Jul १७, २०१६ १६:२१ Asia/Kolkata

सूरए मुरसलात का केन्द्रीय विषय प्रलय और नास्तिकों को डराना व चेताना है।

सूरए मुरसलात में अन्य विषयो की ओर भी संकेत किया गया है जिनमें पाप में लिप्त पिछली जातियों का दुखद अंजाम, मानव रचना की विशेषताएं, आदि शामिल हैं। सूरे का नाम मुरसलता इसकी पहली आयत के आधार पर रखा गया है। मुरसलात का अर्थ वह दूत हैं जो पैग़म्बर तक ईश्वर का संदेश लेकर लगातार आते रहते थे। इसी प्रकार इसका अर्थ वह तेज़ हवाएं भी हैं जो ईश्वर द्वारा चलाई जाती रहती हैं। इस सूरे में बार बार प्रलय की ओर ध्यान केन्द्रित कराने के साथ ही नास्तिकों को सचेत किया गया है। धिक्कार हो उस दिन झुठलाने वालों पर। यह बात सूरए मुरसलात में 10 बार दोहराई गई है।

 

क़सम है उन दूतों या हवाओं की जिन्हें बार बार भेजा जाता है। वह तूफ़ान की तरह आगे बढ़ती हैं। क़सम है उनकी जो बादलों को फैलाते हैं। और उनकी जो अलग करते हैं और क़सम है उनकी जो ईश्वर की सचेत करने वाली निशानियों को पैग़म्बरों के दिल में डालते हैं।

 

सूरए मुरसलात की शुरू की आयतों में हवाओं और तूफान की क़सम खाई गई है। इन हवाओं और तूफ़ानों का संसार में महत्वपूर्ण प्रभाव है। हवाएं बादलों को संचालित करती हैं और फिर उन्हें सूखी पड़ती धरती से जोड़ देती हैं और वर्ष होने के बाद उन्हें तितर बितर कर देती हैं। वनस्पतियों के बीजों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचा देती हैं। जिससे जंगल और चरागाहें बनती हैं तथा फूल खिलते हैं और फल लगते हैं। हवाएं जंगलों और चारगाहों से आक्सीजन भरकर शहरों में पहुंचती हैं तथा शहरों की दूषित हवा को शोधन के लिए जंगलों और पठारों में ले जाती हैं। हवाएं समुद्रों के पानी में लहरें उत्पन्न करती हैं तथा जल प्राणियों के लिए पानी में आक्सीजन भर देती हैं। वास्तव में हवाएं दुनिया और इंसान की बड़ी मूल्यवान सेवा करती हैं।

 

फ़रिश्ते ईश्वर का जो संदेश लेकर पैग़म्बरों के पास आते हैं वह वास्तव में बारिश की बूंदों की तरह जीवन की सौग़ात होती है। उनसे दिलों के भीतर सुकर्म और सदाचार की कलियां खिलती हैं। ईश्वर ने सूरे के शुरू में भौतिक पोषण करने वाले तथा आध्यात्मिक पोषण करने वाले माध्यमों की क़सम खाई है। अलबत्ता यह सारी क़समें एक विशेष बात बयान करने के लिए खाई गई हैं जिसका उल्लेख सूरे की सातवीं आयत में है। वह यह है कि हे लोगो तुमसे प्रलय के दिन के बारे में जो बात कही जा रही है वह पूरी तरह सच्चाई पर आधारित है। सज़ा, प्रतिफल, हिसाब, स्वर्ग, नरक सब कुछ सत्य है इनके बारे में किसी संदेह की गुंजाइश नहीं है। एक और बिंदु जिसका उल्लेख इन आयतों में भी किया गया है वह महान बदलाव है जो प्रलय के समय संसार में उत्पन्न होगा। तेज़ आंधिंया चलेंगी, भूकंप आएंगे, सितारे अंधकार में डूब जाएंगे, आसमान फटेगा, पहाड़ अपनी जगह छोड़ देंगे यह सब उस समय के बड़े बदलाव हैं। इन सारी बड़ी घटनाओं के बाद क़यामत आएगी। मुर्दे जीवित किए जाएंगे तथा ईश्वर की ओर से हिसाब किताब की अदालत लगेगी। वह अदालत जहां फ़रिश्ते इंसानों के कर्म पत्र खोलेंगे, नास्तिकों और मोमिनों को एक दूसरे से अलग करेंगें और हर गुट के बारे में ईश्वरीय आदेश की घोषणा करेंगे। इस बीच पैग़म्बर अपने अपने अनुयाइयों की गवाही के लिए आएंगे। यह दिन सत्य और असत्य का अंतर स्पष्ट हो जाने का दिन होगा। नास्तिकों और मोमिनों के एक दूसरे से अलग होने, सदाचारियों और कुकर्मियों के अलग होने और सबके साथ इंसाफ़ किए जाने का दिन होगा।

 

धिक्कार हो उस दिन झुठलाने वालों पर झुठलाने वाले वह हैं जिन्होंने क़यामत का इंकार किया। महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि जो क़यामत तथा ईश्वर की ओ से हिसाब किताब पर यक़ीन न रखता होगा वह बड़ी आसानी से गुनाह करेगा, अत्याचार और भ्रष्टाचार में लिप्त होगा। लेकिन यदि क़यामत के बारे में गहरा ईमान हो तो उसके भीतर सदाचारिता, कर्त्वय परायणता और सुकर्मों की भावना प्रबल होगी। इसी लिए क़यामत का इंकार करने वालों को क़ुरआन की आयतों में विभिन्न तरीक़ों से डराया गया है तथा उन्हें अतीत की घटनाओं के बारे में सोचने और पिछली जातियों के अंजाम पर विचार करने की बार बार दावत दी गई है। ईश्वर कहता है कि क्या हमने पिछली जातियों को जिन्होंने नास्तिकता का रास्ता अपनाया और अवज्ञा की, नष्ट नहीं कर दिया। इसके बाद हम अन्य अपराधियों को भी उन्हीं के गंतव्य की ओर भेजेंगे। हां हम अपराधियों के साथ इसी प्रकार पेश आते हैं। इन जातियों के चिन्ह इतिहास ही नहीं ज़मीन पर भी देखे जा सकते हैं।

 

आयत नंबर 20 इंसानों का ध्यान विशेषताओं से भरे संसार की ओर केन्द्रित करवाती है तथा ईश्वर की महानता और उसकी नेमतों की बहुतायत को दिखाती है ताकि उन्हें क़यामत का दिन लाने और हिसाब किताब करने की ईश्वर की शक्ति का आभास हो और दूसरी ओर वे स्वयं को अनंत ईश्वरीय अनुकंपाओं का ऋणी समझें तथा ईश्वर के सामने नतमस्तक रहें। ईश्वर कहता है कि क्या हमने तुमको तुच्छ और साधारण पानी से पैदा नहीं किया। फिर उसे पहले से तैयार स्थान अर्थात गर्भ में रखा वह स्थान जहां जीवन और पोषण व विकास की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। यह इतना रोचक, आश्चर्यजनक और सूक्ष्मता से काम करने वाला है कि इसके बारे में जानकर हर इंसान हतप्रभ रह जाता है।

 

इस विशालकाय संसार में ईश्वर की विभूतियों और निशानियों का उल्लेख उसकी अपार शक्ति व सामर्थ्य का प्रमाण है। इससे यह भी निष्कर्ष निलकता है कि ईश्वर क़यामत का दिन लाने की शक्ति भी रखता है। ईश्वर कहता है कि क्या हमने धरती को इंसानों के एकत्रित होने का स्थान नहीं बनाया उनके जीवन में भी और उनकी मौत के बाद भी। ज़मीन सभी इंसानों के शरण लेने का स्थान है। वह सभी सजीवों को अपनी गोद में एकत्रित कर लेती है और उनकी सभी ज़रूरतें पूरी करने के साधन व संसाधन अपने पास रखती है। धरती ने मुर्दों को भी अपने भीतर जगह दी है। यदि धरती मुर्दों को दफ़्न करने की संभावना उपलब्ध न कराती तो जीवित लोगों के लिए धरती पर ज़िंदा रह पाना कठिन हो जाता और वह घातक बीमारियों में ग्रसित हो जाते।

 

इसके बाद धरती पर ईश्वर की एक महान नेमत की ओर संकेत करते हुए कहा गया है कि हमने धरती में मज़बूत और ऊंचे पहाड़ बनाए हैं। आसमान की ओर सिर उठाए खड़े इन पहाड़ों की जड़े आम तौर पर एक दूसरे जुड़ी हुई हैं। उन्होंने ज़मीन को किसी ढाल की भांति ढांक रखा है तथा आंतरिक व बाहरी दबावों से उसकी रक्षा करते हैं और दूसरी ओर हवा के ज़मीन से टकराव के बीच में रुकावट बनते हैं। हवा से उलझ जाते हैं और उसे अपने गिर्द चकराने पर मजबूर कर देते हैं। पहाड़ तूफ़ानों को कंट्रोल करते हैं इससे भी धरती वासि शांति का आभास करते है।

 

यह सब होने के बावजूद वही लोग जो अपनी आंख से यह निशानियां देख रहे हैं और उन विभूतियों को महसूस कर रहे हैं जिनमें वह डूबे हुए हैं फिर भी क़यामत का इंकार करते हैं और उस पर ईमान नहीं लाते। सूरए मुरसलात की एक और विशेषता जिसका उल्लेख आयत नंबर 35 में है, यह है कि ईश्वर प्रलय के दिन पापियों और अपराधियों के मुंह बंद कर देगा और उन्हें माफ़ी मांगने की अनुमति नहीं होगी। न बात करने की अनुमति होगी न अपना बचाव करने का मौक़ा मिलेगा। क्योंकि वहां सारे तथ्य सामने  मौजूद होंगे और लोगों के पास कहने के लिए कुछ होगा ही नहीं। पापियों की ज़बान जिस तरह वह दुनिया में निरंकुशता से प्रयोग करते थे, पैग़म्बरों को झुठलाते थे, उनका मज़ाक़ उड़ाते थे, सत्य को असत्य और असत्य को सत्य बताते थे, क़यामत के दिन बंद कर दी गई जाएगी जो अपनी जगह पर एक दर्दनाक सज़ा है कि इंसान को ऐसे माहौल में अपने बचाव में कुछ बोलने या माफ़ी मांगने की अनुमति न हो।

 

उस समय ईश्वर कहेगा यदि तुम्हारे पास मेरे दंड से बचने का कोई रास्ता है तो प्रयोग करो। क्या तुम मेरी सत्ता के दायरे से बाहर भाग सकते हो। या हर्जाना देकर आज़ाद हो सकते हो। या हिसाब किताब करने वालों को धोखा दे सकते हो। जो भी कर सकते हो करो लेकिन याद रखो कि तुम्हारे बस में अब कुछ भी नहीं है।

 

क़ुरआन की आयतों में एक तरफ़ क़यामत को यौमुल फ़स्ल अर्थात अलग होने का दिन कहा गया है और दूसरी ओर इसे एकत्रित होने का दिन बताया गया है। यह दोनों ही चीज़ें अलग अलग चरणों में अंजाम पाएंगी। पहले सबको ईश्वरीय अदालत के समक्ष एकत्रित कर दिया जाएगा और लोगों की आस्थाओं और कर्मों के आधार पर उन्हें अलग अलग समूहों में बांट दिया जाएगा। स्वर्ग में जाने वाले लोगों की भी अलग अलग पंक्तियां होंगी और नरक में भेजे जाने वाले भी अलग अलग पंक्तियों में जाएंगे।

 

सूरए मुरसलात की 50वीं आयत कहती है कि क़ुरआने मजीद हर काल के लिए नया है जो पिछली जातियों के क़िस्से और अंजाम के बारे में बताता है और लोगों के दिलों में ईश्वर की याद ताज़ा करता है। यह आयत जो इस सूरे की अंतिम आयत है पापियों पर हुज्जत तमाम करती है और कहती है कि कुरआन में सब कुछ है। उसकी आयतों में सारे तथ्या बयान कर दिए गए हैं तो अब तुम किस चीज़ की खोज में हो। इसके बाद तुम किस कथन पर ईमान लाओगे। यदि क़ुरआन के माध्यम से तुम मार्गदर्शन प्राप्त न कर सके तो तुम्हारा विनाश निश्चित है क्योंकि इससे अधिक समग्र बात तुम्हें नहीं मिलेगी और यही क़ुरआन क़यामत के दिन तुम्हारे पापों और झुठलाने वाले रवैये की गवाही देगा।  

 

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