मौलाना जलालुद्दीन मोहम्मद मौलवी-4
हमने बताया था कि मौलाना की ‘मसनवी मानवी’ पर शोध करने वालों का मानना है कि यह रचना वास्तव में ज्ञान व मार्गदर्शन की किताब है और मौलाना इस गूढ़ अर्थों वाली किताब के शिक्षक हैं।
हमने बताया था कि मौलाना की ‘मसनवी मानवी’ पर शोध करने वालों का मानना है कि यह रचना वास्तव में ज्ञान व मार्गदर्शन की किताब है और मौलाना इस गूढ़ अर्थों वाली किताब के शिक्षक हैं। मसनवी मानवी मौलाना की सबसे मशहूर रचना है। इसी प्रकार यह फ़ारसी ज़बान व साहित्य की भी सबसे मशहूर रचना है। मसनवी मानवी में सत्य के मार्ग पर चलने और सच्चाई तक पहुंचने की शिक्षा दी जाती है। इस रचना में मौलाना के विचार हैं।
रचनात्मकता मौलाना की विशेषता है। मौलाना के बचे हुए शेर के अध्ययन से पता चलता है कि उनकी शायरी की शैली, ज़बान, अलंकार, विषयवस्तु, गीतात्मकता सहित और अनेक आयामों से अपने दौर और बाद के शायरों से भिन्न थी। मौलाना के दौर में और उनके बाद कुछ समय तक यह चलन था कि शायर अपनी कविता या मसनवी को ईश्वर के गुणगान और पैग़म्बरे इस्लाम की प्रशंसा से शुरु करते थे। जैसे फ़िरदोसी, रूदकी, उन्सुरी, ख़ाक़ानी, मनूचेहरी, सनाई, और अत्तार सहित दूसरे बहुत से शायर ऐसा करते थे किन्तु मौलाना ने इस परंपरा को नहीं अपनाया बल्कि उन्होंने ईश्वर के गुणगान की नई शैली अपनायी। इस बारे में समकालीन ईरानी इतिहासकार, साहित्यकार व शोधकर्ता डाक्टर ज़र्रीनकूब कहते हैं, “मसनवी शुरु से आख़िर तक गीतात्मक है। इसमें ईश्वर की याद है जिससे ईश्वर की तलाश में लीन आत्मज्ञानी के मन में हलचल पैदा हो जाती है।”
मौलाना के मन में ईश्वर से प्रेम की जलने वाली ज्वाला, शब्दों में बयान नहीं हो सकती थी। वह अन्य शायरों की तरह आसमान, ज़मीन और सृष्टि की अन्य रचनाओं के वर्णन तक सीमित नहीं रह सकते थे। ईश्वर को पाने के लिए इस आत्मज्ञानी के मन में जो जोश है वह शब्दों के रूप या साहित्यिक अवतरण में सीमित नहीं रह सकता था। मसनवी के गुणगान का आरंभ, वास्तव में माशूक़ के प्रति आशिक़ का गुणगान है और समकालीन ईरानी साहित्यकार व शोधकर्ता डाक्टर ग़ुलाम हुसैन यूसुफ़ी के शब्दों में, ईश्वर को काव्यात्मक ढंग से आशिक़ के रूप में याद करना है। डाक्टर ज़र्रीनकूब सहित अन्य शोधकर्ताओं का मानना है कि मसनवी का पहला झंड में ईश्वर को ढूंढने वाला, परदेसी दुनिया में अपनी शिकायत व दास्तान को बांसुरी के ज़रिए पहुंचा रहा है। मसनवी की पहली जिल्द ईश्वर के गुणगान से शुरु हुयी है।
मौलाना की शायरी में, दास्तान सुनाने व शिकायत करने वाली बांसुरी का उल्लेख संयोगवश नहीं हुआ है। मौलाना की शायरी में बांसुरी विशेष अर्थ को पेश करती है और इसका विशेष स्थान है। मसनवी के समकालीन शोधकर्ता उस्ताद फ़ुरुज़ान्फ़र के शोध के अनुसार, “मसनवी और दीवाने कबीर में 28 से ज़्यादा बार बांसुरी को उपमा के तौर पर इस्तेमाल हुआ है और इससे पता चलता है कि बांसुरी के ज़रिए मौलाना विशेष अर्थ को पेश करना चाहते हैं।”
पौराणिक कथाओं और विभिन्न राष्ट्रों की दंत कथाओं में बांसुरी को विभिन्न विचारों का प्रतीक माना गया है। लेकिन मौलाना ने बांसुरी को बहुत ही उच्च विचार का प्रतीक क़रार दिया है। जब भी बांसुरी शायर के ज़रिए अपनी कहानी सुनाती है तो हर व्यक्ति उससे कहानी सुनता है। रूसी शायर लरमान्टोफ़ का मानना है कि ये गीत इंसान की ग़लतियों और दुखों का उल्लेख करते हैं। लरमान्टोफ़ को इस दुख भरे गीत में एक दुखी लड़की की कहानी सुनायी देती है जिसकी वह व्याख्या करते हैं। लेकिन मौलाना रोम के लिए यह गीत उस दुखी आत्मा की कहानी है जो आत्माओं के स्रोत से बिछड़ गयी है।
मौलाना की ज़बान से ‘बांसुरी’ की कहानी वास्तव में उस आत्मा की कहानी है जो अपने स्रोत से दूर हो गयी है लेकिन उसमें अपने अस्ल की ओर लौटने की इच्छा मौजूद है।
डाक्टर ज़र्रीनकूब का कहना है कि जो कुछ मसनवी में बांसुरी की ज़बान से सुनायी देता है वह एक हारी हुयी आत्मा की कहानी है। उस आत्मा की कहानी है जो भौतिक दुनिया से बेज़ार है, धर्मशास्त्र को छोड़ चुकी है, शम्स तबरीज़ी से ईश्क़ की तरह एक अद्वितीय इश्क़ के तूफ़ान को पीछे छोड़ चुकी है, अपने होश में आ गयी है और अपनी अस्ल की ओर लौटना चाहती है। एक आत्मा को ऐसे इश्क़ की तलाश है जो उसे सीमित व चकाचौंध भरी दुनिया से निकाल कर असीमित स्रोत तक पहुंचा दे जो ईश्वर की ज़ात है।
मौलाना रोम की रचनाओं की व्याख्या करने वाले ज़्यादातर व्याख्याकर्ताओं का मानना है कि यह ‘बांसुरी’ ख़ुद मौलाना रोम हैं। यह बांसुरी आत्म-पहचान से बनी है और ईश्क़ व माशूक़ के नियंत्रण में है। बांसुरी की ज़बान से निकलने वाले ये मनमोहक शेर, वास्तव में उससे नहीं निकले हैं बल्कि यह माशूक़ अर्थात ईश्वर की ज़बान से हैं।
मसनवी के बारे में शोध करने वाले ज़्यादातार शोधकर्ताओं का यह मानना है कि मौलाना की मसनवी की पहली जिल्द के 18 शेरों की अहमियत जिन्हें ‘नय-नामे’ कहा जाता है, इसलिए है क्योंकि जो कुछ मौलाना ने मसनवी की छह जिल्दों में बयान किया है उन सबका निचोड़ पहली जिल्द के इन 18 शेरों में है। डाक्टर ज़र्रीनकूब के अनुसार, ‘नय-नामे’जो मसनवी के शुरु में 18 शेर हैं, मसनवी की छह जिल्दों की विषयवस्तु का निचोड़ हैं और ये सारी छ जिल्दें इन 18 शेरों की एक प्रकार से व्याख्या हैं और इसी नय नामे का क्रम हैं और मसनवी मानवी की छह के छह जिल्द इसी ‘नय-नामे’ से अदृष्य रूप से जुड़ी हुयी हैं। जो कुछ मौलाना ने ‘नय-नामे’ के बाद शेर कहे हैं वे आत्मा की शिकायत, आशिक़ के शौक़ व सत्य के मार्ग पर चलने वाले की कहानी है। यहां तक कि मौलाना ने पूरी मसनवी मानवी में जो कहानियां और उपमाएं पेश की हैं वे सबके सब किसी न किसी तरह इसी ‘नय-नामे’ से जुड़ी हुयी हैं।
अगर मसनवी मानवी की छह जिल्दों के मुख्य विषय को एक वाक्य में कहना चाहें तो यह कहेंगे कि मौलाना की मसनवी मानवी, इश्क़ और सत्य के मार्ग पर चलने वाले उस आत्मज्ञानी की, सच्चाई के स्रोत से मिलने की कहानी है, जो अपने स्रोत से बिछड़ गया है। ऐसा आत्मज्ञानी जो ख़ुद को भूल कर, ईश्वर के इश्क़ में डूब गया है।
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