Jan २५, २०१७ १४:३५ Asia/Kolkata

हमने लोगों के शिक्षण-प्रशिक्षण के संबंध में ईश्वरीय पैग़म्बरों के अथक प्रयासों के बारे में बात की थी और बताया था कि अत्यचार न करना, न्याय से काम लेना, सच्चाई, भलाई और इस प्रकार के सभी शिष्टाचारिक कर्म, ईश्वरीय पैग़म्बरों की मार्गदर्शक शिक्षाओं में शामिल हैं लेकिन वर्तमान समय के बहुत से लोग पैग़म्बरों के संदेश से काफ़ी दूर हो चुके हैं और उनकी शिक्षाओं की अनदेखी करते हैं।

ईश्वरीय शिक्षाओं से दूरी, पश्चिम की भौतिक सभ्यता के आधारों में से है और इस समय पश्चिमी जगत अध्यात्म और परिपूर्णता से दूर हो कर अनैतिकता के भंवर में फंसा हुआ है।

पालनहार की ओर ध्यान, अनन्य रचयिता की उपासना और एक ईश्वर के स्थान पर दूसरे लोगों व वस्तुओं को पूज्य न मानना, ईश्वरीय पैग़म्बरों की सबसे पहली शिक्षा है। पैग़म्बरों की बातें, प्रकृति की आवाज़ है जो हर मनुष्य में होती है और उसे एकेश्वरवाद और सृष्टि के रचयिता की उपासना की ओर बुलाती है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई का कहना है कि जब इंसान, पैग़म्बरों की शिक्षाओं से दूर हो गया तो हर चीज़ विशेष कर सृष्टि के बारे में उसके विचार बदल गए और उसने हर चीज़ को भौतिक समझ लिया। अब उसने ईश्वर को रचना का मुख्य कारक समझना छोड़ दिया बल्कि सृष्टि तक को एक भौतिक बात समझने लगा। वे इस बारे में कहते हैं कि भौतिकवादी विचारधारा, लाभ उठाने की सोच है। भौतिक दुनिया हर चीज़ को पैसे से तोलती है और इस विचारधारा में सभी मानवीय मान्यताएं पैसे पर जा कर समाप्त होती हैं। भौतिक संसार की मुख्य समस्या यही है।

जी हां! सृष्टि और रचना के बारे में इस विध्वंसक दृष्टिकोण ने, दिलों में अध्यात्म के प्रकाश को बुझा दिया और इसने पश्चिम को अंधकारों के मार्ग पर बढ़ा दिया। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई इस बारे में कहते हैं। संसार को भौतिकता में डूबने से कोई लाभ नहीं हुआ, दुनिया को नैतिक स्वतंत्रता के प्रचलन से कोई फ़ायदा नहीं हुआ, मानवता को यूरोप में शुरू किए गए भौतिक आंदोलनों से कोई लाभ नहीं हुआ, इससे न तो न्याय मिला, न ही सार्वजनिक संपन्नता अस्तित्व में आई, न सुरक्षा सुनिश्चित हुई, न परिवार सुरक्षित हुए और न ही आगामी पीढ़ियों का सही ढंग से प्रशिक्षण हुआ। इन सभी मैदान में नुक़सान हुआ। हां कुछ कंपनी मालिकों, बैंक चलाने वालों और हथियार बनाने वालों को बेहिसाब धन प्राप्त हो गया लेकिन पश्चिम की भौतिक सभ्यता की कोई मानवीय उपलब्धि नहीं रही। न तो पश्चिम वाले ख़ुद सुखी हो पाए और न ही अपने अधीन और अपने पदचिन्हों पर चलने वाले समाजों को सुखी कर पाए।

जब भी अध्यात्म और ईश्वर से दूरी के मार्ग पर क़दम रखा जाए तो सभी पाप और बुरे कर्म, रेल की बोगियों की तरह उसके पीछे चले आते हैं। भौतिकवाद, लोगों में बुरी आदतों को परवान चढ़ाता है और इस बात का कारण बनता है कि मनुष्य न केवल यह कि ईश्वर की पहचान, प्रकाश, उत्थान और परिपूर्णता तक न पहुंचे बल्कि दिन प्रतिदिन तेज़ी के साथ गर्त व पतन की ओर अग्रसर हो जाए। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई बल देकर कहते हैं कि हालिया कुछ शताब्दियों में पश्चिमी सभ्यता ने यह दर्शा दिया है कि उसके पास मानवता के शोषण के अलावा कोई और कला नहीं है। उनका कहना है कि 18वीं शताब्दी से लेकर अब तक पश्चिम की स्थिति की समीक्षा से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि स्वयं पश्चिम वालों के अनुसार उन्होंने इस दौरान कमज़ोर समाजों के शोषण में किसी भी प्रकार का संकोच नहीं किया है। उन्होंने पूर्वी एशिया, भारत, चीन, अमरीका और अफ़्रीक़ा में मनुष्य पर दुखों व कठिनाइयों के पहाड़ तोड़े हैं। उनका एकमात्र लक्ष्य इंसान का शोषण और उससे अपने हितों के लिए लाभ उठाना था। इस लक्ष्य के साथ उन्होंने इंसानों और राष्ट्रों के लिए नरक उत्पन्न कर दिया। आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई कहते हैं कि पश्चिम की तकनीकी व औद्योगिक प्रगति ने भी इंसानों की मुख्य समस्या को हल नहीं किया। उनका कहना है कि पश्चिमी सभ्यता में अध्यात्म व शिष्टाचार के आधारों के न होने के कारण ये सारी समस्याएं पैदा हुई हैं।

यद्यपि पश्चिम की भौतिक दुनिया अपने आपको हर प्रकार की अच्छाई और कल्याण का प्रतीक दिखाने की कोशिश करती है लेकिन इस संस्कृति व सभ्यता का परिणाम कुछ और ही दर्शाता है। पश्चिम में शिष्टाचार का पतन, परिवारों का विघटन और निरंकुशता व दरिद्रता का फैलता दायरा ऐसी जटिल समस्याएं हैं जिन्हें पश्चिमी विशेषज्ञ भी स्वीकार करते हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि शिष्टाचार के संबंध में उनका दावा, झूठा है और उसमें कोई सच्चाई नहीं है। जब लोग अध्यात्म से दूर हो जाएंगे तो यही होगा। अच्छाइयों से दूरी और बुराइयों की ओर रुझान, क़ुरआने मजीद के अनुसार शैतानी कर्म है।

पश्चिमी सभ्यता के इस स्तर पर पहुंचने का कारण मनुष्यों द्वारा अंदर और बाहर से शैतान के उकसावों के पालन का परिणाम है जो उन्हें हमेशा ईश्वर से दूरी के लिए उकसाता रहता है। इस्लामी शिक्षाओं और क़ुरआनी संस्कृति के अनुसार सभी बुराइयों की जड़ वह चीज़ है जिसे शैतान कहा जाता है। इस्लाम और क़ुरआन में शैतान, एक तात्पर्य है जो सभी बुराइयों और कुकर्मों का प्रतीक है। क़ुरआन में जिस चीज़ को भी शैतान से संबंधित बताया गया है वह अप्रिय है। व्यभिचार, घमंड, आलस्य, अत्याचार और अच्छाई व अच्छों से दुश्मनी, शैतान का काम है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई शैतान के बारे में कहते हैं कि शैतान का काम बहकाना है। बहकाने का अर्थ क्या है? बहकाने का मतलब यह है कि वह आपके चयन, हिसाब-किताब और फ़ैसला करने की व्यवस्था में विघ्न डाल देता है। शैतान की कोशिश होती है कि वह आपको बहका दे अर्थात आपकी बुद्धि, प्रकृति और जांचने व परखने की मशीन को, जो मनुष्य के अस्तित्व में रखी गई है, बिगाड़ दे जिसके परिमाण स्वरूप मनुष्य हिसाब-किताब में ग़लती कर बैठे।

वरिष्ठ नेता का मानना है कि शैतान, इंसान को बहकाने के लिएय कई मार्ग अपनाता है। उनमें से एक रास्ता, धमकी और लोभ का है। वह इंसान को सत्य की राह पर डटे रहने से डराता है, उसे दरिद्रता से डराता है और झूठे वादे करके उसके दिल में ऊंची-ऊंची कामनाएं और आकांक्षाएं पैदा कर देता है। वह उसके सामने मृगतृष्णा की तरह एक कभी साकार न होने वाला भविष्य पेश करता है।

शैतान को बेहतर ढंग से पहचानने के लिए भी हम इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई के कथनों का सहारा लेते हैं। वे शैतान की परिभाषा करते हुए कहते हैं। शैतान का एक रूप इब्लीस है और यह वही बुरी और बुराई फैलानी वाली शक्तियां हैं जो विभिन्न रूपों और भेसों में काम करती हैं। कभी मनुष्य के रूप में, कभी मनुष्य के अलावा किसी दूसरे रूप में, कभी आंतरिक इच्छाओं के रूप में तो कभी इब्लीस के रूप में। इब्लीस, शैतानों का अहम क़बीला है जिसका वृत्तांत क़ुरआने मजीद में है लेकिन सिर्फ़ वी नहीं है। वे जिनों के शैतान हैं और इंसानों के भी शैतान हैं जिनका ख़तरा कभी कभी उनसे कम नहीं होता। तो कुल मिला कर यह कि शैतान एक ऐसा अर्थ है जो बहुत सी चीज़ों पर चरितार्थ होता है।

शैतान और उसका अनुसरण करने वाले दिल के अंधों के सभी प्रयासों के बावजूद अब मौजूदा सदी में पश्चिमी सभ्यता के केंद्र में नई और आशाजनक रौशनी दिखाई पड़ने लगी है। ईश्वर, अध्यात्म और उच्च मानवीय व नैतिक मान्यताओं की ओर वापसी, 21वीं सदी में भौतिकवाद के काले बादलों के पीछे से दिखाई दे रही है। ऐसा लगता है जैसे इंसान, अंधकार और शून्य से प्रकाश की ओर वापसी का सफ़र शुरू कर चुका है। आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई इस संबंध में कहते हैं। आज आप देख रहे हैं कि जिन देशों से भौतिकवाद का रुझान शुरू हुआ था, उन्हीं देशों में अब विभिन्न रूपों में अध्यात्म की ओर रुझान प्रकट होने लगा है। इसका अर्थ है अध्यात्म की खोज और अध्यात्म से प्रेम। अब वहां के युवाओं में अध्यात्म की खोज की भावना और उससे प्रेम अस्तित्व में आ चुका है। अलबत्ता जब वे इस रुझान का सही ढंग से संचालन नहीं कर पाते तो फिर ग़लत रुझान सामने आने लगते हैं, जैसे झूठे आत्मज्ञान और ढोंगी अध्यात्म। कुछ धूर्त लोग इस बीच अपनी रोटियां सेंकने लगते हैं। इन परिस्थितियों में अगर सही इस्लाम और पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की शिक्षाओं को पश्चिम के भौतिकवादी साम्राज्य के केंद्र तक पहुंचा दिया जाए तो वहां उनके चाहने और सुनने वाले हैं और इस बात को आजकी दुनिया में अच्छी तरह से महसूस किय जा सकता है।