Nov २८, २०२४ १२:४० Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-898 

सूरए फ़ुस्सेलत आयतें 29-30

आइए पहले सूरए फ़ुस्सेलत की आयत नंबर 29 की तिलावत सुनते हैं,

وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا رَبَّنَا أَرِنَا الَّذَيْنِ أَضَلَّانَا مِنَ الْجِنِّ وَالْإِنْسِ نَجْعَلْهُمَا تَحْتَ أَقْدَامِنَا لِيَكُونَا مِنَ الْأَسْفَلِينَ (29)

इस आयत का अनुवाद हैः

और (क़यामत के दिन) कुफ्फ़ार कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार जिनों और इन्सानों में से जिन लोगों ने हमको गुमराह किया था (एक नज़र) उनको हमें दिखा दे कि हम उनको पाँव तले (रौन्द) डालें ताकि वे ख़ूब अपमानित हों। [41:29]

पिछले कार्यक्रम में उन काफ़िरों के बारे में बात हुई जो आम लोगों को क़ुरआन की आयतें सुनने से रोकते थे। अब यह आयत कहती है कि इन काफ़िरों की हरकतों के नतीजे में जो लोग गुमराह हुए हैं क़यामत के दिन वे अल्लाह से शिकायत करेंगे वे अल्लाह से मांग रखेंगे कि लोगों को बहकाने वाले शैतानी मेज़ाज के लोगों को जहन्नम की सबसे पस्त और सबसे बुरी जगह में रखे। और उनकी हरकतों की वजह से गुमराही में पड़ जाने वालों को यह अनुमति दे कि गुमराह करने वालों को पैरों से कुचलें ताकि उन लोगों को जो दुनिया में बड़े घमंड में रहते थे और अपने आपको सबसे श्रेष्ठ समझते थे अपमानित करें।

 

इस आयत से हमने सीखाः

क़यामत में काफ़िर यह कोशिश करेंगे कि अपने कुफ़्र और गुमराही के लिए दूसरों को दोषी ठहराएं और यह कहें कि दूसरों की वजह से वे गुमराह हुए।

इंसान की गुमराही की कई वजहें होती हैं। कुछ इंसान और शैतान हैं जो लोगों को गुमराह करते हैं।

गुमराह और कुफ़्र की राह पर चलने वाले सरग़ना जो दुनिया में अपनी ताक़त और वर्चस्व के ज़रिए लोगों को गुमराह करते हैं, क़यामत में उनके अनुयायियों की यह आरज़ू होगी कि इन सरग़नाओं को कुचलें।

 

अब आइए सूरए फ़ुस्सेलत की आयत संख्या 30 की तिलावत सुनते हैं,

إِنَّ الَّذِينَ قَالُوا رَبُّنَا اللَّهُ ثُمَّ اسْتَقَامُوا تَتَنَزَّلُ عَلَيْهِمُ الْمَلَائِكَةُ أَلَّا تَخَافُوا وَلَا تَحْزَنُوا وَأَبْشِرُوا بِالْجَنَّةِ الَّتِي كُنْتُمْ تُوعَدُونَ (30)

इस आयत का अनुसाद हैः

बेशक जिन लोगों ने कहा कि हमारा परवरदिगार तो (बस) ख़ुदा है, फिर वह उसी (अक़ीदे) पर क़ायम भी रहे। उन पर फ़रिश्ते नाज़िल होंगे (और कहेंगे) कि कुछ ख़ौफ न करो और न ग़म खाओ और जिस जन्नत का तुमसे वादा किया गया उसकी ख़ुशियां मनाओ। [41:30]  

काफ़िरों और गुमराहों का तो यह हाल है कि जैसे ही कोई उन्हें दुनियावी लज़्ज़तों और भौतिक आनंद की ओर बुलाए वे उस तरफ़ दौड़ पड़ते हैं मगर लोगों में एक समूह वो भी है जो केवल पैग़म्बरों की दावत को क़ुबूल करता है। वे सिर्फ़ अल्लाह पर ईमान लाते हैं जो अनन्य है इसके अलावा वे किसी की आवाज़ और बुलावे पर नहीं जाते न किसी और दिशा में बढ़ने के बारे में सोचते हैं। वे कहते हैं कि हमारा परवरदिगार तो अल्लाह है। सिर्फ़ कहते नहीं बल्कि अपनी इस बात और अपने इस विचार पर क़ायम रहते हैं इससे कभी मुंह नहीं मोड़ते। क़यामत पर ईमान और अल्लाह के वादों पर यक़ीन उनके वजूद में इतना मज़बूत है कि वे अल्पकालिक दुनयावी चीज़ों की फ़िक्र में पड़ने के बजाए अल्लाह के यक़ीनी और स्थायी वादों पर ध्यान देते हैं। इसलिए कोई भी चीज़ हो उन्हें उनके कर्तव्यों के निर्वाह से नहीं रोक सकती। वे हर हाल में अपने धार्मिक दायित्वों पर अमल करते हैं।

अलबत्ता अल्लाह पर ईमान के दावे तो बहुत से लोग करते हैं लेकिन अगर अमल के चरण में देखा जाए तो बहुत से लोग एसे हैं कि वे इस ईमान पर क़ायम नहीं रहते। यह कमज़ोर इरादे के कमज़ोर लोग हैं जो इच्छाओं की आंधी के सामने आ जाते हैं तो टिक नहीं पाते बल्कि अपने दुनियावी हितों और स्वार्थों को ख़तरे में पड़ता देखकर अपना ईमान गवां बैठते हैं। दरअस्ल इस तरह के लोग बहुत कम हैं जो अंदरूनी इच्छाओं या दोस्तों और क़रीबियों की अनुचित मांगों के सामने मज़बूती से टिके रहें और उसके बहाव से ख़ुद को सुरक्षित रखें।

बहरहाल अल्लाह की सुन्नत यह है कि सच्चे मोमिनों की वह मदद करता है। अल्लाह की मदद का एक तरीक़ा यह है कि वह मोमिन बंदों के दिलों पर अपने फ़रिश्ते नाज़िल कर देता है जो उनका मनोबल बढ़ाते हैं, उनके दिल को मज़बूती देते हैं और उनके भीतर उम्मीद पैदा कर देते हैं। फिर इसका नतीजा यह होता है कि उनके दिलों से हर तरह का ख़ौफ़ और डर दूर हो जाता है, उन्हें बीती हुई बातों को लेकर कोई दुख और ग़म नहीं होता। फ़रिश्त उन लोगों को जन्नत की ख़ुशख़बरी सुनाते हैं।

बेशक अल्लाह के फ़रिश्ते जब यह ख़ुशख़बरी देते हैं तो ईमान की दौलत से मालामाल इंसानों के दिल व जान में नई ऊर्जा और उत्साह पैदा हो जाता है। जब ज़िंदगी में कड़ा वक़्त आता है तो उनका दिल मज़बूत रहता है और जहां दूसरे फिसल जाते हैं यह मोमिन बंदे मज़बूत क़दमों के साथ डटे रहते हैं उनके क़दम हरगिज़ डगमगाते नहीं।

इसकी वजह यह है कि दुनिया में मोमिनों की यह ज़िम्मेदारी थी कि अपने नफ़्स और अपनी इच्छाओं पर कंट्रोल रखें और अपनी निरंकुश इच्छाओं के बहाव में बह जाने से ख़ुद को बचाएं। क्योंकि इच्छाओं के बहाव में बह जाने वाला इंसान तबाह हो जाता है। अब क़यामत का दिन होगा तो अल्लाह इन मोमिन बंदों को दुनिया में किए गए उनके एहतियात और इच्छाओं पर क़ाबू के बदले में उन्हें वो सारी चीज़ें देगा जिसकी उनको इच्छा होगी। क्योंकि जन्नत तबाही और बर्बादी की जगह नहीं है। उन्हें अल्लाह की जन्नत में हमेशा के लिए जगह प्रदान कर दी जाएगी और वे मेहमान बनकर वहां दाख़िल होंगे। वे इतने महान मेहमान होंगे कि उनका मेज़बान अल्लाह होगा जो बहुत क्षमा करने वाला मेहरबान है। जन्नत में पाकीज़ा इंसान अल्लाह के मेहमान बनेंगें

इस आयत से हमने सीखाः

अगर दुनिया में मोमिन बंदों  के दोस्तों की संख्या बहुत ज़्यादा नहीं होती तो आसमान के फ़रिश्ते उनके दोस्त होते हैं जो दुनिया और आख़ेरत हर जगह उनका साथ देंगे और उनकी मदद करेंगे।

जन्नात का आनंद और सुख केवल भौतिक और शारीरिक आनंद तक सीमित नहीं है। बल्कि इंसान को जिस चीज़ में भी सुख और आनंद हासिल हो सकता है वह सब वहां मुहैया होगा। ज़ाहिर है कि जन्नत जाने वालों का रूहानी आनंद और सुख भौतिक लज़्ज़तों से कम नहीं बहुत ज़्यादा और बहुत महत्वपूर्ण है।

जन्नत में जाने वालों से रहमत व बख़्शिश की बुनियाद पर बर्ताव किया जाएगा, यह उनके बारे में अल्लाह की असीम कृपा व दया व रहमत की अलामत है।