Oct ३१, २०१६ १६:३८ Asia/Kolkata

ईरानी कलाकारों के योगदान ऐसी कला है जिसमें उपयोगी वस्तुओं के निर्माण के कारण यह कला एक हस्तउद्योग में परिवर्तित हो गयी और इस क्षेत्र के कलाकारों के पूरी दुनिया में चर्चे हैं।

वर्ष 1992 में ईरान के शहर ज़ंजान के निकट खनिक जब खुदाई कर रहे थे और इस क्षेत्र में खुदाई करके नमक निकालने का प्रयास कर रहे थे तभी उन्हें एक अधूरा शरीर मिला। इस शरीर के लंबी दाढ़ी और बाल थे तथा उसके कान में सोने का बुंदा था। उसी समय से इस क्षेत्र में खुदाई शुरु हुई जिसके बाद एक चमड़े का पैर का ख़ोल, तीन चाक़ू, नेकर, चांदी की वस्तुएं, चमड़े की रस्सी के टुकड़े, एक आख़रोट, कुछ मिट्टी के बर्तन, डिज़ाइनदार कुछ कपड़े तथा हड्डी के कुछ टूटे हुए टुकड़े प्राप्त हुए। यह शरीर और इसके बाद इस क्षेत्र से मिलने वाले शरीर साल्टमैन के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन साल्टमैन की प्राचीनता चौथी शताब्दी ईसा पूर्व हख़ामनशी और सासानियों के काल की ओर लौटती हैं।

पुरातन वेत्ताओं का कहना है कि जो नमूने प्राप्त हुए हैं उनमें से एक प्राचीन काल के ईरान का जूता था जो आज के स्टैंडर्ड और शैली के अनुरूप है। इस नमूने पर होने वाले शोध से पता चलता है कि यह जूता, साल्टमैन के पैर में था जो गाय के चमड़े और उच्चस्तरीय पदार्थों से बना हुआ है। यह चमड़ा चूने और खाल पर लगाए जाने वाले विशेष नमक द्वारा अलग प्रकार से सिला गया है। इस जूते में जो धागा प्रयोग हुआ है वह भेड़ की आंत से बना हुआ जो अभी तक ख़राब नहीं हुआ है और उसकी चर्बी ने उसे वाटरप्रूफ़ बना दिया है।

Image Caption

 

पहले साल्टमैन के प्राप्त जूते की साइज़, आज की साइज़ के हिसाब से 42 नंबर है और इसके टख़नों की ऊंचाई 48 सेन्टीमीटर है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह जूता या प्राचीन लांग बूट,एसा है जिसे घुड़सवार प्रयोग करते हैं। इसमें प्रयोग होने वाला चमड़ा,  बहुत ही नर्म है और नमी इससे निकल जाने के बावजूद यह सूखा नहीं है।

जूते का ऊपरी और बाहरी भाग चमड़े का बना हुआ है जिसपर चमड़े की रंगाई भी पारंपरिक ढंग से की गयी है। इसकी विशेष डिज़ाइन को इस जूते की दूसरी विशेषता कहा जा सकता है। इस जूते में पंजे रखने के स्थान को ऐसी डिज़ाइन से बनाया गया है जो जूतों की डिज़ाइन में बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह इस बात का चिन्ह है कि इस जूते की डिज़ाइन पूरी होशियारी और समस्त आयमों की जानकारी के साथ की गयी है और इसे सिला गया है। इस नमूने में हम  रंग के अनुपात को देखते हैं और इस लांगबूट में और आज के लांग बूट व लंबे जूतों में अंतर केवल चमड़ा बनाने की शैली में है। आज चमड़े को प्रयोग करने योग्य बनाने में आधुनिक शैलियों का प्रयोग किया जाता है।

एक अन्य ध्यान योग्य बिन्दु साल्टमैन के जूते में यह है कि उसमें कोई अस्तर नहीं था और जूते में किसी भी प्रकार की परत का प्रयोग नहीं किया गया। यही कारण है कि जूता पूरे पैर में समा जाता है और ऐसा प्रतीत होता है जैसे मोज़ा पहने हुए हैं। दूसरी ओर इससे पैर में पसीने की संभावना समाप्त हो जाती है। इस प्रकार के जूते ठंडक और गर्मी के मौसम में पैरों को सुरक्षित रखते हैं और एरगोनोमिक, डिज़ाइनिंग और बनावट की दृष्टि से भी यह पूरी दुनिया में अद्वितीय नमूना है, इसीलिए इस जूते को एतिहासिक आयाम से ही नहीं देखना चाहिए बल्कि यह जूता सांस्कृतिक, एतिहासिक तथा धरोहर की दृष्टि से भी और इसी प्रकार जूते बनाने की तकनीक की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

विशेषज्ञों की बातों से पता चलता है कि प्राचीन काल से ही ईरानी जूता उद्योग में निपुण रहे हैं और उनकी बनाई हुई अद्वितीय डिज़ाइनों से पता चलता है कि वह इस उद्योग की समस्त कलाओं से पूरी तरह निपुण थे। फ़िरदौसी के शाहनामे में आया है कि नौशेरवान के काल में एक ईरानी मोची ने घोषणा कर रखी थी कि यदि उसे अनुमति हो तो वह राजकुमारों के लिए इस कला को सीखने के लिए विशेष कलासें रख सकता है और सेना के कम बजट को पूरा कर सकता है किन्तु उसे इसकी अनुमति नहीं दी गयी और उसके पैसे को वापस कर दिया गया किन्तु इससे पता चलता है कि उस काल में भी मोची का काम बहुत प्रचलित था और आय का अच्छा स्रोत था।

Image Caption

प्राचीन ईरान में विभिन्न प्रकार की बुनी हुई वस्तुएं, चमड़े, लकड़ियां, हड्डियां और सुन्दर जूते बनाए जाते थे। प्राचीन काल में ईरान में नंगे पैर चलने को बुरा समझा जाता था और यदि किसी के पास अपने और अपने घर वालों के लिए जूते और कपड़े तैयार करने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं होते थे तो वह अपराध का सहारा लेता था। प्राचीन काल में ईरानी सेना में ध्वजवाहक सैनिक जो जूते पहने रहते थे वह सुनहरे रंग के हुआ करते थे जो सुनहरे धागे अर्थात गुलाबटून से बुने हुए थे।

पर्सपोलिस या तख़्ते जमशीद में मिले अवशेषों में, हख़ामनिशी राजाओं की विभिन्न जातियों के दसियों जूते मिले हैं। नौरोज़ महोत्सव के अवसर पर उपहार लाने वाला एक गुट भी है जो नववर्ष के उपलक्ष्य में नये जूते पहने हुए है। सफ़वी काल में विभिन्न प्रकार के जूते प्रचलित थे जिनमें छोटे से लेकर बड़े और हर प्रकार के जूते शामिल थे। यहां यह बताना ज़रूरी है कि ईरानी जब किसी घर में जाते हैं तो अपने जूते घर के बाहर ही उतार देते हैं और जूते पहन कर बिछे फ़र्श पर नहीं चलते थे विशेषकर मस्जिदों में जूता रखने के विशेष स्थान बनाए जाते थे और लोग मस्जिद से आते या मस्जिद से निकलते समय अपने जूतों को विशेष स्थान पर रख देते हैं। पवित्र क़ुरआन में सूरए ताहा की 12वीं आयत में ईश्वर हज़रत मूसा को संबोधित करते हुए कहता है कि अपने जूतों को उतार दो क्योंकि आप तुआ की पवित्र वादी में हैं।

चमड़ा वह वस्तु है जो विभिन्न प्रकार के जानवरों की खाल से प्राप्त होता है। सबसे पहले जानवरों की खाल को जिसके बहुत शीघ्र ख़राब होने और सड़ जाने की अशंका रहती है, विशेष प्रक्रिया द्वारा रंगा जाता है और सुखाया जाता है। इस प्रकार से वह ख़राब होने की प्रक्रिया से सुरक्षित रहता है। चमड़ा बनाने और इस जैसी चीज़ों से वस्तुएं बनाने में अंतर यह है कि चमड़ा बनाने में ज्ञान और तकनीक के प्रयोग के अतिरिक्त, कला की तकनीकों से भी लाभ उठाया जाता है। चमड़ा बनाने वाले में यदि सूक्ष्म कला की भावना न हो तो वह अच्छा और बेहतरीन चमड़ा उत्पादित नहीं कर सकता। चमड़ा बनाने वाले को खाल के संपूर्ण  ज्ञान के साथ मज़बूत कलात्मक भावना से भी संपन्न होना चाहिए।

चमड़ा गाय, भौंस, भेड़, बकरी, सांप, छिपकली, मगरमच्छ और शार्क की खाल से तैयार होता है। प्राचीन काल से ही अर्थात आदि मानव के काल से ही चमड़ों का प्रयोग होता रहा है। आदिमानव कांटों से अपने पैरों की रक्षा के लिए कड़े चमड़े को पूरे पैरों में बांध लेते थे। जब उनकी यह समझ में आया कि चमड़े के विशेष बर्तन में पानी भी भरा जा सकता है तो उन्होंने चमड़े के विशेष बर्तन (मश्क़) में पानी भरना शुरु कर दिया और उसके बाद वे बार बार नदी जाकर पानी भरने की समस्या से बच गये। समय गुज़रने के साथ चमड़े के प्रयोग की ज्ञान में वृद्ध हुई और उसके बाद क़बाइली लोग चमड़े से ख़ैमे, बिस्तर, कवच, जूते इत्यादि बनाने लगे।

Image Caption

 

पुरातन वेत्ताओं को खोज के दौरान जो वस्तुएं मिली हैं उनसे सिद्ध होता है कि चमड़े का प्रयोग, बुनाई और उसको प्रयोग योग्य बनाने से पहले ही होता था किन्तु इसके बावजूद खाल को बनाने की तकनीक में कुछ अधिक बदलाव नहीं हुआ है। उदाहरण स्वरूप ईरान में अभी कुछ वर्ष पहले तक खाल को चमड़ा बनाने की नवीन शैली आरंभ हुई किन्तु इससे पहले तक उसी प्राचीन शैली का ही प्रयोग होता था। अरब भूवैज्ञानिक इब्ने हौक़ल ने जिन्होंने 950 ईसवी में ख़ुरासान की यात्रा की थी, बकरी के सूक्ष्म चमड़े की जिसे मर्व के निकट चमड़ा बनाने वालों ने तैयार किया था, बहुत प्रशंसा की और लिखा कि इन चमड़ा बनाने वालों को देश के विभिन्न क्षेत्रों और विदेशों में भेजा गया।

फ़्रांसीसी पर्यटक जान चार्डन ईरान में चमड़े के उत्पादन और खाल से चमड़ा बनाने के उद्योग  की प्रशंसा करते हुए लिखते हैं कि यह हस्त उद्योग है और ईरानी इनमें सबसे अधिक निपुण हैं।

 

 

टैग्स