क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-945
सूरए अहक़ाफ़, आयतें 24-28
आइये सबसे पहले सूरे अहक़ाफ़ की 24वीं और 25वीं आयतों की तिलावत सुनते हैं
فَلَمَّا رَأَوْهُ عَارِضًا مُسْتَقْبِلَ أَوْدِيَتِهِمْ قَالُوا هَذَا عَارِضٌ مُمْطِرُنَا بَلْ هُوَ مَا اسْتَعْجَلْتُمْ بِهِ رِيحٌ فِيهَا عَذَابٌ أَلِيمٌ (24) تُدَمِّرُ كُلَّ شَيْءٍ بِأَمْرِ رَبِّهَا فَأَصْبَحُوا لَا يُرَى إِلَّا مَسَاكِنُهُمْ كَذَلِكَ نَجْزِي الْقَوْمَ الْمُجْرِمِينَ (25)
इन आयतों का अनुवाद हैः
तो जब उन लोगों ने इस (अज़ाब) को देखा कि ढेर के टुकड़े की तरह उनके मैदानों की तरफ़ उम्ड़ा आ रहा है तो कहने लगे ये तो बादल है जो हम पर बरस कर रहेगा (हज़रत हूद ने कहा कि नहीं) बल्कि ये वह (अज़ाब) है जिसकी तुम जल्दी मचा रहे थे (ये) वह आंधी है जो दर्दनाक (अज़ाब) है। [46:24] जो अपने परवरदिगार के हुक्म से हर चीज़ को तबाह व बर्बाद कर देगी तो वह ऐसे (तबाह) हुए कि उनके घरों के सिवा कुछ नज़र ही नहीं आता था, हम गुनाहगारों की यूँ ही सज़ा किया करते हैं। [46:25]
पिछले कार्यक्रम में बताया गया कि आद क़ौम अपने पैग़म्बर हज़रत हूद के निमंत्रण के मुक़ाबले में दुश्मनी और हठधर्मिता से कहती थी कि हम अपना रास्ता नहीं छोड़ेंगे। तुम भी अगर सही कह रहे हो तो जिस अज़ाब से हमें डरा रहे हो उसे नाज़िल करो। जब लोगों पर हुज्जत पूरी कर दी गयी यानी बहाने की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी गयी और वे ख़ुद ही अपने ऊपर अज़ाब नाज़िल करने की मांग करने लगे तो अल्लाह ने तेज़ हवा भेजी और उसके साथ बादल भी भेजा। जब क़ौमे आद के लोगों ने आसमान में काली घटाओं और बादलों को देखा तो वे प्रसन्न हो गये और यह सोच रहे थे कि शीघ्र ही अच्छी वर्षा होगी मगर न केवल वर्षा नहीं हुई बल्कि बहुत ही तेज़ और ठंडी हवा चलने लगी यहां तक कि उस गुनहगार क़ौम के तबाह होने का कारण बनी और उस क़ौम के घरों के अलावा कुछ नहीं बचा।
पवित्र क़ुरआन के सूरए हाक़्क़ा की 7वीं आयत के अनुसार सात रातों और आठ दिनों तक यह तेज़ हवा चलती रही यहां तक कि आद क़ौम का काम तमाम हो गया और उनमें से कोई भी ज़िन्दा नहीं बचा।
वास्तव में यह उन गुनहगारों, अपराधियों और हठधर्मी काफ़िरों के लिए चेतावनी थी जो इस तरह के हों और इस रास्ते पर चलें, उनका भी अंजाम इससे बेहतर नहीं होगा।
इन आयतों से हमने सीखाः
हक़ और हक़ीक़त से दुश्मनी बरतने और हठधर्मिता का कड़ा दंड है। पिछली क़ौमों का अंजाम आने वाली क़ौमों के लिए सीख है।
प्राकृतिक चीज़ें अल्लाह की शक्ति के अधीन हैं। बादल, हवा और दूसरी प्राकृतिक चीज़ें अल्लाह की दया व कृपा की अलामत हो सकती हैं और साथ ही ये चीज़ें अल्लाह के अज़ाब और क्रोध की सूचक भी हो सकती हैं। क्योंकि हवा बादलों को साथ ले जाने और वर्षा होने का कारण होती है और लेकिन वही हवा एक समय में बर्बादी का सबब भी बन जाती है।
दुनिया में गुनहगारों को ख़त्म कर देना ईश्वरीय परम्परा है और अतीत की क़ौमों और शासकों के बाकी बचे अवशेष दूसरों के लिए सीख हैं।
आइये अब सूरए अहक़ाफ़ की 26वीं आयत की तिलावत सुनते हैं,
وَلَقَدْ مَكَّنَّاهُمْ فِيمَا إِنْ مَكَّنَّاكُمْ فِيهِ وَجَعَلْنَا لَهُمْ سَمْعًا وَأَبْصَارًا وَأَفْئِدَةً فَمَا أَغْنَى عَنْهُمْ سَمْعُهُمْ وَلَا أَبْصَارُهُمْ وَلَا أَفْئِدَتُهُمْ مِنْ شَيْءٍ إِذْ كَانُوا يَجْحَدُونَ بِآَيَاتِ اللَّهِ وَحَاقَ بِهِمْ مَا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ (26)
इस आयत का अनुवाद हैः
और हमने उनको ऐसे संसाधन दिये थे जो तुम (मक्का वासियों) को भी नहीं दिए, और उन्हें कान, आंख और दिल (सब कुछ) दिए थे तो चूँकि वे लोग ख़ुदा की आयतों से इन्कार करने लगे तो न उनके कान कुछ काम न आए और न उनकी ऑंखें और न उनके दिल और जिस (अज़ाब) की ये लोग हँसी उड़ाया करते थे उसने उनको हर तरफ़ से घेर लिया। [46:26]
आद क़ौम अरब प्रायद्वीप में मक्का नगर के निकट रहती थी। उसके घरों के अवशेष यात्रियों के रास्ते में पड़ते थे। अतः पवित्र क़ुरआन पैग़म्बरे इस्लाम की दावत के मुकाबले में अड़ियल रुख़ अपनाने वाले मक्का के काफ़िरों को संबोधित करते हुए कहता है कि आद क़ौम के लोग शारीरिक और माली दृष्टि से तुमसे मज़बूत थे मगर जब अल्लाह का अज़ाब नाज़िल हुआ तो उनकी शक्ति और माल न उनके काम आयी और न ही उन्हें बचा सकी। जो चीज़ उन्हें बचा सकती थी वह हक़ की पहचान और उसको स्वीकार करना था। उनके पास भी दूसरे लोगों की भांति आंख, कान और बुद्धि थी परंतु इन लोगों ने हक़ीक़त और सच्चाई को समझने के लिए इनको इस्तेमाल नहीं किया। उन लोगों ने अपनी आंख और कान को हक़ीक़त से बंद कर लिया था। उन लोगों ने यह सोचा था कि अपनी ताक़त, धन सम्पत्ति और संभावनाओं की मदद से वे अल्लाह के मुक़ाबले में खड़े हो सकते हैं। इसलिए वे अपने पैग़म्बर हज़रत हूद के अज़ाब नाज़िल होने के संबंध में दावे का मज़ाक़ उड़ाते थे और उस पर ध्यान नहीं देते थे।
इन आयतों से हमने सीखाः
धन-दौलत और ताक़त होने का यह मतलब नहीं है कि वह इंसान को बचा लेगी बल्कि आंख, कान और बुद्धि से सही ढंग से काम लेना इंसान की नजात का ज़रिया बन सकता है।
हक़ और हक़ीक़त का इंकार इंसान की बर्बादी का कारण बनता है और उसकी पूंजी और भौतिक संभावनायें उसे बर्बादी की ओर ले जाती हैं।
ईश्वरीय आयतों और पैग़म्बरों की चेतावनी को नज़र अंदाज़ करना दुनिया में ईश्वरीय क्रोध का कारण बनता है।
आइये अब सूरए अहक़ाफ़ की 27वीं और 28वीं आयतों की तिलावत सुनते हैं,
وَلَقَدْ أَهْلَكْنَا مَا حَوْلَكُمْ مِنَ الْقُرَى وَصَرَّفْنَا الْآَيَاتِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ (27) فَلَوْلَا نَصَرَهُمُ الَّذِينَ اتَّخَذُوا مِنْ دُونِ اللَّهِ قُرْبَانًا آَلِهَةً بَلْ ضَلُّوا عَنْهُمْ وَذَلِكَ إِفْكُهُمْ وَمَا كَانُوا يَفْتَرُونَ (28)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और (ऐ अहले मक्का) हमने तुम्हारे इर्द-गिर्द की बस्तियों को हलाक कर दिया और (अपनी क़ुदरत की) बहुत सी निशानियाँ तरह तरह से दिखा दीं ताकि शायद ये लोग बाज़ आएँ। [46:27] तो ख़ुदा के सिवा जिन को उन लोगों ने क़रीब होने के लिए माबूद बना रखा था उन्होंने (अज़ाब के वक़्त) उनकी क्यों न मदद की बल्कि वे तो उनसे ग़ायब हो गये और उनके झूठ की ये हक़ीक़त थी। [46:28]
इससे पहली वाली आयत में क़ौमे आद के बर्बाद होने की बात की गयी। यह आयत कहती है कि न केवल क़ौमे आद बल्कि मक्का के आसपास रहने वाली कौमों को भी हमने उस वक्त नष्ट कर दिया जब वे हक़ के मुक़ाबले में खड़ी हो गयीं। जैसे समूद क़ौम को जो अरब प्रायद्वीप के उत्तर और क़ौमे सबा के दक्षिण में रहती थी और उनमें से हर क़ौम के लिए उसकी समझ के अनुसार निशानियां और आयतें नाज़िल की थीं ताकि उनके पास बहाने की गुंजाइश ख़त्म हो जाये और शिर्क व क़ुफ्र करने के लिए उनके पास कोई बहाना न रहे मगर उन लोगों ने अपने हाथ से बनाये हुए झूठे ख़ुदाओं की उपासना की और यह सोचते थे कि जिन ख़ुदाओं की वे उपासना करते हैं वे उनकी मुक्ति व कल्याण के कारण हैं मगर जब अज़ाब नाज़िल हुआ तो उनके झूठे ख़ुदाओं में से किसी के पास उनकी मदद करने की ताक़त नहीं थी। यही नहीं उनके पास स्वयं को अज़ाबे एलाही से बचाने की ताक़त नहीं थी और न ही उनका कोई नामो निशान बचा।
इन आयतों से हमने सीखाः
दूसरों को शिक्षा देने का पवित्र क़ुरआन का एक तरीक़ा यह है कि वह लोगों को अतीत के इंसानों के अंजाम के बारे में चिंतन करने की दावत देता है। ताकि इंसान उनके अंजाम से सीख लें।
अल्लाह ने इंसान के मार्गदर्शन और उसकी अस्ली स्वभाव की ओर लौटने के साधनों को उपलब्ध करा दिया है। महत्वपूर्ण यह है कि इंसान गुमराही के रास्ते से वापस जाने की इच्छा करे।
अंधविश्वास इस बात का कारण बनता है कि लोग ऐसी चीज़ों को अल्लाह के सामिप्य का कारण समझते हैं जिनकी कोई विशेषता नहीं होती है।