Apr २२, २०१७ १३:१६ Asia/Kolkata

इंसान महान आदर्शों से परिचित होकर और इन आदर्शों से सीख लेते हुए और उनके पदचिन्हों पर चलते हुए ऊंचे स्थानों पर पहुंच सकते हैं।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम मानव इतिहास की वह महान हस्ती हैं जिनके अस्तित्व में सारे गुण और सारी विशेषताएं अपने चरम रूप में एकत्रित हैं अतः ऊंचाई पर पहुंचने के लिए उन्हें सर्वोत्तम आदर्श माना जा सकता है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई का कहना है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम के जीवन का हर अध्याय एक संपूर्ण आदर्श है। वह कहते हैं कि अपने जीवने के हर दौर में हज़रत अली अलैहिस्सलाम अनुकरणीय हैं। बारह, तेरह और चौदह साल के बच्चे भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपना आदर्श बना सकते हैं। इस लिए कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने दस ग्यारह साल की उम्र में ही इस्लाम को विधिवत रूप में पहचाना और पैग़म्बरे इस्लाम के साथ चल पड़े। यह बहुत बड़ी बात है कि दस ग्यारह साल का बच्चा इतने विपरीत माहौल में इस्लाम को पहचाना जबकि सारे लोग उसका इंकार कर रहे थे और केवल पहचाना नहीं बल्कि उस पर दृढ़ता से जम गए।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपना बचपन बीत जाने, इस्लाम धर्म स्वीकार कर लेने और अपार विरोध व कठिनाइयां झेलने के बाद जवानी में बड़े साहसी, वीर, संयवी और मोमिन युवा बन गए। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता बीस से तीस साल की उम्र के युवाओं से सिफ़ारिश करते हैं कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम के जीवन के इस कालखंड को अपना आदर्श बनाएं। इसलिए के उनके जीवन का यह भाग भी युवाओं के लिए बड़े मूल्यवान पाठों और सीखों से भरा हुआ है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम वह इंसान थे जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम के एतिहासिक पलायन के समय इस पूरी प्रक्रिया की बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी संभाली। उस समय हज़रत अली अलैहिस्सलाम की आयु 23 साल थी। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने परिवार के सबसे क़रीबी लोगों को हज़रत अली अलैहिस्सलाम के हवाले किया ताकि उन्हें वह बाद में अपने साथ मक्के से मदीना पहुंचाएं। उन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपना वकील और प्रतिनिधि बनाया ताकि वह मक्के में उन लोगों की अमानतें लौटाएं जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम के पास अपनी अमानतें रखी थीं उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम ने दूसरों से लिया क़र्ज चुकाने और दूसरों को दिए गए क़र्ज़े वापस लेने की ज़िम्मेदारी सौंपी। जिस रात नास्तिकों ने पैग़म्बरे इस्लाम पर हमला करके उन्हें टुकड़े टुकड़े करने की साज़िश रची थी, हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के बिस्तर पर सो गए और यह बड़ा ख़तरा मोल लिया। इस व्यक्तित्व को देखिए, इस महानता को देखिए यह होता है आदर्श।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बारे में कहा जाता है कि वह अपनी जवानी के समय बड़े सच्चे और पवित्र इंसान थे। उन्होंने अपनी आयु के इसी पड़ाव में ही इस्लाम को इस गहराई से समझ लिया था कि कभी भी इस्लाम की डगर से एक इंच भी नहीं हटे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अत्यधिक पवित्रता और सदाचारिता, ज्ञान के शिखर पर ख़ुद को पहुंचाया और अपने ज्ञान पर पूरी तरह अमल भी किया। वह पैग़म्बरे इस्लाम के साथ साथ रहते और ईश्वर तथा पैग़म्बरे इस्लाम के आदेशों के समक्ष हमेशा नत मस्तक रहते थे। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई का कहना है कि युवाकाल में हज़रत अली अलैहिस्सलाम का प्रकाशमान चरित्र युवाओं के लिए अमर आदर्श है। वह कहते हैं कि जब पैग़म्बरे इस्लाम ने मदीना नगर में सरकार का गठन किया तो इस पूरे दस साल के दौरान हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के पहले नंबर के सिपाही बन गए। 23 साल से 33 साल की उम्र तक उन्होंने वीर योद्धा की भूमिका निभाई, पैग़म्बरे इस्लाम के साथ साए की तरह रहते और हर कठिन घड़ी में पैग़म्बरे इस्लाम की रक्षा करते थे।

पैग़म्बरे इस्लाम का स्वर्गवास हुआ तो ख़लीफ़ा का पद हड़प लिया गया और हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने 25 साल तक सब्र किया जिसका उद्देश्य इस्लाम की रक्षा करना और मुसलमानों की एकता को प्रबल बनाना था। इस अवधि के दौरान जब भी उनकी ज़रूरत होती वह मौजूद रहते। ख़लीफ़ाओं को भी सलाह देते थे। बाद में लोगों ने बहुत आग्रह करके हज़रत अली अलैहिस्सलाम को ख़लीफ़ा बनाया। उस समय उनकी आयु सत्तावन अट्ठावन साल थी। बहुत आग्रह करने पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने ख़लीफ़ा का पद संभाला जो शुरू से उन्हीं कर अधिकार था।

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई इस बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के जीवन के अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित करते हैं जो हमेशा मानव जाति के लिए उज्जवल प्रकाश का काम करते रहेंगे। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई इसका विवरण देते हुए कहते हैं कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम का अधेड़ उम्र का काल तथा बुढ़ापे का समय भी बड़े विचित्र इम्तेहानों से भरा हुआ है और इन सभी चरणों में हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने सब्र का प्रदर्शन किया। जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने देखा कि उनके अधिकार पर हमला हो रहा है तो वह विद्रोह कर सकते थे क्योंकि हज़रत अली को किसी से कोई डर नहीं था, लेकिन उन्होंने इस्लाम धर्म के हितों को हर चीज़ से ऊपर रखा। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ख़ुद भी कहते हैं कि जब मैंने देखा कि एक समूह ने इस्लाम से मुंह फेर लिया है और लोगों को मुहम्मद के धर्म और हज़रत इब्राहीम के मत को ध्वस्त कर देने की दावत दे रहा है तो मुझे यह भय हुआ कि यदि मैंने इस्लाम और मुसलमानों की मदद न की तो धर्म के आधार कमज़ोर हो जाएंगे और तबाही होगी और यह महान इमारत गिर जाएगी। मेरे लिए यह मुसीबत सत्ता की बागडोर छिन जाने से ज़्यादा बड़ी थी क्योंकि कुछ दिन के लिए होती है और हाथ से निकल जाने वाली चीज़ है। यह बादलों की तरह तेज़ी गुज़र और बिखर जाती है। तो मैं इस क्षण लोगों के साथ हो गया मुसलमानों के क़दम से क़दम मिलाकर चल पड़ा ताकि असत्य का ख़ातेमा हो जाए और ईश्वर का संदेश सबके सामने आ जाए। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई इस बारे में कहते हैं कि हज़रत अली ने इस तरह अपने पूरे अस्तित्व से इस्लाम की रक्षा की। जब लोग उनके घर जमा हो गए और सबने आग्रह शुरू कर दिया कि शासन का कामकाज हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने हाथ में लें तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम पूरी मज़बूती के साथ मैदान में उतरते हैं। वह किसी भी चीज़ से नहीं डरते। यह हैं हज़रत अली अलैहिस्सलाम जो एक महान आदर्श हैं।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता एक अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि त्याग से भरी सादी ज़िंदगी शासन मिल जाने के बाद भी उसी तरह जारी रही और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के हद से अधिक सादे जीवन में कोई बदलाव नहीं आया। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई कहते हैं कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम के हाथ में एक विशाल शासन की बागडोर थी। जो पूरब के दूरवर्ती क्षेत्रों से लेकर मिस्र तक फैला हुआ था। यह पूरा क्षेत्र हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सरकार के भीतर था। इतने विशाल और समृद्ध क्षेत्र के इतने ताक़तवर शासक होने के बावजूद हज़रत अली अलैहिस्सलाम का निजी जीवन बिल्कु सादा था। वह ग़रीबी भरा जीवन व्यतीत करते थे। उनके पास एक ही लिबास था, वह जौ की रोटी खाते थे। वह हर प्रकार की भौतिक विलासिता से दूर थे। वह इतिना कठिन जीवन बिताते थे कि अपनी सरकार के पदाधिकारियों और आम लोगों से कहते थे कि आप लोग इस तरह का जीवन नहीं गुज़ार पाएंगे। वह वाक़ई सही कहते थे। कोई भी व्यक्ति इस तरह जीवन व्यतीत नहीं कर सकता। यह वाक़ई बड़ी हैरत की बात है कि शासन हाथ में होने के बावजूद हजरत अली अलैहिस्सलाम ने इतना सादा जीवन व्यतीत किया। उनका घर बहुत मामूली था। वह किसी बेहद ग़रीब इंसान जैसा जीवन व्यतीत कर रहे थे और इस कठिन जीवन के बावजूद उन्होंने महान कारनामे अंजाम दिए। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई कहते हैं कि अध्यात्मक की यह ज्योति हज़रत अली अलैहिस्सलाम से विशेष है। उनका कहना है कि आज तक दुनिया में कोई भी शासक हज़रत अली अलैहिस्सलाम जितना सादा जीवन व्यतीत नहीं कर सका। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के जीवन का यह पहलू अद्वितीय है।

यह कहा जा सकता है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम का जीवन एक सच्चे मुसलमान और संपूर्ण इंसान का प्रतीक है। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई हज़रत अली अलैहिस्सलाम के जीवन को सच्चे इस्लामी प्रशिक्षण का दर्पण मानते हैं। उनका कहना है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने एक महान योद्धा का चरण भी तय किया, तनहाई का जीवन भी गुज़ारा, शासक का जीवन भी बिताया। यह सारे चरण पूरे इस्लामी जगत के लिए अनगिनत पाठ से सुसज्जित हैं। यदि आज हम इस पाठ पर अमल करें तो हमारे सामने मार्गदर्शन का रास्ता खुल जाएगा।