क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-987
सूरए नज्म आयतें, 43 से 62
आइए सबसे पहले सूरए नज्म की आयत संख्या 43 से 49 तक की तिलावत सुनते हैं,
وَأَنَّهُ هُوَ أَضْحَكَ وَأَبْكَى (43) وَأَنَّهُ هُوَ أَمَاتَ وَأَحْيَا (44) وَأَنَّهُ خَلَقَ الزَّوْجَيْنِ الذَّكَرَ وَالْأُنْثَى (45) مِنْ نُطْفَةٍ إِذَا تُمْنَى (46) وَأَنَّ عَلَيْهِ النَّشْأَةَ الْأُخْرَى (47) وَأَنَّهُ هُوَ أَغْنَى وَأَقْنَى (48) وَأَنَّهُ هُوَ رَبُّ الشِّعْرَى (49)
इन आयतों का अनुवाद इस प्रकार हैः
और ये कि वही हँसाता और रूलाता है [53:43] और ये कि वही मारता और जिलाता है [53:44] और ये कि वही नर और मादा दो क़िस्म (के जानदार) पैदा करता है [53:45] नुत्फ़े से जब (रहम में) डाला जाता है।[53:46] और ये कि उसी पर दूसरे (जहान) को वजूद में लाना उसके ज़िम्मे है [53:47] और ये कि वही मालदार बनाता है और पूंजी अता करता है, [53:48] और ये कि वही शेअरा (नाम के सितारे) का मालिक है (जिसकी इबादत एक समूह करता था) [53:49]
पिछले प्रोग्राम में हमने अल्लाह की हुकूमत और रबूबियत (पालनहार होने) के बारे में बात की थी, और यह कि सभी मामले उसी की तरफ़ लौटते हैं। ये आयतें इसके कुछ उदाहरण बताती हैं:
तुम्हारी और सभी जानदारों की ज़िंदगी और मौत अल्लाह के हाथ में है। तुम अपनी मर्ज़ी से इस दुनिया में नहीं आए, और वही तुम्हें यहाँ से ले जाएगा।
हँसना और रोना, जो इंसानों की खास पहचान है, उसी ने तुम्हें दिया है ताकि तुम अपने एहसास ज़ाहिर कर सको और एक सक्रिय, खुशहाल ज़िंदगी गुज़ार सको।
मर्द और औरत का बनाना, कुछ को नर और कुछ को मादा बनाना, नस्ल बढ़ाने का सिस्टम देना, और एक छोटे से नुतफ़े से पूरा बच्चा पैदा करना, यह सब उसी की महानता है।
आख़ेरत का होना भी उसी ने तय किया है, ताकि तुम जानो कि इस दुनिया में जो बोओगे, वही क़यामत में काटोगे। कोई भी अमल बिना प्रतिक्रिया के नहीं रहता। दौलत और रोज़ी भी उसी ने दी है, जिससे तुम्हारी ज़रूरतें पूरी होती हैं।
ज़मीन और ज़मीन वाले ही नहीं आसमान और ज़मीन, सारे सितारे - चाहे तुम उनके नाम जानो या नहीं - सबका मालिक और पालनहार वही है। फिर तुम दूसरों को क्यों उसका शरीक बनाते हो और उनके आगे झुकते हो?
इन आयतों से हमने सीखाः
हर चीज का स्रोत अल्लाह है, चाहे उनका ज़ाहिर विरोधाभासी क्यों न लगे और किसी को हम बेहतर और किसी को बुरा समझें- जैसे ज़िंदगी-मौत, हँसना-रोना।
मौजूदात में नर और मादा का होना जो उनका अस्तित्व बाक़ी रहने की बुनियाद है, दुनिया का अजूबा है और अल्लाह की हिकमत की निशानी।
दौलत को अपना न समझो, क्योंकि उसकी पैदाइश भी अल्लाह की दी हुई सामग्री से इंसान को दी गई अक़्ल से होती है।
अब हम सूरए नज्म की आयत 50 से 55 तक की तिलावत सुनते हैं,
وَأَنَّهُ أَهْلَكَ عَادًا الْأُولَى (50) وَثَمُودَ فَمَا أَبْقَى (51) وَقَوْمَ نُوحٍ مِنْ قَبْلُ إِنَّهُمْ كَانُوا هُمْ أَظْلَمَ وَأَطْغَى (52) وَالْمُؤْتَفِكَةَ أَهْوَى (53) فَغَشَّاهَا مَا غَشَّى (54) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكَ تَتَمَارَى (55)
इन आयतों का अनुवाद है:
और ये कि उसी ने पहले (क़ौमे) आद को नाबूद किया [53:50] और समूद को भी ग़रज़ किसी को बाक़ी न छोड़ा [53:51] और (उसके) पहले नूह की क़ौम को, बेशक ये लोग बड़े ही ज़ालिम और बड़े ही सरकश थे [53:52] और उसी ने (क़ौमे लूत की) बस्तियों को दरहम बरहम करके दे पटका [53:53] (फिर उन पर) जो छाया सो छाया [53:54] तो तू (ऐ इन्सान आख़िर) अपने परवरदिगार की कौन सी नेअमत पर शक करेगा। [53:55]
पिछली आयतों के सिलसिले में, जो अल्लाह की सत्ता और इंसान पर उसके प्रभुत्व के बारे में थीं, ये आयतें कहती हैं: काफ़िर और ज़ालिम पिछली क़ौमों से सबक़ क्यों नहीं लेते? क्या वे नहीं जानते कि कुछ बड़ी सभ्यताएँ ज़ुल्म, गुनाह और बग़ावत की वजह से नष्ट हो गईं और उनका कोई निशान भी नहीं बचा?
आद, समूद, नूह की क़ौम और लूत की क़ौम जैसी क़ौमें, जब अल्लाह के पैग़म्बरों ने उन्हें एकेश्वरवाद और नेकी की तरफ बुलाया, तो उन्होंने बग़ावत और हठधर्मी की। इसलिए, दुनिया में ही उन पर अल्लाह का अज़ाब इस तरह आया कि कुछ पाक और ईमान वाले लोगों को छोड़कर, सब ख़त्म हो गए।
यह एक सच्चाई है कि कुछ लोग कुफ़्र और ज़ुल्म की राह पर चलते हैं, एहसान फ़रामोशी करते हैं और अल्लाह की (भौतिक और आध्यात्मिक) नेमतों को भूल जाते हैं। ये लोग इतना ज़ुल्म और बग़ावत करते हैं कि जो सज़ा उन्हें आख़ेरत में मिलनी चाहिए, वह उन्हें दुनिया में ही मिल जाती है।
इन आयतों से हम सीखते हैं:
पिछले लोगों के इतिहास को पढ़कर, हमें उनके बुरे अंजाम से सबक़ लेना चाहिए और बग़ावत व हठधर्मी की राह नहीं अपनानी चाहिए।
अल्लाह की सज़ाएँ सिर्फ़ आख़ेरत के लिए नहीं हैं; कुछ मामलों में, ज़ालिमों को दुनिया में ही उनके बुरे कर्मों की सज़ा मिल जाती है।
लोगों पर ज़ुल्म करना और अल्लाह के ख़िलाफ़ बग़ावत करना, पिछली क़ौमों के विनाश का कारण बना।
अब हम सूरए नज्म की आयत 56 से 62 की तिलावत सुनते हैं:
هَذَا نَذِيرٌ مِنَ النُّذُرِ الْأُولَى (56) أَزِفَتِ الْآَزِفَةُ (57) لَيْسَ لَهَا مِنْ دُونِ اللَّهِ كَاشِفَةٌ (58) أَفَمِنْ هَذَا الْحَدِيثِ تَعْجَبُونَ (59) وَتَضْحَكُونَ وَلَا تَبْكُونَ (60) وَأَنْتُمْ سَامِدُونَ (61) فَاسْجُدُوا لِلَّهِ وَاعْبُدُوا (62)
इन आयतों का अनुवाद हैः
ये (पैग़म्बर भी) अगले डराने वाले पैग़म्बरों में से एक डराने वाले पैग़म्बर हैं [53:56] क़यामत क़रीब आ गयी [53:57] ख़ुदा के सिवा उसे कोई टाल नहीं सकता [53:58] तो क्या तुम लोग इस बात से ताज्जुब करते हो और हँसते हो [53:59] और रोते नहीं हो [53:60] और तुम इस क़दर ग़ाफ़िल हो [53:61] तो ख़ुदा के आगे सजदे किया करो और (उसी की) इबादत किया करो (62) [53:62]
ये आयतें, जो सूरए नज्म की आयतें हैं, उन इंसानों को संबोधित करती हैं जो घमंड और ग़फ़लत में डूबे हुए हैं। ये कहती हैं:
"तुम कैसे अल्लाह के पैग़म्बरों की उन चेतावनियों को नज़रअंदाज़ कर देते हो जो क़यामत के आने और अपने कर्मों का हिसाब देने के बारे में हैं? तुम इसे कोई दूर की और असंभव-सी बात समझते हो, जबकि मौत तो नज़दीक ही है और उसके बाद क़यामत आएगी!"
दुनिया ने तुम्हें इस क़दर व्यस्त कर दिया है कि तुम आख़ेरत को भूल गए हो! अपनी हालत पर रोने की बजाय, तुम मस्ती में हँसते हो। ईमान वालों की आस्था को मज़ाक़ और तंज़ का विषय बनाते हो, और उन्हें तुच्छ समझकर देखते हो।"
इस सूरे की आख़िरी आयत इंसान को इस घमंड और ग़फ़लत से बचने का रास्ता बताती है – वह है अल्लाह के सामने विनम्रता और समर्पण दिखाना, तथा उसकी इबादत में किसी भी तरह के शिर्क से दूर रहना।
इन आयतों से हम सीखते हैं:
क़यामत को दूर न समझें यह हमारे जीवन के बहुत निकट है, और हमें हमेशा इसके लिए तैयार रहना चाहिए।
दुनिया में ही नेकी का प्रयास करें, अगर हम अपने कल्याण की चिंता करते हैं, तो अभी से इसके लिए प्रयास शुरू कर देना चाहिए, क्योंकि आख़ेरत में कोई रास्ता नहीं बचेगा।
रोना सिर्फ़ दुनिया के लिए नहीं, अल्लाह के नेक बंदे क़यामत में अपनी हालत को याद करके रोया करते थे और अल्लाह से माफ़ी माँगते थे।
सज्दा घमंड को तोड़ता है – नमाज़ की हर रक्अत में दो बार सज्दा करना, इंसान के घमंड, ग़फ़लत और मस्ती को दूर करने का एक तरीक़ा है।