाला एक हौज़ है। जर्मन सैलानी और चिकित्सक एंजलबर्ट कैमफ़र 17वीं शताब्दी ईसवी में हश्त बेहिश्त महल का उल्लेख करते हुए लिखते हैं कि पानी गिरने की मनमोहक आवाज़ जो संगेमरमर के भीतर से गिरने वाली पानी की वजह से पैदा होती है हर देखने वाले को ख़ास शांति प्रदान करती है। एसा वातावरण बन जाता है कि इंसान पर ग़ुनूदगी तारी होने लगती है।

पानी की सप्लाई का आधुनिक और दिलचस्प सिस्टम किसी बाग़ में देखना हो तो आप काशान का फ़ीन बाग़ देखिए। फ़ीन बाग़ की डिज़ाइन में पानी का इस्तेमाल बुनियादी हैसियत रखता है। फ़ीन बाग़ में पानी ठहरा हुआ भी है जो महल के सामने वाले हौज़ डऔर सफ़वी हौज़ख़ाने में है। इस बाग़ में पानी प्रवाहित भी है जो आपको नालियों और फ़ौवरों में नज़र आएगा। इसके अलावा नीचे से उबलता हुआ पानी है जो हौज़ की तह में बने छिद्रों से बाहर आता है। पानी की अधिक मात्रा और फ़िरोज़ी कलर की टाइलों से सजी नालियों में पानी का बहाव वह भी इस इलाक़े में जहां पानी दुर्लभ माना जाता है। इसके साथ ही बाग़ के घने और हरे भरे पेड़ वास्तव में एक दिलचस्प विरोधाभास को दिखाते हैं। क्योंकि बाग़ की दीवारों के बाहर नज़र डालिए तो यह मरुस्थलीय इलाक़ा है और यहां की प्रकृति बड़ी बेरहम है।

काशान का फ़ीन बाग़

 

नालियों, बड़े हौज़ और छोटै हौज़ों में प्रवाहित पानी सुलैमानिया जलसोते से हासिल होता है। जलसोते का पानी पहले बाग़ के पीछे एक बड़े हौज़ में जमा होता है। नालियों और इस हौज़ ती सतह की ऊंचाई का अंतर ज़्यादा है जिसकी वजह से फ़ौवारे बनाना संभव हो सका है और पानी नीचे से ऊपर की ओर तेज़ी से उछलता है जिससे फ़ौवारा बन जाता है।

सारी नालियों के नीचे और हौज़ के चारों ओर एक मीटर की गहराई में तंबूशे नाम के पाइप बिछाए गए हैं। यह पाइप मिट्टी से बने हैं जो एक तरफ़ बड़े हौज़ से जुड़े हुए हैं और दूसरी तरफ़ नाली के आख़री हिस्से में इसका मुंह बंद कर दिया गया है। पानी एक तरफ़ से अंदर आता है लेकिन चूंकि दूसरा सिरा बंद है इसलिए पाइप का पानी फ़ौवारों से उछलता है। ज़मीन की सतह ढलवां है इसलिए पानी के दबाव को बांटने के लिए पाइप की चौड़ाई अलग अलग रखी गई है। पाइप का शुरुआती भाग उसके आख़िरी छोर से अधिक मोटा है इसी तरह पानी का दबाव बंट जाता है और पानी समान मात्रा में फ़ौवारे से बाहर निकलता है। बड़े हौज़ का पानी उसके भीतर बारह जलसोतों से उबलता है। इसे उबलता हौज़ कहा जाता है।

इस सिस्टम के डिज़ाइनर ईरान में चौदहवीं शताब्दी ईसवी के विख्यात गणितज्ञ और खगोल शास्त्री ग़ियासुद्दीन जमशीद काशानी थे जिन्होंने पास्कल से 200 साल पहले सतह के अंतर के नियम का पता लगा लिया था और ज़मीन की प्राकृतिक ढलान का प्रयोग करके बहुत से बड़े काम किए थे।

 

इरम बाग़ शीराज़ शहर के बीच में स्थित विशाल आयताकार बाग़ है। बाग़ में ज़मीन की ढलान पश्चिम से पूरब की ओर है। ढलान तेज़ होने की वजह से वास्तुकारों ने ख़ास तरकीब निकाली कि बाग़ के मुख्य रास्तों और उनसे निकलने वाले सबवे में कई जगहों पर ज़ीने बना दिए। ऊंची नीची ज़मीन से बाग़ की ख़ूबसूरती को चार चांद लग गया और बिल्कुल अलग रूप निखर का सामने आ गया है।

बाग़ के बीच में मुख्य रास्ता और असली सड़क है जो पश्चिम से पूरब की ओर गई है। यह रास्ता इमारत और बड़े हौज़ के सामने से शुरू हुआ है और बाग़ के आख़िरी हिस्से तक गया है। रास्ते के दोनों ओर छोटे छोटे सुंदर पेड़  लगे हैं और ठीक बीच में पानी की नाली है जिसमें पानी बहता है। नाली हौज़ से शुरू हुई है और बाग़ के बीच में पहुंचने के बाद अलग लग छोटी नालियों में बंट गई है ताकि पानी बाग़ के अलग अलग हिस्सों में पहुंच जाए। जिस जगह पानी विभाजित होता है वहां कुछ ज़ीने बनाए गए हैं। इरम बाग़ का यह रास्ता इस जगह ज़ीनों से आगे बाग़ के आख़िर तक सीधा चला जाता है। इस पर कंकरियां डाल दी गई हैं।

बाग़ में ख़ास अंदाज़ की ताज़गी दिखाई देती है जो हौज़ और नालियों में दौड़ने वाले पानी से पैदा होती है। पानी हौज़ से नाली में जाता है जो लोहे की सीढ़ियों के नीचे बनी हुई है। यह पानी आगे बढ़ते हुए बड़े हौज़ के आसपास की नालियों में पहुंच जाता है और फिर वहां से असली सड़क के बीच में बनी नाली में और उससे छोटी छोटी नालियों में बहता है और वृक्षों और वनस्पतियों की की सिंचाई करता है।

पानी की चौड़ी नाली बाग़ से होते हुए बड़े हौज़ख़ाने की इमारत में पहुंचती है और वहां पानी हौज़ का चक्कर लगाने के बाद हौज़ के आसपास की नालियों में प्रवाहित होता है और बाग़ की छोटी बड़ी नालियों से होता हुआ आगे बढ़ जाता है। इस पानी का अधिकतर भाग शीराज़ के अन्य बाग़ों की तरह बड़ी नहर से आता है जो जल वितरण के पुराने सिस्टम के आधार पर कई भागों में बांट दी गई है। इसके अलावा बाग़ के भीतर दो गहरे कुएं खोदे गए हैं ताकि पंपिंग सेट की मदद से ज़रूरत का पानी प्राप्त किया जाए और पाइपों के ज़रिए उससे बाग़ की सिंचाई का काम अंजाम दिया जाए। पीने के लिए और इमारत के भीतर दूसरे इस्तेमाल के लिए शहर में होने वाली पानी की सप्लाई को प्रयोग किया जाता है।

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