ईश्वरीय वाणी-८५
सूरए मुल्क पवित्र क़ुरआ का सड़सठवां सूरा है।
सूरए मुल्क पवित्र क़ुरआ का सड़सठवां सूरा है। इसमें 30 आयते हैं। इस सूरे का केन्द्रीय बिंदु ईश्वर की प्रभुसत्ता है अर्थात पूरे ब्रहमाण्ड का स्वामी ईश्वर ही है। जिन विषयों का सूरए मुल्क में उल्लेख किया गया है वे कुछ इस प्रकार हैं, ईश्वर की विशेषताएं, सृष्टि का आंरभ, सृष्टि विशेषकर आकाश, धरती और सितारों की सृष्टि, पशु और पक्षियों का बनाया जाना, प्रलय और इसी प्रकार के कुछ अन्य विषय आदि।
इस सूरे के आरंभ में बताया गया है कि पूरी सृष्टि का स्वामी, इश्वर है। यह बात उन लोगों के लिए पेश की गई है जो यह मानते हैं कि संसार में पूरी सृष्टि का संचालनकर्ता एक नहीं बल्कि अनेक लोग हैं जो अलग अलग प्रकार के कार्यों का संचालन करते हैं। सूरए मुल्क में ईश्वर की बहुत की अनुकंपाओं का उल्लेख किया गया है जिनमें से एक सृष्टि की रचना है। इसमें बताया गया है कि पूरी सृष्टि का रचयिता ईश्वर है और वही उसका संचालक भी है।
सूरए मुल्क का आरंभ इस प्रकार होता हैः बड़ा बरकतवाला है वि जिसके हाथ में सारी बादशाही है और वह हर चीज़ का सामथर्य रखता है। जिसने मृत्यु और जीवन को पैदा किया ताकि तुम्हारी परीक्षा करे कि तुममें कर्म की दृष्टि से कौन सबसे अच्छा है। वह प्रभुत्वशाली और बड़ा क्षमाशील है।
सुरे मुल्क का आरंभ तबारक शब्द से होता है। तबारक अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है ईश्वर की ओर से अनुकंपाओं का भेजा जाना। दूसरी आयत में कहा गया है कि वह, वही है जिसने जीवन और मृत्यु की सृष्टि की ताकि यह देखे कि तुममे से कौन अच्छे काम करता है?
ईश्वरीय परीक्षा से तातपर्य एक प्रकार का प्रशिक्षण करना है। इस प्रकार से ईश्वर, चाहता है कि लोग अमल के मैदान में आकर काम करें ताकि वे परिपक्वता तक पहुंचें। इस प्रकार की परीक्षा का उद्देश्य यह है कि मनुष्य सदकर्मों का आदी हो जाए और संसार में कल्याणपूर्ण जीवन व्यतीत कर सके।
ऐसा हो सकता है कि इस प्रकार की परीक्षा में मनुष्य कहीं पर लड़खड़ा कर निराशा का शिकार हो जाए। इस प्रकार संभव है कि वह अपने सुधार या कल्याण के मार्ग को छोड़ दे। यही कारण है कि आयत के अंत में ईश्वर अपने बंदों को क्षमा करने का वचन देता है।
सूरे मुल्क में आगे पूरी सृष्टि की रचना का उल्लेख मिलता है। इसमें बड़े ही सुन्दर ढंग से मनुष्य को सृष्टि में चिंतन मनन करने के लिए प्रेरित किया गया है ताकि इस प्रकार वह स्वयं को महापरीक्षा के लिए तैयार कर सके। ईश्वर कहता है तुम सृष्टि में किसी भी प्रकार का विरोधाहास नहीं पाओगे।
यदि हम ग़ौर से देखें तो पाते हैं कि पूरी सृष्टि में एक विशेष प्रकार की व्यवस्था पाई जाती है और इसके कुछ नियम हैं। यह जटिल और आश्चर्य चकित करने वाली व्यवस्था पूरे विश्व ही को नहीं बल्कि पूरी सृष्टि को अपने घेरे में लिए हुए है। यही कारण है कि पवित्र क़ुरआन लोगों से सृष्टि में सोच विचार करने का आह्वान करता है। ईश्वर कहता हैः
तुम रहमान की रचना में कोई असंगति और विषमता न देखोगे। फिर नज़र डालो, ’’क्या तुम्हें कोई बिगाड़ दिखाई देता है?
चौथी आयत में इसी बात पर बल देते हुए कहा जा रहा है कि उनके लिए हमने भड़कती आग की यातना तैयार कर रखी है।
सूरे मुल्क की छठी आयत उन लोगों को चेतावनी देती है जो इन तर्कों को अनदेखा करते हैं और कुफ़्र का मार्ग अपनाते हैं। आयत कहती है कि इस प्रकार वे पथभ्रष्टता का मार्ग अपनाते हैं और ईश्वरी दंड को ख़रीदते हैं। वास्तव में यह बहुत ही बुरा परिणाम है। इसके बाद नरक में दिये जाने वाले कुछ दंडों का उल्लेख करता है। ईश्वर कहता है कि जब अनेकेश्वरवादी नरक में डाले जाएंगे तो वे बुरी तरह से चीख़ रहे होंगे हालांकि उनपर यह दंड सदैव रहने वाला है। नरक में पड़े हुए अनेकेश्वरवादी, बुरी तरह से डरे हुए होंगे।
ईश्वर ने अपने दूतों के माध्यम से कुछ कार्यक्रम प्रस्तुत किये हैं ताकि मनुष्य उनका प्रयोग करके कल्याण प्राप्त कर सके। देखा यह गया है कि बहुत से लोग अपनी आंतरिक इच्छाओं के अधीन हो जाते हैं और इस प्रकार वे ग़लत मार्ग पर चल निकलते हैं। इस प्रकार वे लोग बाद में वास्तविकताओं का इन्कार करने लगते हैं। यही कारण है कि पवित्र क़ुरआन, नरकवासियों और ईश्वरीय सेवकों के बीच होने वाली वार्ता का उल्लेख करते हुए दूसरों को चेतावनी देता है कि मार्ग के चयन में वे बहुत होशियारी से काम लें ताकि ग़लती न करें। आयत 8 और9 का अनुवाद इस प्रकार है: हर बार जब भी कोई समूह उसमें डाला जाएगा तो नरक के कार्यकर्ता उनसे पूछेंगे, ’’ क्या तुम्हारे पास कोई सावधान करनेवाला नहीं आया था? वे कहेंगे ’’क्यों नहीं, अवश्य हमारे पास आया था, किन्तु हमने उन्हें झुठला दिया और कहा कि अल्लाह ने कुछ भी नहीं भेजा है और तुम एक बड़ी गुमराही में पड़े हुए हो।
वे कहेंगे कि हम नरक वासियों ने न केवल यह कि ईश्वरीय दूतों को मानने से इन्कार किया और उनके उपदेशों को नहीं सुना बल्कि उनको हमने गुमराह बताकर उन्हें धिक्कार दिया। इसके बाद वे अपनी ग़लतियों का उल्लेख करते हुए कहेंगे, ’’ यदि हम सुनते या बुद्धि से काम लेते तो हम दहकती आग में पड़नेवालों में सम्मिलित न होते।
इब्ने अब्बास कहते हैं कि कुछ अनेकेश्वरवादी और मिथ्याचारी, पैग़म्बरे इस्लाम के पीठ पीछे उनकी बुराई करते और उनको बुरा भला कहते थे। इस बात की सूचना जिबरील, पैग़म्बरे इस्लाम को दिया करते थे। उनमें से एक दूसरे ने आपस में कहा कि अपनी बातों को हल्क हल्के कहो कहीं मुहम्मद का ख़ुदा उसे न सुन ले। इसके उत्तर में सूरे मुल्क की आयत संख्या 13 और 14 नाज़िल हुई अनुवादः
सूरे मुल्की की 15वीं आयत, ईश्वर की कुछ अन्य अनुकंपाओं की ओर संकेत करते हुए कहती हैः अनुवाद
यहां पर राम या धरती को नियंत्रण में करने जैसे शब्द का प्रयोग इसलिए किया गया है कि इसपर सवार लोगों की गतिविधियों के बावजूद धरती बहुत ही शांत दिखाई देती है। कुछ वैज्ञानिकों का यह कहना है कि जिस धरती पर हम रहते हैं वह 14 प्रकार से परिक्रमा करती है जो बहुत जटिल विषय है किंतु यह एक वास्तविकता है।
इसी बीच सूरे की 16वीं आयत चेतावनी देते हुए कहती है कि यदि ईश्वर चाहे तो यही शांत दिखने वाली धरती अशांत हो सकती है। यहां पर भूकंप आ सकते हैं जिससे धरती फट जाएगी और धरती पर रहने वाले उसमे समा जाएंगे। 17वीं आयत में ईश्वर कहता है कि यह आवश्यक नहीं है कि भूकंप ही आए तभी धरती पर विनाश हो बल्कि ईश्वर इसका आदेश हवा को भी दे सकता है।
हालांकि विरोधी, ईश्वरीय बातों का मखौल उड़ाते हुए कहते हैं कि यदि यह सब ठीक है तो बताओ कि प्रलय किस दिन आएगी? इसके उत्तर में सूरे मुल्क की 25वीं आयत कहती हैः
सूरे मुल्क की अन्तिम आयत पैग़म्बरे इस्लाम (स) को संबोधित करती है। मक्के के अनेकेश्वरवादी, पैग़म्बरे इस्लाम और मुसलमानों को कोसते थे और उनके मरने की कामना किया करते थे। उनका यह सोचना था कि यदि पैग़म्बरे इस्लाम इस नश्वर संसार से चले जाएंगे तो फिर उनका मिशन भी सदा के लिए समाप्त हो जाएगा। इस संबन्ध में आयत कहती है: कह दो मुझको बताओ कि यदि ईश्वर मुझको और उन सबको जो मेरे साथ हैं हलाक कर दे तो फिर अनेकेश्वरवादियों को ईश्वर के प्रकोप से कौन बचाएंगा? अगली आयत कहती है कि वह कृपालु ईश्वर है। हम उसपर ईमान लाए हैं और उसपर भरोसा करते हैं और जल्द ही जान लोगे कि कौन खुली गुमराही में है?