क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-865
ज़ोमर आयतें 33-37
وَالَّذِي جَاءَ بِالصِّدْقِ وَصَدَّقَ بِهِ أُولَئِكَ هُمُ الْمُتَّقُونَ (33) لَهُمْ مَا يَشَاءُونَ عِنْدَ رَبِّهِمْ ذَلِكَ جَزَاءُ الْمُحْسِنِينَ (34)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और याद रखो कि जो (रसूल) सच्ची बात लेकर आया वह और जिसने उसकी तसदीक़ की यही लोग तो परहेज़गार हैं [39:33] ये लोग जो चाहेंगे उनके लिए परवरदिगार के पास (मौजूद) है, ये नेकी करने वालों का अच्छा बदला है। [39:34]
क़यामत के दिन लोग दो समूहों में बंट जाएंगे। एकेश्वरवादी और अनेकेश्वरवादी। हमने पिछले कार्यक्रम की आख़िरी आयत में अनेकेश्वरवादियों के अंजाम के बारे में बात की कि उनकी दुश्मनी, ज़िद और सत्य की मुख़ालिफ़त उन्हें जहन्नम में ले जाएगी। अब यह आयतें एकेश्वरवादियों के बारे में बात करती हैं कि उन लोगों ने सत्य का पैग़ाम सुना, उस पर ईमान लाए और मुत्तक़ी बने। यह लोग अपने दिल में भी अल्लाह की किताब पर अक़ीदा रखते हैं और अपनी बातों और अपने अमल के ज़रिए भी दीन का प्रचार करने वाले और उसकी शिक्षाओं पर सच्चाई से अमल करने वाले हैं। यह लोग हर तरह के दिखावे और दोग़लेपन से दूर हैं।
अनेकेश्वरवादियों का अंजाम यह है कि वे जहन्नम में जाएंगे और उनके विपरीत मोमिन बंदों का अंजाम यह है कि वे जन्नत में जाएंगे। वहां वे जो भी चाहेंगे अल्लाह उन्हें देगा, भौतिक ख़ुशियां भी और आध्यात्मिक ख़ुशियां और दर्जे भी।
ज़ाहिर है कि सच्चे मोमिन नेक अमल और भले कार्य करते हैं, दूसरों के साथ नेकी करते हैं और उन्हें जो इनाम मिला वह अक़ीदे के साथ साथ इस नेक अमल की वजह से मिला है।
इन आयतों से हमने सीखाः
बात और अमल में सच्चाई अल्लाह पर ईमान की पहली शर्त है। झूठ ईमान से मेल नहीं खाता।
दीन का प्रचार उसी समय प्रभावी होगा जब प्रचारक ख़ुद भी उस पर अमल करे वरना दूसरी स्थिति में हो सकता है कि उलटा नतीजा निकले।
जन्नत में अल्लाह के करम और इनाम की कोई सीमा नहीं होगी। जन्नत वालों की इच्छा और चाहत के अनुसार इसमें इज़ाफ़ा होता रहेगा।
तक़वा और नेक अमल क़ुरआन में इस्तेमाल किए गए हैं यह दोनों एक दूसरे के साथ साथ रहने वाली चीज़ें हैं।
अब आइए सूरए ज़ोमर की आयत संख्या 35 की तिलावत सुनते हैं,
لِيُكَفِّرَ اللَّهُ عَنْهُمْ أَسْوَأَ الَّذِي عَمِلُوا وَيَجْزِيَهُمْ أَجْرَهُمْ بِأَحْسَنِ الَّذِي كَانُوا يَعْمَلُونَ (35)
इस आयत का अनुवाद हैः
ताकि ख़ुदा उन लोगों की बुराइयों को जो उन्होने की हैं दूर कर दे और उनके अच्छे कामों के बदले जो वह कर चुके थे अज्र (सवाब) अता फ़रमाए। [39:35]
परहेज़गार इंसानों की अल्लाह से एक दुआ यह होती है कि उनके गुनाहों को माफ़ कर दे और उनके नेक कामों को आधार बनाकर उन्हें बदला दे। अल्लाह उनकी इस दुआ को क़ुबूल करेगा और उनके गुनाहों को माफ़ करके उन्हें बेहतरीन इनाम देगा। यहां यह भी ज़िक्र कर देना बेहतर है कि तक़वा का यह मतलब नहीं कि इससे इंसान हर गुनाह से पूरी तरह सुरक्षित हो जाता है और मासूम बन जाता है। तक़वा इंसान का स्वभाव ऐसा बना देता है कि वह गुनाह और अल्लाह की नाफ़रमानी की तरफ़ नहीं जाता। वह उन कामों से भी दूर रहता है जो गुनाह की भूमिका बनते हैं। इसके साथ ही यह आशंका भी बनी रहती है कि यह इंसान भी डगमगा जाए और गुनाह में पड़ जाए। तक़वा उस ढाल की तरह है जिसे सिपाही अपने हाथ में रखता है ताकि ख़ुद को दुश्मन के हमलों से सुरक्षित रखे। मगर संभव है कि कोई तीर ऐसा भी हो जिसे ढाल रोक न पाए और वह शरीर में आकर चुभ जाए। अहम बात यह है कि सिपाही अपनी ढाल हाथ में रखे और दुश्मन के हमलों पर नज़र लगाए रहे। यह आशंका भी रहती है कि कोई इंसान अपनी इच्छाओं की चपेट में आकर ढाल ज़मीन पर रख दे और शैतानी बहकावे का शिकार हो जाए।
लेकिन परहेज़गारों पर अल्लाह का करम होता है। वे ख़ुद को गुनाह से बचाने के लिए जो संघर्ष करते हैं उसे देखते हुए अल्लाह उनके उन गुनाहों को माफ़ कर देता है जिसमें वे न चाहते हुए भी पड़ गए थे इसके बाद अल्लाह उनके बेहतरीन कर्मों को देखते हुए उसकी बुनियाद पर उन्हें बदला देता है। इसकी वजह यह है कि उनकी नीयत और जज़्बा उनके नेक काम से भी कहीं ज़्यादा बड़ा था जिसकी वजह से उन्होंने यह काम अंजाम दिया।
इस आयत से हमने सीखाः
इंसान का इरादा, जज़्बा और लक्ष्य बहुत अहम है। यानी अगर वह ख़ुद को गुनाह से बचाने के लिए मेहनत करे तो अल्लाह उसके बुरे कर्मों को नज़रअंदाज़ कर सकता है और उसके भले कर्मों पर उसे ख़ूब बदला और सवाब दे सकता है।
गुनाहों और उनके बुरे असर से पाक होना अल्लाह का करम और इनाम पाने की भूमिका है।
अब आइए सूरए ज़ोमर की आयत संख्या 36 और 37 की तिलावत सुनते हैं,
أَلَيْسَ اللَّهُ بِكَافٍ عَبْدَهُ وَيُخَوِّفُونَكَ بِالَّذِينَ مِنْ دُونِهِ وَمَنْ يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ هَادٍ (36) وَمَنْ يَهْدِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ مُضِلٍّ أَلَيْسَ اللَّهُ بِعَزِيزٍ ذِي انْتِقَامٍ (37)
इन आयतों का अनुवाद हैः
क्या ख़ुदा अपने बन्दों (की मदद) के लिए काफ़ी नहीं है (ज़रूर है) और (ऐ रसूल) तुमको लोग ख़ुदा के सिवा (दूसरों) से डराते हैं और ख़ुदा जिसे गुमराही में छोड़ दे तो उसको कोई राह पर लाने वाला नहीं है [39:36] और जिस शख़्स की हिदायत करे तो उसको कोई गुमराह करने वाला नहीं। क्या ख़ुदा अजेय और बदला लेने वाला नहीं है (ज़रूर है) [39:37]
पिछली आयतों में मोमिनों और काफ़िरों के बीच तुलना के बाद अब यह आयतें पैग़म्बरे इस्लाम से कहती हैं कि यह लोग सत्य का संदेश स्वीकार करने के बजाए तुम्हारे विरोध पर तुल गए हैं और तुम्हें धमकियां देते हैं जबकि अल्लाह तुम्हारे लिए काफ़ी है। उसकी अनुमति के बग़ैर कोई भी तुमको नुक़सान नहीं पहुंचा सकता। जैसा कि अतीत में हज़रत इब्राहीम को आग में जलने से, हज़रत मूसा को ज़ालिम फ़िरऔन से और हज़रत ईसा को फांसी से बचाया गया।
यह आयत इसके बाद मार्गदर्शन और गुमराही के बारे में बात करते हुए कहती है कि जो भी अल्लाह के मार्गदर्शन को स्वीकार और उसका अनुसरण करे वह गुमराह होने से बच जाएगा और जो भी अल्लाह के मार्गदर्शन को स्वीकार नहीं करेगा उसका अच्छा अंजाम नहीं होगा चाहे उसे यह गुमान ही क्यों न हो कि उसे हिदायत का रास्ता मिल गया है।
इन आयतों के आख़िर में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि क्या काफ़िरों और अनेकेश्वरवादियों को यह नहीं पता कि अल्लाह के सामने और उसके इरादे के सामने वे टिक नहीं पाएंगे? क्या उन्हें नहीं मालूम कि अल्लाह के पैग़म्बरों और उसकी शिक्षाओं का विरोध करने वालों से वह इंतेक़ाम लेता है? और उसका इंतेक़ाम यही है कि वे गुमराही में पड़ जाएंगे।
इन आयतों से हमने सीखाः
अगर इंसान मोमिन और अल्लाह की बात मानने वाला हो तो अल्लाह उसके मामलों को संभालने के लिए पर्याप्त है।
मोमिन इंसान दुश्मनों के ख़तरों के सामने अल्लाह की पनाह हासिल करता है और दुश्मन की ताक़त और संसाधनों से घबराने के बजाए अल्लाह से आस लगाता है और सत्य के मार्ग पर डटा रहता है।
इंसान बेवजह गुमराह नहीं होता बल्कि अपने ग़लत कामों की वजह से हिदायत के नूर से वंचित हो जाता है और वह गुमराही के रास्ते पर चल पड़ता है।