Nov ०९, २०१६ १३:४९ Asia/Kolkata

सन् 1850 में क़ाजारी काल में अमीर कबीर ने जो कार्य अंजाम दिए उनमें से एक ईरानी चमड़े के उत्पादों को लंदन की प्रदर्शनी में भेजना था।

इसी प्रकार उन्होंने ईरान के अधिकांश शहरों में चमड़े के निर्यात के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया। उसके बाद से ईरान में तैयार होने वाले चमड़े को रूस, तुर्की और भारत को निर्यात किया जाने लगा।

हालांकि ईरान में चमड़े के उद्योग की सही रूप से शुरूआत हमदान से हुई। हमदान के अलावा, तबरेज़ और इसफ़हान ने भी चमड़े के उत्पाद में अहम भूमिका निभाई है। ईरान में चमड़े तैय्यार करने का पहला कारख़ाना 1929 में तबरेज़ में स्थापित हुआ, उसके बाद हमदान, तेहरान और इसफ़हान में भी कारख़ानों की स्थापना हुई।

1932 में हमदान में पहले आधुनिक कारख़ाने की स्थापना हुई। उसके बाद से इस उद्योग का देश में विस्तार हुआ। 1983 में तेहरान, तबरेज़ और मशहद जैसे शहरों के आसपास चमड़ा का उत्पादन करने के लिए औद्योगिक बस्तियां बसाई गईं और इनका नाम चर्म शहर रखा गया। इन बस्तियों के कारण, चमड़े के उद्योग का काफ़ी तेज़ी से विकास हुआ। आज तबरेज़ शहर में लगभग 25 लाख चमड़ी की शीट्स तैयार होती हैं।

जानवरों की खालों के अनुसार, चमड़ा विभिन्न प्रकार का होता है। उदाहरण स्वरूप, हल्का चमड़ा, भारी चमड़ा और अर्थ भारी चमड़ा। हल्का चमड़ा भेड़ों और बकरियों से हासिल किया जाता है और काफ़ी नाज़ुक होता है। इसीलिए जैकेट और दस्ताने जैसी अन्य चीज़ें इस चमड़े से बनाई जाती हैं।

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अर्थ भारी चमड़ा उस चमड़े को कहा जाता है जो मगरमच्छ और शुतुरमुर्ग़ से प्राप्त होता है और कम मात्रा में होने एवं महंगा होने के कारण, अकसर सजावटी चीज़ों और मूल्यवान चीज़ों में इस्तेमाल किया जाता है।

भारी चमड़ा गाय, भैंस और ऊंट जैसे जानवरों से हासिल किया जाता है। भारी चमड़ा सामान्य चीज़ों में और मज़बूती एवं सुन्दरता के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह का चमड़ा मज़बूती के कारण सीट कवर, बैग और जूतों आदि में इस्तेमाल किया जाता है।

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इसके अलावा, प्राकृतिक चमड़े को चर्म शोधन अर्थात उसके कारख़ानों के आधार पर भी बांटा जाता है, जैसे कि वसनस्पति चमड़ा, मोरक्को का चमड़ा, घोड़े का चमड़ा और रूसी चमड़ा। प्राचीन काल में वनस्पति चमड़े को कवच बनाने में प्रयोग किया जाता था। चर्म शोधन में इस प्रकार के चमड़े में जहां तक संभव होता है, रासायनिक रंगों का प्रयोग नहीं किया जाता, बल्कि उसके बाजए वनस्पति रंगों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार का चमड़ा इको फ़्रैंडली होता है और इंसान की खाल को संक्रमित नहीं करता है, इसलिए इस चर्म शोधन को बेहतरीन शोधन कहा जाता है। यह चमड़ा नर्म होता है और उसका रंग कत्थई होता है और उसके रंग की मात्रा रासायनिक मिश्रण एवं खाल के रंग की तरह हो जाती है।

मोरक्कन चमड़ा किताबों की जिल्दों में प्रयोग किया जाता था। यह चमड़ा मज़बूत होने के साथ साथ नर्म होता है। आजकल इसे लेडीज़ पर्स और पर्स बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

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घोड़े का चमड़ा वास्तव में मोरक्कन चमड़ा ही होता है। इस चमड़े को घोड़े से वनस्पति चमड़े की शैली में हासिल किया जाता है। यह चमड़ा बहुत मज़बूत और वाटर प्रूफ़ होता है। इस चमड़े को मर्दाना जूतों के उत्पादन में इस्तेलाम किया जाता है।

रूसी चमड़े के नाम से ही पता चलता है कि यह चमड़ा सबसे पहले रूस में तैयार किया गया था। इस चमड़े के शोधन में बैद और भूर्ज पेड़ों की छाल का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार का चमड़ा अपनी ख़ुशबू के कारण पहचाना जाता है, हालांकि यह ख़ुशबू भूर्ज पेड़ के तेल की होती है। अब यह चमड़ा केवल रूस में ही तैयार नहीं होता है, बल्कि अनेक देश इसका उत्पादन करते हैं। इस प्रकार के चमड़े को किताबों की बाइंडिंग, बैग, सूटकेस और कपड़ों में इस्तेमाल किया जाता है।

सांप का चमड़ा बहुत नाज़ुक लेकिन मज़बूत होता है। जब इसका शोधन किया जाता है, उसमें सिलवटें नहीं पड़ती हैं और पानी नहीं जाता है और खिंचता नहीं है, बल्कि मज़बूत होता है। छिपकली का चमड़ा सांप के चमड़े से मंहगा होता है। मगरमच्छ और लिज़र्ड का चमड़ा सुन्दर होता है और उस पर बने डिज़ाइन के कारण उसे आसानी से पहचाना जा सकता है। इन चमड़ों की लोकप्रियता इतनी अधिक है कि उनकी नक़ल तैयार करने के लिए गाय के चमड़े पर उस तरह का डिज़ाइन बना दिया जाता है। लिज़र्ड का चमड़ा मगरमच्छ के चमड़े से अधिक प्रयोग किया जाता है। उच्च गुणवत्ता के सूट केस, लेडीज़ पर्स और उम्दा क्वालिटी के जूते तैयार करने के लिए उसका इस्तेमाल किया जाता है। मछलियों में शार्क मछली चमड़े के उत्पादन के लिए सबसे उचित है।

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गाय का चमड़ा, मज़बूत और टिकाउ होता है। आधुनिक धागों के उत्पादन के बावजूद, इसे अभी भी रासायनिक कार्यों में प्रयोग होने वाले दस्तानों और प्रोफ़ैश्नल मोटर साइकलिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रकार के चर्म के धागे बहुत घने होते हैं, इसी कारण यह अधिक मज़बूत होता है। उसकी सतह प्लेन होती है। इस्तेमाल के दृष्टिगत नर्म और ख़ुश्क रूप में विभिन्न साइज़ों में उपल्बध होता है। सामान्य रूप से उसे जूते और बैग बनाने में प्रयोग किया जाता है, इसी प्रकार से कपड़े एवं दस्ताने तैयार करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।

भेड़ का चमड़ा सुन्दर और मज़बूत होता है और बाज़ार में इसकी क़ीमत भी उचित होती है। उसके धागों का घनत्व अन्य चमड़ों की तुलना में कम होता है। उसकी सतह गाय के चमड़े की तरह प्लेन होती है। नर्मी और हल्का होने के कारण, आम तौर पर इससे कपड़े और दस्ताने तैयार किए जाते हैं। उससे लेडीज़ बैग भी बनाए जाते हैं।

भेड़ के चमड़े की मूल विशेषता उसके नर्म होने में है, इसी कारण उसे कपड़े तैयार करने में इस्तेमाल किया जाता है। ईरान में भी इसी प्रकार के चमड़ा पसंद किया जाता है। ईरानी भेड़ से हासिल किए जाने वाले चमड़े का साइज़ औसत सात से साढ़े सात फ़ीट और मोटाई 1 मिली मीटर होती है।

कभी कभी प्राकृतिक चमड़े और आर्टिफ़िशियल चमड़े में अंतर करना मुश्किल होता है। प्राकृतिक चमड़ा आर्टिफ़िशियल चमड़े से कहीं अधिक मंहगा होता है। चमड़े की कुछ वस्तुओं का पहचान पत्र होता है, जिसमें उनकी पूरी जानकारी होती है। चमड़े की वस्तुओं की पहचान के लिए उसकी उल्टी साइड को देखना चाहिए, अगर उस साइड में प्लास्टिक दिखाई दे या वह नर्म हो तो वह चमड़ा प्राकृतिक नहीं है।

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चमड़े को छू कर देखें। प्राकृतिक चमड़ा बहुत नर्म और मुलायम होता है। चमड़े को सूंघ कर देखें। प्राकृतिक चमड़े की विशेष गंध होती है, जिसकी नक़्ल नहीं की जा सकती। चमड़े की बनावट को देखना चाहिए। अगर उसकी बनावट और गांठें पहचान में आती हों तो वह आर्टिफ़िशियल है। असली और आर्टिफ़िशियल चमड़े में उसकी उलटी साइड से भी अंतर किया जा सकता है। आर्टिफ़िशियल चमड़े की उलटी साइड को अगर घिसा जाएगा तो उसे नुक़सान पहुंचेगा।

चमड़े के साथ जीवन वास्तव में प्रकृति के साथ जीवन है। अगर हम प्रकृति से सही रूप में लाभ उठायेंगे तो उसकी बरकतों से आनंद लेंगे। अगर हम अपने पास मौजूद चमड़ों से सही लाभ उठायें तो हम उसका आनंद ले सकते हैं। चमड़े को वाशिंग मशीन में नहीं धोना चाहिए। हर चमड़े को ड्राई क्लीन में साफ़ नहीं कराया जा सकता। चमड़े पर इत्र और स्प्रे नहीं लगाना चाहिए। चमड़े के कपड़ों की जेब में भारी चीज़ें नहीं रखनी चाहिए। चमड़े के कपड़ों की ख़रीदारी के समय ध्यान दिया जाना चाहिए। उनका साइज़ उचित होना चाहिए, ताकि आगे चलकर साइज़ में कोई समस्या पेश नहीं आए। इस प्रकार, चमड़े की चीज़ों के रख रखाव और इस्तेमाल में तवज्जोह की ज़रूरत होती है।       

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