Mar ०४, २०१६ १५:१९ Asia/Kolkata

गुलिस्तान पैलेस को 23 जून सन 2013 को कंबोडिया में आयोजित यूनेस्को की वैश्विक धरोहर संस्था के 37वें वार्षिक सम्मेलन में विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया।

गुलिस्तान पैलेस को 23 जून सन 2013 को कंबोडिया में आयोजित यूनेस्को की वैश्विक धरोहर संस्था के 37वें वार्षिक सम्मेलन में विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया। वर्तमान समय में गुलिस्तान पैलेस म्यूज़िमय सेन्टर बन गया है और ईरानी इतिहास के महत्वपूर्ण भागों के जीवित प्रमाणों के रूप प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में स्थानीय व विदेशी पर्यटक यहां आते हैं।

अद्वितीय गुलिस्तान पैलेस संग्राहलय ईरान की महत्वपूर्ण और सांस्कृतिक धरोहर है जिसका क्षेत्रफल लगभग लगभग साढ़े पांच हज़ार हेक्टेयर है और यह केन्द्रीय तेहरान में स्थित है। यह पैलेस लगभग चार शताब्दी पुराना है जिसमें कई शासन श्रंखला गुज़री है। ईरान के इस ऐतिहासिक पैलेस का महत्वपूर्ण भाग अध्ययन और समीक्षा योग्य है। वास्तव में यह कहा जा सकता है कि गुलिस्तान पैलेस, तेहरान के बाक़ी बचे दुर्ग की यादगार है जो कभी इस दुर्ग के बीच एक नगीने की भांति चमकता था।

तेहरान के ऐतिहासिक दुर्ग की प्राचीनता, सफ़वी शासन काल और राजा तहमास्ब प्रथम के काल की ओर पलटती है। इस दुर्ग की मरम्मत करीमख़ान ज़ंद के काल में हुई थी और क़ाजारी शासन काल में से दरबारियों और क़ाजारी शासन काल के उच्चाधिकारियों के रहने के लिए विशेष कर दिया गया। कहा जाता है कि नासरिरुद्दीन शाह ने अपने जीवन में गुलिस्तान पैलेस में काफ़ी परिवर्तन कराए । पहलवी शासन काल में गुलिस्तान पैलेस को विदेशों के राष्ट्राध्यक्षों और विशेष मेहमानों के ठहरने तथा सरकारी कार्यक्रम आयोजित करने के लिए प्रयोग किया गया था इसके बावजूद खेद के साथ कहना पड़ता है कि इस महल का एक बड़ा भाग उस शासन की अयोग्यता और देखभाल में लापरवाही के कारण तबाह हो गया। इस पैलेस की विभिन्न इमारतों को विभिन्न कालों में बनाया गया है और उसका नाम इमारत के बाहरी भाग में स्थित गुलिस्तान हॉल पर रखा गया है।

इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद, गुलिस्तान पैलेस सहित अन्य शाही इमारतों को संग्राहलय और म्यूज़िम बना दिया गया ताकि सभी लोग उन्हें देख सकें और ईरानी कलाकारों और उद्योग पतियों के हाथों की कला और उनकी सुन्दरता तथा उनके वैचारिक परिणामों से अवगत हो सकें।

गुलिस्तान के ऐतिहासिक व सांस्कृतिक पैलेस में मौजूद धरोहरें अद्वितीय और दुर्लभ हैं। निश्चित रूप से गुलिस्तान पैलेस में मौजूद चीज़ें, शिक्षाप्रद और पाठदायक हैं। गुलिस्तान पैलेस में काजारी शासन काल के पचास हज़ार चित्र, पांच लाख ऐतिहासिक दस्तावेज़ और अस्सी हज़ार से अधिक ऐतिहासिक धरोहरें और अवशेष मौजूद हैं। इस इमारत में ऐतिहासिक दस्तावेज़ों, चित्रों और अन्य महत्वपूर्ण चीज़ों की रक्षा के अतिरिक्त सुन्दर ऐतिहासिक इमारतें भी हैं जो वास्तुकला की दुष्टि से अद्वितीय हैं।

संगे मरमर का हॉल, आइना हॉल, सलाम हॉल, बर्लिन इमारत, रौशनदान इमारत, हौज़ख़ाने की इमारत, सफ़ेद महल और शमसुल इमारा उनमें शामिल हें। संगे मरमर हॉल वह स्थान है जहां ईद के विशेष कार्यक्रम आयोजित होते हैं।

ईरानी कलाकारों के हाथों की सुन्दरता और सफ़ाई, वास्तुकला, पेंटिंग, पत्थर काटने और तराशने की कला, टाइल्स और चूने मिट्टी के काम, आइनाकारी, अंगूठी बनाने की कला, मुनब्बतकारी और मुशब्बक बनाने की अद्भुत शैली को शाही महल की इमारतों पर देखा जा सकता है जो पूरी दुनिया में बहुत कम ही मिलता है।

यह हॉल ज़ंदिया काल की इमारत है जिसका आधार 1760 में करीमख़ान ज़ंद ने रखा था। आप के लिए जानना यह उचित है कि गुलिस्तान पैलेस में मौजूद सबसे प्राचीन इमारत, संगे मरमर हॉल और करीमख़ान का एकांतवास है जिसका संबंध करीमख़ान ज़ंद के काल से है।

आइना हॉल, ईरानी कलाकारों और वास्तुकारों की वर्षों की मेहनत का परिणाम है। यह वही कलाकार हैं जिन्होंने बड़ी सूक्ष्मता और सुन्दर ढंग से आइनों के छोटे छोटे टुकड़ों के माध्यम से इस इमारत की छत और दीवारों पर सुन्दर डिज़ाइनें बनाईं। इस कमरे की दीवारें, शाही अत्याचारी काल में ईरान की अत्याचार ग्रस्त जनता के वर्षों के दुख को बयान करती हैं। आइना हॉल की ख्याति इसकी सुन्दरता से हटकर, अधिकतर अपनी डिज़ाइनों के कारण प्रसिद्ध है जिसे मिर्ज़ा मुहम्मद ख़ान कमालुल मुल्क ग़ेफ़ारी ने 1309 हिजरी क़मरी में बनाया था। आइना हॉल की दीवारों के पास ही सलाम हॉल है जो इस हॉल में प्रवेश करते ही लोगों को आश्चर्यचकित कर देता है, इसी प्रकार ताक़ व फ़ानूस भी बहुत रोचक लगते हैं।

सलाम हॉल के ताक़ और छोटे छोटे ताक़, प्लास्टर आफ़ पेरिस के बने सुन्दर फूलों से भरे हुए हैं जिसे उस्ताद असदुल्लाह क़ज़वीनी ने विशेष दक्षता के साथ आइनों पर बनाया है। हॉल की दीवारों पर विदेशी राजाओं व महाराजाओं की ओर से क़ाजारी नरेश को दिए उपहार दिखाई देते हैं जिनमें वह उपहार भी शामिल हैं जो क़ाजारी शासकों को इस देश की धन संपत्ति को लूटने के बदले होने वाले विश्वाघाती समझौते में प्राप्त हुए थे।

सलाम हॉल जो आरंभ में संग्राहलय के उद्देश्य से बनाया गया है और इससे सरकारी आयोजन और सरकारी मेहमानों के स्वागत के लिए विशेष कर दिया गया। सलाम हॉल की निचली मंज़िल में एक छोटा सा हौज़ पाया जाता है। वर्तमान समय में निचले हौज़ख़ाने को दो भागों में विभाजित कर दिया गया। इस इमारत का पूर्वी भाग क़ाजारी काल में ईरानी कलाकारों के सूक्ष्म प्रदर्शनी का स्थान है जबकि पश्चिमी भाग को ईरानी कलाकारों की धरोहर पेश करने की गैलरी के रूप में विशेष कर दिया गया है।

गुलिस्तान पैलेस में कई हॉल और एक दूसरे में मिले कई सुन्दर कमरे हैं जो वास्तव में देखने योग्य है किन्तु गुलिस्तान पैलेस की सबसे प्रसिद्ध इमारत शमसुल इमारा है। शमसुल इमारा, तेहरान में बनी उन ऊंची इमारतों में से एक है जिसे शहर के सुन्दर दृश्य देखने के लिए प्रयोग किया जाता था। इस इमारत की सुन्दरता, इसकी बनावट, डिज़ाइनिंग सुन्दरता में निहित है। इस इमारत की विशेषताओं में इसका घंटाघर और उस पर बना इंग्लिश कैप जैसा भाग प्रसिद्ध है जो इमारत का सबसे ऊंचा भाग है। वर्तमान समय में शमसुल इमारा के मुख्य हॉल की पहली मंज़िल, कला, हस्तलिप और पुस्तकों की स्थाई प्रदर्शनी का स्थान है।

गुलिस्तान पैलेस में दुर्लभ व प्राचीन पुस्तकों का ख़ज़ाना, कला और लिपि के दुर्लभ नुस्खों और प्राचीन पुस्तकों की सुरक्षा का सबसे विश्वनीय केन्द्र है जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इस अद्वितीय काम्पलैक्स में बहुत ही सुन्दर अवशेष, अद्वितीय धरोहरें और नुस्खे मौजूद हैं जो कला और साहित्य की बेहतरीन धरोहरों की श्रेणी में आते हैं और यह ईरान की लिखित सांस्कृतिक धरोहर का भाग है।

ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद हस्तलिखित पुस्तकों की मैक्रोफ़िल्म बनाने का महत्वपूर्ण काम शुरु हुआ और वर्ष 1377 हिजरी शम्सी को पूरा हुआ। अब तक पुस्तकालयों में मौजूद बहुत से नुस्खों को छापा जा चुका है जिनमें हज़रत अली अलैहिस्सलाम की पुस्तक, जिसके लेखक अब्दुल जब्बार हैं, हज़रत अली का मुनाजात नामा, तोहफ़तुल मुलूक और प्रसिद्ध ईरानी लिपिकार उस्ताद मीर एमाद सैफ़ी क़ज़वीनी के लिखे हुए सुन्दर शब्दों पर आधारित डिज़ाइनें शामिल हैं।

सफ़ेद महल या काख़े अबयज़, गुलिस्तान पैलेस में मौजूद एक अन्य सुन्दर इमारत है जो आजकल मानवशास्त्र के संग्राहलय के रूप में प्रसिद्ध है और दुनिया भर से लोग इसे देखने आते हैं। इस म्यूज़ियम में विभिन्न जातियों और गांव तथा शहरों के लोगों के जीवन में प्रयोग होने वाली वस्तुओं को रखा गया है। ईरान के मानवशास्त्र संग्राहलय का आधार 1935 में रखा गया था जिसमें समकालीन तथा क़ाजारी शासन काल में ईरान के विभिन्न शहरों के लोगों से संबंधित अवशेष और धरोहर रखे हुए हैं। वर्ष 1968 में मानवशास्त्र संग्राहलय अपने प्राचीन स्थान से गुलिस्तान पैलेस में सफ़ेद महल स्थानांतरित कर दिया गया। यह म्यूज़ियम, ईरान में मानवशास्त्र के संबंध सबसे प्राचीन और समृद्ध संग्राहलय है। इस संग्राहलय के निचले भाग में प्रदर्शनी हॉल और कार्यालय हैं जबकि पहली मंज़िल पर ईरान के विभिन्न क्षेत्रों के वस्त्र और आवरण तथा काजारी शासन काल की महिलाओं और पुरुषों के वस्त्रों की प्रदर्शनी लगी हुई है।

नासिरुद्दीन शाह और शाह सुल्तान अब्दुल हमीद के शासन काल के अंतिम दिनों में उस्मानी शासक ने कुछ मूल्यवान वस्तुएं ईरानी राजा के लिए भेजी थीं क्योंकि उस समय समस्त शाही इमारतें और हॉल विभिन्न प्रकार की वस्तुए और पेंटिग्स से सुसज्जित थीं, इसीलिए नासिरुद्दीन शाह ने गुलिस्तान पैलेस के दक्षिणपश्चिमी छोर पर जो अतीत में आग़ा मुहम्मद ख़ानी टॉवर या इंग्लिश कैप का स्थान था, नया महल बनाने का फ़ैसला किया और राजा महाराजाओं के उपहार वहीं रखे। क्योंकि इस इमारत का बाहरी भाग सफ़ेद रंग का है इसीलिए इसे सफ़ेद महल कहा जाता है। इस इमारत को 18वीं शताब्दी की यूरोपीय शैली में प्लास्टर आफ़ पैरिस से बनाया गया है और इस इमारत की एक अन्य विशेषता यह है कि इसकी सीढ़ियां सफ़ेद मरमर की बनी हुई हैं। सफ़ेद महल के निर्माण से ही मंत्रीमंडल की बैठक से विशेष हो गया और वर्ष 1968 से आज तक यह मानवशास्त्र संग्राहलय बना हुआ है।

इस इमारत में प्रयोग होने वाली खिड़कियों में यूरोपीय वास्तुकला से प्रभावित होने के कारण, बहुत ही साधारण डिज़ाइनें हैं और टेढ़ी मेढ़ी लकीरों का प्रयोग किया गया है जिसे सूर्य का गोला कहा जाता है किन्तु महल के प्रवेश द्वार में क़ाजारी वास्तुकला की शैली का प्रयोग किया गया है जो देखने में बहुत ही सुन्दर लगता है। (AK)