Jun ०९, २०२५ १७:३२ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-1003

सूरए वाक़ेया आयतें, 75 से 96

आइए सबसे पहले सूरए वाक़ेआ की आयत संख्या 75 से 82 तक की तिलावत सुनते हैं,

فَلَا أُقْسِمُ بِمَوَاقِعِ النُّجُومِ (75) وَإِنَّهُ لَقَسَمٌ لَوْ تَعْلَمُونَ عَظِيمٌ (76) إِنَّهُ لَقُرْآَنٌ كَرِيمٌ (77) فِي كِتَابٍ مَكْنُونٍ (78) لَا يَمَسُّهُ إِلَّا الْمُطَهَّرُونَ (79) تَنْزِيلٌ مِنْ رَبِّ الْعَالَمِينَ (80) أَفَبِهَذَا الْحَدِيثِ أَنْتُمْ مُدْهِنُونَ (81) وَتَجْعَلُونَ رِزْقَكُمْ أَنَّكُمْ تُكَذِّبُونَ (82)

इन आयतों का अनुवाद हैः

तो मैं तारों के मनाज़िल की क़सम खाता हूँ [56:75] और अगर तुम समझो तो ये बड़ी क़सम है [56:76] कि बेशक ये बड़े रूतबे का क़ुरान है[56:77] जो किताब (लौहे महफूज़) में (लिखा हुआ) है  [56:78] इस (के रहस्यों) तक बस वही लोग पहुंच रखते हैं जो पाक हैं। [56:79] सारे जहाँ के परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल हुआ है [56:80] तो क्या तुम लोग इस कलाम हलका और कमज़ोर समझते हो? [56:81] और तुमने अपनी रोज़ी ये करार दे ली है कि (उसको) झुठलाते हो [56:82]

पिछले कुछ कार्यक्रमों में, काफिरों और इनकार करने वालों द्वारा क़यामत को झुठलाने के बारे में चर्चा थी। यह स्पष्ट है कि क़यामत के बारे में हमारी जानकारी का एकमात्र स्रोत ईश्वरीय वहि है जो पैग़म्बरों के माध्यम से मनुष्यों तक पहुँचाई जाती है, और चूँकि इनकार करने वाले वहि और पैग़म्बरी को नहीं मानते, वे क़यामत को भी स्वीकार नहीं करते।

ये आयतें तारों के स्थान की शपथ लेकर शुरू होती हैं। आज मनुष्य के लिए यह स्पष्ट हो गया है कि आकाश में मौजूद हज़ारों अरबों तारों में से प्रत्येक का स्थान और उनकी स्थिति अंतरिक्ष में निर्धारित है। ये तारे अपनी विशेष कक्षाओं में गतिशील हैं और तैर रहे हैं, और उनके मार्ग और कक्षाएँ, यहाँ तक कि प्रत्येक की गति भी बहुत सटीक और निर्धारित है। 

इसका एक उदाहरण, हमारा सौर मंडल है। वैज्ञानिकों के गणना के अनुसार, सौर मंडल के ग्रहों की कक्षाओं की व्यवस्था इतनी सटीक और तयशुदा है कि हर विचारशील और बुद्धिमान व्यक्ति को आश्चर्यचकित कर देती है।

यहाँ हम क़ुरआन द्वारा तारों के स्थान और उनकी गति के मार्ग की शपथ के महत्व को और अधिक समझते हैं, और यह स्वयं क़ुरआन करीम के चमत्कारों में से एक है।

ये आयतें आगे क़ुरआन की महानता और उसके उच्च ज्ञान की ओर संकेत करती हैं और कहती हैं: वही अल्लाह जिसने विशाल आकाश को बनाया और अरबों तारों को उनकी निर्धारित कक्षाओं में स्थापित किया, उसने आप मनुष्यों के मार्गदर्शन के लिए क़ुरआन को उतारा है।

यह किताब, मनुष्य की पूर्णता और उत्कृष्टता तक पहुँचने के लिए आवश्यक ज्ञान और सत्यों को, किसी भी प्रकार की त्रुटि से दूर, उदारतापूर्वक आपके सामने प्रस्तुत करती है और इस दिशा में कंजूसी नहीं करती।

बेशक, इस ज्ञान से लाभ उठाने की शर्त एक पवित्र, सत्य की खोज और सत्य की इच्छा वाली मानसिकता है। इसलिए, जो लोग हठ और जिद्द में फँसे हैं और जिनकी आत्माएँ गंदगी से दूषित हो गई हैं, वे दुनिया और आख़ेरत के मामलों में इसकी सच्चाइयों से लाभ नहीं उठा सकते।

इन आयतों से हम सीखते हैं:

अल्लाह ने क़ुरआन में तारों के स्थान और उनकी स्थिति की शपथ ली है और इस विषय के महत्व पर ज़ोर दिया है।

इस विशाल कायनात के रचयिता ने मनुष्य को विकास और पूर्णता की ओर मार्गदर्शन करने के लिए क़ुरआन को उतारा है। हाँ! सृष्टि और कानून एक ही अल्लाह के हाथ में है और सभी एक ही स्रोत से उत्पन्न होते हैं।

क़ुरआन, परवरदिगार का कलाम है। यह किताब केवल शब्द और वाक्य नहीं है, बल्कि इसकी सामग्री उत्कृष्ट है और अल्लाह के पास सुरक्षित है। यह हर प्रकार की बुरी और अप्रिय बात से मुक्त है और मोमिन इंसानों की प्रतिष्ठा और गरिमा का ज़रिया है।

विभिन्न प्रकार की गंदगियों से दूषित आत्माएँ, क़ुरआन के सत्य को समझने और स्वीकार करने की क्षमता नहीं रखतीं, यानी पवित्र लोगों के अलावा कोई भी क़ुरआन के मार्गदर्शन से लाभ नहीं उठा सकता।

क़ुरआन के उत्कृष्ट ज्ञान की उपेक्षा करना और उन्हें छोटा और महत्वहीन समझना, मनुष्य को क़यामत को झुठलाने और इनकार करने की ओर ले जाता है।

आइए अब हम सूरए वाक़ेआ की आयत संख्या 83 से 87 तक की तिलावत सुनते हैं,

فَلَوْلَا إِذَا بَلَغَتِ الْحُلْقُومَ (83) وَأَنْتُمْ حِينَئِذٍ تَنْظُرُونَ (84) وَنَحْنُ أَقْرَبُ إِلَيْهِ مِنْكُمْ وَلَكِنْ لَا تُبْصِرُونَ (85) فَلَوْلَا إِنْ كُنْتُمْ غَيْرَ مَدِينِينَ (86) تَرْجِعُونَهَا إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ (87)

इन आयतों का अनुवाद हैः

तो क्यों जब जान गले तक पहुँचती है [56:83] और तुम उस वक़्त (सिर्फ़) देखा करते हो (और कुछ भी नहीं कर पाते) [56:84] और हम इस (मरने वाले) से तुमसे भी ज्यादा नज़दीक होते हैं लेकिन तुमको दिखाई नहीं देता।[56:85] तो अगर तुम किसी के दबाव में नहीं हो [56:86] तो अगर  तुम सच्चे हो तो (उस मरने वाले की) रूह को फेर क्यों नहीं देते? [56:87]

ये आयतें फिर से क़यामत के विषय पर लौटती हैं और मौत के क्षणों की ओर संकेत करती हैं। यह कहती हैं: तुम मनुष्यों की मौत और ज़िंदगी अल्लाह के हाथ में है, और जब तुम में से किसी की मौत का समय आ जाता है, तो कोई भी कुछ नहीं कर सकता। यहाँ तक कि विशेषज्ञ डॉक्टर भी, उन्नत उपकरण होने के बावजूद, मौत के क़रीब पहुँच चुके रोगी का इलाज करने में असमर्थ होते हैं और सिर्फ़ देखते रह जाते हैं। 

जो व्यक्ति अल्लाह को नकारता है और मनुष्य के ज्ञान और शक्ति पर भरोसा करता है, अगर उसका कोई क़रीबी मौत के नज़दीक पहुँच जाए, तो क्या वह उसकी मौत को रोक सकता है और उसे जीवन वापस दे सकता है? यह कैसा इंसान है जो यह स्वीकार करने को तैयार नहीं कि मनुष्य अल्लाह की शक्ति और इच्छा के सामने असहाय है और इस दुनिया में उसकी इच्छा के अलावा कुछ भी प्रभावी नहीं है

इन आयतों से हम सीखते हैं:

वही शक्ति जो मनुष्यों की जान लेती है और कोई उसे रोक नहीं सकता, क़यामत के दिन उन्हें फिर से जीवन देगी, और कोई भी उसकी इच्छा को रोक नहीं पाएगा। 

मौत के समय, अल्लाह इंसान के उसके अपनों से भी ज़्यादा नज़दीक होता है, लेकिन दूसरे लोग इस सच्चाई को नहीं समझ पाते। 

आइए अब हम सूरए वाक़ेआ की आयत 88 से 96 तक की तिलावत सुनते हैं:

فَأَمَّا إِنْ كَانَ مِنَ الْمُقَرَّبِينَ (88) فَرَوْحٌ وَرَيْحَانٌ وَجَنَّةُ نَعِيمٍ (89) وَأَمَّا إِنْ كَانَ مِنْ أَصْحَابِ الْيَمِينِ (90) فَسَلَامٌ لَكَ مِنْ أَصْحَابِ الْيَمِينِ (91) وَأَمَّا إِنْ كَانَ مِنَ الْمُكَذِّبِينَ الضَّالِّينَ (92) فَنُزُلٌ مِنْ حَمِيمٍ (93) وَتَصْلِيَةُ جَحِيمٍ (94) إِنَّ هَذَا لَهُوَ حَقُّ الْيَقِينِ (95) فَسَبِّحْ بِاسْمِ رَبِّكَ الْعَظِيمِ (96)

इन आयतों का अनुवाद हैः

तो अगर वह मुक़र्रेबीन में से है  [56:88] तो (उस के लिए) आराम व चैन है और ख़ुशबूदार फूल और नेमत के बाग़ हैं [56:89] और अगर वह दाहिने हाथ वालों में से है। [56:90] तो (उससे कहा जाएगा कि) तुम पर दाहिने हाथ वालों की तरफ़ से सलाम हो। [56:91] और अगर झुठलाने वाले गुमराहों में से है,[56:92] तो (उसकी) मेहमानी खौलते हुए पानी से होगी [56:93] और जहन्नम में प्रवेश (उसकी सज़ा) है [56:94] बेशक ये (ख़बर) यक़ीनन सही है [56:95] तो (ऐ रसूल) तुम अपने महान परवरदिगार की तस्बीह करो। [56:96]

इस सूरे की शुरुआत में लोगों को तीन समूहों में बांटा गया था: मुक़र्रबीन (अल्लाह के निकटवर्ती, सुखी भाग्यवान, और गुमराह लोग। ये आयतें जो इस सूरे का समापन करती हैं, फिर से इन तीन समूहों की ओर इशारा करती हैं और कहती हैं: मौत के समय और बरज़ख की दुनिया में प्रवेश करते ही, इन तीनों समूहों की स्थितियां अलग-अलग हो जाती हैं और यह क़यामत के आने तक जारी रहती हैं।

मुक़र्रबीन जो ईमान और अच्छे कर्मों में अग्रणी हैं, दुनिया की कठिनाइयों से मुक्त होकर सुख-सुविधा और नेमतों का आनंद लेते हैं। सुखी भाग्यवान लोगों का पवित्र और भाग्यशाली लोग स्वागत करते हैं और वे उनके साथ हो जाते हैं। लेकिन क़यामत को झुठलाने वाले जो गुमराही और भटकाव में डूबे हुए हैं, मौत के समय से ही अज़ाब और कठिनाई में रहते हैं यहाँ तक कि क़यामत आने के बाद वे जहन्नम में दाखिल हो जाएंगे।

जो कुछ भी इस सूरे में क़यामत के बारे में बताया गया है, वह सब सच और निश्चित है और ईमान वाले लोग इस पर विश्वास रखते हैं। वे अल्लाह को अपने बंदों पर किसी भी प्रकार के अत्याचार और ज़ुल्म से पाक मानते हैं और हमेशा उसकी तस्बीह  करते हैं।

इन आयतों से हम सीखते हैं:

आम लोग मौत से डरते हैं और उसे कठिन और दर्दनाक समझते हैं, लेकिन अल्लाह के निकटवर्तियों यानी मुक़र्रबीन के लिए मौत कई बड़ी नेमतों को पाने का ज़रिया है: मौत के साथ ही वे दुनिया की परेशानियों और कठिनाइयों से मुक्त होकर आराम और सुख पाते हैं। अल्लाह की विशेष कृपा उन पर होती है और वे स्थायी कामयाबी हासिल करते हैं।

मौत के समय से ही अच्छे और बुरे लोगों की सज़ा और इनाम शुरू हो जाता है और यह क़यामत तक जारी रहती है।