इस्लामी संघ के छात्रों से वरिष्ठ नेता की मुलाक़ात
छात्रों के इस्लामी संघों के सदस्यों ने बुधवार को तेहरान में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की।
वरिष्ठ नेता ने इस अवसर पर अपने संबोधन में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि इस्लामी व्यवस्था का मुक़ाबला करने वाला पक्ष, ईरानी युवाओं की धार्मिक एवं क्रांतिकारी पहचान को बदलने के साथ ही उनसे आशा और लक्ष्यों को भी छीनने के चक्कर में है।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि इससे मुक़ाबले का एकमात्र मार्ग, धर्मावलंबी, क्रांतिकारी, दूरगामी, वीर और बलिदानी युवाओं का प्रशिक्षण करना है। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने ज़ायोनी शासन तथा अमरीका के नेतृत्व में इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरुद्ध खोले जाने वाले कुछ मोर्चों का उल्लेख करते हुए कहा कि इनमे से एक देश का स्वावलंबन भी है। उन्होंने कहा कि वर्चस्ववादी शक्तियां हर उस देश के मुक़ाबले में डट जाती हैं जो अपनी स्वतंत्रता एवं स्वावलंबन के लिए उठ खड़ा होता है।
वरिष्ठ नेता ने इस्लामी व्यवस्था और वर्चस्ववाद के बीच टकराव का एक अन्य विषय प्रगति को बताते हुए कहा कि वर्चस्ववादी शक्तियां, उस देश का भी मुक़ाबला करती हैं जो उनकी सहायता के बिना प्रगति के मार्ग पर बढ़ती हैं। इसका कारण यह है कि इस प्रकार की प्रगति अन्य देशों के लिए आदर्श बन सकती है।
उन्होंने कहा कि पश्चिम एशिया में ईरान की सशक्त उपस्थिति, फ़िलिस्तीन का विषय, इस्लामी प्रतिरोध और ईरान की इस्लामी जीवन शैली जैसे विषयों पर भी इस्लामी शासन व्यवस्था और वर्चस्ववादी मोर्चे के बीच मतभेद पाए जाते हैं। वरिष्ठ नेता ने कहा कि यदि किसी देश में पश्चिमी शैली प्रचलित होती हैं तो फिर उस समाज के मधावी भी अपने यहां के पश्चिमी अनुसरणकर्ताओं की नक़ल करने लगते हैं।
उन्होंने कहा कि कभी-कभी हमें युद्ध की धमकी दी जाती है जो वास्तव में व्यर्थ की बात है क्योंकि उनमे इतना साहस ही नहीं है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस बात पर बल दिया कि 37 वर्ष गुज़रने के बावजूद वर्चस्ववादी मोर्चा, इस्लामी गणतंत्र ईरान को न तो समाप्त कर सका और न ही क्षेत्र में उसकी प्रगति को रोक सका है। उन्होंने कहा कि मौखिक और व्यवहारिक हर प्रकार की धमकियों के बावजूद लेबनान का इस्लामी प्रतिरोध आन्दोलन हिज़बुल्लाह अब भी बाक़ी है।
वरिष्ठ नेता ने 33 दिवसीय युद्ध में हिज़बुल्लाह के हाथों ज़ायोनी शासन की लज्जाजनक पराजय की ओर संकेत करते हुए हिज़्बुल्लाह की इस सफलता की ज़ायोनी शासन के मुक़ाबले में तीन अरब देशों की शक्तिशाली सेना की पराजय से तुलना की। उन्होंने कहा कि हिज़्बुल्लाह और उसके मोमिन युवा, इस्लामी जगत के लिए गौरव और प्रतिष्ठा का कारण हैं।