इस्लाम और मानवाधिकार-2
हमने आज के विश्व में मानवाधिकार के विषय के महत्व और उसकी आवश्यकता की ओर संकेत किया था।
हमने आज के विश्व में मानवाधिकार के विषय के महत्व और उसकी आवश्यकता की ओर संकेत किया था। इसी प्रकार हमने यह बयान किया था कि आज जो कुछ मानवाधिकार के नाम पर पेश किया जा रहा है वह आसमानी धर्मों, दर्शनशास्त्रियों और विचारकों के विचारों और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए विभिन्न समाजों के लोगों के प्रयासों का परिणाम है। अतः मानवाधिकार के आधार व सिद्धांत कैसे अस्तित्व में आये इसकी समीक्षा विशेष महत्व रखती है।
इंसान व्यक्तिगत स्वाधीनता के अलावा सामाजिक रुझान भी रखता है और वह दूसरे इंसानों के साथ रहना चाहता है। समाज में लोग रहते हैं और वे एक दूसरी की आज़ादी, और प्रतिष्ठा आदि को ध्यान में रखने पर बाध्य हैं। दूसरी ओर इंसानों को चाहिये कि वे व्यक्तिगत या सामूहिक जीवन में एक दूसरे के अधिकारों का हनन न करें। सामाजिक एकजुटता और लोगों के एक दूसरे के साथ रहने से लोगों के हित एक दूसरे से टकराते हैं। इसी कारण कुछ कानूनों का होना और उनका लागू किया जाना अपरिहार्य है ताकि किसी के अधिकार का हनन न हो।
क़ानून का होना इस बात का कारण बनता है कि शक्तिशाली लोग और सरकारें समाजों का दिशा- निर्देशन इस प्रकार से करें कि समाज के मूल्यवान स्रोतों का वितरण समाज के विभिन्न वर्गों के मध्य न्यायपूर्ण ढंग से हो।
इतिहास में जब पहला मानव समाज अस्तित्व में आया तो यह तार्किक प्रक्रिया समाज के लोगों के लिए कुछ दायित्वों व अधिकारों के उत्पन्न होने का कारण बनी। समाज के लोगों की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता यह है कि उन्हें वे अधिकार प्राप्त हों जिसके वे इंसान होने के नाते पात्र व योग्य हैं और सरकारें तथा समाज के दूसरे लोग इस अधिकार का समर्थन करें। इस अधिकार को आज “मानवाधिकार” शीर्षक के अंतर्गत जाना व पहचाना जाता है।
मानवाधिकार उन सुविधाओं, विशेषताओं व बातों को कहा जाता है जिनका संबंध एक समाज के सदस्यों से होता है और उसे एक क़ानून के रूप में लिखा गया है कि इंसानों को इंसान होने के नाते और समाज के दूसरे लोगों के साथ अपने संबंधों के कारण इंसानों को प्राप्त हैं और उन्हें सरकारों का आवश्यक समर्थन भी प्राप्त होता है और चूंकि मानवाधिकार का विषय इंसान है अतः कहा जा सकता है कि मानवाधिकार का विषय जाति और धर्म आदि से विशेष नहीं है और विश्व की समस्त शक्तियों को उसके मुकाबले में नतमस्तक होना चाहिये।
मानवाधिकार एक ऐसा विषय है जिसका इतिहास, धर्म और राजनीति आदि मंचों पर सदैव चर्चा होती रही है।
खेद की बात है कि इंसान के जीवन के इतिहास में धमकी, असुरक्षा, निर्धनता, भूख, अतिक्रमण, हत्या और नरसंहार वे चीज़ें हैं जो हमेशा समाजों की समस्याएं रही हैं और आज भी वे समाजों व राष्ट्रों के लिए समस्यायें बनी हुई हैं। मानव इतिहास इस बात का सूचक है कि शक्तिशाली लोगों, वर्गों और गुटों का वर्चस्व सदैव कमजोर लोगों पर रहा है। इस प्रकार समाज में शक्तिशाली लोगों के निर्बल लोगों पर वर्चस्व की संस्कृति प्रचलित हो गयी और इस प्रकार की संस्कृति से मानवीय प्रतिष्ठा को आघात पहुंचा परंतु पूरे इतिहास में न्यायप्रेमी और अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले संघर्ष व आंदोलन भी रहे हैं जिन्होंने इंसानों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए बहुत अधिक प्रयास किये हैं। इसके अतिरिक्त हज़रत आदम से लेकर पैग़म्बरे इस्लाम तक के समस्त ईश्वरीय दूतों का प्रयास समाज में न्याय की स्थापना रहा है।
इसी प्रकार ईश्वरीय दूतों ने लोगों को अपने अधिकारों की मांग करने की सीख दी। इसी कारण शायद यह कहा जा सकता है कि आज के समय के इंसान की सबसे बड़ी सफलता मानवाधिकारों की पूर्ति के लिए विज्ञप्तियों का जारी और समझौते करना है परंतु इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि मानवाधिकार के जो सिद्धांत व दस्तावेज़ हैं वे आसानी से प्राप्त नहीं हुए हैं। मानवाधिकार वास्तव में धर्म की न्यायप्रेमी शिक्षाओं, विचारकों की सोच, मानव समाज के शिक्षाप्रद अनुभवों और अन्याय के विरुद्ध होने वाले संघर्षों के परिणाम में अस्तित्व में आये हैं।
इस आधार पर मानवाधिकार के अस्तित्व में आने में प्राचीन समय, मध्ययुगीन शताब्दी, पुनर्जागरण और विश्व के वर्तमान समय का अध्ययन विशेष महत्व रखता है। मानवाधिकार के सबसे प्राचीन दस्तावेज़ हमूराबी के क़ानून, महान कुरूश के आदेश,12 टेबल्स जो रोम के क़ानून के नाम से प्रसिद्ध हैं और प्राचीन यूनान के दर्शनशास्त्रियों द्वारा लिखे गये क़ानून हैं।
मानवीय और मानवाधिकार के संबंध में लिखी गयी पहली विषय वस्तु का संबंध हमूराबी के क़ानून से है। यह क़ानून 1730 साल ईसापूर्व 282 सिद्धांतों में संकलित किये गये हैं। हमूराबी के कानून शाही नसीहतों के संग्रह हैं जो सम्मानजनक थे और वे पूज्यों की उपासना से आरंभ होते हैं। हमूराबी के कानून पत्थर के एक स्तंभ पर सुन्दर ढंग से लिखे हुए हैं और यह पत्थर वर्ष 1902 में ईरान के शूश क्षेत्र में होने वाली खुदाई के दौरान प्राप्त हुआ है और इस समय उसकी सुरक्षा पेरिस के लौवर संग्रहालय में की जा रही है।
कहा जाता है कि यह क़ानून हज़रत मूसा के धार्मिक नियम की भांति आसमान से नाज़िल हुआ है। इस कानून की प्रस्तावना में आया है” बाबिली धर्म के महान पूज्यों ANOU और बेल ने मुझे, जो हमूराबी, उच्च स्थान वाला राजकुमार और पूज्यों की उपासना करने वाला हूं, आदेश दिया कि इस प्रकार करूं कि ज़मीन पर न्याय शासन हो, पापियों और बुरा कार्य करने वालों का अंत कर दूं, कमज़ोर लोगों पर शक्तिशाली लोगों को अत्याचार करने से रोक दूं, ज़मीन पर एक शैली विस्तृत कर दूं और लोगों के कल्याण को उपलब्ध कर दूं।
हमूराबी के कानून में चल और अचल संपत्ति, व्यापार, उद्योग, काम, परिवार और शारीरिक प्रताड़ना के संबंध में अलग- अलग अधिकार व कानून बयान किये गये हैं और कहा जा सकता है कि यह कानून उस समय में बहुत ही विकसित सभ्यता का चेराग़ व मार्गदर्शक रहा है।
हख़ामनिशी शासन श्रंखला की बुनियाद रखने वाला महान कुरूश है जिसकी गणना उन शासकों में होती है जिसका नाम बुराइयों से मुकाबला करने और कार्यों के सुधार में इतिहास में अच्छाई के साथ याद किया गया है और उसके व्यवहार व आचरण को पैग़म्बरों जैसा बताया गया है। कुछ लोगों का मानना है कि कुरूश वही ज़ूल क़रनैन है जिसका नाम ईश्वरीय ग्रंथ क़ुरआन में हुआ है।
महान कुरूश ने 539 वर्ष ईसापूर्व इतिहासिक नगर बाबिल पर नियंत्रण कर लिया और उसी वर्ष उसने अपने इतिहासिक घोषणापत्र को जारी किया जिसे राष्ट्रों एवं इंसानों के पहले घोषणापत्र के रूप में याद किया जाता है। महान कुरूश ने बाबिल नगर पर नियंत्रण करके उन यहूदियों को स्वतंत्र कर दिया जिनहें बुख्तुन्नस्र नामक शासक ने बंदी बना लिया था और उनकी संख्या 40 हज़ार थी और जो कुछ उनसे छीन लिया गया था उसे वापस कर दिया। महान कुरूश के घोषणापत्र में आया है” मैंने (कुरूश) दास प्रथा को समाप्त कर दिया और मैंने आदेश दिया कि लोग अपने पूज्य की उपासना करने में स्वतंत्र रहें और बंद उपासना स्थलों को खोल दें और नगर के किसी व्यक्ति को अस्तित्व से समाप्त न करें। नष्ट शहर का मैंने पुनरनिर्माण किया। बेघर लोगों को दोबारा उनके घर लौटाया और एकजुटता के लिए सबका आह्वान किया ताकि सबके दिल प्रसन्न हो जायें।“
महान कुरूश इस घोषणापत्र में कहता है मैंने सभी लोगों के लिए शांत व सुरक्षित समाज का निर्माण किया और शांति व सुरक्षा समस्त लोगों को प्रदान किया और अपने सिपाहियों को लोगों की जान व माल पर अतिक्रमण करने से रोका। मैंने दासता को समाप्त और उनकी समस्याओं का अंत व समाधान कर दिया।
मानवाधिकार का एक प्राचीन व इतिहासिक घोषणापत्र रोम का घोषणापत्र है। अधिकांश यूरोपीय देशों के मानवाधिकार का आधार यही घोषणापत्र है। 12 टेबल्स हैं जो रोम के इतिहासिक घोषणापत्र से शेष रह गये हैं। इन टेबल्स में एक साधारण समाज के लिए कृषि, निजी जीवन, दंड, धर्म आदि से संबंधित कानून हैं। इन टेबल्स को 450-451 साल ईसापूर्व उस समय संकलित किया गया जब समय की सरकार के अत्याचार के विरुद्ध विस्तृत पैमाने पर आपत्ति जताई जाने लगी तो सरकार के 10 प्रतिष्ठित व्यक्तियों पर आधारित एक प्रतिनिधि मंडल ने इसे तैयार किया और यह उन प्रगतियों का निचोड़ है जो 753 में रोम नगर की बुनियाद रखने के बाद 13 शताब्दियों के दौरान हुई है यहां तक कि JUSTINIAN के मरने तक और उसके बाद के काल में भी रोम के मानवाधिकार घोषणापत्र से लाभ उठाया गया।
प्राचीन यूनान के लोगों ने भी सुक़रात, अफलातून और अरस्तू जैसे विद्वानों के काल की सुन्दर संस्कृति व सभ्यता का दौर गुज़ारा है। इतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार इस बात में कोई संदेह नहीं है कि PERIcles के पैदा होने और अरस्तू के मरने के बीच का दौर विश्व के इतिहास का महत्वपूर्ण समय है। इतिहास का यह दौर यूनानी सभ्यता का शिखर काल है। उस काल में सरकारी कार्यों में लोगों की भागीदारी, नागरिक अधिकारों का प्राप्त होना, कानून का प्रभुत्व, न्याय, स्वामित्व और यूनानी समाज में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसी मानवाधिकार की बातें मौजूद थीं।