Feb २२, २०१७ १६:५० Asia/Kolkata

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई का कहना है कि पैग़म्बरे इस्लाम के बारे में क्या कहूं?

केवल इतना ही काफ़ी है कि पैग़म्बरे इस्लाम, समस्त पैग़म्बरों और ईश्वर के प्रिय बंदों के गुणों का संग्रह हैं, समस्त विशेषताओं और गुणों का संपूर्ण और परिपूर्ण नुस्ख़ा हैं जो इतिहास में ईश्वर के नेक व प्रिय बंदों और पैग़म्बरों के वंश में पाया जाता है।

पैग़म्बरे इस्लाम में एक उच्चस्तरीय मनुष्य के समस्त सकारात्मक गुण मौजूद थे। जब हम पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) का नाम लेते हैं मानो उनके अस्तित्व में ईश्वर के समस्त नेक और प्रिय बंदों की विशेताएं प्रतिबिंबित व साक्षात होती हैं।

लोगों के साथ पैगम़्बरे इस्लाम (स) का व्यवहार इतना मधुर और मनमोहक था कि लोग सुनते ही उनके पवित्र अस्तित्व पर न्योछावर हो जाते थे किन्तु वरिष्ठ नेता की ज़बान से पैग़म्बरे इस्लाम की प्रशंसा की कुछ और ही बात है। वरिष्ठ नेता पैगम़्बरे इस्लाम की उपसना और उनके आध्यात्मिक रवैये की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि उनकी उपसना ऐसी उपासना था कि खड़े होकर उपासना करने के कारण उनके पैर सूज जाते थे, वह रात का अधिकतर समय जागकर, उपासना, विनम्रता, रोकर, दुआ करके और ईश्वर से अपने पापों की क्षमा मांग कर गुज़ारते थे। वह ईश्वर से अपने मन की बातें करते और उससे दिल लगाकर दुआ करते थे। पवित्र महीने रमज़ान, शाबान और रजब के अतिरिक्त साल के अन्य दिनों में भी जैसा कि मैंने सुना, भीषण गर्मी में एक दिन छोड़कर एक दिन रोज़ा रखते थे। उनके साथियों ने कहा कि या रसूल्लाह आपसे तो कोई पाप नहीं हुआ, फिर यह सारी दुआएं, उपासना और क्षमा याचना क्यों? इसके जवाब में पैगम़्बरे इस्लाम कहते हैं कि क्या मैं ईश्वर का आभार व्यक्त करने वाला बंदा न रहूं? कि उसने इतनी अधिक अनुकंपाएं मुझे दी हैं।

वरिष्ठ नेता कहते हैं कि पैगम़्बरे इस्लाम ने कभी भी अपनी विनम्रता और शालीनता नहीं खोयी और उन्होंने ईश्वर से अपने संपर्क और संबंध को दिन प्रतिदिन मज़बूत किया है। रणक्षेत्र में, जब वह अपने सैनिक को संगठित करते थे, उनको युद्ध के लिए तैयार करते थे तो पहले स्वयं अपने हाथ में शस्त्र लेते थे और सैनिकों का नेतृत्व करते थे। या उनको सिखाते थे कि क्या करे, घुटनों के बल बैठ जाते थे और अपने दोनों हाथों को उठाकर और लोगों के सामने ईश्वर के समक्ष गिड़गिड़ाते थे और ईश्वर से अपने दिल की बात करते थे, हे पालनहार, तू हमारी मदद कर, हे ईश्वर तू हमारी सहायता कर, हे पालनहार! तू स्वयं अपने दुश्मनों को मार भगा, न उनकी दुआ इस बात का कारण बनती थी कि वह अपने सैनिकों का प्रयोग न करें और न सैनिकों के प्रयोग की वजह से वह ईश्वर से अपने संपर्क और उससे विनती करने से निश्चेत हो जाएं, वह दोनों ही चीज़ों पर ध्यान देते थे।

पैग़म्बरे इस्लाम अपने जीवन के समस्त कालों में विदित पवित्रता और सुव्यवस्थित रहने को बहुत अधिक महत्व देते थे और बचपन से ही वह हमेशा साफ़ सुथरे रहते थे।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई पैग़म्बरे इस्लाम की पवित्रता और उनके साफ़ सुथरे रहने को इस प्रकार बयान करते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम बचपन से ही साफ़ सुथरे रहते थे, मक्के के बच्चों के विपरीत, अरब क़बीलों के बच्चों के विपरीत, साफ़ सुथरे, पवित्र और सुव्यवस्थित रहते थे। युवा काल में उनकी दाढ़ी और उनके बाल सदैव व्यवस्थित रहते थे और हमेशा कंघी किए रहते थे। इस्लाम धर्म के उदय के काल के बाद कि जिसमें उनका युवा काल भी गुज़र चुका था, एक बूढ़े व्यक्ति थे, उनकी आयु पचास, साठ साल की थी, पूर्ण रूप से सफ़ाई सुथराई पर प्रतिबद्ध थे। उनके सिर के बाल कानों की लवों तक रहते थे, पाक साफ़, सुन्दर  व्यवस्थित दाढ़ी, और सदैव सुगंध लगाए रहते थे। मैंने एक रिवायत में देखा है कि उनके घर पर पानी का बर्तन था जिसमें वह हमेशा अपना चेहरा देखते थे क्योंकि उस काल में दर्पण का अधिक प्रचलन नहीं था। जब वह अपने साथियों, मित्रों या निकटवर्तियों के पास जाते थे, अपनी पगड़ी और दाढ़ी को अवश्य व्यवस्थित करते थे और साफ़ करते थे, बाहर निकलने के बाद, हमेशा सुगंध से स्वयं को सुगंधित करते थे। यात्रा के दौरान भी मोहमाया रहित जीवन व्यतीत करने के बावजूद, अपने साथ कंघी और सुगंध ले जाते थे। हर दिन कई बार मिस्वाक करते थे और दूसरों को भी इस प्रकार साफ़ सुथरा रहने, इस प्रकार मिस्वाक करने और सुव्यवस्थित रहने का अह्वान करते थे।

पैग़म्बरे इस्लाम ने बचपन से न केवल ये कि विदित सफ़ाई सुथराई पर ध्यान दिया बल्कि बहुत अधिक पवित्र और अमानतदार थे। इस्लाम धर्म से पहले सऊदी अरब के भ्रष्ट वातावरण में अपनी जवानी के दौरे में वह महान हस्ती, पवित्रता में प्रसिद्ध थे। उनकी पवित्रता को सभी लोग स्वीकार करते थे और वह कभी भी पाप में ग्रस्त नहीं हुए।

पैग़म्बरे इस्लाम, अमानतदार, सच्चे और धैर्यवान तथा हर स्थिति में सही काम करने वाले थे। वह इतने अधिक अमानतदार थे कि वरिष्ठ नेता इस बारे में कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम ऐसे अमानतदार थे कि अज्ञानता के काल में उनको अमीन अर्थात अमानतदार कहा जाता था। लोग हर अमानत को जो उनके निकट बहुत महत्वपूर्ण हुआ करती थी, उनके हवाले कर देते और उन्हें विश्वास था कि यह अमानत सुरक्षित उनको लौटा दी जाएगी। यहां तक कि इस्लाम का निमंत्रण आरंभ होने और क़ुरैश के साथ दुश्मनी की आग भड़कने के बाद, उस दुश्मनी के माहौल में भी यदि कोई अमानत रखना चाहता था तो पैग़म्बरे इस्लाम के पास ही आता और अपनी अमानत रखता था।

लोगों से मिलना जुलना और उनका साधारण जीवन, पैग़म्बरे इस्लाम की एक अन्य विशेषता थी। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई अंतिम ईश्वरीय दूत की इस विशेषता के बारे में कहते थे कि लोगों के साथ उनका व्यवहार बहुत अच्छा होता था, लोगों के बीच हमेशा प्रसन्न और मुस्कुराते रहते थे, अपने दुखों और दर्दों को लोगों के सामने कभी भी चेहरे पर नहीं लाते थे, सभी लोगों को सलाम करते थे, यदि कोई उन्हें परेशान करता था या यातना देता था, परेशानी के लक्षण उनके चेहरे पर प्रतीत हो जाते थे किन्तु ज़बान से कोई शिकायत नहीं करते थे। वह इस बात की अनुमति नहीं देते थे कि उनकी उपस्थिति में कोई किसी को बुरा करे, किसी से अभद्र व्यवहार करे, उन्होंने कभी भी किसी के साथ बुरा बर्ताव नहीं किया और कभी भी किसी को बुरा नहीं कहा। बच्चों से बहुत अधिक प्रेम और स्नेह करते थे और कमज़ोरों के साथ बहुत ही अच्छा व्यवहार करते थे।

पैग़म्बरे इस्लाम की उपासना और उनका मोहमाया रहित जीवन, उनको लोगों से दूर करने का कारण नहीं बना। वह लोगों के साथ हंसी मज़ाक़ भी करते थे। वह हमेशा मुस्कुराते और ख़ुश रहते थे। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई पैग़म्बरे इस्लाम की इस विशेषता के बारे में कहते हैं कि पवित्र नगर मदीने में दस साल लोग उनके साथ दिन व रात जीवन व्यतीत करते थे, उनके घर जाते थे और उनको अपने बुलाते थे, मस्जिद में भी साथ हुआ करते थे, रास्ते में भी साथ रहते थे, साथ में यात्रा करते थे, एक स्थान पर साथ में सोते भी थे, साथ में भूखे भी रहे और साथ में ख़ुशियां भी मनाईं। पैग़म्बरे इस्लाम के जीवन माहौल हमेशा ख़ुश और अच्छा रहता था। वह लोगों से हंसी मज़ाक़ भी करते थे, प्रतिस्पर्धा और मुक़ाबले बाज़ी का आयोजन करते थे और स्वयं भी उसमें भाग लिया करते थे। वह लोग जो दस साल तक उनके साथ रहे, उनके दिलों में पैग़म्बरे इस्लाम का प्रेम दिन प्रतिदिन गहरा होता जाता और उन पर आस्था मज़बूत होती जाती।

मक्के पर विजय के समय, अबू सुफ़ियान पैग़म्बरे इस्लाम के चाचा अब्बास के समर्थन से छिप कर पैग़म्बरे इस्लाम के तंबु में आ जाता है ताकि उसे संरक्षण मिल जाए। सुबह उसने देखा कि पैग़म्बरे इस्लाम ने वज़ू किया और उसके बाद उनके आसपास लोग एकत्रित हुए ताकि उनके चेहरे और हाथ से गिरने वाली पानी की बूंदों को एकत्रित कर सकें, वह एक दूसरे से मुक़ाबला कर रहे थे, अबू सुफ़ियान ने यह दृश्य देखकर स्वयं से कहने लगा कि मैंने इस दुनिया के राजमहलों को देखा किन्तु इस प्रकार किसी का भी सम्मान होते नहीं देखा। जी हां, अध्यात्मिक प्रतिष्ठा और सम्मान ही वास्तविक प्रतिष्ठा है। पवित्र क़ुरआन के सूरए मुनाफ़ेक़ून की आयत संख्या आठ में आय है कि प्रतिष्ठा व सम्मान केवल ईश्वर, उसके दूत और मोमेनीन से विशेष है।

चूंकि पैग़म्बरे इस्लाम ईश्वर की ओर से चुने हुए थे और जिब्राइल उनसे बातें किया करते थे इसके बावजूद उनका जीवन सबसे साधारण था और सबसे विनम्र थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वह एक चटाई पर लेटते थे और एक चमड़े की तकिया पर सिर रखा करते थे जिसके भीतर खजूर की पत्तियां भरी हुई थीं, सामान्य रूप से उनका आहार जौ की रोटी और खजूर था। इतिहासकार लिखते हैं कि उन्होंने कभी भी तीन दिन तक लगातार न तो गेहूं की रोटी खाई और न ही विभिन्न प्रकार के खानों से अपना पेट भरा, वह अपने हाथों से अपने जूते सिला करते थे और अपने काम को दूसरों के हवाले नहीं करते थे। उन दिनों जब अरब के प्रतिष्ठित लोग और क़बाईली सरदार अपने मूल्यवान घोड़ों को सुन्दर ज़ीनों और सोने चांदी से सजाते थे और दूसरों पर गर्व करते थे, वह महान हस्ती एक मामूली से बिना ज़ीन के घोड़े पर सवार होते थे जिसमें ज़ीन तक नहीं लगी होती थी।

जी हां, पैग़म्बरे इस्लाम के शिष्टाचार और उनके व्यवहार के बारे में कहा जा सकता है, उनकी विशेषताएं बयान करने से ज़बान अक्षम और क़लम बेकार हैं। सर्वोच्च और सबसे प्रशंसनीय व्यक्ति की प्रशंसा किस ज़बान से की जाए कि जिनके जीवन का हर क्षण, मावनता के लिए पाठ और अनुचरण के लिए सुन्दर आदर्श है। आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई सभी लोगों विशेषकर युवाओं को पैग़म्बरे इस्लाम के बारे में यह अनुशंसा करते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम के जीवन का गहराई और बड़ी सूक्ष्मता से अध्ययन करें, उनके जीवन का हर क्षण एक घटना है और एक पाठ है, मानवता का एक महान दृश्य है।