Nov २१, २०२२ १५:२९ Asia/Kolkata

ज़ोमर 64-70

قُلْ أَفَغَيْرَ اللَّهِ تَأْمُرُونِّي أَعْبُدُ أَيُّهَا الْجَاهِلُونَ (64) وَلَقَدْ أُوحِيَ إِلَيْكَ وَإِلَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكَ لَئِنْ أَشْرَكْتَ لَيَحْبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ (65) بَلِ اللَّهَ فَاعْبُدْ وَكُنْ مِنَ الشَّاكِرِينَ (66)

इन आयतों का अनुवाद हैः

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि नादानो! भला तुम मुझसे ये कहते हो कि मैं ख़ुदा के सिवा किसी दूसरे की इबादत करूँ [39:64] और (ऐ रसूल) तुम्हारी तरफ़ और उन (पैग़म्बरों) की तरफ़ जो तुमसे पहले आ चुके हैं यक़ीनन ये वहि भेजी जा चुकी है कि अगर (कहीं) शिर्क किया तो यक़ीनन तुम्हारे सारे अमल अकारत हो जाएँगे और तुम तो ज़रूर घाटे में आ जाओगे [39:65]  बल्कि तुम ख़ुदा ही की इबादत करो और शुक्र गुज़ारों में हो जाओ [39:66]

पिछले कार्यक्रम में तौहीद अर्थात एकेश्वरवाद और शिर्क अर्थात अनेकेश्वरवाद के बारे में बात की। इसके बाद यह आयतें कहती हैं कि अनेकेश्वरवादी और मूर्ति पूजा करने वाले अलग अलग बहाने पेश करके पैग़म्बरे इस्लाम को इस बात पर तैयार करने की कोशिश कर रहे थे कि मूर्तियों का सम्मान किया जाए और उनकी इबादत होती रहे। वे कहते थे कि हम तुम्हारे ख़ुदा की बारगाह में नमाज़ भी अदा करने के लिए तैयार हैं सजदा भी कर लेंगे लेकिन शर्त यह है कि आप हमारे बुतों का सजदा कीजिए।

इन आयतों में अल्लाह कठोर स्वर में कहता है कि इस तरह की ग़लत मांगें नादानी और अज्ञानता की वजह से हैं। क्योंकि यह कैसे मुमकिन है कि जो पैग़म्बर लोगों को अल्लाह की इबादत करने और मूर्ति पूजा से दूर रहने की दावत देने के लिए भेजा गया है वह अनेकेश्वरवादियों को मनाने के लिए उनकी मूर्तियों की इबादत करने लगे।

आयतों में आगे कहा गया है कि ऐ पैग़म्बर आप इन लोगों से कह दीजिए कि मैं केवल अल्लाह की इबादत करता हूं और मूर्तियों के सामने किसी भी क़ीमत पर सिर नहीं झुकाउंगा। क्योंकि तौहीद और शिर्क ऐसे विषय नहीं हैं जिन पर कोई सौदेबाज़ी की जा सके। क्योंकि जो भी शिर्क की ओर जाएगा उसके सारे कर्म तबाह हो जाएंगे। अब अगर यही काम कोई पैग़म्बर करे तो उसकी सज़ा यक़ीनन कई गुना ज़्यादा होगी क्योंकि इससे दूसरे लोग भी गुमराह होंगे।

ज़ाहिर है कि अमल के क़ुबूल होने की शर्त तौहीद यानी अल्लाह के अनन्य होने का अक़ीदा है इसके बग़ैर कोई अमल स्वीकार नहीं किया जाएगा। शिर्क से इंसान के सारे अमल बर्बाद हो जाते हैं। शिर्क या अनेकेश्वरवाद आग की तरह है जो सारी चीज़ों को जलाकर भस्म कर देती है।

इन आयतों से हमने सीखाः

अल्लाह के अलावा किसी भी चीज़ की इबादत इंसान की बे अक़्ली और अज्ञानता की निशानी है चाहे ज़ाहिरी तौर पर वो कितना ही बड़ा ज्ञानी और विद्वान क्यों न नज़र आता हो।

तौहीद और एकेश्वरवाद ईमान वालों की लाल रेखा है वे किसी भी हाल में इसके साथ कोई समझौता नहीं कर सकते।

दुश्मन पैग़म्बरों तक को बहकाने की कोशिश करते थे तो फिर आम इंसानों की बात ही अलग है।

अल्लाह की इबादत मेहरबान परवरदिगार की नेमतों का शुक्रिया अदा करने के अर्थ में है।

अब आइए सूरए ज़ोमर की आयत संख्या 67 की तिलावत सुनते हैं, 

وَمَا قَدَرُوا اللَّهَ حَقَّ قَدْرِهِ وَالْأَرْضُ جَمِيعًا قَبْضَتُهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَالسَّماوَاتُ مَطْوِيَّاتٌ بِيَمِينِهِ سُبْحَانَهُ وَتَعَالَى عَمَّا يُشْرِكُونَ (67)

इस आयत का अनुवाद हैः

और उन लोगों ने ख़ुदा की जैसी क़द्र करनी चाहिए थी उसकी क़द्र न की हालाँकि ( वह ऐसा क़ादिर है कि) क़यामत के दिन सारी ज़मीन उसकी मुट्ठी में होगी और सारे आसमान उसके दाहिने हाथ में लिपटे हुए होंगे, जिसे ये लोग उसका शरीक बनाते हैं वह उससे पाकीज़ा और महान है। [39:67]

पिछली आयतों की बहस को जारी रखते हुए यह आयत कहती है कि जो अनेकेश्वरवादी इस तरह की मांगें पैग़म्बर के सामने रखते हैं और उनसे मांग करते हैं कि वो मूर्तियों का सम्मान करें दर हक़ीक़त उन्हें अल्लाह की महानता का इल्म ही नहीं है। उन्होंने इस पवित्र नाम को इतना नीचे गिरा दिया कि उसे मूर्तियों की पंक्ति में रख दिया। दरअस्ल अनेकेश्वरवाद की जड़ अज्ञानता और अल्लाह की सही पहचान न होना है। जो अल्लाह सारी चीज़ों का पैदा करने वाला है कायनात के सारे मामलों की बागडोर उसी के हाथ में है। कोई भी चीज़ अपना अस्तित्व बाक़ी रखने के लिए अल्लाह पर निर्भर है।

क़यामत के दिन भी ज़मीन व आसमान सब कुछ अल्लाह के अख़तियार में होगा। यह दरअस्ल अल्लाह की असीम शक्ति और ताक़त की ओर इशारा है ताकि सब जान लें कि क़यामत के दिन अल्लाह के अलावा किसी का कोई बस नहीं चलेगा हर चीज़ का अख़तियार अल्लाह के पास होगा। उस दिन किसी भी निजात और मुश्किलों से मुक्ति का एक ही रास्ता होगा कि अल्लाह उसे क्षमा कर दे।

बेशक अल्लाह का कोई भी शरीक और समकक्ष नहीं है मगर अनेकेश्वरवादियों को इस हक़ीक़त पर तब यक़ीन आएगा जब उनके पास वापसी का कोई रास्ता नहीं होगा।

इस आयत से हमने सीखाः

शिर्क और अनेकेश्वरवाद अल्लाह के बारे में ज्ञान न होने और उसके इल्म व ताक़त को न समझ पाने का नतीजा है।

अपनी तमाम व्यापकता के बावजूद आसमान अल्लाह की ताक़त के सामने जो आसमान का पैदा करने वाला है, बहुत छोटा और माममूली है जैसा कोई छोटा सा टुकड़ा अल्लाह के हाथों में लिपटा हुआ हो।

अब आइए सूरए ज़ोमर की आयत संख्या 68 से 70 तक की तिलावत सुनते हैं,

وَنُفِخَ فِي الصُّورِ فَصَعِقَ مَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَمَنْ فِي الْأَرْضِ إِلَّا مَنْ شَاءَ اللَّهُ ثُمَّ نُفِخَ فِيهِ أُخْرَى فَإِذَا هُمْ قِيَامٌ يَنْظُرُونَ (68) وَأَشْرَقَتِ الْأَرْضُ بِنُورِ رَبِّهَا وَوُضِعَ الْكِتَابُ وَجِيءَ بِالنَّبِيِّينَ وَالشُّهَدَاءِ وَقُضِيَ بَيْنَهُمْ بِالْحَقِّ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ (69) وَوُفِّيَتْ كُلُّ نَفْسٍ مَا عَمِلَتْ وَهُوَ أَعْلَمُ بِمَا يَفْعَلُونَ (70)

इन आयतों का अनुवाद हैः

और जब (पहली बार) सूर फूँका जाएगा तो जो लोग आसमानों में हैं और जो लोग ज़मीन में हैं (मौत से) बेहोश होकर गिर पड़ेंगें) मगर (हाँ) जिस को ख़ुदा चाहे वह बच जाएगा) फिर जब दोबारा सूर फूँका जाएगा तो फौरन सब के सब उठ खड़े होंगे और  देखने लगेंगें [39:68] और ज़मीन अपने परवरदिगार के नूर से जगमगा उठेगी और (आमाल की) किताब (लोगों के सामने) रख दी जाएगी और पैग़म्बर और गवाह ला हाज़िर किए जाएँगे और उनमें इन्साफ़ के साथ फ़ैसला कर दिया जाएगा और उन पर (ज़र्रा बराबर ) ज़ुल्म नहीं किया जाएगा [39:69] और जिस शख्स ने जैसा किया हो उसे उसका पूरा पूरा बदला मिल जाएगा, और जो कुछ ये लोग करते हैं अल्लाह उससे ख़ूब वाक़िफ है। [39:70]

पिछली आयतों में क़यामत में अल्लाह की ताक़त का हाल बयान करने के बाद अब यह आयतें एक तरह से दुनिया की समाप्ति और क़यामत की शुरुआत का दृष्य पेश करती हैं। आयतें कहती हैं कि एक आसमानी चीख़ गूंजेगी और हर प्राणी मर जाएगा और कुछ समय के बाद दोबारा आवाज़ गूंजेगी तो सब दोबारा ज़िंदा हो जाएंगे और उठ खड़े होंगे अपने कर्मों की सज़ा या इनाम पाने के लिए तैयार होंगे।

दूसरे शब्दों में अल्लाह के बस एक फ़रमान से ज़मीन और आसमानों पर कोई भी प्राणी ऐसा नहीं बचेगा जो जीवित रह जाए सब मर जाएंगे। इसके बाद अल्लाह का दूसरा इरादा होगा और सब के सब जीवित होकर अल्लाह की बारगाह में हाज़िर हो जाएंगे।

अलबत्ता स्वाभाविक है कि अल्लाह जिसको चाहेगा नहीं मरने देगा बल्कि जीवित रखेगा। कहा जाता है कि अल्लाह के कुछ फ़रिश्ते जैसे जिबरईल, इस्राफ़ील और मीकाईल इसी समूह में होंगे।

उस दिन जब सारे इंसान दोबारा ज़िंदा किए जाएंगे ज़मीन अल्लाह के नूर से जगमगा उठेगी और और सत्य का नूर इस तरह हर तरफ़ फैल जाएगा कि इंकार की कोई गुंजाइश ही नहीं रहेगी। पर्दे हट जाएंगे और इंसानों के सदकर्मों और बुरे कर्मों का असली रूप सामने नज़र आएगा। इस तरह से कि कोई पर्दा ही नहीं रह जाएगा। इलाही नूर हर चीज़ को ज़ाहिर कर देगा।

उस दिन कर्मपत्र खोल दिए जाएंगे और हिसाब लिया जाएगा। वे कर्मपत्र जिनमें इंसान के तमाम छोटे बड़े काम दर्ज होंगे। उस दिन पैग़म्बरों और गवाहों को हाज़िर किया जाएगा। लोगों के बीच वाक़ई इंसाफ़ किया जाएगा। उन पर कोई अन्याय नहीं होगा।

ज़ाहिर है कि उस अदालत में जिसका मालिक अल्लाह है और जहां अल्लाह के नूर से हर चीज़ ज़ाहिर हो चुकी है और पैग़म्बर गवाही देने के लिए खड़े हैं हक़ के अलावा कोई बात हो ही नहीं सकती। इस अदालत में अन्याय का कोई तसव्वुर ही नहीं है। हर इंसान को अपने कर्मों का पूरा पूरा नतीजा नज़र आएगा।

इन आयतों से हमने सीखाः

सारी चीज़ों की ज़िंदगी और मौत अल्लाह के इरादे पर निर्भर है वह किसी भी लम्हा जीवन देने या ले लेने पर क़ादिर है।

दुनिया का ख़ातेमा और क़यामत का आगमन अचानक होगा, धीरे धीरे नहीं।

क़यामत की अदालत कर्मपत्र और गवाहों के साथ आयोजित होगी वहां पूर्णतः इंसाफ़ के साथ लोगों के कर्मों का हिसाब लिया जाएगा।

इस दुनिया में हमारे कर्मों पर कुछ गवाहों की नज़र है। हमारे कर्मों को फ़रिश्ते लिखते रहते हैं इसी तरह पैग़म्बरों और ख़ास गवाहों को हमारे कर्मों की पूरी ख़बर है।

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