Nov २१, २०२२ १५:३४ Asia/Kolkata

ज़ोमर, आयतें 71-75

 

وَسِيقَ الَّذِينَ كَفَرُوا إِلَى جَهَنَّمَ زُمَرًا حَتَّى إِذَا جَاءُوهَا فُتِحَتْ أَبْوَابُهَا وَقَالَ لَهُمْ خَزَنَتُهَا أَلَمْ يَأْتِكُمْ رُسُلٌ مِنْكُمْ يَتْلُونَ عَلَيْكُمْ آَيَاتِ رَبِّكُمْ وَيُنْذِرُونَكُمْ لِقَاءَ يَوْمِكُمْ هَذَا قَالُوا بَلَى وَلَكِنْ حَقَّتْ كَلِمَةُ الْعَذَابِ عَلَى الْكَافِرِينَ (71) قِيلَ ادْخُلُوا أَبْوَابَ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا فَبِئْسَ مَثْوَى الْمُتَكَبِّرِينَ (72)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

और जो लोग काफिर थे उनके समूह के समूह जहन्नम की तरफ़ हॅंकाए जाएँगे और यहाँ तक की जब जहन्नुम के पास पहुँचेंगे तो उसके दरवाज़े खोल दिए जाएंगे और उसके दारोग़ा उनसे पूछेंगे कि क्या तुम लोगों में पैग़म्बर तुम्हारे पास नहीं आए थे जो तुमको तुम्हारे परवरदिगार की आयतें पढ़कर सुनाते और तुमको इस रोज़ का सामना होने के बारे में डराते वह लोग जवाब देगें कि हाँ (आए तो थे) मगर (हमने न माना) और अज़ाब का हुक्म काफिरों के बारे में पूरा हो कर रहेगा [39:71]  (तब उनसे) कहा जाएगा कि जहन्नम के दरवाज़ों में धँसो और हमेशा इसी में रहो मुख़तसर यह कि तकब्बुर करने वाले का क्या बुरा ठिकाना है। [39:72]

पिछले कार्यक्रम में हमने बताया कि क़यामत के दिन अनेक गवाहों और इंसानों के कर्मों के साथ अल्लाह की अदालत स्थापित होगी और न्याय व सच्चाई के आधार पर हर इंसान की क़िस्मत का फ़ैसला होगा कि उसे जहन्नम में जाना है या जन्नत में।

अब यह आयतें कहती हैं कि जब जहन्नम वालों का फ़ैसला सुना दिया जाएगा तो उन्हें समूहों की शक्ल में जहन्नम की तरफ़ घसीटा जाएगा क्योंकि वे अपनी मर्ज़ी से जाने के लिए तैयार न होंगे। क़ुरआन के शब्दों में इस काम के लिए नियुक्त फ़रिश्ते उन्हें जहन्नम में दरवाज़े तक घसीट कर ले जाएंगे और तब जहन्नम के दरवाज़े खोल दिए जाएंगे।

जहन्नम के पहरेदार दुनिया में इन लोगों के ग़लत चयन की वजह से उनको खरी खोटी सुनाएंगे कि क्या तुम्हारे बीच पैग़म्बर नहीं आए थे कि तुम्हारे सामने अल्लाह की आयतें पढ़ें और बार बार चेतावनी देकर तुम्हें आज के इस दिन से डराएं?! तुमने पैग़म्बरों को क्यों झुठलाया उनकी चेतावनियों को क्यों उपेक्षित रखा? क्या तुम इस ग़लत फ़हमी में थे कि इंकार कर देने और क़यामत के दिन को भूल जाने से तुम्हारे हाथ खुल जाएंगे कि जो दिल चाहे करो? क्या वजह थी कि इस तरह तुम्हारे नसीब ख़राब हो गए।

ज़ाहिर है कि इस स्थिति में जहन्नम में जाने वालों के पास इक़रार के अलावा कोई चारा नहीं होगा। उन्हें अज़ाब देने के बारे में अल्लाह का हुक्म आएगा। वह हुक्म जो हरगिज़ वापस लिया जाने वाला नहीं है।

यह बातचीत जहन्नमी समूहों के जहन्नम में प्रवेश कर जाने के बाद समाप्त हो जाएगी। उनसे कहा जाएगा कि जहन्नम के दरवाज़ों से दाख़िल हो जाओ और वहीं हमेशा रहो। यह कितना बुरा ठिकाना है जो घमंडियों के लिए रखा गया है।

ध्यान देने की बात यह है कि जहन्नम में जाने वालों की गुमराही की सबसे बड़ी वजह उनका घमंड और ग़ुरूर है। उन्होंने सत्य के सामने सिर झुकाने के बजाए घमंड दिखाया और पूरी ज़िंदगी ग़लत रास्ते पर चले। निश्चित रूप से अल्लाह की आयतों के इंकार करने और क़ुफ़्र का नतीजा यह है कि वे हमेशा जहन्नम में रहेंगे।

इन आयतों से हमने सीखाः

जो लोग दुनिया में ग़रूर और घमंड करते हैं, पैग़म्बरों की बात झुठलाते हैं क़यामत के दिन बहुत बेइज़्ज़त होंगे। इसकी एक मिसाल यही फ़रिश्तों का उनके साथ बर्ताव है जो उन्हें जहन्नम में ले जाएंगे।

हुज्जत तमाम होने से पहले किसी को जहन्नम में नहीं डाला जाएगा। क़यामत में पापी को अपने गुनाह का इक़रार करना होगा। वह मानेगा कि उसने सत्य के बारे में सुना और जाना लेकिन उसे क़ुबूल नहीं किया।

इंसानों को अज़ाब में डाले जाने की वजह उनका कुफ़्र है और कुफ़्र की वजह ग़ुरूर और घमंड तथा सत्य का इंकार है।

 

अब आइए सूरए ज़ोमर की आयत संख्या 73 और 74 की तिलावत सुनते हैं,

وَسِيقَ الَّذِينَ اتَّقَوْا رَبَّهُمْ إِلَى الْجَنَّةِ زُمَرًا حَتَّى إِذَا جَاءُوهَا وَفُتِحَتْ أَبْوَابُهَا وَقَالَ لَهُمْ خَزَنَتُهَا سَلَامٌ عَلَيْكُمْ طِبْتُمْ فَادْخُلُوهَا خَالِدِينَ (73) وَقَالُوا الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي صَدَقَنَا وَعْدَهُ وَأَوْرَثَنَا الْأَرْضَ نَتَبَوَّأُ مِنَ الْجَنَّةِ حَيْثُ نَشَاءُ فَنِعْمَ أَجْرُ الْعَامِلِينَ (74)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

और जो लोग अपने परवरदिगार से डरते थे वे गिरोह-गिरोह करके बहिश्त की तरफ़  बुलाए जाएगें यहाँ तक कि जब उसके पास पहुँचेंगे और बहिश्त के दरवाज़े खोल दिये जाएँगें और उसके निगहबान उन से कहेंगे सलाम अलैकुम तुम अच्छे रहे, तुम बहिश्त में हमेशा के लिए दाख़िल हो जाओ [39:73] और ये लोग कहेंगे ख़ुदा का शुक्र जिसने अपना वादा हमसे सच्चा कर दिखाया और हमें (बहिश्त की) सरज़मीन का मालिक बनाया कि हम बहिश्त में जहाँ चाहें रहें तो नेक चलन वालों की भी क्या ख़ूब (खरी) मज़दूरी है। [39:74]

काफ़िर तो बड़े अपमान के साथ जहन्नम में डाले जाएंगे लेकिन उनके बिल्कुल विपरीत ईमान और नेक अमल वाले लोग गुटों की शक्ल में सम्मान के साथ जन्नत में ले जाए जाएंगे। उसके दरवाज़े खुले होंगे और इस मौक़े पर इन ईमान वालों से जन्नत के निगहबान जो दरअस्ल रहमत के फ़रिश्ते होंगे उन्हें सलाम करेंगे, उन पर दुरूद भेजेंगे और जन्नत में उनका स्वागत करेंगे और उन्हें हमेशा रहने वाली जन्नत की बशारत देंगे।

इस मौक़े पर जन्नत में जाने वाले अल्लाह का वादा पूरा होने और जन्नत में प्रवेश का रास्ता मिल जाने पर उसका शुक्र अदा करेंगे और उसका गुणगान करेंगे।

यह बिंदु महत्वपूर्ण है कि जिस तरह काफ़िर जहन्नम में हमेशा गिरफ़तार रहेंगे उसी तरह मोमिन और पाकीज़ा बंदे हमेशा जन्नत में जीवन गुज़ारेंगे। हालांकि नेक इंसानों ने अन्य लोगों की तरह दुनिया में बहुत छोटा सा ही जीवन गुज़ारा है मगर यह छोटा सा जीवन यह साबित करने के लिए काफ़ी है कि अगर वे दुनिया में हज़ारों साल लंबा जीवन गुज़ारते तो भी पूरी ज़िंदगी अल्लाह के आदेशों पर अमल करते रहते और उसकी बारगाह में समर्पित रहते। यह प्रवृत्ति उनके वुजूद में घर कर चुकी है और उनके स्वभाव का हिस्सा बन गई है।

इन आयतों से हमने सीखाः

केवल ईमान काफ़ी नहीं है, जन्नत में पहुंचने के लिए तक़वा, पाकीज़गी और परहेज़गारी भी ज़रूरी है।

जन्नत वाले जन्नत में पहुंचने के समय अल्लाह का शुक्र अदा करेंगे और उसका गुणगान करेंगे क्योंकि जब नेमत मिले तो उस पर शुक्र करना ज़रूरी है। जन्नत तो ख़ैर बहुत बड़ी नेमत है जो अल्लाह अपनी दया से अपने बंदों को प्रदान करेगा।

नेक अमल के बग़ैर जन्नत में जाना संभव नहीं है। ईमान और तक़वा तब इंसान को जन्नत में ले जाता है जब उसके साथ संघर्ष प्रयास और काम भी जुड़ा हुआ हो और अल्लाह की राह में काम किया जाए। निष्ठुर होकर कोना पकड़ लेने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है।

अब आइए सूरए ज़ोमर की आयत संख्या 75 की तिलावत सुनते हैं,

وَتَرَى الْمَلَائِكَةَ حَافِّينَ مِنْ حَوْلِ الْعَرْشِ يُسَبِّحُونَ بِحَمْدِ رَبِّهِمْ وَقُضِيَ بَيْنَهُمْ بِالْحَقِّ وَقِيلَ الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ (75)

 

इस आयत का अनुवाद हैः

और (उस दिन) फरिश्तों को देखोगे कि अर्श के इर्द-गिर्द घेरा बनाकर डटे होंगे और अपने परवरदिगार की तारीफ़ की तसबीह कर रहे होंगे और लोगों के दरमियान ठीक फ़ैसला कर दिया जाएगा और (हर तरफ़ से यही) आवाज़ बुलन्द होगी अल्हमदो लिल्लाहे रब्बिल आलेमीन [39:75]

यह आयत जिस पर सूरए ज़ोमर ख़त्म हो गया है, अल्लाह के रसूल को मुख़ातिब करके कहती है कि उस दिन तुम फ़रिश्तों को देखोगे कि अल्लाह के अर्श के चारों तरफ़ हल्क़ा बांधे खड़े होंगे और बंदों के बारे में अल्लाह के फ़रमान पर अमल कर रहे होंगे। उस दिन सत्य और न्याय के आधार पर इंसानों के बीच फ़ैसला किया जाएगा और बहिश्त में जाने वालों की ज़बान पर अल्लाह की हम्द और शुक्र होगा।

इस आयत से हमने सीखाः  

जन्नत के फ़रिश्ते भी और जहन्नम के फ़रिश्ते भी दोनों ही अल्लाह के फ़रमान पर अमल करने में लीन होंगे वे अल्लाह के फ़रमान पर अमल करने के अलावा कुछ नहीं करेंगे।

अल्लाह की हम्द और तसबीह एक दूसरे से मिले हुए हैं। हम्द और गुणगान का पात्र केवल वही है जो कायनात का चलाने वाला है और जिसके काम में कोई त्रुटि नहीं है।

 

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