Jan १९, २०२४ १९:४७ Asia/Kolkata

सूरा ग़ाफ़िर आयतें 66-68

आइए पहले सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 66 की तिलावत सुनते हैं,

قُلْ إِنِّي نُهِيتُ أَنْ أَعْبُدَ الَّذِينَ تَدْعُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ لَمَّا جَاءَنِيَ الْبَيِّنَاتُ مِنْ رَبِّي وَأُمِرْتُ أَنْ أُسْلِمَ لِرَبِّ الْعَالَمِينَ (66)

इस आयत का अनुवाद हैः

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि जब मेरे पास मेरे परवरदिगार की बारगाह से खुले हुए चमत्कार आ चुके तो मुझे इस बात की मनाही कर दी गयी है कि मैं ख़ुदा को छोड़ कर जिनको तुम पूजते हो उनकी इबादत करूँ और मुझे तो यह हुक्म हो चुका है कि मैं सारे जहान के पालने वाले का आज्ञाकारी बनूं। [40:66]

पिछले कार्यक्रमों में अल्लाह की निशानियों और नेमतों का ज़िक्र हुआ जो यह बताती हैं कि दुनिया का पैदा करना वाला एक है जिसका कोई शरीक नहीं है। इस आयत में पैग़म्बरे इस्लाम कई ख़ुदाओं की इबादत करने वाले मुशरिकों से कहते हैं कि मैं उस अल्लाह की तरफ़ से भेजा गया हूं जिसने मूर्तियों की इबादत की अनुमति नहीं दी है बल्कि मुझे ऐसा करने से रोका है। तो मुझसे तुम यह अपेक्षा न रखो कि मैं मूर्तियों की पूजा करूंगा। तुम यह भी न सोचना कि मैं ज़िद में तुम्हारी मूर्तियों की इबादत करने से इंकार कर रहा हूं और जवाब में तुम भी ज़िद पर अड़ जाओ और मेरे दीन को स्वीकार न करो। बल्कि विवेक और तर्क के उसूलों के चलते अल्लाह की इबादत करता हूं और मूर्तियों की इबादत से बचता हूं। मैं सिर्फ़ अल्लाह के सामने जो हम सब को पैदा करने वाला और हमारा परवरदिगार है सर झुकाता हूं और उसी की इबादत करता हूं। मैं सारी दुनिया के परवरदिगार की सिर्फ़ इबादत नहीं करता बल्कि उसके फ़रमान के सामने समर्पित हूं और उसके आदेश का भरपूर पालन करता हूं। क्योंकि मैं ख़ुद को उसका बंदा मानता हूं और बंदे का दायित्व अपने मालिक का अनुपालन करना है।

इस आयत से हमने सीखाः

अल्लाह की तरफ़ से कुछ करने या कुछ कामों से बचने के जो आदेश हैं वे तर्क और विवेक के उसूलों पर आधारित हैं। ईश्वरीय संदेश और इंसनी विवेक में कोई विरोधाभास नहीं है।

जो सारी कायनात का परवरदिगार होने की योग्यता रखता है उसके सामने समर्पित होना बंदगी और समर्पण की मेराज है।

अब आइए सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 67 और 68 की तिलावत सुनते हैं,

هُوَ الَّذِي خَلَقَكُمْ مِنْ تُرَابٍ ثُمَّ مِنْ نُطْفَةٍ ثُمَّ مِنْ عَلَقَةٍ ثُمَّ يُخْرِجُكُمْ طِفْلًا ثُمَّ لِتَبْلُغُوا أَشُدَّكُمْ ثُمَّ لِتَكُونُوا شُيُوخًا وَمِنْكُمْ مَنْ يُتَوَفَّى مِنْ قَبْلُ وَلِتَبْلُغُوا أَجَلًا مُسَمًّى وَلَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ (67) هُوَ الَّذِي يُحْيِي وَيُمِيتُ فَإِذَا قَضَى أَمْرًا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُ كُنْ فَيَكُونُ (68)

इन आयतों का अनुवाद हैः

वही वह ख़ुदा है जिसने तुमको पहले (पहल) मिटटी से पैदा किया फिर नुत्फे से, फिर जमे हुए ख़ून फिर तुमको बच्चा बनाकर (माँ के पेट से) निकालता है (ताकि बड़े हो) फिर (ज़िन्दा रखता है) ताकि तुम अपनी जवानी को पहुँचो फिर (और ज़िन्दा रखता है ताकि तुम बूढ़े हो जाओ और तुममें से कोई ऐसा भी है जो (इससे) पहले मर जाता है बहरहाल (तुमको उस वक्त तक ज़िन्दा रखता है कि) तुम (मौत के) तयशुदा वक़्त तक पहुँच जाओ [40:67] और ताकि तुम (उसकी क़ुदरत को समझो) वह वही (ख़ुदा) है जो जिलाता और मारता है, फिर जब वह किसी काम का करना ठान लेता है तो बस उससे कह देता है कि 'हो जा' तो वह फ़ौरन हो जाता है। [40:68]

पिछली कुछ आयतें आसमान और ज़मीन में अल्लाह की निशानियों और प्राकृतिक चीज़ों की तरफ़ इशारा करती हैं। अब यह आयत इंसान की पैदाइश और रचना के बारे में बात करती है कि इंसान को मिट्टी से बनाया गया है। इसमें ज़िक्र है कि इंसान भ्रूण के चरण से गुज़रा है, उसके बाद उसका जन्म हुआ, उसने दुनिया में आकर ज़िंदगी गुज़ारी और फिर मौत की नींद सो गया।

इंसान की रचना का पहला चरण मिट्टी के ज़रिए पूरा होता है। यह चीज़ सबसे पहले इंसान यानी हज़रत आदम के बारे में भी है। उन्हें मिट्टी से बनाया गया, इसी तरह यह चीज़ बाक़ी सारे इंसानों के बारे में भी सच है क्योंकि इंसान का शरीर उस वनस्पति या खाने की चीज़ों से बनता है जो मिट्टी से निकली हैं। इसके बाद अगला चरण वीर्य का है। पुरुष के वीर्य और महिला के अंडाणुओं से महिला के गर्भ में रचना का एक चरण पूरा होता है। इस चरण के बाद जमा हुआ ख़ून बनता है जिसे क़ुरआन अलक़ा कहता है इसके बाद जो नया रूप प्राप्त होता है उसे क़ुरआन ने मुज़ग़ा कहा है जिसका अर्थ होता है लोथड़ा या चबाए हुए मांस की भांति। इसके बाद शरीर के अंग बनने लगते हैं और शरीर पूरा तैयार होता है। इसके बाद के चरण में शिशु का जन्म होता है और दुनिया में आंखें खोलता है। बचपन और नौजवानी का दौर गुज़ारता है। इस चरण में इंसान की बुद्धि पुख़्ता होती है और उसका शरीर अपनी ताक़त के चरम बिंदु पर पहुंचता है।

मगर यह जवानी का दौर भी स्थायी नहीं है और इंसान इस चोटी पर पहुंचने के बाद ढलान की ओर बढ़ता है। अब उसकी शक्ति धीरे धीरे कम होती है। वह अधेड़ होता है और फिर बुढ़ापे की ओर प्रस्थान करता है। आख़िरकार ज़िंदगी का अंतिम समय आ पहुंचता है और मौत आकर इंसान को एक खिड़की के भीतर ले जाती है जिसका नाम क़ब्र है जो इंसान को क़यामत की दिशा में आगे ले जाती है।

अलबत्ता कुछ लोग होते हैं जो यह सारे चरण पूरे नहीं करते बल्कि बीमारी या दुर्घटना आदि किसी कारण से बुढ़ापे तक पहुंचने से पहले ही इस दुनिया से चले जाते हैं।

रोचक बिंदु यह है कि क़ुरआन इस आयत में मौत को मिट जाने के अर्थ में नहीं लेता बल्कि ऐसे शब्द का इस्तेमाल करता है जिसका अर्थ यह है कि मौत के समय फ़रिश्ते इंसान की रूह को ले लेते हैं और मौत के बाद की दुनिया में पहुंचा देते हैं। क़ुरआन की आयतों से बख़ूबी स्पष्ट हो जाता है कि बहुत सारे लोगों की सोच के विपरीत मौत इंसान के ख़त्म हो जाने और मिट जाने के अर्थ में नहीं है बल्कि हमेशा बाक़ी रहने वाली दुनिया में प्रवेश का दरवाज़ा है।

इन आयतों में आगे जाकर पैदाइश के क़ानून को जो ज़िंदगी और मौत पर आधारित है बयान किया गया है। आयत कहती है कि यह चीज़ केवल अल्लाह के अख़तियार में और उसकी इच्छा पर निर्भर है। वो जो इरादा करता है हो जाता है एक लम्हे की भी देरी के बग़ैर।

इन दोनों आयतों में ज़िंदगी और मौत दो हक़ीक़तों का ज़िक्र किया गया है। वैसे तो सारी वनस्पतियों, पेड़ पौधों, जानवरों और इंसानों सब के लिए मौत और ज़िंदगी दोनों रखे गए हैं। यह दोनों हक़ीक़तें दरअस्ल प्राकृति की व्यवस्था के आधार पर बनाई गई हैं जिन्हें अल्लाह ने निर्धारित किया है इसमें इंसान की कोई भूमिका नहीं है। मौत और ज़िंदगी अल्लाह की शक्ति की झलक पेश करते हैं। इंसान बड़ी तरक़्क़ी कर चुका है लेकिन अब तक यह राज़ उसकी समझ से बाहर है।

यहां यह बताना ज़रूरी है कि ज़िंदगी अलग अलग रूपों में सामने आती है। विशालकाय जानवर, वे परिंदे जो आसमानों की बुलंदियों पर परवाज़ करते हैं, या वे पेड़ जिनकी ऊंचाई दसियों मीटर से ज़्यादा होती है। सब के अंदर ज़िंदगी है। यक़ीनन ज़िंदगी के यह अलग अलग रूप कायनात की सबसे विविध झलकियां पेश करते हैं। निर्जीव लोक से निकल कर जानदारों की दुनिया में आना और इस दुनिया से मौत के बाद की दुनिया में जाना इस पूरी प्रक्रिया में अनगिनत राज़ हैं जो अल्लाह की ताक़त की निशानियां हैं।

अलबत्ता यह सारी चीज़ें जो हमे बहुत कठिन और पेचीदा नज़र आती हैं अल्लाह के लिए बिल्कुल पेचीदा नहीं हैं वह हर काम का सामर्थ्य रखता है उसके लिए कोई चीज़ भी कठिन नहीं है। वो बस इरादा करता है और काम हो जाता है। वो जिस चीज़ को पैदा करने का फ़ैसला कर लेता है बस कहता है कि हो जा और वो चीज़ हो जाती है।

इन आयतों से हमने सीखाः

ज़िंदगी, विवेक और सोच रखने वाले इंसान की रचना अल्लाह की ताक़त की निशानियां हैं।

कायनात की व्यवस्था लगातार परिपूर्णता के चरणों से गुज़रने वाली व्यवस्था है, मौत इंसानी ज़िंदगी का अंत नहीं है, बल्कि रूह शरीर से अलग होकर ज़्यादा बड़े और ज़्यादा महान चरण में पहुंचती है।

अल्लाह ने हमें यह निर्देश दिया है कि इंसान की रचना के चरणों के बारे में सोचें ताकि पैदाइश की व्यवस्था की महानता को समझें और अपने महत्व की भी जानकारी हासिल करें।

ज़िंदगी और मौत का अख़तियार अल्लाह के हाथ में है।

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