Feb ०९, २०२५ १६:५९ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-947

सूरए मुहम्मद, आयतें 1-6

आइये सबसे पहले सूरए मोहम्मद की पहली से लेकर तीसरी तक कि आयतों की तिलावत सुनते हैं।

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ

الَّذِينَ كَفَرُوا وَصَدُّوا عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ أَضَلَّ أَعْمَالَهُمْ (1) وَالَّذِينَ آَمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَآَمَنُوا بِمَا نُزِّلَ عَلَى مُحَمَّدٍ وَهُوَ الْحَقُّ مِنْ رَبِّهِمْ كَفَّرَ عَنْهُمْ سَيِّئَاتِهِمْ وَأَصْلَحَ بَالَهُمْ (2) ذَلِكَ بِأَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا اتَّبَعُوا الْبَاطِلَ وَأَنَّ الَّذِينَ آَمَنُوا اتَّبَعُوا الْحَقَّ مِنْ رَبِّهِمْ كَذَلِكَ يَضْرِبُ اللَّهُ لِلنَّاسِ أَمْثَالَهُمْ (3)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः  

जिन लोगों ने कुफ़्र अख़्तियार किया और (लोगों को) ख़ुदा के रास्ते से रोका ख़ुदा ने उनके आमाल अकारत कर दिए। [47:1] और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए और जो (किताब) मोहम्मद पर उनके परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल हुई है और वह हक़ है उस पर ईमान लाए तो ख़ुदा ने उनके गुनाह उनसे दूर कर दिए और उनकी हालत संवार दी [47:2] ये इस वजह से कि काफ़िरों ने झूठी बात की पैरवी की और ईमान वालों ने अपने परवरदिगार का सच्चा दीन अख़्तियार किया, यूँ ख़ुदा लोगों के समझाने के लिए मिसालें बयान करता है। [47:3]

 

काफ़िरों और मुशरिकों के सरग़ना अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए काफ़िरों और अनेकेश्वरवादियों की जनसंख्या में वृद्धि के लिए प्रयास करते हैं। वे विभिन्न बहानों से दूसरों को अपनी ओर बुलाते हैं। कभी- कभी ऐसा भी होता है कि वे ज़रूरतमंदों की मदद के लिए अच्छे काम करते हैं मगर इससे उनका मूल लक्ष्य काफिरों और मुशरिकों की सुरक्षा होती है। साथ ही वे इस प्रकार के कार्यों से दूसरों को अपने भ्रष्ट मार्ग की ओर बुलाते हैं। अलबत्ता उनके नेक कामों से उन्हें कोई लाभ नहीं पहुंचेगा और अल्लाह उनके नेक कार्यों को स्वीकार नहीं करेगा। क्योंकि उनका लक्ष्य सही नहीं है। काफिरों के नेक अमल की मिसाल ऐसी है जैसे कोई शोहरत या सामाजिक स्थान प्राप्त करने के लिए अस्पताल बनवा कर निर्धन लोगों को दे देता है। यद्यपि ग़रीब व निर्धन लोगों को इससे लाभ पहुंचता है परंतु नेक काम करने वाले को इससे कोई लाभ नहीं पहुंचता।

इसके मुक़ाबले में वे लोग हैं जो हक़ व सत्य को समझते हैं और उस पर ईमान लाते हैं और हक़ का पैग़ाम लाने वाले यानी पैग़म्बरे इस्लाम पर भी ईमान रखते हैं तो अल्लाह उनके नेक कामों को क़बूल करता है। अल्लाह इस प्रकार के नेक लोगों के गुनाहों को अपनी कृपा से माफ़ और उनके कार्यों को ठीक कर देता है।

पवित्र क़ुरआन इस महत्वपूर्ण बिन्दु पर बल देता है कि ईमान और कुफ्र में अंतर का आधार हक़ और बातिल है। एक गिरोह हक़ को समझ कर उसके अनुसरण का प्रयास करता है जबकि दूसरा गिरोह वह है जो हक़ को पहचानने के बाद उसका अनुसरण नहीं करता है। बल्कि कभी हक़ के मुकाबले में भी आ जाता है। दुनिया के लोग इन दोनों गिरोहों से हटकर नहीं हैं या वे हक़ व सत्य को क़बूल करते हैं या हक़ के मुक़ाबले में आ जाते हैं।

इन आयतों से हमने सीखाः

इस्लाम से मुक़ाबले के लिए उसके दुश्मनों के पास कार्यक्रम हैं और इस दिशा में वे प्रयासरत हैं परंतु अंत में उनके प्रयासों का कोई परिणाम नहीं निकलेगा और दिन- प्रतिदिन इस्लाम फैलता जाएगा। 

केवल अल्लाह पर ईमान रखना काफ़ी नहीं है बल्कि उसके अंतिम पैग़म्बर पर भी ईमान रखना ज़रूरी है ताकि उसकी शिक्षाओं के माध्यम से हक़ और अल्लाह का रास्ता तय करें।

अपनी क्षमता भर नेक काम अंजाम देने का प्रयास करना चाहिये। अगर ऐसा करते हैं तो अल्लाह हमारे गुनाहों को माफ़ और हमारे कार्यों को सही कर देगा।

अल्लाह, उसके रसूल और आसमानी किताब पर केवल ईमान रखना काफ़ी नहीं है बल्कि नेक अमल भी अंजाम देना ज़रूरी है।

हर इंसान का अच्छा या बुरा अंजाम उसकी सोच और उसके अमल का नतीजा होता है और उसका अंजाम इस बात पर निर्भर करता है कि वह हक़ का अनुसरण करता है या नहीं।

 

आइये अब सूरए मोहम्मद की चौथी से लेकर 6ठीं तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं,


فَإِذا لَقِيتُمُ الَّذِينَ كَفَرُوا فَضَرْبَ الرِّقَابِ حَتَّى إِذَا أَثْخَنْتُمُوهُمْ فَشُدُّوا الْوَثَاقَ فَإِمَّا مَنًّا بَعْدُ وَإِمَّا فِدَاءً حَتَّى تَضَعَ الْحَرْبُ أَوْزَارَهَا ذَلِكَ وَلَوْ يَشَاءُ اللَّهُ لَانْتَصَرَ مِنْهُمْ وَلَكِنْ لِيَبْلُوَ بَعْضَكُمْ بِبَعْضٍ وَالَّذِينَ قُتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ فَلَنْ يُضِلَّ أَعْمَالَهُمْ (4) سَيَهْدِيهِمْ وَيُصْلِحُ بَالَهُمْ (5) وَيُدْخِلُهُمُ الْجَنَّةَ عَرَّفَهَا لَهُمْ (6)


इन आयतों का अनुवाद हैः

तो जब तुम काफ़िरों से भिड़ो तो (उनकी) गर्दनें मारो ताकि उन्हें ध्वस्त कर दो। और अगर उन्हें क़ैदी बना लो तो उन्हें मज़बूती से बांधों फिर उसके बाद या तो एहसान रख कर (छोड़ दे) या मुआवेज़ा लेकर, यहाँ तक कि (दुशमन) लड़ाई के हथियार रख दे तो (याद रखो) अगर ख़ुदा चाहता तो (और तरह) उनसे बदला लेता मगर उसने चाहा कि तुम्हारी आज़माइश एक दूसरे से (लड़वा कर) करे और जो लोग ख़ुदा की राह में शहीद किये गए उनकी कारगुज़ारियों को ख़ुदा हरगिज़ अकारत न करेगा। [47:4] उन्हें अनक़रीब उनकी मंज़िल तक पहुंचाएगा और उनकी हालत सवांर देगा। [47:5]  और उनको उस बहिश्त में दाख़िल करेगा जिसका उन्हें (पहले से) परिचय दे रखा है [47:6]

 

पिछली आयतों में बताया गया कि इस्लाम के दुश्मन विभिन्न मार्गों से इस्लाम से मुक़ाबले और मुसलमानों को कमज़ोर करने की चेष्टा में रहते हैं और उनका एक तरीक़ा जंग करना है। अल्लाह इस आयत में स्पष्ट शब्दों में पूरी दृढ़ता से कहता है कि दुश्मनों से जंग के मैदान में मज़बूत और दृढ़ रहो, बहादुरी के साथ जंग करो और दुश्मन को परास्त कर दो मगर जब भी उनमें से कोई आत्म समर्पण कर दे तो उसकी हत्या न करो बल्कि उसे बंधक बना लो और जंग ख़त्म होने के बाद उसे अपनी मेहरबानी से या कुछ पैसा लेकर उसे आज़ाद कर दो। दुश्मन के साथ आपका बर्ताव इस प्रकार का होना चाहिये कि वह बेबस हो चुका हो और दुश्मन के साथ यह बर्ताव व तरीक़ा उस समय तक जारी रहना चाहिये जब तक आप दुश्मन पर हावी नहीं हो जाते।

स्पष्ट है कि इन जंगों और विवादों में कुछ लोग मारे जाते हैं। अगर मारे जाने वाले सत्य के रास्ते में हों तो अल्लाह उनकी जानों को ख़रीदता है और परलोक में उन्हें प्रतिदान देगा और अगर असत्य के रास्ते में हों तो समझिए कि उनकी ज़िन्दगी बर्बाद हो गयी और क़यामत के दिन उन्हें अल्लाह के अज़ाब का सामना होगा।

इन आयतों से हमने सीखाः

उन काफ़िरों से शांतिपूर्ण ढंग से बर्ताव करना चाहिये जो मुसलमानों के साथ जंग नहीं करते मगर जो काफ़िर मुसलमानों के साथ जंग करते हैं उनके साथ उन्हीं की तरह कड़ाई से पेश आना चाहिये।

जिस तरह जंग में दुश्मन के साथ कड़ाई से पेश आना ज़रूरी है उसी तरह जंगी बंदियों को माफ़ करने पर बल दिया गया है।

जंग और जेहाद अल्लाह की तरफ़ से मोमिनों के लिए इम्तेहान है कि कौन अल्लाह की राह में जेहाद करता है और कौन रणक्षेत्र से भाग जाता है।

जंग में शहीद होने वाले यद्यपि विदित में मार दिये जाते हैं और दुनिया से चले जाते हैं परंतु चूंकि उन्होंने अल्लाह से अपने जीवन का सौदा किया है इसलिए उन्होंने जो कष्ट उठाया और परिश्रम किया है वह बिल्कुल बर्बाद नहीं होगा,  अल्लाह उनके प्रयासों का फल देगा और उनके उद्देश्यों को पूरा करेगा। अतः अल्लाह की राह में शहीद होने वाले रणक्षेत्र के वास्तविक विजेता हैं।