क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-999
सूरए वाक़ेया आयतें, 1से 19
पिछले कार्यक्रम में सूरए रहमान पर हमारी चर्चा पूरी होने के बाद, इस कार्यक्रम में हम सूरए वाक़ेआ की आयतों की आसान तफ़्सीर या व्याख्या शुरू करेंगे। यह सूरा भी मक्का में नाज़िल हुआ और इसमें क़यामत के यक़ीनी होने और उस बड़े दिन की घटनाओं पर चर्चा की गई है। सबसे पहले, यह क़यामत के होने के समय की घटनाओं का वर्णन करता है, फिर इंसानों के उनके अमल और अल्लाह से उनकी निकटता के स्तर के आधार पर होने वाले वर्गीकरण के बारे में बताता है। इसके बाद, यह दुनिया और इंसान की रचना में अल्लाह की क़ुदरत की कुछ निशानियों पर प्रकाश डालती है, जो क़यामत के प्रमाण हैं।
सबसे पहले, हम सूरह वाक़ेआ की आयत 1 से 6 तक की तिलावत सुनेंगे:
إِذَا وَقَعَتِ الْوَاقِعَةُ (1) لَيْسَ لِوَقْعَتِهَا كَاذِبَةٌ (2) خَافِضَةٌ رَافِعَةٌ (3) إِذَا رُجَّتِ الْأَرْضُ رَجًّا (4) وَبُسَّتِ الْجِبَالُ بَسًّا (5) فَكَانَتْ هَبَاءً مُنْبَثًّا (6)
इन आयतों का अनुवाद हैः
अल्लाह के नाम से जो बड़ा दयावान और रहम करने वाला है।
जब क़यामत बरपा होगी[56:1] और उसके घटित होने में ज़रा झूट नहीं।(उचित नहीं कि कोई उसे झूठ समझे) [56:2] (वह वाक़या काफ़िरों को) पस्त करेगा (और मोमिनों को) बुलन्द करेगा। [56:3] जब ज़मीन बड़े ज़ोरों में हिलने लगेगी [56:4] और पहाड़ (टकरा कर) बिल्कुल चूर चूर हो जाएँगे [56:5] फिर ज़र्रे बन कर उड़ने लगेंगे[56:6]
क़यामत एक ऐसा विषय है जिसका बहुत से लोग विभिन्न उद्देश्यों से इनकार करते हैं और स्वीकार करने को तैयार नहीं होते। कितने ही ऐसे लोग हैं जो सृष्टिकर्ता यानी अल्लाह के अस्तित्व को तो मानते हैं, लेकिन प्रलय को असंभव क़रार देकर उसका खंडन करते हैं। ये आयतें कहती हैं: जब वे क़यामत के संकेतों को अपनी आँखों से देख लेंगे, तब उसे नकार नहीं पाएंगे, लेकिन उस समय का इक़रार उनके किसी काम नहीं आएगा।
क्योंकि उस समय इंसानों का अमलनामा बंद हो चुका होगा और हर व्यक्ति का स्थान उसके अच्छे-बुरे कर्मों के आधार पर निर्धारित होगा। अच्छे लोग सम्मानित और ऊँचे दर्जे वाले होंगे और स्वर्ग की ओर उठा लिए जाएँगे, जबकि बुरे लोग अपमानित और नीचे गिरा दिए जाएँगे तथा नरक की आग में झोंक दिए जाएँगे।
आगे की आयतें दुनिया के अंत और क़यामत के प्रारंभ का वर्णन करते हुए कहती हैं: एक भयंकर भूकंप पृथ्वी को घेर लेगा—इतना भयानक कि वह ठोस और भारी पहाड़ों को चूर-चूर कर देगा और उन्हें धूल के कणों की तरह हवा में बिखेर देगा।
इन आयतों से हमने सीखाः
क़यामत का आना और उसका विनाशकारी भूकंप एक निश्चित और अटल सत्य है, जिसकी ख़बर स्वयं अल्लाह ने दी है। इसे नकारना उन लोगों के लिए हानिकारक होगा जो क़यामत के लिए तैयार नहीं हैं।
क़यामत की व्यवस्था इस दुनिया से अलग होगी। कितने ही लोग जो इस दुनिया में सम्मानित, धनी, सत्तावान और प्रसिद्ध हैं, वहाँ तुच्छ और अपमानित होंगे तथा विनाश में गिरफ़्तार होंगे।
क़यामत के आरंभ में, पृथ्वी भीषण रूप से काँप उठेगी और अशांत हो जाएगी। पहाड़ अपनी जगह से उखड़कर टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगे और धूल बनकर हवा में उड़ जाएँगे।
अल्लाह की इच्छा से, इस दुनिया का वर्तमान तंत्र नष्ट हो जाएगा और एक नई व्यवस्था आकाश और पृथ्वी पर स्थापित होगी।
अब हम सूरए वाक़ेआ की आयत 7 से 14 तक की तिलावत सुनेंगे:
وَكُنْتُمْ أَزْوَاجًا ثَلَاثَةً (7) فَأَصْحَابُ الْمَيْمَنَةِ مَا أَصْحَابُ الْمَيْمَنَةِ (8) وَأَصْحَابُ الْمَشْأَمَةِ مَا أَصْحَابُ الْمَشْأَمَةِ (9) وَالسَّابِقُونَ السَّابِقُونَ (10) أُولَئِكَ الْمُقَرَّبُونَ (11) فِي جَنَّاتِ النَّعِيمِ (12) ثُلَّةٌ مِنَ الْأَوَّلِينَ (13) وَقَلِيلٌ مِنَ الْآَخِرِينَ (14)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और (उस दिन) तुम लोग तीन किस्म में बंट जाओगे [56:7] तो दाहिने हाथ (में आमाल नामा लेने) वाले (वाह) दाहिने हाथ वाले क्या (चैन में) हैं[56:8] और बाएं हाथ (में आमाल नामा लेने) वाले कैसे बुरे दुर्भाग्यशाली हैं। [56:9] और जो आगे बढ़ जाने वाले हैं (वाह क्या कहना) वह आगे ही बढ़ने वाले थे [56:10] यही लोग (ख़ुदा के) मुक़र्रब हैं। [56:11] आराम व चैन के बाग़ों में [56:12] तो बड़ा समूह अगले लोगों में से होगा (जो पिछले पैग़म्बरों पर ईमान लाया।) [56:13] और कुछ थोडे से पिछले लोगों में से (जो आख़िरी पैग़म्बर पर ईमान लाए)। [56:14]
इन आयतों में भी, सूरए फ़ातिर की आयत 32 की तरह, क़यामत के दिन लोगों के तीन समूहों में बँट जाने की बात कही गई है। पहला समूह उन लोगों का है जो ईमान और अच्छे कर्मों के दम पर सच्ची शांति और सफलता प्राप्त करेंगे—ऐसी अनंत और अद्वितीय खुशी जिसकी कोई सीमा नहीं होगी।
दूसरा समूह उन लोगों का है जो अपराधी और पापी होंगे, जिन्होंने कुफ़्र, अत्याचार और गुनाहों के कारण दुःख और दर्द भरी दोज़ख़ी हालत को प्राप्त किया होगा—ऐसी भयानक दुर्गति जिससे बदतर कुछ नहीं हो सकता।
तीसरा समूह उन लोगों का होगा जो ईमान और नेकी में सबसे आगे रहने वाले हैं और अच्छे लोगों के लिए आदर्श बन चुके हैं। इसी वजह से, वे अल्लाह के सबसे नज़दीक होंगे। पैग़म्बर, इमाम और अल्लाह के औलिया इतिहास में इस समूह के सर्वोत्तम उदाहरण हैं।
उनका ईमान अल्लाह और क़यामत पर परिपूर्ण होता है। उनका चरित्र उदार और महान होता है, और वे लोगों के साथ न्याय और त्याग का व्यवहार करते हैं। इबादत, बहादुरी, न्याय, दानशीलता और सभी इलाही व इंसानी मूल्यों में वे सर्वोच्च स्तर पर होते हैं। कई तो अल्लाह की राह में शहादत प्राप्त करके पूर्णता के शिखर पर पहुँच जाते हैं।
यह ईमान और नेकी में अग्रणी समूह मानव इतिहास के आरंभ से रहा है और अंत तक ऐसे लोग मौजूद रहेंगे। पिछली उम्मतों में भी कई थे जिन्होंने अपने युग के पैग़म्बरों पर सच्चा ईमान लाया, और आख़िरी पैग़म्बर की उम्मत में भी ऐसे लोग हैं जो उनकी शिक्षाओं पर चलकर दूसरों के लिए मिसाल बने।
इन आयतों से हमने सीखाः
असली और स्थायी सुख-दुःख आख़ेरत में ही हासिल होगा। कई लोग दुनिया में सम्मानित और सुखी दिखते हैं, लेकिन क़यामत में उनकी हक़ीक़त सामने आएगी। इसी तरह, कई ग़रीब और उपेक्षित लोग परलोक में ऊँचे मुक़ाम पर होंगे।
नेकी करना एक अलग बात है, और नेकी में आगे निकल जाना एक अलग महत्व रखता है।जो नेकी में आगे रहते हैं, वे क़यामत में भी आगे होंगे और उच्च स्थान पाएँगे।
जन्नत में मोमिनों को भौतिक नेमतें मिलेंगी, लेकिन उससे बढ़कर अल्लाह की निकटता है—यही सबसे बड़ा आध्यात्मिक पुरस्कार है, जिसे इन आयतों में भौतिक नेमतों से पहले रखा गया है।
अब हम सूरए वाक़ेआ की आयत 15 से 19 तक की तिलावत सुनेंगे:
عَلَى سُرُرٍ مَوْضُونَةٍ (15) مُتَّكِئِينَ عَلَيْهَا مُتَقَابِلِينَ (16) يَطُوفُ عَلَيْهِمْ وِلْدَانٌ مُخَلَّدُونَ (17) بِأَكْوَابٍ وَأَبَارِيقَ وَكَأْسٍ مِنْ مَعِينٍ (18) لَا يُصَدَّعُونَ عَنْهَا وَلَا يُنْزِفُونَ (19)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और याक़ूत से जड़े हुए तख़्तों पर [56:15] एक दूसरे के सामने तकिए लगाए (बैठे) होंगे [56:16] नौजवान लड़के जो हमेशा उनके गिर्द चक्कर लगाएंगे [56:17] जाम और चमकदार टोंटीदार बर्तन और शफ्फ़ाफ़ शराब के प्याले लिए हुए। [56:18] उन (पेय पदार्थों से) न तो उनको (ख़ुमार से) सिरदर्द होगा और न वो मदहोश होंगे[56:19]
ये आयतें स्वर्गवासियों के आनंदमय जीवन का एक दृश्य बयान करती हैं और कहती हैं: स्वर्गवासी एक-दूसरे से दूर अलग-थलग नहीं रहेंगे, बल्कि वे मिल-जुलकर आनंदपूर्ण सभाएँ करेंगे; वे शानदार सिंहासनों पर एक-दूसरे के पास बैठेंगे हैं और आपसी बातचीत से अत्यधिक आनंद लेंगे।
अल्लाह ने सुंदर युवकों को उनकी सेवा के लिए नियुक्त किया है, जो विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट भोजन और पेय परोसेंगे। ऐसे मधुर पेय जिनमें दुनियावी शराब का नशा या हानिकारक प्रभाव नहीं होगा, फिर भी वे परम आनंद हासिल करेंगे।
इन आयतों से हम सीखते हैं:
नरकवासियों के विपरीत, जो हमेशा एक-दूसरे को कोसते रहते हैं, स्वर्गवासी भव्य सिंहासनों पर एक साथ बैठेंगे और शांत व सुखद वातावरण में आपसी बातचीत व संगति का आनंद लेंगे।
दुनिया के खाद्य-पदार्थों और पेयों के कभी-कभी अवांछनीय दुष्प्रभाव होते हैं, लेकिन स्वर्ग में ऐसा नहीं है वहाँ केवल शुद्ध आनंद ही है।