ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-45
ईरान में ज़री के जो कपड़े बनाए जाते थे उनको सोने और रेशम के कपड़ों से तैयार किया जाता था।
यह बहुत मूल्यवान हुआ करते थे। इनके मूल्यवान होने का कारण केवल यह नहीं है कि वे सोने के बने हुए होते हैं बल्कि इसकी बुनाई में जो जटिलता है उसके कारण इसके महत्व में वृद्धि हुई है। इसकी बुनाई में बहुत ही सूक्ष्मता की आवश्यकता होती है। ज़री या ब्राकेड का काम करने के लिए पांच से छह मीटर के एक यंत्र की आवश्यकता होती है। इसके बिना ब्राकेड का काम संभव नहीं है।
ज़री का काम, जिसे ब्राकेड या कमखाब भी कहा जाता है, ईरान में हख़ामनशी काल से प्रचलित है। उस काल में ज़री के जो कपड़े तैयार किये जाते थे उनका रंग अधिकतर नीला, लाल, चाकलेटी, सफेद, हल्का पीला और ऊदे रंग का होता था। इनपर विभिन्न प्रकार के फूल और पत्ते या जानवरों के चित्र बनाए जाते थे।
सासानी काल में ज़री के काम में जिस कला का प्रयोग किया जाता था वह अपने चरम को पहुंच चुकी थी। इस काल में प्रचलित ज़री के काम में कपड़ों पर विभिन्न प्रकार के पशु पक्षियों, घुड़सवारों, शिकारियों और त्रिकोण या चौकोर आकारों को बनाया जाता था। जिन रंगों का प्रयोग किया जाता था उनमें सामान्यतः नीले, हरे, सफेद, काले और पीले रंग होते थे।
सलजूक़ी काल के कलाकारों में गहरे रंग प्रयोग करने का रुझान नहीं था और वे सामान्यतः हल्के रंगों का प्रयोग किया करते थे। वे लोग काले और हरे रंगों को अधिक प्रयोग करते थे जिसके बाद सफेद और लाल रंग का प्रयोग भी किया जाता था। उस काल में ईरान में प्राचीन काल में प्रचलित डिज़ाइनों को प्रयोग किया जाता था जैसे मोर, बाज़, जलमुर्ग़ी, ख़रगोश और हरी भरी वनस्पतियां आदि। इस काल के बुनाई करने वाले अपनी कला में प्राकृतिक दृश्यों को भी प्रदर्शित करते थे।
सफ़वी काल में ज़री का काम करने वाले शाहनामें की कहानियों के चित्रों को प्रस्तुत किया करते थे जैसे वे जंगल में शिकार की हालत में किसी शहज़ादे को दिखाते या फिर पशु पक्षियों और फूलों का चुनाव किया करते थे। उस काल के कलाकार जिन रंगों का प्रयोग करते थे वे अधिक्तर नीले, हरे, नारंजी, काले, सफेद, सुरमई, चाकलेटी या बैगनी हुआ करते थे।
उस काल में ज़री के काम से जो कपड़े बनकर तैयार होते थे उनको राजा महाराजा, मंत्री या धनवान लोग ही प्रयोग करते थे। इसके अतिरिक्त इनको एक मूल्यवान उपहार के रूप में भी पेश किया जाता था। ईरान के राजा दूसरे देश के शासकों को यह कपड़े उपहार स्वरूप दिया करते थे। ईरान में बने ज़री के कपड़े बाद में यूरोप भी पहुंचे। पहले तो वे व्यापार के माध्यम से यूरोप पहुंचे किंतु बाद में सलीबी युद्ध के दौरान ईसाई योद्धा इन कपड़ों को फ़िलिस्तीन से यूरोप ले गए। उनकी दृष्टि में इन कपड़ों का महत्व बहुत अधिक था। यहां तक कि वे लोग गिरजाघर की पवित्र वस्तुओं को इन कपड़ों में लपेटकर रखा करते थे। उस काल में बहुत से यूरोपवासी ज़री से बने कपड़े को कफन के लिए प्रयोग करते थे। कुछ ईसाई योद्धा ईरान के बने ज़री के कपडों को बेचकर धनवान हो गए थे। आरंभ में यूरोप वासियों को यह पता नहीं चल सका कि यह सुन्दर और मूल्यवान कपड़े कहां के हैं। उन्होंने मात्र यह सुन रखा था कि यह पूरब के हैं किंतु बाद में उनको पता चला कि यह कपड़े ईरान में बनाए जाते हैं।
सफ़वीकाल में ईरान में कपड़ा बनाने के मुख्य केन्द्र के रूप में काशान, इस्फ़हान, यज़्द, तबरीज़, रश्त, मश्हद, क़ुम, सावे और हरात जैसे शहरों का नाम लिया जा सकता है किंतु इनमें काशान, यज़्द और इस्फ़हान अधिक प्रसिद्ध हैं। यहां पर बनाए जाने वाले ज़री के कपड़ों को अधिक ख्याति मिली।
प्रमाणों से सिद्ध होता है कि ईरान में अब्बास सफ़वी के काल में ज़री के जो कपड़े बनाए जाते थे उनकी मिसाल इतिहास में नहीं मिलती। उस काल के कपड़ों पर भी पशु पक्षियओं और फूलों एवं वनस्पतियों का प्रयोग मिलता है किंतु अन्य कालों की तुलना में इनकी गुणवत्ता बहुत अच्छी है। सफ़वी काल के ज़री के कपड़ों को देखकर उसकी उच्च गुणवत्ता का अनुमान लगाया जा सकता है।
ज़री या ब्राकेड के काम में शुद्ध रेशम का प्रयोग किया जता है। इसमें सोने और चांदी के तारों का प्रयोग बहुत ही दक्षता के साथ किया जाता है। इस कला की विशेषता यह है कि इसको बुनने वाला कम रंगों का प्रयोग करके सुन्दर कपड़ा बनाए।
इसकी बुनाई के लिए पहले तो शुद्ध रेशम का चयन किया जाता है। इसको बनाने में जिस पदार्थ का प्रयोग सबसे महत्वपूर्ण है वह है गोलाबतून अर्थात गोटा। ज़री के काम या ब्राकेड में गोटे का अधिक प्रयोग किया जाता है। कहते हैं कि ब्राकेड के डिज़ाइन में जो चीज़ उसके महत्व को अधिक बढ़ाती है वह गोटा ही है। इसके प्रयोग से इस कला में चार चांद लग जाते हैं। ब्राकेड के काम में जिस गोटे का प्रयोग किया जाता है उसमें शुद्ध रेशम के साथ ही सोने के तार को भी इस्तेमाल होता है। ईरान में ब्राकेड के काम में जो गोटा प्रयोग किया जाता है वह दो प्रकार का होता है। एक ईरानी और दूसरा ग़ैर ईरानी। जो गोटा ईरानी होता है वह केवल इस्फ़हान में बनता है जबकि ग़ैर ईरानी गोटा भारत से आता है।
रेशमी कपड़ों को रंगने में वनस्पति से बने रंगों का प्रयोग किया जाता है जिसके कारण इनमें विशेष प्रकार का आकर्षण पैदा हो जाता है। इसमें जिन रंगों का प्रयोग किया जाता है उनको पेड़ों के तनो, पत्तो, फूलों, फलों या फलों की खाल से लिया जाता है। उदाहरण स्वरूप अख़रोट की छाल, हल्दी, अनार की छाल, केसर या इसी प्रकार की अन्य वनस्पतियां और फल आदि।
ज़री से बनाए गए कपड़े देखने में बहुत सुन्दर होते हैं किंतु इनकों अधिक समय के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता। इन कपड़ों को सामान्यतः बड़े बड़े उत्सवों में ही पहना जाता है। इनकी विशेषता यह है कि यह वर्षों तक बाक़ी रहते हैं और जल्दी ख़राब नहीं होते।
पुरानी किताबों के अध्धययन से यह पता चलता है कि ज़री से बनाए गए वस्त्रों का प्रयोग आम लोग नहीं करते। इसका मुख्य कारण इनका मंहगा होना है। यही कारण है कि राजा महाराजा या धनवान लोग ही इन कपड़ों को प्रयोग किया करते थे। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ज़री या ब्राकेड का काम बहुत ही सूक्षम और सुन्दर है जिसे विश्वख्याति प्राप्त है।