Jan २४, २०१७ १५:१७ Asia/Kolkata

हमने तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय के बारे में वरिष्ठ नेता के दृष्टिकोणों को बयान किया और उसे महान ईश्वर से प्रेम और उसके सामिप्य की भूमिका बताया।

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के अनुसार नमाज़ और दुआ तक़वा प्राप्त करने के बेहतरीन मार्ग हैं जो इंसान को ईश्वर की बंदगी के निकट और उसे ईश्वर से जोड़ देते हैं। इसके अलावा ईश्वर पर भरोसा करना और उसके वादों के बारे में अच्छा विचार रखना इंसान के महान ईश्वर के निकट होने का कारण बनता है।

                          

तवक्कुल का अर्थ समस्त कार्यों में महान ईश्वर पर भरोसा रखना है। पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहस्सलाम फरमाते हैं” ईश्वर पर भरोसा हर मूल्यवान चीज़ की कीमत है और वह ऊंचाई पर पहुंचने की सीढ़ी है। “

इंसान जब महान ईश्वर पर भरोसा करके आगे बढ़ता है तो अगर परिणाम उसकी इच्छा के अनुसार नहीं भी होता है तब भी वह निराश नहीं होता क्योंकि वह जानता है कि महान ईश्वर ने जो कुछ उसे दिया है उसी में उसकी भलाई है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता अपने अधिकांश भाषणों में महान ईश्वर पर भरोसे पर बल देते हैं और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उसे बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। वरिष्ठ नेता अपने भाषणों में बारंबार कहते हैं आप ईश्वर पर भरोसा किये बिना और उससे विशेष संपर्क के बिना आवश्यक क्षमता नहीं प्राप्त कर सकते।“

महान ईश्वर पर भरोसा और सर्वसमर्थ ईश्वर पर पूर्ण संतोष, शांति का कारण बनता है। इस प्रकार का व्यक्ति तनाव रहित होकर इरादे व संकल्प के साथ कार्य करता है। निराशा, आत्म विश्वास का न होना, भय और इरादे में कमज़ोरी महान ईश्वर पर भरोसा करने वाले इंसान में कम ही पाई जाती हैं। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता धैर्य और ईश्वर पर भरोसा करने के साथ उससे सहायता मांगने को सफलता का रहस्य मानते हैं।

जो इंसान अपने दिलों को महान ईश्वर पर भरोसे से मज़बूत नहीं करते हैं वे जीवन की कठिन परिस्थियों में निराश हो जाते हैं जिसका परिणाम अवसाद होता है। इसके विपरीत जो इंसान महान ईश्वर पर भरोसा रखता है वह कठिन से कठिन परिस्थिति में भी निराश नहीं होता है। क्योंकि महान ईश्वर पर भरोसा रखने वाला इंसान जानता है कि उस पर सर्वसमर्थ ईश्वर की कृपादृष्टि है और वह हमेशा उस पर भरोसा रखता है। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता महान ईश्वर पर भरोसे और ईमान को मजबूत दीवार समझते हैं जो दिल को मजबूत करती है और पराजय से दूर करती है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस प्रकार सिफारिश करते हैं आत्मिक दृष्टि से हम अपने अंदर मजबूत दीवार उत्पन्न करें कि यह दीवार ईमान और भरोसे की दीवार है, ताकि हम परास्त और अंदर से पराजित न हों।

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता एक गूढ़ बिन्दु की ओर संकेत करते हैं और उनका मानना है कि इंसान जो कठिनाइयों से भागता है उसका कारण आंतरिक फरार है। इंसान की आंतरिक परास्त है जो बाहरी परास्त का कारण बनती है और इंसान पर उसे थोप देती है। अगर आप अपने दिल के अंदर पराजित न हों तो कोई भी आपको पराजित नहीं कर सकता।“

 इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता महान ईश्वर पर भरोसे के बारे में पवित्र कुरआन की कुछ आयतों की ओर संकेत करते हैं। जैसे सूरे आले इमरान की आयत नंबर 160 की ओर संकेत करते हैं जिसके कहा गया है कि मोमिनों को चाहिये कि वे केवल ईश्वर पर भरोसा करें। इसी प्रकार सूरे इब्राहीम की 12वीं आयत की ओर संकेत करते हैं जिसमें महान ईश्वर कहता है” भरोसा करने वालों को चाहिये कि केवल ईश्वर पर भरोसा करें। जबकि सूरे तलाक़ की तीसरी आयत में महान ईश्वर पर भरोसा करने के बारे में कहा गया है कि क्या जो ईश्वर पर भरोसा करता है ईश्वर उसके लिए काफी नहीं है। इसी तरह सूरे ज़ोमर की आयत नंबर 36 में कहा गया है कि क्या ईश्वर अपने बंदे के लिए काफी नहीं है?।

वरिष्ठ नेता इन आयतों को हम इंसानों के लिए पाठ मानते और बल देकर कहते हैं कि कुरआन को हमें ध्यान से और चिंतन- मनन के साथ पढ़ना चाहिये और इन आयतों को पाठ के रूप में याद कर लेना चाहिये। इन आयतों के आधार पर जीवन व्यतीत करना चाहिये।“

भरोसे का जो अर्थ बयान किया गया संभव है कि उसका कोई गलत निष्कर्ष निकाले और यह समझे कि भरोसा करने का अर्थ किसी प्रकार की गतिविधि का न करना है और यह समझे कि जब समस्त कार्य ईश्वर के हाथ में है तो इंसान के प्रयास की कोई आवश्यकता नहीं है! किन्तु इस प्रकार का विचार इस्लाम में भरोसे के विचार से बिल्कुल भिन्न है।

जो इंसान भरोसा करे और प्रयास न करे उसकी मिसाल उस किसान की भांति है जो दाना बोये बिना फसल की आशा में रहे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम फरमाते हैं जो ईश्वर से तौफिक व क्षमता चाहता है परंतु प्रयास न करे तो उसने स्वयं का उपहास उड़ाया है।“

तो ईश्वर पर भरोसे का अर्थ कार्यों के परिणाम को महान व सर्वशक्तिमान ईश्वर पर छोड़ देना और उसके निर्णय पर प्रसन्न रहना है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता भी बल देकर कहते हैं जीवन के समस्त क्षेत्रों में ईश्वर पर भरोसा रखना अधिक प्रयास का कारण बनता है। वे इस बारे में कहते हैं जब दो चीज़ें साथ में हों यानी एक ओर आपने ईश्वर पर भरोसा किया है, उससे मदद मांगी है, और यह मानते हैं कि ईश्वर है और वह समस्त चीज़ों को देख रहा है, ईश्वर को अपने कार्यों का स्वामी समझते हैं और दूसरी ओर आपने अपना पूरा प्रयास किया है तो यह भरोसे का सही रूप व अर्थ है। आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई के अनुसार ईश्वर पर भरोसा करने वाला वह व्यक्ति है जो हर हालत में ईश्वर से अपने आंतरिक व हार्दिक संबंध को नहीं तोड़ता चाहे आराम का समय हो या  कठिनाई का। वरिष्ठ नेता इस प्रकार के संबंध को इंसान के प्रयास और उसकी परिपूर्णता का कारण मानते हैं।

सबसे उच्च कोटि का भरोसा कि महान ईश्वर के अलावा किसी से भी उम्मीद न रखना और केवल उससे आशा लगाना है। जो इंसान महान ईश्वर पर भरोसा करता है वास्तव में वह असीम शक्ति से जुड़ जाता है और उसे एसी शक्ति प्राप्त हो जाती है जिसका मुकाबला कोई भी शक्ति नहीं कर सकती। वरिष्ठ नेता बल देकर कहते हैं किसी भी चीज़ से न डरे और ईश्वर पर भरोसा करें। जान लें कि अगर ईश्वर के लिए कार्य करेंगे तो ईश्वर आपकी सहायता करेगा। जिस प्रकार पैगम्बरे इस्लाम के कथन में आया है कि जो ईश्वर के लिए है ईश्वर उसके लिए है। “ प्रकृति उसकी सेवा में रहेगी और वह लाभप्रद सिद्ध होगा। जो ईश्वर के लिए अच्छे मार्ग का चयन करेगा ईश्वर इस मार्ग को उसके लिए प्रशस्त कर देगा जब तक उसके पास इरादा व शक्ति है यानी आप एक उठायेंगे तो ईश्वर दूसरे कदम के लिए भूमि प्रशस्त कर देगा और जैसे- जैसे आप आगे बढेंगे ईश्वर आपके लिए मार्ग प्रशस्त करता- रहेगा। ईश्वर पर भरोसा कीजिये और किसी भी चीज़ से मत डरिये। वरिष्ठ नेता आयुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ईरान की ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी की सफलता का रहस्य

ईश्वर पर भरोसा और निष्ठा मानते हैं। उनका मानना है कि इमाम खुमैनी ईश्वर पर भरोसा और उसके बारे में बहुत अधिक सद्भावना रखते थे और उनकी दृष्टि में कोई भी कार्य ईश्वर की शक्ति से बाहर नहीं था। वरिष्ठ नेता इमाम खुमैनी को महान ईश्वर पर भरोसे का उदाहरण मानते और उनके बारे में इस प्रकार कहते हैं” उनके लिए अर्थात इमाम खुमैनी के लिए बड़े -२ कार्य संभव थे क्योंकि उनका भरोसा ईश्वर पर था और ईश्वर उनकी सहायता करता था और चूंकि वे ईश्वर पर भरोसा रखते थे अतः वह हर काम को सद्भावना की दृष्टि से देखते थे।

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय इमाम खुमैनी की इस विशेषता के दृष्टिगत महान ईश्वर पर भरोसे को सबके लिए महत्वपूर्ण मानते और कहते हैं” ईश्वर पर भरोसा करके और उसके बारे में सद्भावना के साथ कुरआन में ईश्वरीय सहायता पर जो बल दिया गया है उससे और बुद्धि व साहस का प्रयोग करके समस्त कठिनाइयों व बाधाओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है और कामयाबी व सफलता के साथ उनसे गुज़रा जा सकता है।