क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-941
सूरए अहक़ाफ़, आयतें 6-10
आइये सबसे पहले सूरे अहक़ाफ़ की 6ठी आयत की तिलावत सुनते हैं।
وَإِذَا حُشِرَ النَّاسُ كَانُوا لَهُمْ أَعْدَاءً وَكَانُوا بِعِبَادَتِهِمْ كَافِرِينَ (6)
इस आयत का अनुवाद हैः
और जब लोग (क़यामत) में जमा किये जाएगें तो वे (माबूद) उनके दुशमन हो जाएंगे और उनकी इबादत से इन्कार करेंगे. [46:6]
पिछले कार्यक्रम में मुशरिकों द्वारा बुतों की पूजा के बारे में चर्चा की गई। हमने बताया कि बुतों की उपासना करने का कोई फ़ायेदा नहीं है। बुतों की इबादत का कोई लाभ नहीं है इस बात को बयान करते हुए अल्लाह कहता है कि अगर अपनी समस्याओं के समाधान के लिए प्रलय तक इन्हें बुलाते रहोगे तब भी तुम्हारी बात नहीं सुनेंगे और तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं कर सकते। सूरए अहक़ाफ़ की छठी आयत में अल्लाह कहता है कि प्रलय के दिन जब लोगों को जमा किया जायेगा तो जिसकी वे इबादत करते थे वे उनके दुश्मन हो जायेंगे और उनके ख़िलाफ बातें करने लगेंगे।" अलबत्ता जिस चीज़ की वे उपासना करते थे अगर उसके पास अक़्ल और समझ होगी तब, जैसे कुछ फ़रिश्ते और वे इंसान जिनकी उपासना की जाती है। मिसाल के तौर पर हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम और फ़रिश्ते अपनी उपासना करने वालों से बेज़ार हो जायेंगे मगर जिनके पास अक़्ल नहीं है जैसे बुत तो वे क़यामत के दिन अल्लाह की अनुमति से वे बोलेंगे और वे भी अपनी उपासना करने वालों से अपनी बेज़ारी का एलान करेंगे।
इस आयत से हमने सीखाः
अल्लाह के अलावा इस दुनिया में जिस चीज़ की भी उपासना की जायेगी वह चीज़ क़यामत में इंसान की शिफ़ाअत करने के बजाये उसकी दुश्मन हो जायेगी और उसकी शिकायत करेगी।
आइये अब सूरे अहक़ाफ़ की 7वीं और 8वीं आयतों की तिलावत सुनते हैं।
وَإِذَا تُتْلَى عَلَيْهِمْ آَيَاتُنَا بَيِّنَاتٍ قَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلْحَقِّ لَمَّا جَاءَهُمْ هَذَا سِحْرٌ مُبِينٌ (7) أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَاهُ قُلْ إِنِ افْتَرَيْتُهُ فَلَا تَمْلِكُونَ لِي مِنَ اللَّهِ شَيْئًا هُوَ أَعْلَمُ بِمَا تُفِيضُونَ فِيهِ كَفَى بِهِ شَهِيدًا بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ وَهُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ (8)
इस आयत का अनुवाद हैः
और जब हमारी खुली खुली आयतें उनके सामने पढ़ी जाती हैं तो जो लोग काफिर हैं हक़ के बारे में जब उनके पास आ चुका तो कहते हैं ये तो खुला जादू है. [46:7] क्या ये कहते हैं कि इन्होंने इसको ख़ुद गढ़ लिया है तो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर मैं इसको (अपने जी से) गढ़ लेता तो तुम ख़ुदा के सामने मेरे कुछ भी काम न आओगे, जो बातें तुम लोग उसके बारे में करते रहते हो वह ख़ूब जानता है. मेरे और तुम्हारे दरमियान वही गवाही को काफ़ी है और वही बड़ा बख़्शने वाला, मेहरबान है. [46:8]
ये आयतों उन अप्रिय हरकतों की ओर संकेत करती हैं जो मक्का के मुशरिक पैग़म्बरे इस्लाम के साथ अंजाम देते थे। अल्लाह कहता है कि काफ़िर कभी पैग़म्बर को जादूगर कहते थे और क़ुरआन को उनकी जादू की बातें कहते थे जिनके माध्यम से पैग़म्बरे इस्लाम ने लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लिया है। क़ुरआन का जो अजीब आकर्षण था और लोगों के दिलों पर उसका जो प्रभाव था एक तरफ काफ़िर उसका इंकार नहीं कर पाते थे और दूसरी ओर उसकी हक़्क़ानियत और महानता के सामने सिर नहीं झुकाते थे। अतः आम जनमत के ध्यान को भटकाने के लिए पवित्र क़ुरआन को जादू कहते थे। अलबत्ता यह ख़ुद उनकी ओर से इस बात की सांकेतिक स्वीकारोक्ति थी कि पवित्र कुरआन लोगों के दिलों पर असाधारण प्रभाव डालता है जबकि पवित्र क़ुरआन लोगों के दिलों में जो प्रभाव डालता है उसकी अस्ल वजह उसकी आयतों की वास्तविकता है।
कभी काफ़िर यह कहते थे कि यह मर्द यानी पैग़म्बरे इस्लाम जो बातें कहता है यह ख़ुद इसकी बातें हैं जिन्हें वह ईश्वरीय बात कहता और स्वयं को पैग़म्बर बताता है। पैग़म्बरे इस्लाम इनके जवाब में फ़रमाते हैं जैसाकि तुम दावा करते हो कि मैं पैग़म्बर नहीं हूं और झूठ में उसकी निस्बत अल्लाह से देता हूं तो अल्लाह पर ज़रूरी है कि वह मुझे नाकाम करे ताकि लोग गुमराह न हों। ऐसी हालत में कोई भी अल्लाह के इरादे के मुक़ाबले में नहीं टिक सकता और कोई भी अल्लाह के सामने मेरी तरफ से वकालत नहीं कर सकता। यह तुम हो जिसे अल्लाह से डरना चाहिये। क्योंकि तुम लोगों ने उसके भेजे हुए दूत का विरोध किया और उसके मुक़ाबले में खड़े हो गये और लोगों को हक़ के रास्ते से रोकते हो जबकि तुम जानते हो कि मैं हक़ पर हूं और मुझे अपनी हक़्क़ानियत साबित करने के लिए तुम्हारी ज़रूरत नहीं है। क्योंकि अल्लाह बात पर मेरा गवाह है और उसके संदेश को पहुंचाने में वह मेरी कोशिश व प्रयास को देख रहा है और दूसरी ओर तुम्हारे झूठ, आरोप और विरोध को भी वह देख रहा है। यही हमारे लिए काफी है। अलबत्ता अल्लाह यह बताने के लिए कि वापसी का मार्ग खुला हुआ है और पैग़म्बरे इस्लाम का विरोध करने से बाज़ आ जायें और ईमान ले आयें, कहता है कि अल्लाह बहुत माफ़ करने वाला और दयावान है। वह तौबा करने वालों को माफ़ कर देता है और उन्हें अपनी असीमित दया व रहमत से लाभांवित करेगा।
इन आयतों से हमने सीखाः
पैग़म्बरे इस्लाम के पैग़म्बर होने की निशानियां स्पष्ट हैं मगर कुछ लोगों की समस्या यह है कि उनकी दुश्मनी और हठधर्मिता उनके ईमान लाने में रुकावट बन जाती है।
विरोधी भी इस बात को मानते हैं कि क़ुरआन की आयतें लोगों के दिलों पर प्रभाव डालने में आश्चर्यजनक असर रखती हैं परंतु वे इन आयतों को जादू कहते हैं।
इस बात को हमें ध्यान में रखना चाहिये कि हमें अपने व्यक्तिगत विचार को अल्लाह की तरफ निस्बत नहीं देना चाहिये क्योंकि एसा करने वालों को कड़े दंड का सामना होगा।
तौबा का दरवाज़ा समस्त लोगों यहां तक कि काफ़िरों और दुश्मनों के लिए भी ख़ुला है और मेहरबान अल्लाह उनकी भी तौबा क़बूल करेगा।
आइये अब सूरे अहक़ाफ़ की 9वीं आयत की तिलावत सुनते हैं
قُلْ مَا كُنْتُ بِدْعًا مِنَ الرُّسُلِ وَمَا أَدْرِي مَا يُفْعَلُ بِي وَلَا بِكُمْ إِنْ أَتَّبِعُ إِلَّا مَا يُوحَى إِلَيَّ وَمَا أَنَا إِلَّا نَذِيرٌ مُبِينٌ (9)
इस आयत का अनुवाद हैः
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं कोई नया रसूल तो आया नहीं हूँ और मैं कुछ नहीं जानता कि आइन्दा मेरे साथ क्या किया जाएगा और न (ये कि) तुम्हारे साथ क्या किया जाएगा। मैं तो बस उसी का पाबन्द हूँ जो मेरे पास वहि आयी है और मैं तो बस एलानिया डराने वाला हूँ. [46:9]
इस आयत में पैग़म्बरे इस्लाम को यह ज़िम्मेदारी दी जाती है कि वे मक्का के काफ़िरों के बहानों का जवाब दें और कहें कि मैं दूसरे पैग़म्बरों से भिन्न नहीं हूं और मैं भी दूसरे पैग़म्बरों की भांति तुम्हारे जैसा इंसान हूं। मैं पहला पैग़म्बर नहीं हूं जिसने लोगों को एकेश्वरवाद की ओर आमंत्रित किया है। मुझसे पहले भी बहुत से पैग़म्बर आये और सबके सब इंसान थे, वे कपड़े पहनते और खाना खाते थे। मुझमें और तुममें केवल यह अंतर है कि अल्लाह मुझ पर वहि नाज़िल करता है और उसने मुझे यह ज़िम्मेदारी सौंप रखी है कि बुरे कार्यों और उसके दुष्परिणामों के बारे में तुम्हें चेतावनी दूं और मेरे पास जो इल्मे ग़ैब है वह भी मेरी वजह से नहीं है और मैं ग़ैब की जो बातें जानता हूं उनका ज्ञान भी मुझे अल्लाह देता है। मैं नहीं जानता कि अल्लाह मेरे साथ क्या करेगा, जिस तरह से मैं यह भी नहीं जानता कि अल्लाह तुम्हारे साथ क्या करेगा? तो मुझसे अतार्किक अपेक्षा न करो कि अपने या तुम्हारे भविष्य के बारे में ख़बर दूं।
इस आयत से हमने सीखाः
पूरे इतिहास में समस्त पैग़म्बरों का उद्देश्य एक ही रहा है। सबने एक दूसरे की पुष्टि की और सबने एक दूसरे का मार्ग जारी रखा।
समाज के नेताओं को चाहिये कि वे लोगों से सच और सही बात करें और जो चीज़ उनके बस में नहीं है उसके बारे में न तो बेकार का दावा करें और न ही लोगों से वादा करें।
समस्त पैग़म्बर लोगों के हितैषी व शुभचिंतक थे और हमेशा उन्हें उन कामों से रोकते थे जिसकी वजह से उनका लोक-परलोक ख़राब होता था।
आइये अब सूरए अहक़ाफ़ की 10वीं आयत की तिलावत सुनते हैं।
قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ كَانَ مِنْ عِنْدِ اللَّهِ وَكَفَرْتُمْ بِهِ وَشَهِدَ شَاهِدٌ مِنْ بَنِي إِسْرَائِيلَ عَلَى مِثْلِهِ فَآَمَنَ وَاسْتَكْبَرْتُمْ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ (10)
इस आयत का अनुवाद हैः
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि भला देखो तो कि अगर ये (क़ुरान) ख़ुदा की तरफ़ से हो और तुम उससे इन्कार कर बैठे हालॉकि (बनी इसराईल में से) एक गवाह उसके मिसल की गवाही भी दे चुका और ईमान भी ले आया और तुमने सरकशी की (तो तुम्हारे ज़ालिम होने में क्या शक़ है) बेशक ख़ुदा ज़ालिम लोगों को मन्ज़िल तक नहीं पहुँचाता. [46:10]
जैसाकि इस आयत की व्याख्या में आया है कि हेजाज़ में अब्दुल्लाह बिन सलाम नाम का एक मशहूर यहूदी विद्वान रहता था। वह पैग़म्बरे इस्लाम पर ईमान ले आया और उसने एलान कर दिया कि पैग़म्बरे इस्लाम वही पैग़म्बर हैं जिनके आने का वादा तौरैत और इंजील में किया गया है, मगर यहूदियों के बहुत से गणमान्य लोगों ने उसकी बात मानने से इंकार कर दिया और उस पर आरोप लगाया। वे पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी को क़बूल करने के लिए तैयार नहीं थे। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इसकी मुख्य वजह उनका अहंकार था।
इस आयत से हमने सीखाः
विरोधियों के साथ वार्ता में अपने अक़ीदे और अपनी बात पर अड़े रहने के बजाये यह कहना चाहिये कि आप इसकी समीक्षा और जांच-पड़ताल करें। अगर मेरी बात सही व हक़ हो तो उसे क़बूल कीजिये। अलबत्ता अगर हक़ को समझे और उसे क़बूल नहीं किया तो बुरा अंजाम तुम्हारी प्रतीक्षा में है।
कुफ़्र और दुश्मनी की जड़, हक़ के मुकाबले में घमंड है न कि अज्ञानता व जेहालत और निश्चेतना।
वहि की हक़्क़ानियत के मुक़ाबले में खड़ा होना और उसका विरोध करना इंसानियत पर बहुत बड़ा ज़ुल्म है।