ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-49
कपड़ों को सजाने के लिए सुई कला की मदद ली जाती है और इससे कपड़ों पर सुंदर डिज़ाइनें बना दी जाती हैं।
इसके लिए सादा कपड़े का टुकड़ा लिया जाता है और उस पर विभिन्न प्रकार की आकृतियां उभारी जाती हैं।
ईरान में कला से लगाव और इस मैदान की दक्षता बहुत अधिक रही है अतः रंग बिरंग कपड़ों को सुईकला के माध्यम से सजाने के साथ ही और भी बहुत से काम किए जाते रहे हैं। कलाकार प्राचीन काल से ही सादे कपड़ों को सुई कला से अत्यंत सुंदर बना देते थे और अपनी सुंदर कला से लोगों को चकित कर देते थे। इस्लाम का आगमन होने के बाद सुई कला का रिवाज और बढ़ गया। इसफ़हान में इस समय भी सुई कला के अनेक रूप प्रचलित हैं। कभी कभी दो शैलियों के मिश्रण से सुई कला का कोई नया रूप निकाला जाता है। यह कला अधिकतर जानमाज़, क़ुरआन के ग़िलाफ़, मेज़पोश और रूमाल पर नज़र आती है। इसमें मेहराब और फूलों सहित अनेक आकृतियां बनाई जाती हैं।
सुई कला के लिए कच्चे माले के रूप में कपड़े, धागे, सुई तथा कुछ आंशिक चीज़ों का प्रयोग किया जाता है। मूल रूप से सुईकला की डिज़ाइनों में दो प्रकार दिखाई पड़ते हैं जिनके अंतर को सरलता से समझा जा सकता है। बहुत से विशेषज्ञ तख़्ते जमशीद के अवशेषों तथा दक्षिण पश्चिमी ईरान के शूश क्षेत्र में मिलने वाली प्राचीन टाइलों को देखकर इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि दरबारी लोग तथा उनके सुरक्षाकर्मी हमेशा सुईकला से सुसज्जित वस्त्र धारण करते थे। इसके अलावा ईरान के विभिन्न भागों से पत्थर की अनेक प्रतिमाएं मिली हैं जिन पर एसे इंसानों को उकेरा गया है जो सुई कला से सुसज्जित सुंदर वस्त्र पहने हुए हैं। कई इतिहासकारों ने एक कहानी का उल्लेख किया है, यदि यह कहानी सही है तो माना जा सकता है कि हख़ामनेशी काल में सुईकला अपने चरम पर थी। इस कहानी में बताया गया है कि ईरान पर अधिकार कर लेने के बार सिकंदर को ईरान की सुईकला देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ उसे यह कला बहुत पसंद आई। सिकंदर ने बहुत बड़ी मात्रा में सुईकला से सुसज्जित कपड़े यूनान में रहने वाले अपने मित्रों के लिए उपहार स्वरूप भिजवाए।
तख़्ते जमशीद की शिकलाकृतियों पर बनी डिज़ाइनों, शूश की टाइलों तथा अन्य पुरातन अवशेषों के अनुसार हख़ामनेशी काल में सुई कला से आम तौर पर पशुओं, फूलों और ज्योमितीय आकृतियों को उभारा जाता था। इसी प्रकार कुछ ऐसी आकृतियां भी थीं जो धार्मिक आयाम को उद्धारित करने वाली थीं। ईरान की सुई कला की छह महत्वपूर्ण क़िस्में हैं। एक सुई कला तो इस प्रकार की होती है कि कपड़े पर इतना अधिक काम किया जाता है कि उसकी पृष्ठ भूमि छिपकर रह जाती है। सुई कला की एक अन्य क़िस्म यह होती है कि उसमें पृष्ठ भूमि अपने असली रंग में दिखाई देती है। एक सुई कला वह है जो धागों को एक भाग से दूसरे भाग की ओर खींच कर आकृतियां बना देती है। सुई कला की एक क़िस्म यह है कि उसमें धातु को धागे के रूप में प्रयोग किया जाता है। धातु के तारों को कपड़े के धागों से गुज़ार कर डिज़ाइन बनाए जाते हैं यह भी सुई कला की एक क़िस्म है। एक सुई कला वह है जिसमें सुई और धागे के साथ अन्य वस्तुओं को भी सजावट के लिए प्रयोग किया जाता है।
सुई कला में बनाई जाने वाली आकृतियां अधिकतर ज्योमितीय होती हैं। जबकि रंगों में लाल, हरे, पीले, सफ़ेद, काले और सुरमई रंग का प्रयोग किया जाता है। सुई कला को वस्त्र की आसतीनों के सिरों, शलवार, चादर, स्कार्फ, मेज़पोश, कुशन के गिलाफ़ों और जानमाज़ के किनारों को सजाने के लिए प्रयोग किया जाता है। सूज़नदूज़ी या सुईकला में प्रयोग किए जाने वाले धागों की भी अनेक क़िस्में हैं। इनमें रेशमी धागे, ऊनी धागे, सूती धागे तथा दूसरे भी कई प्रकार के धागे प्रयोग किए जाते हैं। सुईकला अलग अलग क्षेत्रों के आधार भी बंटी हुई है और हर क्षेत्र की सुईकला अपनी अलग विशेषता और पहिचान रखती है।
मशहूर सुईकलाओं में एक तुर्कमन सुईकला है। इसको सियाह दूज़ी भी कहा जाता है। अतीत काल में इसका बहुत अधिक प्रयोग था। पारम्परिक तुर्कमन समाज में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की पोशाकों इसी प्रकार घरों के पर्दों को सजाने के लिए सुईकला का प्रयोग किया जाता था लेकिन अब यह कला केवल महिलाओं के वस्त्रों पर दिखाई देती है। यह बड़ी सूक्ष्मता और बारीकी से किया जाने वाला काम है और तुर्कमन इसको सांजीम कहते हैं। इसमें अधिकतर ज्योमितीय आकृतियां बनाई जाती हैं और कलाकार अपनी निपुणता का प्रदर्शन करता है।
अनेक प्रकार के धागे जैसे रेशमी और सूती धागे जो प्राकृतिक रूप से तैयार किए जाते हैं इसी तरह कुछ कृत्रिम धागे बनाए जाते हैं और फिर उनकी मदद से रेशमी और ऊनी कपड़ों पर सुई कला की आकृतियां उभारी जाती हैं। रेशमी कपड़ों से आम तौर पर महिलाओं के वस्त्र और ऊनी कपड़ों से पुरुषों के कपड़े बनाए जाते हैं। तुर्कमन सुईकला में आम तौर पर वह फूल और आकृतियां बनाई जाती हैं जो कलाकार के आस पास मौजूद होती हैं। फूल पत्तियों के अलावा, बिच्छू, पक्षियों के पर, बाग़, पेड़, टहनियां इस प्रकार की चीज़ें तुर्कमन सुईकला में देखी जाती हैं। गुंबद काऊस, बंदर तुर्कमन, आक़ कला व कलाले तथा गुलिस्तान में तुर्कमन सूज़नदूज़ी बहुत अधिक प्रचलित है।
बलोचिस्तान ईरान का दक्षिण पूर्वी क्षेत्र है। इस क्षेत्र के लोग बड़े मेहनती और जुझारू होते हैं। यह क्षेत्र हस्तकला उद्योग के महत्वपूर्ण केन्द्रों में से एक है। इस हस्तकला को बलोच महिलाओं की आंखों की ज्योति कहा जाता है। बलोच सुई कला भी इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण हस्तकलाओं में है। इस क्षेत्र की महिलाएं अपनी दक्षता का प्रदर्शन इस कला द्वारा इस प्रकार करती हैं कि हर देखने वाला हतप्रभ रह जाता है। एसी अदभुत और अनूठी आकृतियां कपड़ों पर बना देती हैं कि देखने वाले व्यक्ति के लिए उससे नज़र हटाना कठिन हो जाता है। बलोचिस्तान के गावों और शहरों में शायद ही कोई महिला और किशोरी एसी होगी जो हस्तकला में निपुण न हो। क्योंकि बलोच लड़कियां छोटी आयु से ही घर के काम सीखने के साथ ही हस्तकलाएं भी ज़रूर सीखती हैं। इसी लिए बलोच महिलाएं 10 साल से लेकर 45 साल की आयु तक सुईकला के क्षेत्र में अपनी दक्षता का प्रदर्शन करती देखी जा सकती हैं। बलोच सुई कला के लिए कच्चे माल के रूप में केवल दो चीज़ों की ज़रूरत होती है, धागा और कपड़ा। बलोच महिलाएं डीएमसी या पाकिस्तानी धागे प्रयोग करती हैं। यह महिलाएं जो कपडा प्रयोग करती हैं वह या तो सूती कपड़ा होता है या ईरानी गांधी कहा जाने वाला विशेष कपड़ा होता है जो ज़ाहेदान के क्षेत्र में बुना जाता है।
बलोच कलाकार अधिकतर अलग अलग अपना काम करती है लेकिन कभी कभी वह सामूहिक रूप से भी काम करती हैं। सामूहिक रूप से काम करना होता है तो आम तौर पर उसका तरीक़ा यह होता है कि एक कलाकार किसी एक रंग के धागे से अपने हिस्से का काम पूरा करने के बाद उसे दूसरी कलाकार के हवाले कर देती है और वह अपने रंग और अपने हिस्से का काम पूरा करती है। यह क्रम कढ़ाई का काम पूरा हो जाने तक जारी रहता है। बलोच महिलाओं की इस कला का वैभव लंबे बलोच लिबास में देखा जा सकता है जो बड़ी मेहनत से तैयार होता है।
निश्चित रूप से तो नहीं बताया जा सकता कि सुई कला की शुरुआत कब से हुई लेकिन चूंकि इस कला का प्रकृति से गहरा संबंध है अतः यह कहा जा सकता कि यह कला बलोच कलाकारों के स्वभाव का भाग है। यहां तक कि बलोच महिलाओं को उनकी सुई कला और सुई कला को बलोच महिलाओं का पर्याय माना जाता है।
चूंकि हस्तकला उद्योग संस्था ने बलोच सुईकला को प्रचारित करने के लिए प्रभावी रूप से काम किया है अतः इस कला के नमूने अब इस प्रांत से बाहर निकलकर विश्व स्तर पर फैल गए हैं और इनकी ख्याति दुनिया भर में है। ईरानी कलाओं से लगाव रखने वाले लोग बलोच सुईकला के नमूनों को बहुत पसंद करते हैं। यही कारण है कि बलोच सुई कला के उत्पाद बड़ी मात्रा में तैयार किए जाते हैं और उन्हें दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों को निर्यात किया जाता है।