ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-47
जैसाकि आप जानते हैं कि कपड़ा पहनने का इतिहास भी मानव सभ्यता का एक भाग है।
यह ऐसा इतिहास है जिसके अन्तर्गत प्राचीनकाल से लेकर अबतक पहनावे या पहने जाने वाले कपड़ों में होने वाले परिवर्तनों की समीक्षा की जाती है। किसी भी समाज में इस दृष्टि से किये जाने वाले शोध से उस काल के लोगों से संबन्धित बहुत सी महत्वपूर्ण बातों का पता चलता है। इस प्रकार हमें किसी सीमा तक उन लोगों की सोच का भी अनुमान लग जाता है। ईरान में पहनावे से संबन्धित शोध को तीन भागों में विभाजित किया गया है। इसमें एक काल इतिहास से पूर्व का है। दूसरा काल हख़ामनशी काल से इस्लाम के उदय तक है जबकि तीसरे काल का आरंभ इस्लाम के उदय से होता है।
ईरान में पहनावे या पोशाक से संबन्धित जो प्रमाण मिलते हैं उनके संबन्ध 4200 वर्ष ईसापूर्व से है। यहां पर पाया जाने वाला प्राचीनतमक नमूना, एक मूर्ति है जिसपर कपड़ा दिखाई देता है। इस पहनावे का संबन्ध ईरान के पठारी क्षेत्र के लोगों से है। वास्तव में यह एक कपड़ा है जिसे कमर के चारों ओर लपेटा गया है। इससे यह पता चलता है कि उस काल के लोगों ने, पशुओं की खाल से बनी वस्तुओं का प्रयोग छोड़ दिया था और वे संभवतः स्वयं कपड़ा बनाने लगे थे। इससे यह बात भी पता चलता है कि उस काल में कपड़ों को बदन से लपेटा जाता था और सिलाई की कला अभी विकसित नहीं हो पाई थी।
प्राचीन कपड़ों का एक अन्य उदाहरण लगभग तीन हज़ार वर्ष ईसापूर्व से है। यह एक प्रकार की शाल है जिसे शरीर के ऊपरी भाग पर लपेटा गया है। इसमें शाल का एक भाग गर्दन के ऊपनी भाग पर है जबकि दूसरा भाग नीचे की ओर लटका हुआ है।
हख़ामनशी काल से संबन्धित अवशेषों या पेंटिग्स में ध्यानयोग्य बिंदु यह है कि किसी भी अवशेष या पेंटिंग में मनुष्य नंगा नहीं दिखाई दे रहा है। इससे यह बात समझ में आती है कि हख़ामनशी काल में नग्नता को बहुत ही बुरी नज़र से देखा जाता था। यही कारण है कि उस काल के चित्रों में नंगा इंसान नहीं दिखाई देता। इस संबन्ध में एक यूनानी लेखक एवं दर्शनशास्त्री “गेज़नफ़ून” लिखते हैं कि कुरूश ने इस पहनावे को माद से लिया था। उसने अपने सभी कर्मचारियों को इनके पहनने का आदेश दिया था। उसका यह मानना था कि कपड़े, मनुष्य की शारीरिक बुराइयों को छिपाते हैं और इनके पहनने से वह अच्छा दिखने लगता है।
ईरान के प्राचीन क्षेत्रों से खुदाई के दौरान कोई भी कपड़ा नहीं मिला बल्कि शहरे सूख़्ते या बर्नसिटी में इसके कुछ छोटे नमूने मिले हैं। बर्नसिटी, एक अति प्राचीन क्षेत्र है जो ईरान के दक्षिण पूर्व में स्थित है। यहां का इतिहास कम से कम पांच हज़ार वर्ष पुराना है। यहां पर की जाने वाली खुदाई में धातुओं, पत्थरों और कच्ची मिटटी की मूर्तियों पर कुछ कपड़े मिले हैं। उदाहरण स्वरूप इनमें से एक महिला की मूर्ति है जिसके सिर पर मटकी है। इस महिला को पानी ले जाते हुए दिखाया गया है। इसमें महिला को ऐसा कपड़ा पहने हुए दिखाया गया है जिसे उसने अपने शरीर पर लपेट रखा है। इसके अतिरिक्त एक अन्य मूर्ति में दूसरे प्रकार का कपड़ा पहने महिला को दिखाया गया है। इस प्रकार के कपड़े सामान्यतः पूर्वी ईरान के क्षेत्रों जैसे ख़ुरासान में पहने जाते थे। यह एक प्रकार की साड़ी है जो भारत में पहनी जाती है। दोनों महिलाओं के कपड़ों से पता चलता है कि उस काल में लंबे कपड़े पहने जाते थे जिनको वे लोग शरीर पर लपेटा करते थे।
बर्नसिटी में की जाने वाली खुदाई में पुरूषों के भी कुछ कपड़े मिले हैं जो यह बातते हैं कि वहां के लोग तहमद या धोती के प्रकार के कपड़ों का प्रयोग किया करते थे किंतु एक कच्ची मिट्टी की एक मूर्ति पर एक अन्य प्रकार की पोशाक दिखाई गई है। इसमें व्यक्ति को एक एसे पहनावे में दिखाया गया है जो ऊपर से नीचे तक एक ही जैसा है। इस प्रकार के कपड़े सामान्यतः मध्यपूर्व में धर्मगुरू पहनते हैं जिसे धर्मगुरूओं से संबन्धित बताया जाता है।
बर्न सिटी में खुदाई के दौरान मिलने वाले कपड़ों की एक विशेषता यह है कि वहां के लोग अपने कपड़ों को सजाया करते थे अर्थात वे कढ़ाई करने लगे थे। उदाहरण स्वरूप वहां पर एक महिला की क़ब्र मिली है। इसमें जो कपड़े मिले हैं वे बहुत ही मंहगे छोटे पत्थरों से सजे हुए हैं। हालांकि इस महिला के कपड़ों पर लगे मंहगे पत्थर और बेलबूटे यह दर्शाते हैं कि वह कोई सामन्य महिला नहीं रही होगी।
ईरान के शहरे सूख़्ते या बर्न सिटी में खुदाई के दौरान जूते के फीते भी मिले हैं जिससे इस बात का पता चलता है कि वहां के लोग जूतों का प्रयोग किया करते थे। इसके अतिरिक्त खुदाई में वहां से बेल्ट भी मिली है और यह ठीक वैसी ही है जैसी वर्तमान समय में प्रयोग की जाती है जिसके भीतर छेद होते हैं। वहां पर मिलने वाली वस्तुओं से यह समझ में आता है कि बर्नसिटी के लोग, उस समय एक विकसित जीवन व्यतीत कर रहे थे।
सासानियों के काल में पोशाक या पहनावे से संबन्धित शोध का महत्वपूर्ण स्रोत, “ताक़े बुस्तान” है। इसमें सासानी काल से संबन्धित विभिन्न शैलियों की लगभग 25 प्रकार की पोशाकें पाई जाती हैं। इसके अतिरिक्त वहां पर उस काल की प्रचलित टोपियां भी मौजूद हैं। इसमें एक एसी पोशाक भी देखने को मिलती है जिसकी आस्तीनें लंबी हैं और यह महीन या हल्के कपड़े की बनी हुई है। इसका डिज़ाइन इस प्रकार का है कि यह नीचे की ओर आकर पतली हो गई है, ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार से वर्तमान समय में टाइट जीन्स होती है।
सासानी काल की प्रचलित पोशाकों में से एक पोशाक, लांग कोट की तरह का परिधान है। इसकी लंबाई घुटनों तक की है। उस काल के कपड़ों पर बेलबूटों और कढ़ाई का काम भी दिखाई देता है।
इतिहासकारों और लेखकों के लेखों तथा खुदाई के दौरान मिलने वाले अवशेषों के अध्ययन से यह पता चलता है कि इस्लाम के आरंभिक काल में ईरान में लोग, स्थानीय कपड़े प्रयोग करते थे जो प्राचीनकाल से चले आ रहे थे किंतु महिलाएं, घर से बाहर निकलते समय मक़ना, बुर्क़ा या चादर का प्रयोग किया करती थीं। घरों में महिलाएं जिस प्रकार की पोशाक पहनती थीं वह लंहगे जैसी होती थी। वैसे ईरान में महिलाएं घर से बाहर चादर ओढकर या ओढ़नी में ही निकला करती थीं किंतु इस्लाम के उदय के बाद ईरान में “मक़ने” का भी चलन आरंभ हुआ। वर्तमान समय में महिलाएं अपना शरीर ढंकने के लिए जिन पोशाकों या कपड़ों को प्रयोग करती हैं वे पहले की तुलना में अधिक कढ़े हुए होते हैं। आरंभिक काल में पर्दा करने के लिए बहुत सी सादी चादरें या मक़ने प्रयोग किये जाते थे जो अब उतने सादे नहीं रह गए। इनमें बेलबूटे और डिज़ाइनिंग बढ़ गई है। विशेष बात यह है कि ईरान में महिलाएं प्राचीनकाल से पर्दा करती आई हैं जो वर्तमान समय में भी प्रचलित है।