सादाबाद महल
ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद, 1983 में सादाबाद महल में एक सैन्य संग्राहलय की भी स्थापना की गई।
ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद, 1983 में सादाबाद महल में एक सैन्य संग्राहलय की भी स्थापना की गई। यह संग्राहलय शहराम महल में स्थित है। यह दो मंज़िला इमारत है, जिसमें सैन्य उपकरण रखे हुए हैं। ईरान में सेना के इतिहास को जानने के लिए इस संग्राहलय की सैर लाभदायक है।
इस संग्राहलय में हथियार, वर्दियां, तस्वीरें और अन्य चीज़ें रखी हुई हैं। संग्राहलय में हख़ामनेशी काल से लेकर वर्तमान काल तक के सैनिकों एवं योद्धाओं की वर्दियां रखी हुई हैं।
संग्राहलय के दूसरे भाग में विभिन्न कालों में युद्धों में इस्तेमाल होने वाले हथियार रखे हुए हैं। उल्लेखनीय है कि इस संग्राहलय में रखा हुआ पहला बारूदी हथियार, सफ़वी शासनकाल से संबंधित है।
संग्राहलय का एक भाग ईरान पर थोपे गए इराक़ के युद्ध के इतिहास से विशेष है। इस भाग में युद्ध हाल की ओर संकेत किया जा सकता है। इसमें ईरान के सैनिकों के कुछ अभियानों और आबादान की घेराबंदी को तोड़ने का मॉडल के रूप में नक़्शा पेश किया गया है।

संग्राहलय के एक दूसरे हिस्से को युद्ध के मोर्चे पर शहीद होने वाले ईरानी कमांडरों से विशेष किया गया है।
सादाबाद महल के केन्द्रीय भाग में उस्ताद हुसैन बहज़ाद का मिनिएचर संग्राहलय है। इस संग्राहलय की इमारत, क़ाजार शासनकाल के अंतिम और पहलवी शासनकाल के आरम्भिक दौर से संबंधित है। 1994 में पुनर्निमाण के बाद, उस्ताद बहज़ाद के जन्म दिन की शताब्दी के अवसर पर इस संग्राहलय का उद्घाटन किया गया। उल्लेखनीय है कि उस्ताद हुसैन बहज़ाद की 289 कलाकृतियां इस संग्राहलय में रखी गई हैं। संग्राहलय के भूतल को प्रदर्शनी एवं ट्रेनिंग के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। उस्ताद बहज़ाद संग्राहलय में पांच हाल हैं, जिनमें विभिन्न कालों से संबंधित उस्ताद की विविद प्रकार की मूल्यवान रचनाएं एवं कलाकृतियां रखी हुई हैं।
पहले हाल में ईरानी कला शैली में बने हुए चित्र रखे हुए हैं। पोलो, शीरीन व फ़रहाद, हाथ में द्वीप लिए हुए महिला और उमर ख़य्याम की सभा की तस्वीरें इस हिस्से में रखी हुई हैं। दूसरे हाल में ईरानी कवियों के शेरों से संबंधित प्रेरणादायक रचनाएं रखी हुई हैं। इन रचनाओं में ख़य्याम, हाफ़िज़ और मौलाना के शेरों से संबंधित कलाकृतियां हैं। तीसरे हाल में लोगों के जीवन और परम्पराओं से संबंधित तस्वीरों को प्रदर्शनी के लिए रखा गया है। चौथे हाल में उस्ताद बहज़ाद द्वारा हाफ़िज़, सादी, ख़य्याम, मौलाना, ज़करिया राज़ी जैसे विद्वानों की पेंटिंग्स हैं।
पांचवे हाल में विभिन्न लोगों या विभिन्न घटनाक्रमों और कुछ जानवरों की पेंटिंग्स रखी हुई हैं।
सादाबाद के ऐतिहासिक संग्राहलय की इमारतों में से एक प्राचीन इमारत में मीर एमाद हस्तलेख एवं पत्राचार संग्राहलय है। यह इमारत संभवतः 13वीं हिजरी क़मरी शताब्दी के अंत और 14वीं शताब्दी के शुरू में बनाई गई थी। यह इमारत क़ाजार शासनकाल के अंतिम दौर की इमारतों की भांति है, इसीलिए इसके निर्माण की शैली क़ाजार के अंत और पहलवी शासनकाल के शुरू की वास्तुकला से मिलती जुलती है। मीर एमाद संग्राहलय की इमारत में पहले शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी के दो बच्चे रहा करते थे। 1997 में इसमें सफ़वी काल के प्रसिद्ध सुलेखक के नाम से संग्राहलय का उद्घाटन किया गया।

मीर एमाद संग्राहलय में इस्लाम पूर्व से संबंधित पत्र, इस्लामी काल से संबंधित पत्र और कलात्मक हस्तलेख रखे हुए हैं। इस्लाम पूर्व ईलामी, पहलवी, सासानी और अवेस्ता शिलालेखों के नमूने इस तल पर रखे हुए हैं। ईलामी शिलालेख कि जो प्रोतो ईलामी में लिखा हुआ है, ख़ुज़िस्तान के शूश के एक प्राचीन उपासनागृह से संबंधित है। सासानी पहलवी शिलालेख कि जो अर्दशीर बाबकान से संबंधित हैं और अर्दशीर बाबकान के कारनामों की किताब का एक भाग हैं तथा अवेस्ता शिलालेख एक अवेस्ता लिपि की व्याख्या हैं।
कूफ़ी, सुल्स व नस्ख़ जैसे इस्लामी काल से संबंधित शिलालेख भी हाल के पहली मंज़िल पर रखे हुए हैं। इस हाल में सबसे मूल्यवान कूफ़ी शिलालेख, ईरानी कूफ़ी शिलालेख है कि जो एक खाल पर लिखा हुआ है कि जो कूफ़ी शिलालेख के एक प्रकार को दर्शाता है। सुल्स लिपि शब्दों के रूप में और लेख के अभ्यास के रूप में है, जो 7वीं हिजरी क़मरी शताब्दी के प्रसिद्ध लेखक याक़ूत मुस्तासमी का लेख है। ईरान के प्रतिष्ठित लेखकों के लेखों के नमूनें भी संग्राहलय के पहली मंज़िल पर प्रदर्शनी के लिए रखे गए हैं।
मीर एमाद संग्राहलय की दूसरी मंज़िल पर 9वीं से 13वीं हिजरी शताब्दी से संबंधित नस्तालीक़ एवं शिकस्ता नस्तालीक़ के नमूने हैं। इस मंज़िल का एक भाग मीर एमाद अल-हसनी की रचनाओं से विशेष है, जिसमें उनके शिलालेख एवं स्क्रैपबुक रखे हुए हैं। मीर एमाद के शिलालेखों में नस्तालीक़ चलीपायी एर सियाह मश्क़ शामिल हैं, जो 994 से 1019 हिजरी के बीच लिखे गए हैं। मीर एमाद की स्क्रैपबुक के दो भाग हैं। एक भाग में नस्तालीक़ लिपि में शब्द और दूसरे में दुआएं लिखी हुई हैं, जिस पर मीर अली तबरेज़ी और मीर एमाद अल-हसनी के हस्ताक्षर हैं।
मीर एमाद संग्राहलय की दूसरी मंज़िल पर रखे हुए शिलालेखों में ईरान के इस्लामी दौर के विभिन्न लेख रखे हैं जो जली व ख़फ़ी शैलियों में हैं। संग्राहलय के सियाह मश्क़ शिलालेख का अधिकांश भाग 13वीं हिजरी शताब्दी से संबंधित है, जिसमें आग़ा सैय्यद हुसैन ख़ुशनवीस बाशी, मिर्ज़ा ग़ुलाम रज़ा, कलहर, इमादुल किताब, असदुल्लाह शीराज़ी और सैय्यद गुलिस्ताने के लेख हैं। इस मंज़िल का अन्य एक भाग शिकस्ता नस्तालीक़ लिपि से संबंधित है कि जो जली, ख़फ़ी व सियाह मश्क़ की शैलियों में लिखे गए हैं। इसमें दरवेश अब्दुल मजीद तालेक़ानी, सैय्यद गुलिस्ताने, मिर्ज़ा ग़ुलाम रज़ा, मिर्ज़ा कूचक और शफ़ीआ के लेख हैं।
इस्लामी जगत में हस्तलेख के महत्व के कारण, आरम्भिक काल से ही हस्तलेख को सजावट के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। एक अन्य भाग में धातु से बने शमादानों पर मेटालिक हस्तलेख, क़ब्रों के शिलालेख और मिट्टी के बरतन रखे हुए हैं। संग्राहलय में मौजूद क़लमदान कि जिन पर चित्रकारी है और लिखाई है, हस्तलेख को सजावट के रूप में इस्तेमाल करने का ही उदाहरण है।
संग्राहलय का अन्य भाग हस्तलेखों से विशेष है। इस भाग में शेरों के दीवान, स्क्रैपबुक और हस्तलिखित किताबें रखी हुई हैं। उदाहरण स्वरूप, दरवेश अब्दुल मजीद तालेक़ानी, अहमद तबरेज़ी, मीर एमाद और दीवाने हाफ़िज़ की स्क्रैपबुक और 13वीं हिजरी शताब्दी से संबंधित क़ुरान और किताबें हैं। मीर एमाद संग्राहलय में हस्तलेखों के अलावा, इस्लामी काल की किताबों के इतिहास को भी देखा जा सकता है।

गंजीनए आब एक ऐसी सांस्कृतिक संस्था है जो पूर्वजों की धरोहर की रक्षा और उसे पुनर्जीवित करने तथा एकत्रित करने के क्षेत्र में सक्रिय है। पानी के दुरुपयोग, उसके वितरण और उससे लाभ उठाने एवं कला के क्षेत्र में उसके प्रयोग से संबंधित क्षेत्रों में यह संस्था अपनी ज़िम्मेदारी निभाती है।
इस संस्था से संबंधित संग्राहलय सादाबाद महल के केन्द्रीय भाग में स्थित है। संग्राहलय की इमारत, क़ाजारी शासनकाल एवं द्वितीय पहलवी के काल से संबंधित है। इसके दो भाग हैं। इस संग्राहलय में पानी से संबंधित दस्तावेज़, उपकरण, पानी के कटोरे, पानी की घड़ी, कुंआ खोदने के उपकरण और पानी के विशेषज्ञों की प्रतिमाएं रखी हुई हैं। सादाबाद के इस संग्राहलय को ऊर्जा मंत्रालय से संबंधित संस्था ईरानी पानी का राष्ट्रीय कोष के हवाले कर दिया गया है। 1997 में इस संस्था ने इस संग्राहलय की दो इमारतों का पुनर्निमाण कराया, जिसके दो वर्ष बाद इस संग्राहलय का उद्घाटन किया गया।