Dec १९, २०१६ १३:५७ Asia/Kolkata

21 दिसम्बर सन 1964 ईसवी को फ़िलिस्तीनी स्वतंत्रता संगठन पी एल ओ की स्थापना हुई।

आरंभ में यह संगठन 8 छापामार गुटों और कई सामाजिक, शैक्षिक उपचारिक सांस्कृतिक और आर्थिक संस्थाओं पर आधारित था। एक वर्ष बाद इस संगठन की सैनिक शाखा ने अलफ़त्ह के नाम से अपनी गतिविधियां आरंभ की इसके दस हज़ार सदस्य थे। 1974 में पी एल ओ को संयुक्त राष्ट्रर द्वारा स्वीकृति मिली और 1982 में इस संगठन ने सौ से अधिक देशों के साथ सरकारी रुप से संबंध स्थापित किये। इसी वर्ष पी एल ओ की सैनिक शाखा लेबनान पर ज़ायोनी शासन के आक्रमण के चलते पीछे हटने पर विवश हुई और फिर उसके बाद इसने धीरे धीरे सशस्त्र संघर्ष समाप्त कर दिया। सन 1993 में पी एल ओ के अध्यक्ष यासिर अरफ़ात ने ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर करके ज़ायोनी शासन को औपचारिकता दे दी।

बदले में ज़ायोनी शासन भी पश्चिमी तट और ग़ज़्ज़ा पटटी के क्षेत्र को फ़िलिस्तीनियों को लौटने के लिए वचनबद्ध हुआ। किंतु ज़ायोनी शासन ने दूसरे समझौतों और वचनों की भांति ओस्लो समझौते की भी अवहेलना की इस प्रकार से ज़ायोनी शासन को विशिष्टतायें देने के लिए पी एल ओ की आलोचना की जाती रही है।

 

21 दिसम्बर सन 1988 ईसवी को स्कांटलैंड के लाकर्बी क्षेत्र के आसमान में अमरीका का एक यात्री विमान विस्फ़ोटित हो गया। जिससे 259 यात्री और चालक दल के सदस्य तथा धरती पर 11 लोग मारे गये। इसके कुछ ही समय बाद अमरीका और ब्रिटेन ने लीबिया के दो नागरिकों पर उक्त विमान में बम रखने का आरोप लगाया और इन दोनों देशों के दबाव में आकर सुरक्षा परिषद ने वर्ष 1992 ईसवी में दोनों आरोपियों को शरण देने के आरोप में लीबिया पर सैनिक वायु और तेल प्रतिबंध लगा दिया। लाकर्बी विमान दुर्घटना का मामला बहुत दिनों तक विलंबित पड़ा रहा यहां तक कि अमरीका और ब्रिटेन ने इस बात की अनुमार्त दी कि इन दोनों देशों के अतिरिक्त किसी अन्य देश में उक्त दोनों आरोपियों पर मुकददमा चलाया जाए। जिसके बाद 1999 में इन आरोपियों को हेग के न्यायालय को सौंपा गय जहां एक को निर्दोष घोषित किया गया और दूसरे को आजीवन कारावास का दंड सुनाया गया।

 

***

30 आज़र सन 21 हिजरी शम्सी को दक्षिणी ईरान के नहावंद नगर में सासानी शासन श्रृंखला के अंतिम राजा यज़्दगिर्द त्रितीय की मुसलमान सेना से पराजय के बाद यह श्रृंखला ईरान में 416 वर्ष तक शासन करने के बाद समाप्त हो गयी और ईरान पर मुसलमानों का अधिकार हो गया। मुसलमान सेना ने हथियारों के अभाव के बावजूद लम्बे समय तक सासानी सेना से संघर्ष किया और अंतत: उसे हरा दिया। सासानी शासकों के अत्याचार से थक चुकी ईरानी जनता ने इस्लाम के महान सिद्धांन्तों जैसे न्याय, भाइचारा, समानता, आदि को देखकर यह धर्म स्वीकार कर लिया और धीरे धीरे स्वयं यह देश इस्लाम धर्म के प्रचारकों में हो गया।

 

30 आज़र सन 1230 हिजरी शम्सी को ईरान में पहला पॉली टेक्निक स्कूल दारुल फ़ुनून खुला। यह ईरान के तत्कालीन राष्ट्राध्यक्ष अमीर कबीर के प्रयासों का प्रतिफल था। इस स्कूल ने पहले तो इंजीनियंरिंग, खदान, दवा बनाने और दूसरे प्रचलित विषयों में ६ शिक्षकों और 150 शिक्षार्थियों की सहायता से अपना कार्य आरंभ किया। इसने ईरान को बड़े दक्ष तक्नीकी विशेषज्ञ दिए हैं।

टैग्स