May ०९, २०१७ १५:५८ Asia/Kolkata

हमने मुसलमानों के बीच मतभेद फैलाने वाले कारकों की विस्तार से चर्चा की थी।

हमने बताया था कि इस्लामी देशों के अयोग्य शासकों, शत्रुओं के षडयंत्रों, अशिक्षा, राष्ट्रवाद और इसी प्रकार के कई कारकों ने इस्लामी जगत और मुसलमानों को बहुत क्षति पहुंचाई है।  इसी कड़ी में एक अन्य नाम जुड़ता है दाइश का जो ख़ूंख़ार आतंकवादी गुट है।  ये अतिवादी इस्लाम के नाम पर मुसलमानों का खुलकर जनसंहार कर रहे हैं।  यह आतंकी गुट एक ओर शिया और सुन्नी के नाम पर मुसलमनों को मार रहा है और दूसरी ओर ख़ुद को इस्लामी सरकार का नाम देता है।  दाइश जैसा आतंकवादी गुट, जहां मुसलमानों को कमज़ोर कर रहा है वहीं इस्लाम के खुले शत्रु ज़ायोनी शासन की स्थिति को सुदृढ़ बना रहा है।

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आइए अब ख़ूंख़ार आतंकवादी गुट दाइश को समझने की कोशिश करते हैं।  दाइश या तथाकथित इराक़ और सीरिया इस्लामी सरकार नामक गुट, का आरंभ लगभग 2004 में हुआ।  यह वह समय था कि जब इराक़ में सक्रिय अलक़ाएदा के कुख्यात आतंकवादी अबू मुसअअब ज़रक़ावी ने “जमाते तौहीद व जेहाद” नामक गुट का गठन किया था।  ज़रक़ावी ने अलक़ाएदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन की बैअत की थी जिसके बाद वह क्षेत्र में अलक़ाएदा का प्रतिनिधि बन गया।  सन 2006 के अंत में संचार माध्यमों ने “अबू उमर बग़दादी” के माध्यम से एक गुट के गठन की सूचना दी थी जिसका नाम था, “इराक़ की इस्लामी सरकार”।  यह गुट इराक़ में सक्रिय सभी आतंकवादी गुटों के संपर्क में था।  अमरीका द्वारा इराक़ के अतिग्रहण के काल में इराक़ में अमरीकी उपस्थिति का विरोध करने वाले युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करके अलक़ाएदा, अमरीकी सैनिको का विरोध करने वाला सबसे बड़ा सशस्त्र गुट बन गया था।

सन 2006 में अमरीकी सैनिकों के हाथों ज़रक़ावी मारा गया।  ज़रक़ावी की मृत्यु के बाद “जमाते तौहीद व जेहाद” का नेतृत्व, इसी गुट के एक आतंकवादी “अबू हम्ज़ा मोहाजिर” के हाथों में चला गया।  अबू हम्ज़ा ने इस गुट की आतंकी सक्रियता बढ़ाने के अथक प्रयास किये।  उसने अमरीकी सैनिकों के विरुद्ध कई कार्यवाहियों में भाग लिया।  सन 2010 में अमरीकी सैनिकों की कार्यवाही में अबूउम्र बग़दादी के साथ अबू हम्ज़ा मोहाजिर मारा गया।  “इराक़ की इस्लामी सरकार” नामक गुट की परिषद ने अबूउम्र बग़दादी और अबू हम्ज़ा मोहाजिर की मौत के दस दिनों के बाद एक बैठक बुलाई और “अबूबक्र बग़दादी” को इस आतंकवादी गुट का नेता चुना।

अबूबक्र बग़दादी का जन्म सन 1971 में इराक़ के सामर्रा नगर में वहाबी विचारधारा वाले कट्टर परिवार में हुआ था।  उसने बग़दाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी।  दाइश का मुखिया बनने से पहले बग़दादी, सामर्रा का इमामे जुमा था।  “इराक़ की इस्लामी सरकार” नामक गुट का मुखिया बनने के बाद बग़दादी, वहाबी विचारधारा के सक्रिय प्रचारक के रूप में जाना जाने लगा।  लंबे समय तक अलक़ाएदा का सदस्य रहने के बाद बग़दादी, सन 2010 में “इराक़ की इस्लामी सरकार” नामक गुट का मुखिया बना था।  सीरिया संकट के आरंभ होने के एक वर्ष के बाद अबूबक्र बग़दादी ने अपने लड़ाके सीरिया भेजे ताकि वे बग़दादी के दृष्टिगत लक्ष्यों को आगे बढ़ा सकें।  जिस दौरान बग़दादी के चेले सीरिया में आतंकवादी कार्यवाहियां करने में व्यस्त थे, अबूबक्र बग़दादी के सलाहकार अबू मुहम्मद अलजौलानी ने सीरिया में नुस्रा फ़्रंट के नाम से एक आतंकी गुट का गठन किया।  सीरिया में अलजौलानी के बढ़ते प्रभाव के कारण “इराक़ की इस्लामी सरकार” नामक गुट और नवगठित नुस्रा फ़्रट गुटों के बीच मतभेद फैलने लगे।  दोनो आतंकवादी गुट एक-दूसरे से अलग हो गए और उनके बीच गंभीर झड़पें हुईं जिसमें दोनों ओर से कई आतंकवादी मारे गए।

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अबूबक्र बग़दादी ने अलक़ाएदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन की मृत्यु के बाद इसके नए प्रमुख एमन अज़्ज़वाहिर की बैअत नहीं की थी।  इस प्रकार बग़दादी ने लादेन के उत्तराधिकारी से हाथ नहीं मिलाया।  अबूबक्र बग़दादी के निकटवर्तियों का कहना है कि उसका मानना है कि हम अपने लड़ाकों को किसी एक स्थान पर एकत्रित करके उनके लिए ख़तरे उत्पन्न नहीं करना चाहते।  दाइश ने इराक़ के आर्थिक संसाधनों को लूटकर अकूल संपत्ति इकट्ठा की है।  जानकारों का कहना है कि तेल को लूटकर उसे ब्लैक मार्केट में बेचकर बग़दादी ने बहुत पैसा कमाया और मूसिल का नियंत्रण अपने हाथों में लेने के बाद दाइश को बड़ी मात्रा में हथियार प्राप्त हुए।  इन जानकारों का मानना है कि कुछ अरब और यूरोपीय देशों द्वारा दाइश के आर्थिक समर्थन के कारण यह आतंकवादी गुट आज भी अपनी गतिविधियां जारी रखे हुए है।

आतंकवादी गुट दाइश ने इराक़ और सीरिया में बहुत हिंसात्मक कार्यवाहियां कीं और लंबे समय तक यह गुट इन देशों में सक्रिय रहा।  वास्तव में दाइश, वहाबी विचारधारा पर आधारित आतंकवादी संगठन है जिसे कुछ अरब और यूरोपीय देशों के खुले समर्थन के साथ इराक़ी तानाशाह सद्दाम की बास पार्टी का भी आशीर्वाद प्राप्त है।  वैसे तो दाइश को इराक़ पर अमरीका एवं ब्रिटेन के आक्रमण का परिणाम बताया जा सकता है किंतु वास्तविकता यह है कि यह गुट अमरीका से संघर्ष के बहाने मुसलमानों के विरुद्ध खुलकर हिंसक कार्यवाही कर रहा है।

इराक़ से अमरीकी सैनिकों की वापसी, सीरिया संकट, इराक़ के स्थान पर सीरिया में अधिक गतिविधियां करना और बश्शार असद के बारे में सऊदी अरब, अमरीका, तथा इस्राईल के समान दृष्टिकोण वे विषय हैं जिन्होंने दाइश जैसे आतंकवादी गुट के साथ सहयोग के लिए भूमि प्रशस्त की है।  दाइश ने पहले तो सीरिया के सुन्नी मुलसमानों के समर्थन के नारे के साथ बश्शार असद की सरकार के विरुद्ध युद्ध आरंभ किया किंतु कई देशों की गुप्तचर सेवाओं की सहायता के बावजूद उसे सीरिया में भारी पराजय का सामना करना पड़ा जिसके कारण दाइश ने इराक़ पर अचानक हमला करने के बाद वहां के बहुत से क्षेत्रों पर अधिकार प्राप्त कर लिया।

दाइश का कहना है कि उसका मुख्य उद्देश्य, शुद्ध इस्लामी सरकार का गठन करके इस्लामी नियमों को लागू करना है।  इस दावे के बावजूद यह आतंकवादी गुट इस्लाम के नाम पर जघन्य अपराध कर रहा है।  दाइश के आतंकवादियों के अपराधों ने इस गुट की अमानवीय तस्वीर को विश्व के समाने पेश किया है।  यह गुट आत्मघाती कार्यवाहियों के लिए बच्चों और किशोरों को इस्तेमाल करता है।  दाइश एसा ख़ूंख़ार संगठन है जो अपनी नीतियों को लागू करने के लिए कोई भी काम करने से पीछे नहीं है।  दाइश की सदस्यता छोड़कर अलग होने वाले एक आतंकवादी ने बताया कि जब मैंने दाइश की सदस्यता ग्रहण की और मैं सीरिया गया तो दाइश प्रमुख के आदेश पर मुझे युद्ध के मोर्चे पर जाने के बजाए एक जेल के प्रभारी के रूप में भेजा गया।  मुझसे कहा गया था कि जेल में बंद लोगों की मैं कोड़े से पिटाइ करूं।  इस आतंकवादी का कहना है कि मुझको यह नहीं मालूम था कि मुझको क्यों क़ैदियों की पिटाई करनी है।  ऊपर से आने वाले आदेश के अनुसार मैंने हर क़ैदी को 40 से 80 कोड़े लगाए।  क़ैदियों में महिला और पुरूष दोनों ही थे।  उसका कहना था कि मेरे काम को जेल में जेहाद का नाम दिया गया।

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बहुत से साक्ष्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि दाइश जैसे आतंकवादी गुट को अस्तित्व देने में अमरीका की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है।  इस बात को अमरीका के पूर्व गुप्तचर अधिकारी माइकल फ्लेन ने भी स्वीकार किया है।  उन्होंने अलजज़ीरा टीवी चैनेल को दिये एक साक्षात्कार में बताया था कि सन 2012 में अमरीका को गुप्तचर सेवा ने इराक़ में दाइश के उभरने की भविष्यवाणी की थी।  अमरीका ने दाइश को हमेशा एक चुनौती के रूप में नहीं बल्कि एक हथकंडे के रूप में देखा है।  अमरीका इस गुट के ख़तरे को सदैव अनदेखा करते हुए परोक्ष रूप से उसकी सहायता कर रहा है।

दाइश को मज़बूत करने में अमरीका के अतिरिक्त कुछ अरब देशों की भूमिका को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता।  जानकार सूत्रों का कहना है कि दाइश के अस्तित्व में आने के मात्र सात दिनों के बाद सऊदी अरब से मिलने वाली इराक़ की सीमा पर हथियारों से लदे सैकड़ों ट्रक देखे गए।  इसके अतिरिक्त सऊदी अरब की ओर से दाइश की आर्थिक सहायता भी की जा रही है।  कुछ टीकाकारों का यह मानना है कि सऊदी अरब को इस बात का भय है कि कही उसकी सीमा पर किसी लोकतांत्रिक सरकार का गठन न होने पाए इसलिए वह इराक़ के लिए नित नई समस्याएं उत्पन्न कर रहा है।

दाइश के गठन में ज़ायोनी शासन की भूमिका को बिल्कुल भी अनदेखा नहीं किया जा सकता।  ज़ायोनी शासन, दाइश के माध्यम से मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा करके उनको अधिक से अधिक कमज़ोर करने के चक्कर में है।  यह अवैध शासन, सऊदी अरब के साथ सहयोग करके दाइश को सुदृढ़ कर रहा है ताकि इस्लामी गणतंत्र ईरान के नेतृत्व में बढ़ते प्रतिरोध को रोका जा सके।  इन बातों के दृष्टिगत कहा जा सकता है कि वास्तव में दाइश, ज़ायोनी शासन और पश्चिम के एसे लड़ाके हैं जो मुसलमान क्षेत्रों में इस्लाम के नाम पर मुसलमानों के विरुद्ध जघन्य अपराध कर रहे हैं।