Sep ०३, २०१६ १४:५२ Asia/Kolkata

जैसा कि आप जानते हैं कि ईरानी हस्तकला उद्योग में बहुत विविधता है।

इनमें से हर एक शताब्दियों से ईरानी कलाकारों की रचनात्मकता की गवाही देती है। इन कलाओं में एक बुनाई की कला है। ईरान में प्रचलित बुनाई की कला की एक शाखा का नाम कमख़ाब या ब्रोकेड है।

 

कमख़ाब उस कपड़े को कहते हैं जो सोने के तारों से बुना जाता है या जिसका बाना सोने का होता है। कमख़ाब का कपड़ा बहुत ही सूक्ष्मता से बुना जाता है और बहुत क़ीमती होता है। इसका ताना शुद्ध रेशम का होता है जबकि बानों में एक बाना सोने या चांदी के तार का होता है और बाक़ी रंग बिरंगे रेशम का होता है।

कमख़ाब ईरान में बुनाई की शाखाओं में सबसे सूक्ष्म व उत्कृष्ट शाखा है जो अपने दौर में पूरी दुनिया में मशहूर थी। आज इस कला के नमूने दुनिया के बड़े बड़े म्यूज़ियमों की शोभा बढ़ा रहे हैं। कमख़ाब का इतिहास बहुत पुराना है। कहा जाता है कि ईरान में कपड़े की बुनाई के कारख़ानों का सबसे लाजवाब उत्पाद कमख़ाब है। आज तक कोई भी ईरानी कमख़ाब जैसा सुंदर व त्रुटिरहित कमख़ाब नहीं बिन सका।

 

ऐसे कपड़े का इतिहास कि जिनकी बुनाई रेशम के धागे से हुयी है, लगभग 7000 साल पुराना है। प्रसिद्ध यूनानी इतिहासकार हेरॉडटस ने लिखा है, “रोमी, ईरान के पारंपरिक कमख़ाब को, उसकी सुंदरता व साख के मद्देनज़र, हर साल बहुत ज़्यादा पैसों में ख़रीदते थे।”

इस बात में शह नहीं कि क़ालीन और गिलीम की तरह ईरान में कमख़ाब के कपड़ों की बुनाई हख़ामनेशी शासन काल से प्रचलित है। तख़्ते जमशीद, शूश और पासारगार्द में राजाओं और दरबारियों के कपड़ों के किनारे पर बने चित्र इन कपड़ों के कमख़ाब के बुने होने का पता देते हैं। इसके अलावा आस्तीनों और कॉलर पर शुद्ध सोने के टुकड़े के बने शेर, मुर्ग़ी, सितारे या पांच पत्तियों वाले फूल या त्रिकोण जैसे ज्यामितीय चित्र टांकते थे।

सासानी शासन काल के कमख़ाब के अनेक नमूने ईरान से बाहर के गिरजाघरों व म्यूज़ियमों में मौजूद हैं। सासानी शासन काल के कमख़ाब इतना लोगों को पंसद थे कि पूरी दुनिया में इसके ख़रीदार मौजूद थे। जब भी कोई ईरान का भ्रमण करता था तो अपने साथ अपने वतन कमख़ाब का टुकड़ा ले जाता था। प्राचीन ईरान के कमख़ाब के नमूने इस वक़्त दुनिया के मशहूर म्यूज़ियमों में रखे हुए हैं जैसे पेरिस के लूवर, सेंट विक्टर चर्च, लियोन, न्यूयॉर्क के मेट्रोपॉलिटन, लंदन, वॉशिंग्टन, सेंट पिटर्सबर्ग के आर्मिटेज और लेनिनग्राड के म्यूज़ियम में रखे हुए हैं।

कमख़ाब

 

हेरॉडटस और प्लूटार्क जैसे इतिहासकारों के अनुसार, सिकन्दर, ईरान से दुश्मनी के बावजूद ईरान में दाख़िल होने के बाद से मरते वक़्त तक ईरान के कमख़ाब का कपड़ा पहनता था। पारसियों की धार्मिक किताब अविस्ता में आया है कि ईरानी हख़ामनेशी शासन काल में कमख़ाब के कपड़े बुनते थे।

डॉक्टर मोहम्मद हसन ज़की ने अपनी किताब “इस्लाम के बाद ईरानी उद्योग” में हख़ामनेशी शासन काल में बुनाई के बारे में लिखते हैं, “उस दौर में ईरान में बुनाई की कला अपने चरम पर पहुंची। उस दौर के रेशम के बचे हुए कुछ नमूने, इस उद्योग की प्रगति का बेहतरीन नमूना हैं। उस दौर के बुनी हुयी चीज़ों में से जो चीज़ इस वक़्त यूरोप में मौजूद है वह एक प्रसिद्ध कपड़ा है जो फ़्रांस के सैमोएन्स शहर के ख़ज़ाने में रखा हुआ है। इस कपड़े पर एक व्यक्ति की तस्वीर इस हालत में है कि वह शेर का गला दबाते हुए दिख रहा है। बर्लिन के कोसेन्ट गोर्बे म्यूज़ियम एक और कपड़ा मौजूद है जिस पर हाथी का चित्र बना हुआ है।”

ईरान में इस्लाम के आगमन के बाद रेशम के बुने कमख़ाब के कपड़ों का पहनना वर्जित हो गया जिसके बाद से यह उद्योग फीका पड़ गया।

ईरान में आले बूवैह शासन काल को इस्लाम के बाद बुनाई की कला में फिर रौनक़ लौटने का दौर कहा जा सकता है। इस दौर के ऐसे रेशमी कपड़े मौजूद हैं जिन्हें दोनों ओर से पहना जा सकता है। ये कपड़े कला के उच्च नमूने को पेश करते हैं। इस दौर के रेशम के कपड़ों पर सासानी चित्र और इस्लामी डिज़ाइन कूफ़ी लिपि के बनाई गयी है।

कमख़ाब

सलजूक़ी शासन को भी ईरान में कला के फिर से फलने फूलने का दौर कहा जासकता है। इस दौर में कमख़ाब के कपड़ों पर बहुत ही जटिल चित्र बनाए जाते थे। इसी प्रकार उस दौर में कमख़ाब के कपड़ों पर शतरंज की बिसात की तरह डिज़ाइन बनी होती थी। इसी प्रकार दोनों ओर से पहने जाने वाले कपड़े बड़ी महारत के साथ बुने जाते थे। इस समय सलजूक़ी शासन काल के कमख़ाब के लगभग 50 कपड़ों के नमूने मौजूद हैं।

सलजूक़ी शासन के बाद ईरान पर सुदूर पूर्व से मंगोलों के हमले से सभी चीज़ तबाही के मुहाने तक पहुंची। मंगोलों के काल में जनसंहार और तबाही का प्रेत हटने का नाम नहीं ले रहा था। इसी प्रकार कलाकार भी अपनी कला को पेश करने का साहस नहीं जुट पा रहे थे और न ही शासन की ओर से प्रोत्साहन मिल रहा था। हालांकि मंगोलों के काल के अंतिम वर्षों में हालात थोड़ा बेहतर हुए किन्तु पहले जैसी रौनक़ कभी नहीं लौट पायी।

अमरीकी पूर्वविद् आर्थर पोप अपनी किताब ‘ईरानी कला के उत्कृष्ट नमूने’ में ईरान पर मंगोलों के वर्चस्व के काल में बुनाई के क्षेत्र में हुए पिछड़ेपन का उल्लेख किया है। उनका मानना है, “मंगोलों के वर्चस्व के का हालांकि कुम्हारी और धातु के काम पर उल्लेखनीय प्रभाव नहीं पड़ा किन्तु कपड़े की डिज़ाइन पूरी तरह बदल गयी। इस्लाम से पहले प्रचलित चित्र पूरी तरह छोड़ दिए गए। डिज़ाइन की पृष्ठिभूमि के लिए तेज़ रंग यहां तक कि सफ़ेद रंगों का प्रयोग छोड़ दिया गया। इसके स्थान पर पृष्ठिभूमि के लिए गाढ़े और गहरे रंगों का चयन प्रचलित हो गया। यहां तक कि काम करने की शैली भी बदल गयी। कपड़ों की बुनाई की शैली लगभग एक जैसी हो गयी। इस दौर की ज़्यादातर डिज़ाइनों के स्रोत का पता नहीं है। हिंसा से भरी चीनी व मंगोली शैली का कपड़े की बुनाई पर असर पड़ा। तैमूरी शासन काल में बुनकरों को विभिन्न शहरों से समरक़न्द भेजा जाने लगा ताकि वहां काम करें। स्पष्ट है कि तैमूरी आदेश व शैली के नतीजे में जो चीज़ सामने आयी, वह इस कला की प्रगति में योगदान नहीं दे सकी।”        

कमख़ाब

 

मानव जीवन के इतिहास में उतार-चढ़ाव आम बात है लेकिन इस अंधकारमय दौर के बाद सफ़वी शासन काल, ईरानी कला व सभ्यता के चरम का काल रहा है। सफ़वी राजाओं की ओर से कलाकारों को प्रोत्साहन ने बुनाई कई नया जीवन दिया। इस बात में शक नहीं कि सफ़वी दौर के कलाकार ख़ास तौर पर पर शाह अब्बास के दौर में बुनकरों ने ऐसे बेजोड़ कपड़े बुने कि उसकी मिसाल पूरी दुनिया में बुनाई कला में नहीं मिलती।

 

अफ़ग़ानों के हाथों सफ़वियों के पतन से ईरानी कला का द्वीप बुझ गया। अफ़शारी, ज़न्दी और क़ाजारी शासन श्रंख्लाओं ने कला को बचाने के लिए कुछ नहीं किया। क़ाजारी काल को बुनाई उद्योग और हाथ से बुने जाने वाले पारंपरिक कपड़ों के उद्दोग के लिए सबसे बुरा दौर कहा जाता है। यह वह दौर है जब यूरोप में बुनाई उद्योग के क्षेत्र में बहुत बड़ी क्रान्ति उत्पन्न हुयी। तत्कालीन राजाओं की इजाज़त से अवसरवादियों ने देश में रूसी और यूरोपीय उत्पादों की सस्ती क़ीमत में भरमार कर दी जिससे स्वदेशी कपड़ों की बुनाई के मार्ग में रुकावट पैदा हुयी। उस समय उद्योगपतियों और कलाकारों को न तो प्रोत्साहित किया जाता और न ही उनके पास अपने उत्पाद को बेचने के लिए बाज़ार था। नतीजे में इन लोगों ने काम करना छोड़ दिया। इस प्रकार कई हज़ार साल पुरानी कमख़ाब की कला भुला दी गयी।

 

पहलवी शासन काल के शुरु में किसी को कमख़ाब, मख़मल और क़ीमती कपड़ों की बुनाई में रूचि न थी सिर्फ़ कुछ परिवार थे जो अपने घर में इन कपड़ों को बुनते और ऊंची क़ीमत पर बेचते थे। काशान भी इसी तरह का एक शहर था जहां के विविधतापूर्ण कपड़ों की प्राचीन समय से शोहरत थी। इस शहर में कमख़ाब कला के माहिर कलाकार उस्माद मोहम्मद ख़ान नक़्शबंद ने इस कला को दुबारा जीवन दिया और अपने बच्चों को यह कला सिखाई। पहलवी शासन काल में दरबारियों को कमख़ाब के कपड़ों की ज़रूरत के कारण चाहे यह ज़रूरत पहनने या उपहार देने के लिए थी, एक बार फिर कमख़ाब के कपड़े की मांग बढ़ी और ये कपड़ा फिर से विभिन्न स्तर पर बुना जाने लगा।

कमख़ाब

इस्लामी क्रान्ति के बाद चूंकि कमख़ाब के कपड़े की ज़रूरत महसूस नहीं हुयी इसलिए इसकी बुनाई सीमित हो गयी। इस वक़्त इस कला को सजावट की श्रेणी में रख दिया है। इस वक़्त कमख़ाब कपड़े के बुनने की कला तेहरान में सांस्कृतिक धरोहर संगठन के कमख़ाब के कारख़ाने, इस्फ़हान के सुदंर कला कॉलेज और काशान के सांस्कृतिक धरोहर केन्द्र में सिखाई जाती है। इस कला के उस्ताद इस मूल ईरानी कला को रूचि रखने वाले जवानों को सिखा रहे हैं।