Apr ०३, २०१७ १६:०७ Asia/Kolkata

उच्च नैतिकता, लोगों के दिलों को मोह लेती है, जिसके कारण दिलों से मोहब्बत और प्रेम के सोते फूटते हैं।

शिष्टाचार की किरणें दुनिया को भलाई और अच्छाई से भर सकती हैं। जिस प्रकार, पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अपने शिष्टाचार और सदाचार से लोगों के दिलों को आकर्षित किया और उन्हें सही मार्ग और उत्कृष्टता की ओर मार्गदर्शित किया।

हिजाज़ की सूखी और कठोर धरती पर पैग़म्बरे इस्लाम के मानवता प्रेम और विनम्रतापूर्ण व्यवहार के कारण, लोग समूहों और टोलियों में इस्लाम स्वीकार करने लगे और मुक्ति प्रदान करने वाले आदेशों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध हुए। हालांकि हमेशा ही कुछ ऐसे अंधे दिल के लोग रहे हैं, जो शैतान का अनुसरण करते रहे हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के ज़माने में भी कुछ ऐसे कठोर दिल अत्याचारी थे, जो पैग़म्बरे इस्लाम और मुसलमानों को प्रताड़ित करते थे और उन्हें यातनाएं देते थे। वे इस्लाम के नए पौधे को नुक़सान पहुंचाने के लिए किसी भी अवसर को हाथ से जाने नहीं देते थे और पैग़म्बरे इस्लाम और मुसलमानों से लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। पैगम़्बरे इस्लाम भी ऐसे कठोर दुश्मनों के मुक़ाबले में डट जाते थे। यही कारण है कि उन्हें काफ़िरों, पाखण्डियों और समझौता तोड़ने वाले यहूदियों से युद्ध करने पड़े।

इस्लाम को नष्ट करने की साज़िश रचने वालों के ख़िलाफ़ पैग़म्बरे इस्लाम युद्ध करने के लिए मजबूर हो गए, जैसा कि सूरए बक़रा में क़ुरान कह रहा है, उनके साथ युद्ध करो, ताकि फ़ितना बाक़ी न रहे। इसी संदर्भ में ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैः पैग़म्बर ने देखा कि ताज़ा अस्तित्व में आने वाले इस इस्लामी समाज को पांच दुश्मनों से ख़तरा है। उनमें से एक कम महत्व वाला दुश्मन है, लेकिन इसके बावजूद उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती थी, यह वह जंगली क़बीले थे, जो मदीने के आसपास के इलाक़ों में रहते थे। मदीने से तीस, चालीस और पचास किलोमीटर की दूरी पर अर्ध जंगली रहते हैं, जो जीवन भर रक्तपात और हिंसा करते रहते हैं और एक दूसरे से लड़ते रहते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम अगर उनमें शांति और सही मार्ग पर चलने की कोई भी निशानी देखते थे तो उनके साथ संधि कर लिया करते थे, वे उनके सामने मुसलमान होने की शर्त नहीं रखते थे, उनमें से कुछ काफ़िर और कुछ अनेकेश्वरवादी भी थे। इसके बावजूद उनके साथ संधि की ताकि कोई टकराव न हो।

पैग़म्बरे इस्लाम अपने वादों और संधियों पर काफ़ी बल देते थे और उन पर अटल रहते थे। जो लोग शैतान थे और भरोसे के योग्य नहीं थे, पैग़म्बर ख़ुद उनका पीछा करते थे। इसलिए कि वे ऐसे लोग थे, जो शांति प्रिय नहीं थे और उनमें सुधार की कोई गुंजाईश नहीं थी। वे रक्तपात और हिंसा के बिना नहीं रह सकते थे। इसलिए पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें पाठ पढ़ाने के लिए उनसे जंग की।

लेकिन दूसरा दुश्मन जो इस्लाम को नुक़सान पहुंचाना चाहता था और जिसकी ओर से असली ख़तरा था, वह मक्के में था। वरिष्ठ नेता इस संदर्भ में कहते हैं, मक्के में एक समृद्ध अंहकारी और शक्तिशाली गुट शासन करता था। उन लोगों के बीच आपस में मतभेद थे, लेकिन अपने इस नए दुश्मन के मुक़ाबले में सब एकजुट थे। पैग़म्बर जानते थे कि असली ख़तरा इन्हीं लोगों की ओर से है और हुआ भी ऐसा ही। पैग़म्बरे इस्लाम ने आभास किया कि अगर ऐसे ही बैठे रहे तो दुश्मन उन्हें कोई मौक़ा नहीं देगा। इसलिए उन्होंने उनका पीछा किया, लेकिन वे मक्के की ओर नहीं गए। मक्का वासियों का काफ़िला मदीने के निकट से गुज़र रहा था। बैग़म्बरे इस्लाम ने उनपर चढ़ाई कर दी, जिसके परिणाम स्वरूप, बद्र युद्ध हुआ। वे भी क्रोधित होकर हज़रत से युद्ध के लिए आगे बढ़े। लगभग चार पांच वर्षों तक स्थिति यही रही। अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें उनके हाल पर नहीं छोड़ा, उन्हें भी आशा थी कि नई नई अस्तित्व में आने वाली इस्लामी व्यवस्था को उखाड़ फेकेंगे। ओहद और अन्य युद्ध इसी परिप्रेक्ष्य में हुए। अंतिम युद्ध कि जब उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम पर ह मला किया, ख़ंदक़ युद्ध था। अनेकेश्वरवादियों और दुश्मनों ने अपनी सारी शक्ति एकत्रित की और दूसरों से भी मदद ली और कहा कि हम जा रहे हैं ताकि पैग़म्बर के 200, 300 या 500 क़रीबी साथियों का जनसंहार करेंगे, मदीने की ईंट से ईंट बजा देंगे और बेफ़िक्र होकर वापस लौटेंगे। उसके बाद उनकी कोई निशानी नहीं बचेगी। इससे पहले कि वे मदीना पहुंचते, पैग़म्बरे इस्लाम को इसकी जानकारी प्राप्त हो गई और उन्होंने वह प्रसिद्ध ख़ंदक़ या खाई खुदवाई। एक दिशा से मदीने में दुश्मन घुस सकता था, इसलिए चालीस मीटर चौड़ी खाई खुदवाई गई, जब दुश्मन ने इस खाई को देखा, तो आश्चर्यचकित रह गया और ख़ुद को इसे पार करने में असमर्थ पाया, इसलिए वह पराजित और निराश होकर वहां से लौटा।

ख़ंदक़ युद्ध के एक साल बाद, पैग़म्बरे इस्लाम ने एलान किया कि वे हज करने के लिए मक्का जाने का इरादा रखते है। वरिष्ठ नेता के अनुसार, हुदैबिया की घटना जो एक बहुत ही अर्थपूर्ण घटना है, उसी काल में घटी। पैग़म्बर ने उमरा करने के इरादे से मक्का की यात्रा शुरू की। मक्का वासियों ने देखा कि पैग़म्बर एक ऐसे महीने में कि जिसमें युद्ध वर्जित है, मक्के की ओर आ रहे हैं। वे सोच में पड़ गए कि क्या किया जाना चाहिए। क्या रास्ता खोल दिया जाए कि वे आएं। इसमें सफल होने के बाद वे क्या करेंगे और उनका किस तरह से मुक़ाबला किया जा सकता है। अंततः उन्होंने निर्णय लिया कि जाकर पैग़म्बर का रास्ता रोका जाए और उन्हें मक्के में प्रवेश न करने दिया जाए, अगर कोई बहाना मिला तो उनका जनसंहार कर देंगे। पैग़म्बरे इस्लाम ने बेहतरीन रणनीति के साथ उन्हें समझौता करने पर मजबूर कर दिया। जिसमें उल्लेख था कि इस साल पैग़म्बर वापस लौट जायेंगे और अगले वर्ष उमरा करेंगे। इस समझौते के परिणाम स्वरूप, पैग़म्बरे इस्लाम के लिए पूरे इलाक़े में प्रचार के लिए भूमि प्रशस्त हो गई। इस समझौते का नाम सुलह हुदैबिया है। क़ुराने मजीद ने इस समझौते को जीत क़रार दिया है। सूरए फ़तह की पहली आयत में उल्लेख है कि हमने तुम्हें सफलता प्रदान की, कितनी प्रकाशमय सफलता, हमने तुम्हें स्पष्ट जीत दिलाई।

अगले साल पैग़म्बर उमरा करने गए और अनेकेश्वरवादियों के विचारों के विपरीत, हज़रत की शक्ति दिन प्रतिदिन बढ़ती गई। उसके एक साल बाद जब अनेकेश्वरवादियों ने समझौते का उल्लंघन किया तो पैग़म्बरे इस्लाम ने मक्के में जीत की पताका लहरा दी, जो एक विशाल और महत्वपूर्ण विजय थी। वरिष्ठ नेता के मुताबिक़, पैग़म्बर ने बहुत ही धैर्य और साहस के साथ और एक क़दम पीछे हटाए बिना दुश्मन का सामना किया और दिन प्रतिदिन प्रगति की।

वरिष्ठ नेता अपनी बात जारी रखते हुए कहते हैं, तीसरे दुश्मन यहूदी थे, अर्थात असंतुष्ट दुश्मन, फ़ौरी तौर पर पैग़म्बर के साथ मदीने में रहने के लिए तैयार हो गए, लेकिन उन्होंने अपनी विनाशकारी और दमनकारी नीतियों को जारी रखा। अगर आप देखें तो सूरए बक़रा और क़ुरान के अन्य सूरों में यहूदियों के साथ पैग़म्बरे इस्लाम (स) के सांस्कृतिक टकराव का उल्लेख है। वरिष्ठ नेता इस दुश्मन को संगठित और षडयंत्रकारी बताते हैं, जो लोगों को निराश करके आपस में टकरा दिया करते थे। वरिष्ठ नेता कहते हैं, जहां तक संभव था, पैग़म्बर ने उनके साथ सद्भावना का प्रदर्शन किया, लेकिन जब यह देखा कि वे शिष्टाचार और सद्भावना को कोई महत्व नहीं देते हैं, तो पैग़म्बर ने उन्हें सज़ा दी। पैग़म्बरे इस्लाम ने फिर भी बिना किसी कारण के उनका पीछा नहीं किया, बल्कि यहूदियों के तीनों समुदायों ने ऐसे कृत्य किए कि पैग़म्बर को उन्हें सज़ा देनी पड़ी। सबसे पहले बनीक़ैनक़ा थे, जिन्होंने विद्रोह किया, पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें इलाक़े से निकाल दिया। दूसरा समुदाय बनी नज़ीर था। इन्होंने भी विद्रोह किया, पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, अपना कुछ सामान उठाओ और इस इलाक़े से निकल जाओ। वे भी इलाक़ा छोड़ने के लिए मजबूर हो गए। तीसरा समुदाय बनी क़रेज़ा का था, जिसे पैग़म्बरे इस्लाम ने मदीने में सुरक्षा प्रदान की और रहने की अनुमति दी। उन्हें बाहर नहीं किया, उनके साथ संधि की, ताकि ख़ंदक़ युद्ध में दुश्मन को अपने इलाक़े से घुसपैठ की अनुमति न दें। लेकिन उन्होंने धोखा दिया और पैग़म्बर के ख़िलाफ़ लड़ाई में दुश्मन का साथ देने का एक समझौता कर लिया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) को इस बात की जानकारी मिल गई। उन्होंने ऐसी रणनीति से काम लिया कि क़ुरैश और उनके बीच ठन गई, जिसका उल्लेख इतिहास में है, उन्होंने ऐसा काम किया कि क़ुरैश और उनके बीच अविश्वास उत्पन्न हो गया। पैग़म्बरे इस्लाम की यह एक बेहतरीन जंगी चाल थी। जब क़ुरैश और उनके साथी पराजित हो गए तो वे मक्के की ओर लौट गए। पैग़म्बरे इस्लाम मदीना वापस लौट आए। जिस दिन वे वापस लौटे, उसी दिन उन्होंने इस समुदाय की घेराबंदी कर ली। 25 दिन तक उनके बीच झड़पें होती रहीं, उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने उनके समस्त योद्धाओं का सफ़ाया कर दिया, इसलिए कि उन्होंने विद्रोह किया था और दुश्मन के साथ मिलकर साज़िश की थी और उनमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं थी। पैग़म्बरे इस्लाम ने उनके साथ इस प्रकार का बर्ताव किया।

वरिष्ठ नेता मिथ्याचारियों को चौथा दुश्मन बताते हैं। इस संदर्भ में वे कहते हैं, मस्जिदे ज़रार वाली घटना में उन्होंने एक केन्द्र बना लिया। इस्लामी शासन से हटकर उन्होंने रूम में एक व्यक्ति से संपर्क स्थापित किया, ताकि मदीने पर सैन्य चढ़ाई कर सकें। पैग़म्बर ने उनके केन्द्र को ध्वस्त कर दिया। पैग़म्बर ने फ़रमाया, यह मस्जिद नहीं है, बल्कि यह मस्जिद के ख़िलाफ़ और ईश्वर के नाम पर साज़िश का केन्द्र है।

वरिष्ठ नेता पांचवे प्रकार के दुश्मन को सबसे ख़तरनाक बताते हुए कहते हैं, पैग़म्बर का पांचवा दुश्मन, वह था जो हर मुस्लमान और मोमिन के अंदर मौजूद था। सबसे ख़तरनाक दुश्मन भी यही है। यह दुश्मन हम सभी के भीतर मौजूद है। कामुक इच्छाएं, अंहकार और भ्रष्टाचार, जिसके लिए ख़ुद इंसान भूमि प्रशस्त करता है। पैग़मबरे इस्लाम ने इस दुश्मन के ख़िलाफ़ भी कड़ा प्रतिरोध किया, लेकिन इस दुश्मन से तलवार से मुक़ाबला नहीं किया जाता है, बल्कि प्रशिक्षण और शिक्षा दीक्षा द्वारा। इसीलिए जब मुसलमान युद्ध से वापस लौटे तो पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, तुम लोग छोटे जेहदा से वापस लौटे हो, अब बड़े जेहाद में व्यस्त हो जाओ, लोगों ने ताज्जुब से पूछा हे ईश्वरीय दूत बड़ा जेहाद क्या है। फ़रमाया, अपनी इच्छाओं के साथ जेहाद।