क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-976
सूरए ज़ारियात आयतें 38 से 46
आइये सबसे पहले सूरए ज़ारियात की 38 से 40 तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं,
وَفِي مُوسَى إِذْ أَرْسَلْنَاهُ إِلَى فِرْعَوْنَ بِسُلْطَانٍ مُبِينٍ (38) فَتَوَلَّى بِرُكْنِهِ وَقَالَ سَاحِرٌ أَوْ مَجْنُونٌ (39) فَأَخَذْنَاهُ وَجُنُودَهُ فَنَبَذْنَاهُمْ فِي الْيَمِّ وَهُوَ مُلِيمٌ (40)
इन आयतों का अनुवाद हैः
जब हमने उनको फ़िरऔन के पास खुला हुआ चमत्कार देकर भेजा [51:38] तो उसने अपने लशकर के बिरते पर मुँह मोड़ लिया और कहने लगा ये तो (अच्छा ख़ासा) जादूगर या दीवाना है [51:39] तो हमने उसको और उसके लशकर को ले डाला फिर उन सबको दरिया में पटक दिया और वह तो क़ाबिले मलामत काम करता ही था [51:40]
इससे पहले वाले कार्यक्रम में हज़रत लूत की पापी व गुनहगार क़ौम पर अज़ाब नाज़िल होने के बारे में चर्चा की गयी जबकि इन आयतों में फ़िरऔन और उसके अनुयाइयों के अंजाम की ओर संकेत किया गया है। इन आयतों में अल्लाह फ़रमाता है कि हज़रत मूसा क़ौमे बनी इस्राईल की ओर जाने के बजाये सबसे पहले फ़िरऔन के पास जाते हैं। क्योंकि उसने उस क़ौम को अपने अत्याचार के अधीन कर रखा था और उस क़ौम की महिलाओं और पुरूषों को यातना देता और प्रताड़ित करता था और पुरूषों को दास और महिलाओं को दासी बना रखा था। तो हज़रत मूसा बनी इस्राईल की क़ौम को फ़िरऔन के अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए सबसे पहले उसके पास गये ताकि चमत्कार और प्रमाण पेश कर अपनी सच्चाई को साबित करें मगर फ़िरऔन और उसके अनुयाइयों ने हज़रत मूसा की हक़ बात को क़बूल नहीं किया। उन सबने हज़रत मूसा को जादूगर और पागल कहा। अंततः फ़िरऔन अज़ाबे एलाही की चपेट में आ गया और भागने का उसके पास कोई रास्ता नहीं था। फ़िरऔन उसके अनुयाई मिस्र की नील नदी में डूब गये और हमेशा के लिए विभिन्न क़ौमों व राष्ट्रों की लानत व भर्त्सना के पात्र बन गये।
इन आयतों से हमने सीखाः
लोगों को ज़ालिमों और अत्याचारियों से मुक्ति दिलाना ईश्वरीय पैग़म्बरों व दूतों के उद्देश्यों में से एक उद्देश्य है।
अत्याचारी और भ्रष्ट शासक उन लोगों के व्यक्तित्व की हत्या करने की कोशिश करते हैं जो समाज में सुधार के लिए आंदोलन करते हैं और उन्हें गुमराह और जादूगर बताते हैं। बड़ी शक्तियां अपनी पूरी ताक़त और संभावना के साथ अल्लाह की असीम क़ुद्रत व शक्ति के समक्ष बहुत कमज़ोर बल्कि कुछ भी नहीं हैं। तो हमें अल्लाह पर भरोसा रखना चाहिये और उनसे व किसी से लेशमात्र भी नहीं डरना चाहिये।
आइये अब सूरए ज़ारियात की 41 से 42 तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं,
وَفِي عَادٍ إِذْ أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمُ الرِّيحَ الْعَقِيمَ (41) مَا تَذَرُ مِنْ شَيْءٍ أَتَتْ عَلَيْهِ إِلَّا جَعَلَتْهُ كَالرَّمِيمِ (42)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और आद की क़ौम (के हाल) में भी निशानी है हमने उन पर एक बे बरकत ऑंधी चलायी [51:41] कि जिस चीज़ पर चलती उसको बोसीदा हडडी की तरह रेज़ा रेज़ा किए बग़ैर न छोड़ती[51:42]
हज़रत हूद आद क़ौम के पैग़म्बर थे। आद वह क़ौम थी जो अरब प्रायद्वीप के दक्षिण में रहती थी और शारीरिक दृष्टि से इस क़ौम के लोग मज़बूत, शक्तिशाली और लंबे क़द के थे। इस क़ौम के लोग पहाड़ों में ऊंची- ऊंची इमारतों के निर्माण में दक्ष थे परंतु वे लोग अल्लाह के पैग़म्बरों की इताअत व अनुसरण के बजाये अत्याचारियों का अनुपालन करते और हक़ का विरोध करते थे यहां तक कि अल्लाह ने उन पर दर्दनाक अज़ाब नाज़िल किया। बहुत तेज़ हवा चलना शुरू हुई और उन शक्तिशाली लोगों को भूसे की तरह उड़ा कर ज़मीन पर पटक दिया।
इन आयतों से हमने सीखा
हवा रहमते एलाही की निशानी व अलामत है और वह बादलों को इधर- उधर ले जाती है मगर वही हवा कभी अज़ाबे एलाही का प्रतीक बन जाती है और पापियों व अपराधियों को तबाह कर देती है।
पानी और हवा यद्यपि प्राकृतिक चीज़ें हैं परंतु वे भी अल्लाह के आदेश के अधीन हैं और अल्लाह के आदेश से ज़ालिमों व अत्याचारियों को तबाह कर देती हैं।
आइये अब सूरए ज़ारियात की 43 से 46 तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं,
وَفِي ثَمُودَ إِذْ قِيلَ لَهُمْ تَمَتَّعُوا حَتَّى حِينٍ (43) فَعَتَوْا عَنْ أَمْرِ رَبِّهِمْ فَأَخَذَتْهُمُ الصَّاعِقَةُ وَهُمْ يَنْظُرُونَ (44) فَمَا اسْتَطَاعُوا مِنْ قِيَامٍ وَمَا كَانُوا مُنْتَصِرِينَ (45) وَقَوْمَ نُوحٍ مِنْ قَبْلُ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ (46)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और समूद (के हाल) में भी (क़ुदरत की निशानी) है जब उससे कहा गया कि एक ख़ास वक्त तक ख़ूब चैन कर लो[51:43] तो उन्होने अपने परवरदिगार के हुक्म की नाफ़रमानी की तो उन्हें एक रोज़ कड़क और बिजली ने ले डाला और वो देखते ही रह गए [51:44] फिर न वह उठने की ताक़त रखते थे और न बदला ही ले सकते थे [51:45] और (उनसे) पहले (हम) नूह की क़ौम को (हलाक कर चुके थे) बेशक वह बदकार लोग थे [51:46]
हज़रत सालेह समूद क़ौम के पैग़म्बर थे। उन लोगों ने हज़रत सालेह की हक़्क़ानियत को सिद्ध करने के लिए उनसे अजीब चमत्कार की मांग की। उन लोगों ने कहा कि अगर आप पैग़म्बर हैं तो पहाड़ से उंटनी निकालिये। हज़रत सालेह ने कहा कि अगर यह काम हो गया और तुम लोग ईमान नहीं लाये तो ख़त्म हो जाओगे मगर वे लोग सोचते थे कि ऐसा होगा ही नहीं। इस आधार पर उन लोगों ने अपनी मांग पर आग्रह व इस्रार किया और ईमान नहीं लाये।
अल्लाह की शक्ति व आदेश से पहाड़ से मोटी- तगड़ी ऊंटनी निकली मगर हज़रत सालेह की क़ौम ने उनकी हक़्क़ानियत को क़बूल करने के बजाये उन्हें झुठलाया और उंटनी को ज़िब्ह करने के प्रयास में लग गये। जब उन सबने उंटनी को ज़िब्ह कर दिया तो उन सबको तौबा करने के लिए तीन दिन का समय दिया गया मगर उन सबने न तो तौबा किया और न ही ईमान लाये। आख़िर में आसमानी बिजली ने उन सबको तबाह कर दिया।
इसी तरह हज़रत नूह ने भी लोगों के मार्गदर्शन के लिए सालों प्रयास किया किन्तु थोड़े से लोगों के अलावा अधिकांश लोग ईमान नहीं लाये और वे अपने कुफ्र पर अड़े रहे यहां तक कि भीषण व प्रलयकारी बाढ़ आ गयी और सब बर्बाद व ख़त्म हो गये।
इन आयतों से हमने सीखाः
गुनहगारों को अवसर देना एलाही सुन्नत व परम्परा है परंतु अगर वे तौबा नहीं करते हैं तो लोक या परलोक में उन्हें अज़ाब का सामना होगा।
जो क़ौमें व लोग अतीत के लोगों व कौमों के अंजाम से पाठ नहीं लेते और स्वयं को नहीं सुधारते हैं वे ख़ुद भावी पीढ़ियों और आने वाले लोगों के लिए दर्स बन जाते हैं।
पानी, हवा और आसमानी बिजली जैसी समस्त प्राकृतिक चीज़ें अज़ाबे एलाही का प्रतीक बन सकती हैं और वे पापी क़ौमों को तबाह व बर्बाद कर सकती हैं।