Feb ०९, २०२५ १७:१७ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-948

सूरए मुहम्मद, आयतें 7-14

आइये सबसे पहले सूरे मोहम्मद की 7 से 9 तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं।


يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آَمَنُوا إِنْ تَنْصُرُوا اللَّهَ يَنْصُرْكُمْ وَيُثَبِّتْ أَقْدَامَكُمْ (7) وَالَّذِينَ كَفَرُوا فَتَعْسًا لَهُمْ وَأَضَلَّ أَعْمَالَهُمْ (8) ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ كَرِهُوا مَا أَنْزَلَ اللَّهُ فَأَحْبَطَ أَعْمَالَهُمْ (9)  

 

इन आयतों का अनुवाद इस प्रकार हैः

 

ऐ ईमान वालो अगर तुम ख़ुदा (के दीन) की मदद करोगे तो वह भी तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हें साबित क़दम रखेगा। [47:7]  और जो लोग काफ़िर हैं उनके लिए तो डगमगाहट है और ख़ुदा (उनके) कर्म बरबाद कर देगा। [47:8]  ये इसलिए कि ख़ुदा ने जो चीज़ नाज़िल फ़रमायी उसे उन्होने (नापसन्द किया) तो ख़ुदा ने उनकी कारस्तानियों को अकारत कर दिया। [47:9]

 

पिछले कार्यक्रम में बात रणक्षेत्र में इस्लाम के दुश्मनों से मुक़ाबले के बारे में थी। ये आयतें मोमिनों को संबोधित करते हुए कहती हैं रणक्षेत्र मुक़ाबले और लड़ाई का मैदान है और उसकी अपनी एक विशेष कठिनाइयां व सख़्तियां हैं तो अपने धर्म और अपनी रक्षा के रास्ते में सब्र और प्रतिरोध से काम लो और रणक्षेत्र से भागो नहीं।

अगर तुम अल्लाह के दुश्मनों के मुक़ाबले में प्रतिरोध करोगे तो इस बात का विश्वास रखो कि अल्लाह तुम्हारी ज़रूर मदद करेगा और दुश्मन पर तुम्हें विजय मिलेगी। क्योंकि अल्लाह ने दुश्मनों की तबाही व नाबूदी का इरादा किया है और उनकी साज़िशों पर पानी फ़ेर देगा मगर उन लोगों ने अल्लाह और उसके रसूल की जीवनदायक शिक्षाओं के मुक़ाबले में नतमस्तक होने के बजाये जंग का रास्ता चुना है। अतः उनका अंजाम तबाही और बर्बादी के सिवा कुछ और नहीं होगा और उनके काम का वह नतीजा नहीं निकलेगा जो वे चाह रहे हैं।

 

इन आयतों से हमने सीखाः

 

केवल ईमान रखना काफ़ी नहीं है बल्कि अल्लाह के धर्म के प्रचार- प्रसार के लिए प्रयास करना चाहिये और उन चीज़ों से मुकाबला करना चाहिये जो समाज की गुमराही का कारण बनते हैं।

हर ज़माने में अल्लाह के धर्म की मदद समय और हालात के दृष्टिगत भिन्न होती है। कभी ज़बान से प्रचार- प्रसार करके, कभी वित्तीय मदद करके और कभी कोशिश व प्रयास करके और त्याग देकर अल्लाह के धर्म की मदद की जाती है।

दिल में एलाही शिक्षाओं से कराहत व उनका नापसंद होना इंसान के अस्तित्व में एक प्रकार के कुफ्र की निशानी है और वह इंसान के नेक कामों की तबाही व बर्बादी का कारण बनता है।

हक़ के साथ युद्ध व विवाद का अंजाम तबाही के सिवा कुछ और नहीं है और वह इंसान की गुमराही का कारण बनता है।

 

आइये अब सूरे मोहम्मद की 10वीं और 11वीं आयतों की तिलावत सुनते हैं, 

 

أَفَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَيَنْظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ دَمَّرَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ وَلِلْكَافِرِينَ أَمْثَالُهَا (10) ذَلِكَ بِأَنَّ اللَّهَ مَوْلَى الَّذِينَ آَمَنُوا وَأَنَّ الْكَافِرِينَ لَا مَوْلَى لَهُمْ (11)  

 

इन आयतों का अनुवाद है :

 

तो क्या ये लोग ज़मीन पर चले फिरे नहीं कि देखते कि जो लोग उनसे पहले थे उनका अन्जाम क्या (ख़राब) हुआ कि ख़ुदा ने उन पर तबाही डाल दी और इसी तरह (उन) काफिरों को भी (सज़ा मिलेगी)। [47:10]  ये इस वजह से कि ईमान वालों का ख़ुदा सरपरस्त है और काफिरों का हरगिज़ कोई सरपरस्त नहीं। [47:11]

इससे पहली वाली आयतों में अल्लाह मुसलमानों से दुश्मनी करने वाले काफ़िरों और मुश्रिकों को चेतावनी देता और कहता है कि अगर सफ़र करो और आसपास के क्षेत्रों पर नज़र डालो तो अतीत की क़ौमों व जातियों के शेष रह गये खंडर दिखाई देंगे और तुम देखो कि वे किस तरह तबाह हो गये और अब न वे हैं न उनका कोई सहायक। यह न सोचो कि इस प्रकार का अंजाम केवल उन्हीं से विशेष था और यह तुम्हारा अंजाम नहीं हो सकता। तुम भी अगर उनके रास्ते पर चलोगे तो तुम्हारा भी वही अंजाम होगा जो उनका हुआ है। वास्तव में कोई नहीं है जो तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हें बचायेगा क्योंकि अल्लाह अपने दुश्मनों का न तो समर्थन करता है और न ही उनकी मदद करता है।

 

इन आयतों से हमने सीखाः

 

अतीत के लोगों के इतिहास का अध्ययन और निकट से उनकी सरज़मीन को देखना और उनके अंजाम से दर्स लेना इस्लाम में घुमने- फिरने का एक उद्देश्य है।

काफ़िरों के आराम को देखकर धोखे में नहीं आना चाहिये। क्योंकि उनका अंजाम अच्छा नहीं होने वाला है।

अल्लाह पर ईमान लोक-परलोक में उसकी रहमत व दया का कारण है और कुफ्र, रहमत व दया के ख़त्म होने का कारण है।

 

आइये अब सूरए मोहम्मद की 12वीं आयत की तिलावत सुनते हैं।


إِنَّ اللَّهَ يُدْخِلُ الَّذِينَ آَمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ وَالَّذِينَ كَفَرُوا يَتَمَتَّعُونَ وَيَأْكُلُونَ كَمَا تَأْكُلُ الْأَنْعَامُ وَالنَّارُ مَثْوًى لَهُمْ (12)

 

इस आयत का अनुवाद हैः

 

ख़ुदा उन लोगों को जो ईमान लाए और अच्छे (अच्छे) काम करते रहे ज़रूर बेहिश्त के उन बाग़ों में जा पहुँचाएगा जिनके नीचे नहरें जारी हैं और जो काफ़िर हैं वह (दुनिया में) चैन करते हैं और इस तरह (बेफिक्री से खाते (पीते) हैं जैसे मवेशी खाते पीते हैं और आख़िर) उनका ठिकाना जहन्नुम है।[47:12]


दुनिया में अहले ईमान और कुफ्र के मध्य तुलना के बाद यह आयत आख़ेरत में उनके स्थान के बारे में कहती है जिन मोमिनों ने दुनिया में सही से अपने दायित्वों को अंजाम दिया है और वे नेक और अच्छे काम अंजाम देने के प्रयास में रहते थे क़यामत में अच्छी जगह उनकी प्रतीक्षा में है परंतु जो लोग हक़ से युद्ध व विवाद करते थे और उसे क़बूल नहीं करते थे दहकता हुआ नरक उनके इंतेज़ार में है। क्योंकि वे दुनिया की क्षणिक लज़्ज़तों के प्रयास में थे और जानवरों की तरह केवल पेट भरने और अपनी ग़लत इच्छाओं की पूर्ति के प्रयास में रहते थे और क़यामत के लिए कुछ भी नहीं लाये हैं।

 

इस आयत से हमने सीखाः

 

इस दुनिया में कामयाबियां चाहे कम समय के लिए हों या अधिक समय के लिए वे सब क्षणिक और खत्म होने वाली हैं। बुद्धिमान इंसान को हमेशा- हमेशा बाक़ी रहने वाली आख़ेरत की सोच में रहना चाहिये।

पवित्र क़ुरआन दुनिया की कामयाबी और उसकी नेअमतों से लाभ उठाये जाने को वैध मानता है परंतु वह इस चीज़ का विरोधी है कि इंसान जानवरों की तरह ज़िन्दगी गुज़ारे।

 

 ज़िन्दगी का रास्ता चुनने के लिए उसके अंतिम उद्देश्य के बारे में सोचना चाहिये। दुनिया की क्षणिक चमक- दमक के धोखे में नहीं आना चाहिये।

 

अब सूरए मोहम्मद की 13वीं और 14वीं आयतों की तिलावत सुनते हैं,

 

وَكَأَيِّنْ مِنْ قَرْيَةٍ هِيَ أَشَدُّ قُوَّةً مِنْ قَرْيَتِكَ الَّتِي أَخْرَجَتْكَ أَهْلَكْنَاهُمْ فَلَا نَاصِرَ لَهُمْ (13) أَفَمَنْ كَانَ عَلَى بَيِّنَةٍ مِنْ رَبِّهِ كَمَنْ زُيِّنَ لَهُ سُوءُ عَمَلِهِ وَاتَّبَعُوا أَهْوَاءَهُمْ (14)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

 

और जिस बस्ती से तुम को लोगों ने निकाल दिया उससे ज़ोर में कहीं बढ़ चढ़ के बहुत सी बस्तियाँ थीं जिनको हमने तबाह व बर्बाद कर दिया तो उनका कोई मददगार भी न हुआ। [47:13]  क्या जो शख़्स अपने परवरदिगार की तरफ़ से रौशन दलील पर हो उस शख़्स के बराबर हो सकता है जिसकी बदकारियाँ उसे भली कर दिखायीं गयीं हों वह अपनी नफ़सियानी ख्वाहिशों पर चलते हैं। [47:14]

 

इन आयतों में हक़ का विरोध करने वाले काफ़िरों की विशेषताओं के बारे में बात की गयी है। काफ़िर अपनी दौलत पर घमंड और नाज़ करते हैं और सोचते हैं कि कोई उनका मुकाबला नहीं कर सकता जबकि अतीत की क़ौमों का अंजाम इस बात का सूचक है कि वे अल्लाह की मर्ज़ी व इच्छा से तबाह हो गये और कोई भी न उनकी मदद कर सका और न कोई उन्हें बचा सका।

काफ़िरों की एक बुरी आदत यह है कि उनकी ग़लत आंतरिक इच्छायें और दुनिया के क्षणिक आनंद इस तरह उन पर हावी हो गये हैं कि उन्हें अपने ग़लत व बुरे कार्य अच्छे दिखाई देते हैं और वे समझते हैं कि वे हक़ पर हैं और अल्लाह की ओर से आये हैं और वे हक़ को कबूल करने के लिए तैयार नहीं हैं।

इन आयतों से हमने सीखाः

मोमिनों को काफ़िरों की विदित ताक़त से नहीं डरना चाहिये। क्योंकि अल्लाह की ताक़त हर ताक़त से उपर है।

दुश्मन विभिन्न तरीक़ों से मोमिनों को कष्ट व यातना देने की चेष्टा में रहते हैं परंतु अहले ईमान कभी भी ईमान से पीछे नहीं हटते हैं और नाहक़ से मुकाबले का प्रयास करते रहते हैं।

ईमान का आधार तर्क है परंतु कुफ्र का आधार ग़लत व बातिल ख़याल और आंतरिक इच्छायें हैं। अल्लाह ने  इंसान को जो फ़ितरत दिया है और जिस फ़ितरत पर उसे पैदा किया है उसकी वजह से वह अच्छाई और बुराई को समझता है परंतु अपनी ग़लत इच्छाओं तक पहुंचने के लिए वह बुरे कार्यों पर पर्दा डाल देता है और विभिन्न तरीक़ों से उसे सुन्दर व अच्छा दिखाने का प्रयास करता है।