Sep २४, २०२५ १३:३८ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-1032

सूरए तहरीम आयतें, 9 से 12

आइए सबसे पहले सूरए तहरीम की आयत नंबर 9 की तिलावत सुनते हैं:

يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ جَاهِدِ الْكُفَّارَ وَالْمُنَافِقِينَ وَاغْلُظْ عَلَيْهِمْ وَمَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ (9)

इस आयत का अनुवाद है: 

ऐ पैग़म्बर! काफिरों और मुनाफ़िक़ों से जिहाद करो और उन के साथ सख़्ती से पेश आओ। उनका ठिकाना जहन्नम है और वह बहुत बुरा ठिकाना है।[66:9]

पिछले प्रोग्राम में क़यामत में काफ़िरों की ज़िल्लत और शर्मिंदगी और मोमिनीन की इज़्ज़त और सरबुलंदी की तरफ इशारा किया गया था। यह आयत रसूल-ए-खुदा सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम को संबोधित करते हुए कहती है: काफिरों और मुनाफ़िक़ों से जिहाद करो और ज़रूरत पड़ने पर उन पर सख़्ती दिखाओ क्योंकि कुफ़्र और निफ़ाक़ का अंजाम जहन्नम है।

जैसा कि कुछ बड़े मुफ़स्सिरीन यानी क़ुरआन के व्याख्याकारों ने कहा है: इस आयत में जिहाद से मुराद काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों से सैन्य जंग नहीं है, क्योंकि रसूल-ए-खुदा सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम ने अपने पूरे जीवन में कभी भी मुनाफ़िक़ीन से जंग नहीं की, बल्कि जिहाद से मुराद फ़िक्री जिहाद है, जैसा कि सूरए फ़ुरक़ान की आयत 52 में कहा गया है: (ऐ नबी! काफ़िरों की (राह और तरीक़े) की पैरवी मत करो और उनसे क़ुरआन के ज़रिए बड़ा जिहाद करो।)

इस आयत में भी अल्लाह अपने नबी को हुक्म देता है कि काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों से फ़िक्री जिहाद करो और उन्हें तर्क और दलील से परवरदिगार की तरफ़ बुलाओ और अगर वे मुक़ाबले पर उतर आएं तो सख़्ती दिखाओ।

इस आयत से हमने सीखा:

 दीन की हक़ीक़त दिल का यक़ीन है। मुनाफ़िक़ ज़ाहिर में मुसलमान है, लेकिन बातिन में काफ़िर है, क्योंकि उसे दिल का यक़ीन नहीं है।

 नर्मी और सख़्ती, हरेक का अपनी जगह और हालात के मुताबिक़ होना ज़रूरी है। बेशक हमेशा नर्मी को, सख़्ती और कठोरता पर तरजीह है।

 दुश्मनों से जिहाद के कई प्रकार हैं और काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों से फ़िक्री और समझाने का जिहाद, सैन्य और सशस्त्र जिहाद से पहले आता है।

आइए अब सूरए तहरीम की आयत नंबर 10 की तिलावत सुनते हैं: 

ضَرَبَ اللَّهُ مَثَلًا لِلَّذِينَ كَفَرُوا اِمْرَأَةَ نُوحٍ وَامْرَأَةَ لُوطٍ كَانَتَا تَحْتَ عَبْدَيْنِ مِنْ عِبَادِنَا صَالِحَيْنِ فَخَانَتَاهُمَا فَلَمْ يُغْنِيَا عَنْهُمَا مِنَ اللَّهِ شَيْئًا وَقِيلَ ادْخُلَا النَّارَ مَعَ الدَّاخِلِينَ (10)

 

इस आयत का अनुवाद है: 

अल्लाह ने उन लोगों के लिए जिन्होंने कुफ़्र किया, नूह की पत्नी और लूत की पत्नी की मिसाल दी है। ये दोनों हमारे नेक बंदों के सरपरस्ती (निकाह) में थीं, लेकिन उन दोनों के साथ धोखा किया। तो वे (दोनों पैग़म्बर) अल्लाह के अज़ाब से उन्हें बिल्कुल नहीं बचा सके और उन दोनों से कहा गया: दाख़िल होने वालों के साथ आग में दाख़िल हो जाओ।[66:10]

इस सूरे की शुरुआती आयतें पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम की कुछ बीवियों के बारे में थीं जो आपके रहस्य दूसरों के सामने खोल देती थीं और आपको तकलीफ़ और नाराज़गी पहुंचाती थीं। ये आयतें कहती हैं: पिछले नबियों के ज़माने में भी ऐसी बीवियां थीं; वे औरतें जो नूह और लूत जैसे नबियों के घर में रहती थीं, लेकिन उनके दुश्मनों से सहयोग करती थीं और लोगों को उन दोनों नबियों की बातों को मानने से रोकती थीं।

ज़ाहिर है कि अल्लाह की इंसाफ की कार्यप्रणाली में, नबियों से रिश्तेदारी या नज़दीकी, सज़ा से छूट का कोई आधार नहीं बन सकती और हर शख़्स अपने अमल और कथन के आधार पर जवाबदेह और सज़ा का हक़दार होगा। इसलिए ये दोनों औरतें नूह और लूत की बीवियां हालांकि अल्लाह के नबियों की बीवियां थीं, लेकिन क़यामत में दोज़ख़ी हैं।

इस आयत से हमने सीखा:

नबी की बीवी या बेटा होना, इंसान की नजात का ज़रिया नहीं है। दरअसल, हर इंसान की दुनिया और आख़ेरत में ख़ुशबख़्ती या बदबख़्ती, उसके अपने चुनाव पर निर्भर करती है और इस बात पर निर्भर करती है कि उसने कौन सा रास्ता चुना और उसका अमल कैसा था।

इंसान, चाहे औरत हो या मर्द, इरादा और अख़्तियार रखता है और मजबूर नहीं है। इसलिए नबी की बीवी भी, हालांकि ख़ानदानी तौर पर उसी से तअल्लुक़ रखती है, उसके रास्ते और तरीक़े के ख़िलाफ़ रास्ता चुन सकती है।

पाक और सालेह लोगों को अपने ख़ानदान की देखभाल करनी चाहिए, क्योंकि कुफ़्र और बे-दीनी का सिलसिला नबियों के घर में भी दाख़िल हो सकता है।

आइए अब सूरए तहरीम की आयत नंबर 11 की तिलावत सुनते हैं: 

وَضَرَبَ اللَّهُ مَثَلًا لِلَّذِينَ آَمَنُوا اِمْرَأَةَ فِرْعَوْنَ إِذْ قَالَتْ رَبِّ ابْنِ لِي عِنْدَكَ بَيْتًا فِي الْجَنَّةِ وَنَجِّنِي مِنْ فِرْعَوْنَ وَعَمَلِهِ وَنَجِّنِي مِنَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ (11)

इस आयत का अनुवाद है: 

और अल्लाह ने उन लोगों के लिए जिन्होंने ईमान क़ुबूल किया, फ़िरऔन की बीवी की मिसाल दी है। जब उस ने कहा: ऐ परवरदिगार! मेरे लिए अपने पास जन्नत में एक घर बना दे और मुझे फ़िरऔन और उसके कामों से नजात दे और मुझे ज़ालिमों के गिरोह से बचा ले।[66:11]

नूह और लूत की बीवियों के मुक़ाबले में जिन्हें काफ़िर औरतों की दो मशहूर मिसालों के तौर पर पेश किया गया, यह आयत और अगली आयत ईमान की कामिल मिसाल के तौर पर दो औरतों को पेश करती हैं: एक फ़िरऔन की बीवी और दूसरी हज़रत मरयम। फ़िरऔन की बीवी जिसका नाम आसिया था, फ़िरऔन के महल में रहती थी और उसके पास हर तरह की सुविधाएं और ऐशो-आराम की चीज़ें मौजूद थीं। लेकिन जब उसे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की हक़्क़ानियत का पता चला तो उन पर ईमान ले आई और फ़िरऔन की धमकियों के आगे सख़्ती से डटी रही, यहां तक कि फ़िरऔन के तत्वों की सख़्त यातनाओं के दौरान शहीद हो गई।

हज़रत मरयम सलामुल्लाह अलैहा भी जिन्होंने अपनी पूरी उम्र बैतुल मुक़द्दस की ख़िदमत और अल्लाह की इबादत में गुज़ार दी, उसकी मेहरबानी की हक़दार हुईं और अल्लाह ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को उनके हवाले किया।

ये दोनों औरतें हालांकि बहुत अलग हालात में थीं, लेकिन चूंकि दोनों ही अल्लाह की बंदगी करने वाली और उसके हुक्म के आगे सर झुकाने वाली थीं, इसलिए तारीख़ भर के ईमान वाले मर्दों और औरतों की मिसाल के तौर पर पेश की गई हैं ताकि मोमेनीन जान सकें कि हर हालत में हक़ और हक़ीक़त का पालन करना चाहिए और अल्लाह के हुक्म का अनुसरण ज़रूरी है।

इस आयत से हमने सीखा:

नबियों के अलावा, आम लोग भी अल्लाह के बंदों की मिसाल बन सकते हैं। यहां तक कि औरतें भी मर्दों की मिसाल बन सकती हैं, जैसा कि फ़िरऔन की बीवी को सभी ईमान वालों की मिसाल के तौर पर पेश किया गया है।

घर और ख़ानदान का माहौल, या समाज में ग़लत अक़ीदों और रिवाजों का चलन, कुफ़्र और बे-दीनी का बहाना नहीं बन सकता, जैसा कि फ़िरऔन की बीवी फ़िरऔन के महल में रहती थी, लेकिन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर ईमान ले आई। इसलिए पहली और आख़िरी बात इंसान का इरादा और अख़्तियार है, न कि कोई और चीज़।

जो शख़्स अल्लाह पर ईमान रखता है, वह उसकी ख़ुशी और रज़ा की तलाश में होता है, जन्नत के घर को फ़िरऔन के महल और उसकी दुनियावी चमक-दमक पर तरजीह देता है और दुनिया की चकाचौंध उसकी आंखों पर पर्दा नहीं डाल सकती।

औरत दीनी मामलों में मर्द से स्वतंत्र है और उसे अपने शौहर के दीन विरोधी आदेशों की इताअत नहीं करनी चाहिए।

आइए अब सूरए तहरीम की आयत नंबर 12 की तिलावत सुनते हैं: 

وَمَرْيَمَ ابْنَتَ عِمْرَانَ الَّتِي أَحْصَنَتْ فَرْجَهَا فَنَفَخْنَا فِيهِ مِنْ رُوحِنَا وَصَدَّقَتْ بِكَلِمَاتِ رَبِّهَا وَكُتُبِهِ وَكَانَتْ مِنَ الْقَانِتِينَ (12)

इस आयत का अनुवाद है: 

और (अल्लाह ने) मरयम बिन्त इमरान (की भी मिसाल दी है)। वह औरत जिसने अपनी इज़्ज़त की हिफ़ाज़त की, तो हमने अपनी रूह उसमें फूंक दी (और ईसा उसकी कोख से पैदा हुए), और उसने अपने परवरदिगार की बातों और किताबों की तस्दीक़ की और वह आज्ञा मानने वालों में से थी। [66:12]

यह आयत हज़रत मरयम सलामुल्लाह अलैहा की उन ख़ूबियों की तरफ़ इशारा करती है जिनमें से हरेक सभी मोमिनीन के लिए मिसाल बन सकती हैं। पहली ख़ूबी पाकदामनी है जो सभी इंसानों ख़ासकर औरतों के लिए बहुत बुलंद क़द्र और मक़ाम रखती है। हज़रत मरयम की दूसरी ख़ूबी अल्लाह पर ईमान और आसमानी किताबों की तस्दीक़ थी जिसके नतीजे में अल्लाह के हुक्म की इताअत और अल्लाह की इबादत और बंदगी थी।

इन्हीं ख़ूबियों की वजह से, जब अल्लाह ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को अपनी रिसालत और दावत के लिए भेजना चाहा तो हज़रत मरयम सलामुल्लाह अलैहा को उनकी मां के तौर पर चुना। क्योंकि उस वक्त हज़रत मरयम बनी इस्राईल की सबसे पाक और सबसे ज़्यादा ईमान वाली औरत थीं। औरतों में सिर्फ़ वही औरत हैं जिनका नाम क़ुरआन में आया है। इस किताब में 30 से ज़्यादा बार हज़रत मरयम का नाम लिया गया है।

इस आयत से हमने सीखा:

 पाकदामनी और हर तरह की चरित्रहीनता से अपनी इज़्ज़त की हिफ़ाज़त, उन मूल्यों में से है जिन पर हर ईलाही दीन में ज़ोर दिया गया है।

 पाकीज़गी और पाकदामनी, इंसान की हैसियत के मुताबिक़ ईलाही मेहरबानियों को हासिल करने के लिए ज़मीन तैयार करती है।

 मां की पाकदामनी का बच्चे की रूह और दिमाग़ पर बहुत गहरा असर होता है और पाक और सच्चे बच्चे पाकदामन मां की गोद से ही पैदा होते हैं।