Nov २१, २०२२ १५:२५ Asia/Kolkata

ज़ोमर, आयतें 59-63

 

بَلَى قَدْ جَاءَتْكَ آَيَاتِي فَكَذَّبْتَ بِهَا وَاسْتَكْبَرْتَ وَكُنْتَ مِنَ الْكَافِرِينَ (59) وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ تَرَى الَّذِينَ كَذَبُوا عَلَى اللَّهِ وُجُوهُهُمْ مُسْوَدَّةٌ أَلَيْسَ فِي جَهَنَّمَ مَثْوًى لِلْمُتَكَبِّرِينَ (60)

इन आयतों का अनुवाद है

उस वक्त ख़ुदा कहेगा ( हाँ ) हाँ तेरे पास मेरी आयतें पहुँची तो तूने उन्हें झुठलाया और घमंड दिखाया और तू भी काफिरों में से था [39:59] और जिन लोगों ने ख़ुदा से झूठी बातों को जोड़ा,  तुम क़यामत के दिन देखोगे कि उनके चेहरे सियाह होंगे क्या ग़ुरूर करने वालों का ठिकाना जहन्नम में नहीं है। [39:60]

पिछले कार्यक्रम में उन लोगों की बात की गई जो जहन्नम की आग को देखने के बाद ग़फ़लत से जागेंगे और बर्बाद हो चुकी अपनी दुनिया की ज़िंदगी पर पछताएंगे। वे तमन्ना करेंगे कि काश फिर दुनिया में लौट पाते ताकि सही रास्ते पर चलते और पिछली ग़लतियों की भरपाई करते।

यह आयतें कहती हैं कि ऐसा नहीं है कि अल्लाह ने तुम्हारे सिलसिले में कोई कोताही बर्ती और तुम्हारे मार्गदर्शन के साधन मुहैया नहीं कराए। बल्कि जब तुम दुनिया में थे तो पैग़म्बर और आसमानी ग्रंथ तुम्हारी हिदायत के लिए भेजे गए। अगर अपनी अक़्ल इस्तेमाल करते तो आसानी से उनके महत्व को समझ जाते और उनकी मदद से सही रास्ता चुन लेते।

लेकिन तुम तो ग़ुरूर में पड़े हुए थे इसलिए सच्चे धर्म का इंकार करते रहे और पैग़म्बरों की दावत स्वीकार करने पर तैयार नहीं हुए। नतीजा यह निकला कि आज जहन्नम की आग में जल रहे हो। ऐसी सज़ा जो चेहरों को कुरूपी और बदनुमा बना देती है और उसकी वजह से जहन्नम वाले एक दूसरे से और भी नफ़रत करने लगते हैं।

निश्चित रूप से क़यामत में नास्तिकों और सत्य का इंकार करने वालों की नाकामी और दुर्दशा उनकी रुसवाई और अपमान की निशानी बनेगी। क़यामत दरअस्ल वह मैदान है जहां इंसानों के कर्म और उनकी सोच साकार होकर उनके सामने आएगी और उनके सारे राज़ खुल जाएंगे। इस दुनिया में जिन लोगों के दिल अंधकार में डूबे हुए हैं और उनके कर्म भी उनकी सोच की ही भांति ख़राब हैं क़यामत में उनकी यह अंदरूनी हालत उनके चेहारों पर साफ़ नज़र आएगी और उनका रूप काला पड़ जाएगा।

इन आयतों से हमने सीखाः

अल्लाह अक़्ल और अपने ख़ास आसमानी संदेश वहि के ज़रिए हर एतेराज़ की गुंजाइश ख़त्म कर देने से पहले लोगों को सज़ा नहीं देता।

सत्य के इंकार और कुफ़्र का रास्ता अख़तियार करने की असली वजह घमंड है।

क़यामत में इंसान का ज़ाहिर और अंदरूनी व्यक्तित्व सब एक हो जाएगा और चेहरे दिलों के रंग के हो जाएंगे। जिनके दिल काले होंगे उनके चेहरे काले पड़ जाएंगे।

अब आइए सूरए ज़ोमर की आयत संख्या 61 की तिलावत सुनते हैं,

وَيُنَجِّي اللَّهُ الَّذِينَ اتَّقَوْا بِمَفَازَتِهِمْ لَا يَمَسُّهُمُ السُّوءُ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ (61)

इस आयत का अनुवाद हैः

और जो लोग परहेज़गार हैं ख़ुदा उन्हें उनके उन कामों की वजह से जो उनकी निजात का जरिया बन सकते थे, निजात देगा, उन्हें तकलीफ़ छुएगी भी नहीं और न यह लोग (किसी तरह) रंजीदा होंगे। [39:61]

उस समूह के मुक़ाबले में जो घमंड और कुफ़्र की वजह से जहन्नम के शिकार हो गए, यह आयत क़यामत के अज़ाब से ख़ुद को सुरक्षित रखने का रास्ता बताते हुए तक़वा और परहेज़गारी का नाम लेती है। आयत कहती है कि अल्लाह तक़वा अपनाने वालों को नजात देगा और वे भाग्यशाली और निजात पाने वालों में शामिल होंगे।

भाग्यशाली होने का मतलब है स्थायी और असीम आनंद। हालांकि स्वादिष्ट खाने खाना और मन को भाने वाले पेय पीना बहुत आनंददायक होता है लेकिन यह भाग्यशाली होने का चिन्ह नहीं है। क्योंकि यह लज़्ज़त हमेशा नहीं रहती बल्कि कुछ ही क्षणों में ख़त्म हो जाती है। मगर ज्ञान और इल्म की ज्योति हासिल करने की लज़्ज़त इंसान को वास्तव में भाग्यशाली बना सकती है क्योंकि तथ्यों को जानने की लज़्ज़त स्थायी होती है।

दुनिया की ख़ुशियां चाहे जितनी लंबी हों इंसान की ज़िंदगी चूंकि सीमित है इसलिए आख़ेरत की अनंत लज़्ज़तों के मुक़ाबले में वो बहुत कम और मामूली हैं। इसलिए वास्तविक ख़ुशक़िस्मती उन चीज़ों को माना जा सकता है जिनकी मदद से आख़ेरत में अनंत ख़ुशी और आनंद हासिल हो, इंसान को हर तरह के दुख और चिंता से मुक्ति दिलाए और उसे किसी तरह का ख़तरा और नुक़सान न हो।

इस आयत से हमने सीखाः

दुनिया की ज़िंदगी में तक़वा आख़ेरत में नजात और ख़ुशक़िस्मती का रास्ता है।

तक़वा एक ढाल है जो इंसान को बुराइयों से बचाता है। क़यामत में परहेज़गार इंसान बुराइयों से दूर रहेंगे और ग़म और पछतावा उनके क़रीब नहीं जाएगा।

अब सूरए ज़ोमर की आयत संख्या 62 और 63 की तिलावत सुनते हैं,

اللَّهُ خَالِقُ كُلِّ شَيْءٍ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ وَكِيلٌ (62) لَهُ مَقَالِيدُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَالَّذِينَ كَفَرُوا بِآَيَاتِ اللَّهِ أُولَئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ (63)

इन आयतों का अनुवाद हैः

ख़ुदा ही हर चीज़ का पैदा करने वाला है और वही हर चीज़ का निगहबान है [39:62] सारे आसमानों व ज़मीन की कुन्जियाँ उसके पास हैं और जो लोग अल्लाह की आयतों से इन्कार कर बैठे वही घाटे में रहेंगे। [39:63] 

इस सूरे का आयतों की बुनियादी विषय शिर्क यानी अनेकेश्वरवाद और तौहीद यानी एकेश्वरवाद है। इसलिए यह आयतें एक बार फिर तौहीद के विषय की ओर लौटती हैं और इस हक़ीक़त का हवाला देती हैं कि दुनिया की वस्तुओं, विषयों और मामलों का संचालन और उनकी हिफ़ाज़त उसी हस्ती के हाथ में है जिसने उनकी रचना की है। उसके हाथ में नहीं है जिसके बारे में तुम धारणा रखते हो कि उसने दुनिया को पैदा करके उसके हाल पर छोड़ दिया है या उसके मामलों का संचालन दूसरों के सिपुर्द कर दिया है।

यह आयतें दरअस्ल अनेकेश्वरवादियों और नास्तिकों की आस्था पर सवाल उठाती हैं। यह भी जानना उचित होगा कि कुछ अनेकेश्वरवादी अल्लाह को इंसानों और दुनिया का पैदा करने वाला तो मानते हैं लेकिन उनकी धारणा यह है कि जिन चीज़ों की वे इबादत करते हैं इंसानों की ज़िंदगी में उन चीज़ों का गहरा असर है। यानी दुनिया का संचालन उनके हाथ में है जिनकी यह लोग इबादत करते हैं।

क़ुरआन की नज़र में जो लोग अल्लाह के बजाए दूसरों का रुख़ करते हैं और उन्हें दुनिया पर गहरा प्रभाव रखने वाली ताक़त मानते हैं वे वास्तविक घाटा उठाने वाले हैं। क्योंकि उन्होंने सारी कायनात के असली मालिक से मुंह फेर लिया है उससे जिसके हाथ में आसमानों और ज़मीन की कुंजियां हैं। अल्लाह को छोड़कर वे लोग उन कमज़ोर और निर्बल चीज़ों की तरफ़ गए हैं जो उन्हें कोई फ़ायदा या नुक़सान नहीं पहुंचा सकते बल्कि उनके बस में कुछ है ही नहीं तो फिर इंसान से ख़तरों को दूर भी नहीं कर सकते।

इन आयतों से हमने सीखाः

पूरी कायनात पैदाइश और बाक़ी रहने में अल्लाह की मोहताज है। दूसरे शब्दों में इस तरह कहा जाए कि वही कायनात का पैदा करने वाला है और वही इसका मोहाफ़िज़ और रक्षक। यह सोच शिर्क है कि दुनिया का पैदा करने वाला तो अल्लाह है लेकिन उसे चलाने वाला कोई और है।

तौहीद या एकेश्वरवाद ऐसा नज़रिया है जो इंसान की ज़िंदगी के हर आयाम में गहराई तक उतर जाना चाहिए। इसके जीवन के किसी ख़ास क्षेत्र तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए।

 

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