क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-864
ज़ोमर 29-32
ضَرَبَ اللَّهُ مَثَلًا رَجُلًا فِيهِ شُرَكَاءُ مُتَشَاكِسُونَ وَرَجُلًا سَلَمًا لِرَجُلٍ هَلْ يَسْتَوِيَانِ مَثَلًا الْحَمْدُ لِلَّهِ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ (29)
इस आयत का अनुवाद हैः
ख़ुदा ने (शिर्क और तौहीद के लिए) एक मिसाल बयान की है कि एक शख़्स (ग़ुलाम) है जिसके कई झगड़ालू मालिक हैं (और उनमें से हर मालिक उसे अलग काम का हुक्म देता है) दूसरा शख़्स है जो केवल एक व्यक्ति का ग़ुलाम है (और केवल उसी का आदेश मानना उसकी ज़िम्मेदारी है) तो क्या उन दोनों की हालत एक जैसी हो सकती हैं? (हरगिज़ नहीं) प्रशंसा और गुणगान सिर्फ़ अल्लाह के लिए है मगर उनमें अधिकतर इसे नहीं जानते। [39:29]
अल्लाह इससे पहले सूरए ज़ोमर की आयत 27 में कह चुका है कि हमने क़ुरआन में हर तरह की मिसालें बयान की हैं ताकि लोग मुतवज्जे हो जाएं। अब यह आयत एक मिसाल पेश करते हुए अनेकेश्वरवादियों और उनकी अव्यवस्थित स्थिति की तसवीर पेश करती है।
आयत कहती है कि मिसाल के तौर पर एक ग़ुलाम है जिसके कई मालिक हैं और हर मालिक उसे अलग आदेश देता है। कोई कहता है कि फ़लां काम कर लो दूसरा कहता है कि उस काम को न करना। ग़ुलाम परेशान हो जाएगा कि क्या करे और क्या न करे। किस मालिक के आदेश का पालन करे। जिस मालिक का आदेश नज़रअंदाज़ करेगा वह नाराज़ होगा और सज़ा देगा, खाने पीने और ज़रूरत की दूसरी चीज़ों से उसे वंचित कर देगा।
इसके विपरीत आयत उस ग़ुलाम का भी तज़केरा करती है जिसका एक ही मालिक है और उसे बस उसी मालिक के आदेशों पर अमल करना है। ज़ाहिर है कि यह ग़ुलाम कभी भी अपने काम में परेशान नहीं होगा कि और उसका मालिक हमेशा उसका ख़याल रखेगा और उसकी स्वाभाविक ज़रूरतें पूरी करेगा।
हज़रत युसुफ़ ने भी जेल में क़ैदियों को एकेश्वरवाद की दावत देने के लिए इसी मिसाल का सहारा लिया था। उन्होंने क़ैदियों से कहा कि क्या अनेक और बिखरे हुए ख़ुदा अच्छे हैं या शक्तिमान अनन्य ईश्वर?! बेशक एकेश्वरवादियों और अनेकेश्वरवादियों की हालत भी इसी तरह की है। अनेकेश्वरवाद इंसान को भ्रम में डाल देता है और उसके मन का सुकून ख़त्म हो जाता है। जबकि एकेश्वरवादी इंसान एक ख़ुदा का आज्ञाकारी होता है और उसी की कृपा व दया के आसरे पर रहता है। वैसे खेद की बात यह है कि बहुत सारे लोग अपने जीवन में एकेश्वरवाद और अनेकेश्वरवाद के फ़र्क़ पर कोई ध्यान नहीं देते, इससे ग़ाफ़िल रहते हैं। वे अनेकेश्वरवाद के कारकों से ख़ुद को दूर रखने और एकेश्वरवाद का रुख़ करने के बजाए हर दिन किसी नई हस्ती या चीज़ से दिल लगाते हैं। वे ख़ुद को दूसरों का पाबंद बना लेते हैं और अपने पैरों में एक तरह की ज़ंजीर डाल लेते हैं।
इस आयत से हमने सीखाः
एकेश्वरवादी इंसान अपने कामों में केवल अल्लाह की रज़ामंदी की फ़िक्र में रहता है मगर अनेकेश्वरवादी व्यक्ति अलग अलग लोगों को ख़ुश करने में लगा रहता है। ज़ाहिर है उन सभी लोगों को ख़ुश कर पाना संभव नहीं है। क्योंकि लोगों की पसंद और स्वभाव में बहुत अंतर होता है।
एकेश्वरवाद और अनेकेश्वरवाद का असर केवल क़यामत के दिन नज़र नहीं आएगा बल्कि इसी दुनिया में अगर हम देखें तो एकेश्वरवादी इंसानों का जीवन बहुत शांति और सुकून वाला है, उनके यहां उम्मीद की रोशनी रहती है जबकि अनेकेश्वरवादी परेशानी और व्याकुलता का शिकार रहते हैं।
अब आइए सूरए ज़ोमर की आयत संख्या 30 और 31 की तिलावत सुनते हैं,
إِنَّكَ مَيِّتٌ وَإِنَّهُمْ مَيِّتُونَ (30) ثُمَّ إِنَّكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ عِنْدَ رَبِّكُمْ تَخْتَصِمُونَ (31)
इन आयतों का अनुवाद हैः
(ऐ रसूल) बेशक तुम भी मरने वाले हो और ये लोग भी यक़ीनन मरने वाले हैं [39:30] फिर तुम लोग क़यामत के दिन अपने परवरदिगार की बारगाह में आपस में झगड़ोगे [39:31]
एकेश्वरवादियों और अनेकेश्वरवादियों दोनों को एक दिन मर जाना है। ज़मीन पर कोई भी इंसान हमेशा ज़िंदा रहने वाला नहीं है। यहां तक कि पैग़म्बर भी जो अल्लाह के ख़ास बंदे हैं, इस क़ानून से अपवाद नहीं हैं। अगर पैग़म्बरे इस्लाम के दुश्मन उनकी मौत के इंतेज़ार में हैं तो वे याद रखें कि उन्हें भी मरना है। जैसा कि सूरए अंबिया की आयत 34 में कहा गया हैः हे पैग़म्बर! क्या तुम मर जाओगे ते यह लोग हमेशा जीवित रहेंगे?
मगर मौत पर इंसान की कहानी ख़त्म नहीं हो जाती। मौत तो क़यामत की दुनिया का दरवाज़ा है। वहां मोमिन और मुशरिक एक दूसरे के आमने सामने होंगे और अपने अपने अक़ीदे के ग़लत या सही होने के बारे में आपस में बहस करेंगे। यानी अनेकेश्वरवादी वहां भी अपनी सोच और आस्था के ग़लत होने की बात स्वीकार करने पर तैयार नहीं होंगे बल्कि अपनी आस्था और शैली का बचाव करेंगे। लेकिन ज़्यादा समय नहीं गुज़रेगा कि अल्लाह उनके बीच फ़ैसला करके हरेक का अंजाम उसके सामने रख देगा।
इन आयतों से हमने सीखाः
मौत एक निश्चित परम्परा है सारे इंसानों के लिए इससे कोई भी अपवाद नहीं है।
क़यामत के दिन लगने वाली अदालत में अलग अलग समूह एक दूसरे के ख़िलाफ़ बोलेंगे, एक दूसरे को दोषी ठहराने और अपना बचाव करने की कोशिश करेंगे। मगर उस दिन फ़ैसला, सर्वज्ञान और सर्वसमर्थ अल्लाह के हाथ में होगा और वह लोगों के बीच इंसाफ़ से फ़ैसला करेगा।
अब आइए सूरए ज़ोमर की आयत संख्या 32 की तिलावत सुनते हैं,
فَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنْ كَذَبَ عَلَى اللَّهِ وَكَذَّبَ بِالصِّدْقِ إِذْ جَاءَهُ أَلَيْسَ فِي جَهَنَّمَ مَثْوًى لِلْكَافِرِينَ (32)
इस आयत का अनुवाद हैः
तो इससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो ख़ुदा पर झूठ बाँधे और जब उसके पास सच्ची बात आए तो उसको झुठला दे क्या जहन्नुम में काफ़िरों का ठिकाना नहीं है [39:32]
पिछली आयत में लोगों के क़यामत के दिन लगने वाली अदालत में पेश होने की बात बताई गई। अब इसके बाद यह आयत लोगों के एक समूह का ज़िक्र करती है जिनके पास अल्लाह ने अपना सत्य संदेश भेजा मगर उन्होंने झुठलाया और उसे स्वीकार करने पर तैयार नहीं हुए।
ईमान न लाने वाले लोग जो अल्लाह के अस्तित्व का इंकार करते हैं या वे अनेकेश्वरवादी जो अपने ग़लत अक़ीदे की वजह से अल्लाह के बारे में ग़लत बातें कहते हैं दोनों प्रकार के लोग सत्य का इंकार करते हैं और उसे झूठ समझते हैं। स्वाभाविक है कि इन लोगों के बुरे और ग़लत काम उन्हें दुनिया में ही जहन्नम की ओर ले जाते हैं।
इन झुठलाने वालों के विपरीत मोमिन इंसानों का भी एक समूह है जो सत्य की पुष्टि करता है और उस पर ईमान रखता है। इंशाअल्लाह अगले कार्यक्रम में हम इस समूह के बारे में बात करेंगे।
इस आयत से हमने सीखाः
आर्थिक और सामाजिक ज़ुल्म से ज़्यादा समाज में विचार और संस्कृति पर किया जाने वाला ज़ुल्म बुरा है। इस प्रकार के जुल्म का सबसे स्पष्ट नमूना अल्लाह के बारे में झूठ बोलना और ग़लत चीज़ों को उससे जोड़ने की कोशिश करना है।
ज़िद और अड़ियल रवैया इंसान को सत्य बात के इंकार पर आमादा कर देता है और वह बात के सही या ग़लत होने पर कोई तवज्जो दिए बिना उसका इंकार कर देता है।