क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-932
सूरए दुख़ान, आयतें 37-50
आइए सबसे पहले सूरए दुख़ान की आयत संख्या 37 की तिलावत सुनते हैं,
أَهُمْ خَيْرٌ أَمْ قَوْمُ تُبَّعٍ وَالَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ أَهْلَكْنَاهُمْ إِنَّهُمْ كَانُوا مُجْرِمِينَ (37)
इस आयत का अनुवाद हैः
भला ये लोग (ताक़त में) अच्छे हैं या तुब्बा क़ौम और वो लोग जो उनसे पहले थे, हमने उन सबको हलाक कर दिया (क्योंकि) वह यक़ीनन गुनाहगार थे। [44:37]
यह आयत मक्के के मुशरिकों से जो पैग़म्बरे इस्लाम की बातों का इंकार करते थे और अपनी बात पर अड़े हुए थे, कहती है कि तुम ज़्यादा ताक़तवर हो या वे लोग जो अरब द्वीप के दक्षिण में यमन की धरती पर बसते थे? उनके पास बड़ी आबाद और बरकतों वाली ज़मीनें थीं और उनके पास काफ़ी ताक़त थी लेकिन जब वे ज़ुल्म, भ्रष्टाचार और सरकशी में डूब गए तो मिट गए। तो तुम भी डरो कि कहीं तुम्हारा भी अंजाम तुम्हारे पड़ोसियों जैसा न हो जाए।
इस आयत से हमने सीखाः इंसानों को सावधान करने और सही मार्ग दिखाने के लिए क़ुरआन का एक पुराना तरीक़ा यह रहा है कि बीते ज़माने की क़ौमों का इतिहास बयान करता है ताकि बाद के दौर के लोगों को इससे पाठ मिले।
कुछ काम दुनिया में ही अल्लाह के अज़ाब का सबब बन जाते हैं। समाज में अत्याचार, अपराध और भ्राष्टाचार का बढ़ जाना इसी तरह के काम हैं।
आइए अब सूरए दुख़ान की आयत संख्या 38 और 39 की तिलावत सुनते हैं,
وَمَا خَلَقْنَا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا لَاعِبِينَ (38) مَا خَلَقْنَاهُمَا إِلَّا بِالْحَقِّ وَلَكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ (39)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और हमने सारे आसमान व ज़मीन और जो चीज़े उन दोनों के दरमियान हैं उनको खेलते हुए नहीं बनाया। [44:38] इन दोनों को हमने बस ठीक (मसलहत से) पैदा किया मगर उनमें के बहुतेरे लोग नहीं जानते। [44:39]
चूंकि पिछली आयतों में क़यामत के बारे में बात की गई इसलिए अब यह आयतें क़यामत आने की वजह बयान करते हुए कहती हैं कि क्या आसमान और ज़मीन और यह विशाल ब्रहमांड व्यर्थ और बिना किसी लक्ष्य के पैदा कर दिया गया है जो मौत के साथ ही ख़त्म हो जाए और पूरी तरह मिट जाए?
अगर ऐसा हो तो यह तो बच्चों के खेल के समान हो जाएगा जो अलग अलग टुकड़ों को जोड़ कर इमारतें बनाते हैं और आख़िर में एक धक्का देकर सब गिरा देते हैं क्योंकि उनका मक़सद केवल खेल कूद होता है। काफ़िर और क़यामत का इंकार करने वाले मौत को इंसानी ज़िंदगी का अंत मानते हैं। दूसरे शब्दों में यूं कहा जाए कि उनकी नज़र में इंसानों को इतनी सारी क्षमताओं और महारतों की संभावनाओं के साथ केवल चंद दिन की दुनिया की ज़िंदगी के लिए पैदा किया गया मौत के साथ ही उसकी सारी चीज़ें ख़त्म हो जाती हैं। ज़ाहिर है कि अगर यह सोच हो तो पूरी कायनात व्यर्थ और लक्ष्यहीन हो जाएगी। मगर क़यामत का इंकार करने वालों की सोच के विपरीत क़ुरआन कहता है कि मौत एक पुल है जिससे गुज़र कर इंसान बहुत विशाल कायनात में पहुंच जाता है जो हमेशा रहने वाली है और यह दुनिया उस महान कायनात के सामने बहुत छोटी और मामूली है। यह बात यक़ीन करने के लायक़ नहीं है कि इसनी विशाल कायनात को इंसानों की केवल चंद दिन की ज़िंदगी के लिए पैदा किया जाए। यह अल्लाह की हिकमत और तत्वदर्शिता से मेल नहीं खाती। इन आयतों में ज़मीन और आसमानों की रचना को मसलेहतों से भरी रचना क़रार दिया गया है तो इसका तक़ाज़ा यह है कि इसकी रचना का कोई लक्ष्य भी ज़रूर होगा और यह दूसरे लोक के अस्तित्व के बग़ैर संभव नहीं है।
इन आयतों से हमने सीखाः
अगर इंसान का काम मौत के साथ ही ख़त्म हो जाए तो इतनी महान कायनात जो इंसान के लिए पैदा की गई है व्यर्थ होगी।
अगर कायनात लक्ष्यपूर्ण है तो हम इंसानों का भी कोई लक्ष्य होना चाहिए और ज़रूरी है कि हम उस लक्ष्य को बख़ूबी पहचानें और ख़ुद को उससे समन्वित करें।
क़यामत का इंकार करने की एक वजह पैदाइश के सही लक्ष्य को न जानना है। बहुत सारे लोगों के पास इसकी सही शिनाख़्त नहीं होती।
आइए अब सूरए दुख़ान की आयत संख्या 40 से 42 तक की तिलावत सुनते हैं,
إِنَّ يَوْمَ الْفَصْلِ مِيقَاتُهُمْ أَجْمَعِينَ (40) يَوْمَ لَا يُغْنِي مَوْلًى عَنْ مَوْلًى شَيْئًا وَلَا هُمْ يُنْصَرُونَ (41) إِلَّا مَنْ رَحِمَ اللَّهُ إِنَّهُ هُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ (42)
इन आयतों का अनुवाद हैः
बेशक (हक़ और बातिल की) जुदाई का दिन उन सब (के दोबारा ज़िन्दा होने) का मुक़र्रर वक़्त है। [44:40] जिस दिन कोई दोस्त किसी दोस्त के कुछ काम न आएगा और न उन की मदद की जाएगी। [44:41] सिवाए उन के जिन पर ख़ुदा रहम फ़रमाए बेशक वो (ख़ुदा) सब पर ग़ालिब बड़ा रहम करने वाला है। [44:42]
पिछली आयतों में बताया गया कि कायनात की पूरी व्यवस्था का महत्वपूर्ण लक्ष्य है और यह क़यामत आने की सबसे बड़ी वजह है। इसके बाद यह आयतें क़यामत की कुछ विशेषताओं को बयान करते हुए कहती हैं कि उस दिन जुदाई और फ़ैसले का दिन होगा। उस दिन इंसान को हर चीज़ से अलग कर दिया जाएगा उसके साथ केवल उसका कर्म रह जाएगा। दुनिया की स्थिति के बिल्कुल विपरीत क्योंकि दुनिया में इंसान के दोस्त भी साथ होते हैं और दोस्त मुश्किलों में एक दूसरे की मदद कर सकते हैं और उन्हें मुश्किल से बाहर निकाल सकते हैं। क़यामत में पारिवारिक और सामाजिक रिश्ते पूरी तरह ख़त्म हो जाएंगे। न दोस्त एक दूसरे की मदद कर पाएंगे और न रिश्तेदार एक दूसरे की मुश्किल हल कर पाएंगे। सारी योजनाएं फ़ेंल हो जाएंगी और रास्ते बंद हो जाएंगे। ज़ाहिर है कि अल्लाह के करम हो जाने की स्थिति के अलावा कोई भी किसी इंसान को मुक्ति नहीं दिला पाएगा। अल्लाह ने नेक इंसानों पर अपनी रहमत नाज़िल की है और उन्हें अपने करम से नवाज़ेगा।
इन आयतों से हमने सीखाः
क़यामत का दिन इंसानों की एक दूसरे से जुदाई का दिन है, इंसान उस दिन अपने सारे दोस्तों, क़रीबियों और रिश्तेदारों से जुदा हो जाएगा। तो क़यामत में उनमें से किसी से भी मदद की उम्मीद न रखे।
क़यामत में इंसानों का हाज़िर होना निश्चित है। उस दिन सब एक साथ जमा होंगे। मगर इतनी भीड़ के बावजूद हर इंसान तनहा होगा।
इंसान क़यामत में केवल अल्लाह से सरोकार रखेगा। अल्लाह काफ़िरों को अपनी ताक़त दिखाएगा और ईमान वालों पर करम करेगा।
आइए अब सूरए दुख़ान की आयत संख्या 43 से 50 तक की तिलावत सुनते हैं,
إِنَّ شَجَرَةَ الزَّقُّومِ (43) طَعَامُ الْأَثِيمِ (44) كَالْمُهْلِ يَغْلِي فِي الْبُطُونِ (45) كَغَلْيِ الْحَمِيمِ (46) خُذُوهُ فَاعْتِلُوهُ إِلَى سَوَاءِ الْجَحِيمِ (47) ثُمَّ صُبُّوا فَوْقَ رَأْسِهِ مِنْ عَذَابِ الْحَمِيمِ (48) ذُقْ إِنَّكَ أَنْتَ الْعَزِيزُ الْكَرِيمُ (49) إِنَّ هَذَا مَا كُنْتُمْ بِهِ تَمْتَرُونَ (50)
इन आयतों का अनुवाद हैः
(आख़ेरत में) ज़क़्क़ूम का दरख्त। [44:43] ज़रूर गुनेहगारों का खाना होगा। [44:44] जैसे पिघला हुआ तांबा वह पेटों में इस तरह उबाल खाएगा। [44:45] जैसे खौलता हुआ पानी उबाल खाता है। [44:46] (फ़रिश्तों को हुक्म होगा) इसको पकड़ो और घसीटते हुए दोज़ख़ के बीचो बीच में ले जाओ। [44:47] फिर उसके सर पर खौलते हुए पानी का अज़ाब डालो फिर उससे कहा जाएगा अब मज़ा चखो। [44:48] बेशक तू तो बड़ा इज्ज़त वाला सरदार है। [44:49] ये वही दोज़ख़ तो है जिसके बारे में तुम लोग शक किया करते थे। [44:50]
पिछली आयतों के ही क्रम में जिनमें क़यामत की एक विशेषता का ज़िक्र था अब यह आयतें दोज़ख़ में पापियों के ख़ौफ़नाक अज़ाब और सज़ा का उल्लेख करती हैं जिसके तसव्वुर से ही इंसान कांप उठता है। आम सोच यह है कि दोज़ख़ आग है जैसे दुनिया की आग होती है उसी तरह वो इंसानों को जलाकर राख कर देगी। जबकि इन आयतों में बताया गया है कि उसी आग के भीतर दोज़ख़ी लोगों को पानी और खाना भी दिया जाएगा और वहीं वो जीवन गुज़ारेंगे। मगर यह खाना और पानी ऐसा होगा जिससे उनकी पीड़ा और भी बढ़ जाएगी। वह खौलता हुआ पानी होगा और खाना बेहद तल्ख़ और कड़वा होगा जो इंसान को पीड़ा और तकलीफ़ के अलावा कुछ न देगा। जहन्नम में जाने वालों को वहां से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिलेगा। वहीं जहन्नम के शोले उन्हें घेर लेंगे और उन्हें जलाएंगे।
शरीर को मिलने वाली दर्दनाक तकलीफ़ के साथ ही मानसिक पीड़ा भी होगी। पापियों और सरकशों से कहा जाएगा कि अब मज़ा चखो तुम तो अपने आप को सबसे ताक़तवर और सम्मानजनक मानते और कहते थे। तुमने बेसहारा लोगों को ज़ंजीरों में जकड़ा उन पर अत्याचार किया। तुम अपने आप को अजेय समझते थे और सबसे ज़्यादा सम्मानजनक मानते थे।
ज़ाहिर है कि हर इंसान को दी जाने वाली सज़ा उसके पाप के अनुसार होगी। जो व्यक्ति दुनिया में बड़े आराम से अपराध करता है और यह सोचता है कि उसे तो ऐसा मक़ाम हासिल है कि कोई उसे नुक़सान नहीं पहुंचा सकता तो उसे दूसरों से ज़्यादा सज़ा दी जाएगी। वे दरअस्ल अपने कामों का ख़मियाज़ा भुगतेंगे। उनसे कहा जाएगा कि यह वही चीज़ है जिसके बारे में तुम बार बार शक करते थे।
इन आयतों से हमने सीखाः
कयामत में गुनाह आग के रूप में सामने आएंगे जिनसे इंसान का बाहरी और भीतरी अस्तित्व भयानक रूप से जल रहा होगा। तो जब तक हम दुनिया में हैं हमारे पास मौक़ा है कि अपने पापों पर तौबा कर लें और ख़ुद को दोज़ख़ की आग से बचा लें।
क़यामत की सज़ा शरीर को भी मिलेगी और ज़ेहन को भी मिलेगी। दोज़ख़ में जाने वाले आग में जलेंगे भी और दूसरों के सामने मज़ाक़ का पात्र भी बनेंगे।