Feb ०५, २०२५ १७:०० Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-940

सूरए अहक़ाफ़, आयतें 1-5

  

आइये सबसे पहले सूरे अहक़ाफ़ की पहली से लेकर तीसरी आयतों तक की तिलावत सुनते हैं,

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ

حم (1) تَنْزِيلُ الْكِتَابِ مِنَ اللَّهِ الْعَزِيزِ الْحَكِيمِ (2) مَا خَلَقْنَا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا إِلَّا بِالْحَقِّ وَأَجَلٍ مُسَمًّى وَالَّذِينَ كَفَرُوا عَمَّا أُنْذِرُوا مُعْرِضُونَ (3)  

 इन आयतों का अनुवाद हैः

हा मीम  [46:1] ये किताब ग़ालिब (व) हकीम ख़ुदा की तरफ़ से नाज़िल हुई है.  [46:2]  हमने तो सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ इन दोनों के दरमियान है हिकमत ही से एक ख़ास वक़्त तक के लिए ही पैदा किया है और कुफ्फ़ार जिन चीज़ों से डराए जाते हैं उन से मुँह फेर लेते हैं. [46:3]

 

यह सूरा भी पवित्र क़ुरआन के दूसरे 28 सूरों की भांति हुरूफ़े मुक़त्तआत से आरंभ होता है और उन सूरों की भांति इन हुरूफ़े मुक़त्तेआत के बाद पवित्र क़ुरआन के महत्व के बारे में बात की गयी है। मानो अल्लाह कहना चाहता है कि जो हुरूफ़ व अक्षर आपके पास हैं हमने इन्हीं अक्षरों से क़ुरआन बना दिया कि तुम उसके जैसा लाने में असमर्थ हो और यह क़ुरआन के चमत्कार होने पर बेहतरीन दलील है।

पवित्र क़ुरआन की विभिन्न आयतों में अल्लाह की ओर से इस बात पर बल दिया जाना कि क़ुरआन को हमने नाज़िल किया है इस आसमानी किताब के स्थान का सूचक है और इस किताब पर अमल करना इंसान की इज़्ज़त का कारण बनता है। क्योंकि क़ुरआन की समस्त शिक्षाओं का आधार ज्ञान व हिकमत है और पवित्र क़ुरआन में कहीं भी अर्थहीन बात या अर्थहीन शिक्षा नहीं मिलेगी।

न केवल शरीयत की किताब बल्कि प्राकृतिक व्यवस्था की रचना भी हक़ के आधार पर की गयी है और नियत समय और कार्यक्रम के तहत उसका संचालन किया जा रहा है और इस व्यवस्था व कायनात में हर चीज़ की अपनी एक जगह है।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि आसमानी किताब में एक शब्द भी ग़लत व नाहक़ नहीं है। इस ब्रह्मांड में कोई भी चीज़ असंतुलित और हक़ के ख़िलाफ़ नहीं है। हर चीज़ संतुलित और हक़ के अनुसार है मगर जिस तरह से इस सृष्टि का एक आरंभ बिंदु है उसी तरह इसका अंत भी निर्धारित है और जब उसका समय आ जायेगा तो दुनिया ख़त्म हो जायेगी।

अलबत्ता जो लोग अल्लाह के अस्तित्व या पैग़म्बरों के भेजे जाने का

इंकार करते हैं वे पवित्र क़ुरआन में अल्लाह की आयतों, सृष्टि की व्यवस्था और

अक़्ल और वहि की चेतावनियों की उपेक्षा करते हैं और वे हक़ से भागते हैं, वे हक़ को पसंद नहीं करते हैं। परिणाम स्वरूप वे स्वयं को अल्लाह की हिदायत व मार्गदर्शन से वंचित कर लेते हैं।

 

इन आयतों से हमने सीखाः

 

क़ुरआन अल्लाह का कलाम है जो पैग़म्बरे इस्लाम पर नाज़िल हुआ और उनकी ज़बान से जारी हुआ।

प्राकृतिक व्यवस्था और शरीअत दोनों का आधार हक़ व तर्कशीलता है क्योंकि दोनों का स्रोत तत्वदर्शी अल्लाह है।

कायनात की व्यवस्था में भ्रम, नाहक़ और बिला वजह का कोई स्थान नहीं है।

आसमान व ज़मीन और समस्त कायनात का एक नियत समय और नियत अंजाम है और कोई भी चीज़ अपने आप और संयोग से नहीं होती। समूची कायनात हक़ की दिशा में चल रही है। केवल इंसान है जिसे यह अधिकार दिया गया है कि चाहे वह सही रास्ते का चयन करे या ग़लत रास्ते का।

 

आइये अब सूरे अहक़ाफ़ की 4थी और 5वीं आयतों की तिलावत सुनते हैं, 

 

قُلْ أَرَأَيْتُمْ مَا تَدْعُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ أَرُونِي مَاذَا خَلَقُوا مِنَ الْأَرْضِ أَمْ لَهُمْ شِرْكٌ فِي السَّمَاوَاتِ اِئْتُونِي بِكِتَابٍ مِنْ قَبْلِ هَذَا أَوْ أَثَارَةٍ مِنْ عِلْمٍ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ (4) وَمَنْ أَضَلُّ مِمَّنْ يَدْعُو مِنْ دُونِ اللَّهِ مَنْ لَا يَسْتَجِيبُ لَهُ إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ وَهُمْ عَنْ دُعَائِهِمْ غَافِلُونَ (5)

इन आयतों का अनुवाद हैः

 

(ऐ रसूल) तुम पूछो कि ख़ुदा को छोड़ कर जिनकी तुम इबादत करते हो क्या तुमने उनको देखा है? मुझे भी तो दिखाओ कि उन लोगों ने ज़मीन में क्या चीज़ें पैदा की हैं कि आसमानों (के बनाने) में उनकी शिरकत होगी! तो अगर तुम सच्चे हो तो उससे पहले की कोई किताब (या अगलों के) इल्म का बक़िया कुछ हो तो मेरे सामने पेश करो. [46:4] और उस शख़्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ख़ुदा के सिवा ऐसे को पुकारे जो उसे क़यामत तक जवाब ही न दे और उसको उनके पुकारने की ख़बर तक न हो. [46:5]

इन आयतों में पैग़म्बरे इस्लाम को यह ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है कि वे मक्का के काफ़िरों से कहें कि जिन बुतों की तुम पूजा करते हो आसमानों और ज़मीन को पैदा करने और सृष्टि की रचना में इनकी क्या भूमिका थी? तुम खुद इस बात को मानते हो कि ज़मीन, आसमान, सूरज, चांद और सितारों को अल्लाह ने पैदा किया है तो इन बुतों की पूजा क्यों करते हो? अपनी समस्याओं के समाधान के लिए इन बेजान और बुद्धिहीन चीज़ों से क्यों मदद मांगते हो? क्या क़ुरआन से पहले कोई किताब आयी थी जिसने तुम्हें बुतों की पूजा करने के लिए कहा था? या विद्वानों की ओर से कोई तार्किक सुबूत पेश किया गया था कि अल्लाह के अलावा किसी और की इबादत करो? बुतों की पूजा व इबादत के लिए अक़्ली या तहरीरी प्रमाण होना चाहिये जबकि तुम्हारे पास इनमें से कोई भी प्रमाण नहीं है। तो मालूम हो गया कि तुम्हारा रास्ता ग़लत है और उसका आधार मात्र कल्पना और बातिल विचार हैं।

आयत में आगे कहा गया है कि तुम किसी अक़्ली या तारीख़ी प्रमाण के बिना बुतों और उन चीज़ों को बुलाते हो जिनकी तुम पूजा करते हो जबकि तुम जानते हो कि वे न तो तुम्हारी मांगों का जवाब देंगी और न ही तुम्हारी मांगों को पूरा करने की ताक़त रखती हैं। वास्तव में तुम ग़लत रास्ते पर चले गये और पूरी तरह गुमराह हो गये हो। क्योंकि तुम एसी चीज़ों की इबादत करते हो और बुलाते हो जो तुम्हारी बात ही नहीं सुनते और तुम्हारी मांगों व बातों को समझते भी नहीं। वे पूरी तरह तुम्हारी बातों से बेख़बर हैं।

इन आयतों से हमने सीखाः

कायनात के रचयिता द्वारा बताये गये रास्ते के अलावा किसी और रास्ते का चयन गुमराही है।

ज़रूरी है कि विरोधियों के सामने एसे सवाल रखें जिससे वे सोचने पर बाध्य हो जायें और वे अपने रास्ते के ग़लत होने की हक़ीक़त को समझ सकें।

न केवल लकड़ी और पत्थर के बुत बल्कि बहुत से बुद्धिमान और समर्थ इंसान भी अपनी और दूसरों की बहुत सी मांगों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं और अल्लाह के अलावा कोई भी उन्हें पूरा नहीं कर सकता इसलिए अपने पालनहार के अलावा किसी अन्य पर भरोसा नहीं करना चाहिये।

इंसान जो भी काम अंजाम देता है उसके लिए उसके पास अक़्ली और इल्मी दलील होनी चाहिये या उसके लिए उसके पास अल्लाह की बात, पैग़म्बरे इस्लाम या उनके पवित्र परिजनों का कथन होने चाहिये।