रविवार- 2 अगस्त
2 अगस्त सन 1790 ईसवी को अमरीका में पहली बार जनगणना हुई।
2 अगस्त सन 1858 ईसवी को आज ही के दिन ब्रिटिश सरकार ने 'गवर्मेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट' पारित किया।
2 अगस्त सन 1922 ईसवी को टेलीफ़ोन के आविष्कारक इलेग्ज़ेन्डर ग्राहम बेल का निधन हुआ।
2 अगस्त सन 1990 ईसवी को इराक ने कुवैत पर हमला किया।
2 अगस्त सन 1714 ईसवी को फ़्रांस के आविष्कारक डेनिस पापेन का निधन हुआ। उन्होंने गाड़ी के मोटर को संचालित करने के लिए भाप की शक्ति का प्रयोग किया। पापेन का यह आविष्कारक आगे चलकर बड़ी गाड़ियों और नौकाओं के अस्तित्व में आने का आधार बना।
2 अगस्त सन 1934 ईसवी को जर्मनी के तत्कालीन राष्ट्रपति और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मन सेनाओं के कमांडर फील्ड मार्शल हिन्डनबर्ग की मृत्यु हुई। वे 1925 में जर्मनी के पहले राष्ट्रपति के रुप में चुने गये। 1932 में भी जब हिटलर के पास बहुत शक्ति आ चुकी थी हिडंबर्ग राष्ट्रपति चुनाव में जीते किंतु एक वर्ष बाह उन्हें हिटलर को देश का राष्ट्राध्यक्ष चुनना पड़ा। हिडंबर्ग की मृत्यु के बाद हिटलर ने स्वयं को जर्मनी का अगुवा धोषित किया और उसने इसी के बाद से अपनी फाशिस्टी योजनाएं और विस्तारवादी कार्यक्रमों को पूरी शक्ति के साथ क्रियान्वित करना आरंभ कर दिया।
2 अगस्त सन 1990 ईसवी को इराक़ की अतिक्रमण कारी सेना ने अपने पड़ेसी देश कुवैत पर आक्रमण करके उस पर अतिग्रहण कर लिया। 1980 में ईरान पर आक्रमण के बाद यह इराक़ की इस प्रकार की दूसरी कार्रवाई थी। सददाम हुसैन की सरकार ने हमेशा से ही यह दावा किया कि कुवैत उसका 19वां प्रांत है।
सददाम हुसैन का प्रयास था कि तेल के बड़े भंडारों से सम्पन्न देश कुवैत पर अधिकार करके फार्स खाड़ी के क्षेत्र की सबसे बड़ी शक्ति बन जाए और अरब जगत का नेतृत्व उसके हाथ में आ जाए। किंतु कुवैत के विरुद्ध इस कार्रवाई पर विश्व ने बग़दाद के विरुद्ध कड़ी प्रतिक्रिया दिखाई विश्व के देशों और सुरक्षा परिषद ने इराक़ की इस कार्रवाई की आलोचना की और कुवैत से इराक़ी सेनाओ की वापसी की मांग की । इसी प्रकार कुछ देशों ने एराक़ के विरुद्ध कारवाई के लिए अमरीका के नेतृत्व में अपनी सेनाएं फार्स खाड़ी रवाना कीं। लगभग 7 महीनों तक चली वार्ता के बाद भी इराक़ कुवैत को छोड़ने पर तैयार नहीं हुआ। इस प्रकार से अमरीका के नेतृत्व में संयुक्त सेना ने इराक़ पर आक्रमण कर दिया जिसके बाद 28 फरवरी 1991 को एराक़ ने भारी आर्थिक और जनहानि उठाने के बाद कुवैत को छोड़ा।
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12 ज़िलहिज्जा सन 940 हिजरी क़मरी को इस्लामी जगत के विख्यात धर्मगुरु अली बिन हुसैन करकी आमिली का निधन हुआ। वे करकी के नाम से प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपने जन्म स्थान दक्षिणी लेबनान के जबले आमिल में शिक्षा आरंभ की। फिर अपनी धार्मिक जानकारियां को विस्तृत करने तथा शिक्षा पूरी करने के लिए इस्लामी देशों की यात्राएं की। वे इसी संदर्भ में ईरान आए और बड़ी ख्याति प्राप्त की। उस समय लिखी गयी अधिकांश पुस्तकों में उनका नाम बहुतायत से मिलता है। जामेउल मकासिद, शरहे शराया आदि उनकी मूल्यवान पुस्तकें हैं।