Feb १०, २०१६ १३:५० Asia/Kolkata

मौलाना रोम 13वीं शताब्दी ईसवी के प्रख्यात कवि थे और फ़ार्सी भाषी क्षेत्रों के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी उनकी शायरी और ज्ञान का लोग लोहा मानते थे।

मौलाना रोम 13वीं शताब्दी ईसवी के प्रख्यात कवि थे और फ़ार्सी भाषी क्षेत्रों के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी उनकी शायरी और ज्ञान का लोग लोहा मानते थे।

 

आठ सौ साल का समय बीत चुका है लेकिन मौलाना रोम की मसनवियां आज भी विश्व साहित्य के क्षितिज पर तारों की भांति जगमगा रही हैं। बहुत से अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि मौलाना रोम की मसनवी शिक्षा और मार्गदर्शन की पुस्तक है और मौलाना रोम इन शिक्षाओं और मार्गदर्शन के उपदेशक हैं। पूरब और पश्चिम के अल्लामा इक़बाल और हेगल जैसे अनेक विद्वान और विचारक भी मौलाना रोम के विचारों से प्रभावित हैं। बहुत से ईरानी विद्वानों ने भी मौलाना रोम के विचारों को अपना मत बनाया है और इस मत से तृत्प होकर अपना रचनाओं को जन्म दिया है।

मौलाना रोम की मसनवी उनकी फ़ार्सी भाषा और साहित्य की सबसे प्रख्यात मसनवी है जिसमें लगभग 25 हज़ार शेर हैं। कहते हैं कि मौलाना रोम ने अपने क़रीबी शिष्य होसामुद्दीन चलबी के अनुरोध पर मसनवी की यह अमर किताब लिखी थी।

 

 

डाक्टर ग़ुलाम हुसैन युसुफ़ी अनुसंधानकर्ता हैं, वह अपनी पुस्तक चश्मए रौशन में बड़े सुंदर शब्दों में इस बारे में अपने विचार व्यक्त किए हैं। उनका कहना है कि वर्ष 657 से 660 हिजरी क़मरी के बीच तीन साल के इस समय की कोई रात थी जब होसामुद्दीन चलबी ने मौलाना रोम से अनुरोध किया कि अत्तार और सनाई की तरह वह भी आध्यात्मिक विषयवस्तु से सुसज्जित कोई किताब लिखें। यह अनुरोध साहित्य की दुनिया की बहुत बड़ी उपलब्धि का आरंभ बिंदु बन गई और इस अनुरोध के नतीजे में फ़ारसी शायरी का एक शाहकार मसनवी के रूप में सामने आया। समकालीन साहित्यकार और शायर अफ़लाकी ने कहा है कि मौलाना रोम ने शुरू में जो शेर कहे वह होसामुद्दीन चलबी को दिखाए। यह शेर वही शुरू के 18 शेर थे जिन्हें नैनामा कहा जाता है और जिनसे विश्व विख्यात मसनवी शुरू होती है।

यह शेर सुनने के बाद होसामुद्दीन चलबी मौलाना रोम का प्रोत्साहन करते रहे और उनका उत्साह बढ़ाते रहे। मौलाना रोम रात के समय बैठ जाते थे और शेर कहते रहते थे हुसामुद्दीन चलबी उसे लिखते रहते थे और फिर यह शेर अपनी अच्छी आवाज़ में पढ़कर मौलाना को सुनाते थे। यह सिलसिला मौलाना रोम की वर्ष 672 में मृत्यु हो जाने तक जारी रहा। मौलाना रोम ने अपनी मसनवी में इस बात का उल्लेख भी किया है कि हुसामुद्दीन चलबी ने उनका उत्साह बढ़ाया है। उन्होंने चलबा का बड़े सम्मान के साथ उल्लेख किया है।

 

 

मौलाना रोम की मसनवी एक शिक्षाप्रद पुस्तक है। इसमें सच्चाई के प्रकाश तक पहुंचने का स्पष्ट रास्ता दिखाया गया है। इस साहित्यिक रचना में मौलाना रोम के विचार एक साथ दिखाई देते हैं। मौलाना रोम ने अपनी मसनवी में यह प्रयास किया है कि इंसान को भौतिकवाद से वनस्पतियों और फिर इंसानों की दुनिया के अपने सफ़र से अवगत करवाएं। मौलाना रोम ने अपनी मसनवी में सबसे अधिक ध्यान शिष्टाचार और प्रशिक्षण पर केन्द्रित किया है तथा मार्गदर्शक के रूप में प्रयास किया है कि पढ़ने वाले को उसके अपने व्यक्तित्व की चारदीवारी से बाहर निकालें और उसे एक नया जीवन प्रदान करें। इसी लिए उन्होंने शिष्टाचार के रहस्यों को बहुत सुक्ष्मता से बयान किया है तथा इस दौरान पढ़ने वालों का क़िस्से कहानियों द्वारा मनोरंजन भी किया है।

मौलाना रोम ने इंसान के प्रशिक्षण और नैतिक उत्थान में बहुत रूचि दिखाई है। क़िस्सा सुनाने की उनकी शैली भी इसी दायरे में है। मसनवी में चिंतन बड़ी ऊंचाई तक जाता है और जो कहानी के ज़ाहरी प्रारूप से आगे बढ़ता है वह कहानी में छिपे महान विचारों और मौलाना रोम की आत्मा के कौतूहल को महसूस कर सकता है। मौलाना रोम की मसनवी को देखकर समझा जा सकता है कि उनके विचारों और सोच का उद्गम क़ुरआन मजीदे की आयतें और पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके परिजनों के कथन और जीवनी है। कुछ आलोचकों और मसनवी के विवरणकर्ताओं ने क़ुरआने मजीद की आयतों और पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों की हदीसों के बारे में मौलाना रोम के व्यापक ज्ञान के दृष्टिगत उनकी मसनवी को क़ुरआन और हदीस का शायराना और आध्यात्मिक विवरण ठहराया है। मौलाना रोम ने अपनी मसनवी में बहुत सी आयतों और पैग़म्बरों के जीवन की घटनाओं का विवरण पेश किया है। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम की अनेक हदीसों को मसनवी में कभी कभी कहानियों के रूप में बयान किया है। क़ुरआन और हदीस के अलावा मौलाना रोम के अदभुत विचारों का स्रोत आम लोगों की संस्कृति और भाषा है। उन्हें आम जन मानस की संस्कृति और भाषा का व्यापक ज्ञान था। इसी लिए उन्होंने ऐसी कहानियों और उदाहरणों को प्रयोग किया है जो गली कूचे में आम लोगों के बाद प्रचलित थे।

 

 

 

कहानियों और क़िस्सों की वजह से मसनवी में जो एक क्रम पैदा हो गया है उसके बावजूद पहले से इस बारे में किसी क्रम को मद्देनज़र नहीं रखा गया था। प्रख्यात अनुसंधानकर्ता डाक्टर ज़र्रीनकूब के अनुसार मौलाना रोम की मसनवी निश्चित रूप से आत्मा के भीतर पैदा होने वाले कौतूहल से अस्तित्व में आई है। बरसों तक मौलाना रोम ने घर में, मस्जिद में, हम्माम में, रास्ता चलते समय जहां भी संभव था मसनवी के शेर कहे। वह कहानी से कहानी और बात से बात निकालते हैं। मौलाना रोम मसनवी के शेर कहते थे और होसामुद्दीन चलबी उसे लिखते थे। इसी लिए मसनवी किसी विशेष क्रम के बग़ैर लिखी गई है और इसका निर्धारित और सुनियोजित प्रारूप नहीं है।

आम तौर पर मसनवी में एक विचार से दूसरा विचार निकलता है और एक कहानी से दूसरी कहानी शुरू हो जाती है। इसलिए उसमें कोई ख़ास सीमा नहीं होती बल्कि शायर का मन वैचारिक दुनिया में आज़ाद पंछी की भांति उड़ान भरता रहता है। मसनवी वास्तव में आध्यात्मिक दुनिया की आपबीती है जो नरकुल की बात से शुरू होती है और कहीं समाप्त नहीं होती। लेकिन जब भी उचित होता है पढ़ने वाले का ध्यान किसी नए अर्थ की ओर केन्द्रित कराती है। उसके मन को एक कहानी से दूसरी कहानी की ओर ले जाती है। आख़िरकार यह मसनवी मौलाना रोम की मौत के साथ ही बिना किसी अंत के समाप्त हो जाती है।

 

 

मसनवी में मौलाना रोम के विचार उफनती नदी के भांति आगे बढ़ते हैं तथा रास्ते में मिलने वाले हर विचार और विषय को अपने साथ ले लेते हैं। कहानियों को बयान करने और क़िस्से सुनाने के लिए शायर ने जो आसान शैली चुनी है उसके अलावा आध्यात्मिक परिस्थितियां शायर के मन से निकलकर इस मसनवी में फैलती दिखाई देती हैं। इसी लिए उनकी बातों में बड़ी ऊंचाई और प्रवाह तथा उसका रंग बिल्कुल निराला है। डाक्टर ज़र्रीनकूब के कथनानुसार यही वह स्थान है जहां मसनवी न तो दर्शन रह जाती है और न कहानी बल्कि विशुद्ध शायरी बन जाती है।

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