Jan २४, २०१७ १५:२१ Asia/Kolkata

इंसान का ईश्वर से दूर हो जाना एसा ही है जैसे कोई बूंद समुद्र से अलग हो जाए।

एसा ही है जैसे कोई गुलशन बरसात न होने के कारण सूखने लगे। यह पूर्ण रूप से एकांतवास की स्थिति होती है। यह स्थिति जीवन में एक सूनापन पैदा कर देती है और यह सूनापन कोई भी चीज़ दूर नहीं कर सकती सिवाए इसके कि वह इंसान एक बार फिर ईश्वर की शरण में जाए। यदि इंसान अपने महान ईश्वर की सेवा में लौट जाए तो पूरी निष्ठा और ध्यान के साथ अपनी ग़लती पर क्षमायाचना शुरू कर दे तो उसके दिल में धीरे धीरे ईश्वरीय ज्योति का उजाला फैलने लगेगा तथा उसकी थकी हुई आत्मा में नई ऊर्जा उत्पन्न हो जाएगी। जी हां ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने और उससे संपर्क का एक तरीक़ा यही है कि ग़लतियों पर क्षमा मांगी जाए।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनई तौबा के महत्व के बारे में कहते हैं कि सबसे पहला क़दम यह है कि इंसान गलतियों पर तौबा करे और ईश्वर की ओर वापस लौटे। तौबा का मतलब ही है ईश्वर की ओर लौटना। ईश्वर ने इंसान को तौबा का अवसर और इसकी सीख देकर वास्तव में उसे बहुत बड़ी नेमत प्रदान है। ईश्वर ने यह सीख दी है कि यदि तुमसे पाप हो गया है जिस पर तुम शर्मिंदा हो तो तुम्हारे लिए तौबा का रास्ता खुला हुआ है। यदि आप कोई गुनाह करते हैं तो ऐसा होता है कि मानो आपके शरीर पर घाव लग गया है और इस तरह आपके शरीर में रोगाणु प्रविष्ट हो गया है। यदि आप चाहते हैं कि यह घाव भर जाए और बीमारी शरीर से निकल जाए तो आपके लिए ईश्वर ने एक दरवाज़ा खोल  रखा है और वह तौबा का दरवाज़ा है। यदि आप लौट जाएं तो ईश्वर आपके पापों को क्षमा कर देगा। यह बहुत बड़ी नेमत है जो ईश्वर से हमें मिली है।

हर पाप वास्तव में आत्मा, पवित्रता तथा आध्यात्मिक उत्थान की प्रक्रिया पर लगने वाला एक घाव है। जब इंसान गुनाह करता है तो उसकी आत्मा की स्वच्छता खत्म हो जाती है और वह धूमिल पड़ने लगती है। संक्षेप में यह कहा जाए कि गुनाह करके इंसान आध्मित्क ऊंचाई से नीचे गिर जाता है। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई के अनुसार पाप इंसान के अस्तित्व में पाए जाने वाले आध्यात्मिक आयाम को जो उसे अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ बनाता है, कम कर देता है तो उसे पशु और पत्थर के क़रीब पहुंचा देता है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ख़ुद भी नैतिक शास्त्र के बड़े शिक्षक हैं। वह क़ुरआन की आयतों और इस्लामी ज्ञानों पर गहरी नज़र रखते हैं। वह पाप से दूर रहने पर बहुत अधिक बल देते हैं। उनका कहना है कि पापों को कभी भी मामूली भूल और ग़लती नहीं समझना चाहिए बल्कि पाप इंसान के पूरे अस्तित्व को नष्ट कर सकते हैं तथा यह पाप श्रेष्ठ प्राणी अर्थात इंसान को महत्वहीन और घटिया प्राणी बना सकते हैं। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि कभी भी यह न सोचिए कि पाप सामान्य बात है। यही झूठ, यही दूसरों की बुराई, यही मानवीय महानताओं की अनदेखी, यही अत्याचार चाहे वह एक शब्द बोलने की हद तक हो, मामली गुनाह नहीं है। यह ज़रूरी नहीं है कि इंसान को अपने पाप का आभास तब हो जब वह गले तक पाप में डूब जाए। एक गुनाह भी अपने आप में बड़ा गुनाह होता है उसे छोटा नहीं समझना चाहिए।

दूसरी ओर आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई तौबा के हैरत अंगेज़ प्रभावों के बारे में कहते हैं कि पाप हमारे और ईश्वर के बीच पर्दा बन जाते हैं। इंसान या समाज को ईश्वर से जिन चीज़ों की भी ज़रूरत होती है जैसे, ईश्वरीय कृपा, ईश्वरीय दया, ईश्वरीय ज्योति, ईश्वरीय मार्गदर्शन, ईश्वर का सहारा, कामों में उसकी मदद और लड़ाइयों में उसकी सहायता सब कुछ इन पापों के कारण बंद हो जाता है। जब यह रास्ता बंद हो जाता है और इंसान तौबा करता है तो उसके लिए दरवाज़े फिर से ख़ुलने लगते हैं। यह तौबा का फ़ायदा है।

पाप से इंसान के अस्तित्व का आध्यात्मिक पहलू तो कम होता ही है साथ ही पाप लगातार जारी रहने की स्थिति में इंसान का आध्यात्मिक पतन शुरू हो जाता है। पाप के दुष्प्रभाव स्थायी होते हैं हां यदि इंसान ने तौबा कर लिया तो गुनाह का असर उसके दिल और आत्मा से कम होने लगता है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता के अनुसार पापों को तीन वर्गों में रखा जा सकता है। व्यक्तिगत गुनाह, सामाजिक दुष्प्रभाव वाले व्यक्तिगत गुनाह, तथा सामाजिक गुनाह। वह व्यक्तिगत गुनाह का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि एक गुनाह तो वह होता है जो अपने आप पर अत्याचार तक सीमित होता है। क़ुरआन में इस अभिप्राय की बातें बार बार कही गई हैं, यह एसा गुनाह है कि जिसे करने वाले पर इस गुनाह का असर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है जैसे बहुत से गुनाह और पाप होते है। एक गुनाह ऐसा है जो व्यक्तिगत गुनाह होता है लेकिन उसके सामाजिक कुप्रभाव होते हैं। यह पहले वर्ग के व्यक्तिगत गुनाह से ज़्यादा बड़ा होता है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि यह गुनाह एसा है जो करता तो एक इंसान है लेकिन उसका नुक़सान दूसरे लोगों तक भी पहुंचता है। बड़ा गुनाह है। यह गुनाह अपने ऊपर भी अत्याचार है और साथ ही दूसरों पर भी अत्याचार है। यह अधिक बड़ा गुनाह है तथा इसका इलाज भी कठिन होता है। जैसे किसी का माल हड़प लेना, दूसरों के अधिकारों का हनन और सार्वजनिक अधिकारों को नुक़सान पहुंचाना। इस प्रकार के गुनाह सरकारें और अधिकारी करते हैं। यह गुनाह उन लोगों से होता है जो अपने एक हस्ताक्षर से, अपने एक बयान और अपनी एक बात से, अपने एक नियुक्ति या बर्ख़ास्तगी के आदेश से अनेकों परिवारों बल्कि पूरी जनता को नुक़सान पहुंचा सकते हैं। इस प्रकार के गुनाह की तौबा भी अलग प्रकार की होती है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि व्यक्तिगत गुनाह तथा सामाजिक व सामूहिक कुप्रभाव रखने वाला व्यक्तिगत गुनाह भी बहुत भयानक चीज़ है। यदि व्यक्तिगत गुनाह हुआ है तो उसकी तौबा यह है कि इंसान सच्चे दिल से ईश्वर के सामने क्षमायाचना करे और उससे माफ़ी चाहे। लेकिन दूसरे प्रकार का जो गुनाह है उसमें केवल तौबा कर लेना काफ़ी नहीं है। इंसान के लिए ज़रूरी है कि अपने गुनाह से उसने जो नुक़सान पहुंचाया है उसकी भरपाई करे। इस स्थिति में सुधार करना और समस्याओं को दूर करना होता है।

गुनाह की तीसरी क़िस्म है सामूहिक गुनाह। इस प्रकार के गुनाह भी पूरे राष्ट्र का भविष्य बिल्कुल अलग रास्ते पर लगा देते हैं। अत्यचार पर पूरे राष्ट्र का चुप रहना सामूहिक गुनाहों में गिना जाता है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता इस बारे में कहते हैं कि कभी पूरा राष्ट्र या उसके बीच कोई प्रभावी दल कोई गुनाह करता है। इस प्रकार के गुनाह की तौबा भी अलग तरह की है। कभी कोई राष्ट्र वर्षों तक किसी बुराई या अत्याचार पर मौन धारण किए रहता है और कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाता। यह भी गुनाह है। बल्कि शायद यह बहुत बड़ा गुनाह हो। ईश्वर क़ुरआन के सूरए रअद में कहता है कि ईश्वर किसी भी क़ौम की हालत उस समय तक नहीं बदलता जब तक कि वह ख़ुद अपनी हालत न बदले। यह इसी किस्म के गुनाह की ओर संकेत है जो बड़ी नेमतों को ख़त्म कर देता है। यह वही गुनाह है जो क़ौम और राष्ट्र के लिए विपदा लाता है।  इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि तीनों प्रकार के गुनाहों से तौबा करना चाहिए। यदि हमने तौबा के बारे में ग़फ़लत बरती तो इसका नुक़सान हमें उठाना पड़ेगा।

तौबा किसी बाग़बान के बेलचे की तरह सूखी पत्तियों और टहनियों को गुलशन से अलग करता है ताकि वृक्ष तेज़ी से बढ़ें। तौबा से इंसान के दिल और आत्मा पर जमी गुनाह की गर्द हट जाती है तथा इंसान महानताओं और उत्थान की ओर बढ़ने के लिए तैयार हो जाता है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता तौबा के फ़ायदों के बारे में कहते हैं कि  तौबा में इंसान अपने गुनाहों के लिए ईश्वर से क्षमा मांगता है। यदि तौबा सही ढंग से की गई तो इंसान के लिए ईश्वरीय अनुकंपाओं के द्वार खोल देती है। यह तौबा का फ़ायदा है। इसी लिए कुरआन की आयतों में कई जगहों पर कहा गया है कि तौबा से सांसरिक और पारलौकिक दोनों लाभ मिलते हैं। जैसा कि सूरए हूद में एक ईश्वरीय दूत अपनी क़ौम के लोगों से कहते हैं कि हे मेरी क़ौम के लोगो अपने ईश्वर से क्षमायाचना करो और अपने ईश्वर की ओर लौट जाओ ताकि वह तुम पर बार बार वर्षा करे तुम्हारी शक्ति बढ़ाए। सत्य के मार्ग से मुंह न फेरो और पाप न करो। इसी प्रकार की दूसरी भी आयतें हैं। इन सारी चीज़ों को इस प्रकार समझा जा सकता है कि तौबा की बरकत से ईश्वरीय अनुकंपाओं के दरवाज़े इंसान और इंसानी समाज के लिए खुल जाते हैं। अतः तौबा का महत्व बहुत अधिक है।