Mar १५, २०१६ १८:४२ Asia/Kolkata

हमने बताया था कि अबू इस्माईल अब्दुल्लाह बिन मंसूर अंसारी का जन्म तूस के निकटवर्ती क्षत्र कोहनदेज़ में हुआ था।

हमने बताया था कि अबू इस्माईल अब्दुल्लाह बिन मंसूर अंसारी का जन्म तूस के निकटवर्ती क्षत्र कोहनदेज़ में हुआ था। यह भी एक संयोग है कि उनका जन्म और उनकी मृत्यु दोनों ही एक दिन अर्थात शुक्रवार को हुई। अपने 85 वर्ष के जीवनकाल में अब्दुल्लाह अंसारी ने साहित्य तथा सूफ़ीवाद के क्षेत्र में भी प्रभावी गतिविधियां कीं।

  जैसाकि आप जानते हैं कि चौथी और पांचवी हिजरी क़मरी में ख़ुरासान, इस्लामी सूफ़ीवाद का केन्द्र था। यहां पर बड़े-बड़े पुस्तकालय थे जिनसे लाभ उठाने के लिए विश्व के कई देशों के विद्धान यहां पर आते थे। खुरासान में ही एक ऐसे केन्द्र की स्थापना की गई थी जिसका उद्देश्य सूफीवाद में प्रचलित कुरीतियों को दूर करना था।

ख़्वाजा अब्दुल्लाह अंसारी की महत्वपूर्ण सेवा यह थी कि उन्होंने सूफीवाद से संबन्धित चरणों को संकलित किया जिनको बाद में वर्गीकृत कर दिया। इस प्रकार इस मार्ग पर चलने वालों को बड़ी सहायता मिली। इस काम की विशेषता यह है कि यह केवल आध्यात्म तक ही सीमित नहीं है बल्कि इनमें दैनिक जीवन से संबन्धित नियमों का भी समावेश किया गया है। इससे सूफी-संतों को यह सहायता मिलती है कि वे सन्यासी न होकर सांसारिक जीवन व्यतीत करते हुए सूफीवाद की राह पर बढ़ते रहते हैं।

अब्दुल्लाह अंसारी का सूफीवाद इस्लामी शिक्षाओं से जुड़ा हुआ था। उनका मानना था कि वास्तविकता को पहचानने के लिए धार्मिक शिक्षा का सहारा लेना पड़ता है। यही बात वे अपने शिष्यों को भी समझाते थे। वे धर्म के प्रति कटिबद्ध थे और लोगों से अच्छे काम करने और बुरे कामों से रुकने का आह्वान किया करते थे। अब्दुल्लाह अंसारी उन लोगों का कड़ा विरोध करते बल्कि उनके विरुद्ध संघर्ष किया करते थे जो धार्मिक शिक्षाओं को अर्थहीन समझते थे। वे सूफीवाद के नियमों को केवल बुद्धि और तर्क से सिद्ध करने के पक्षधर नहीं थे बल्कि उनका मानना था कि वास्तविकता को पवित्र क़ुरआन से सिद्ध किया जा सकता है।

इतिहासकारों का मानना है कि अब्दुल्लाह अंसारी ही वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सूफी साहित्य में विषयों के हिसाब से कविताएं कहीं और बाद में सादी शीराज़ी ने इस शैली को शिखर तक पहुंचाया। एक फ़्रांसीसी शोधकर्ता का कहना है कि अब्दुल्लाह अंसारी की कविताएं, सूफ़ियों के लिए मार्गदर्शन थीं जिसे वास्तव में फ़ार्सी साहित्य में सूफ़ियों के लिए आरंभ करने वाले का महत्व प्राप्त है।

यह बात सही है कि अब्दुल्ला अंसारी शेर कहते थे किंतु उनके शेर उपलब्ध नहीं हैं। स्वयं अब्दुल्लाह अंसारी का कहना है कि उन्हें बचपन से ही कविता कहने में लगाव था। उन्होंने बहुत ही छोटी आयु में शेर कहने आरंभ कर दिये थे। हालांकि अब्दुल्लाह अंसारी के सारे मंज़ूम शेर उपलब्ध नहीं हैं लेकिन जितने शेर मौजूद हैं उनसे उनकी शायरी के बारे में फैसला किया जा सकता है।

साहित्य या कला के क्षेत्र में ख़्वाजा अब्दुल्लाह अंसारी की ख्याति, उन शेरों के कारण है जो उन्होंने फारसी भाषा में दुआओं के रूप में कहे हैं। सूफीवाद के बारे में उनकी महत्वपूर्ण रचना का नाम मनाज़ेलुस्साएरीन है। इसे सन 475 हिजरी में अरबी भाषा में लिखा गया था। सन 448 हिजरी में उन्होंने सद मैदान नामक एक पुस्तिका लिखी थी जो फारसी भाषा में थी। उनकी इस पुस्तिका को वास्तव में मनाज़ेलुस्साएरीन की भूमिका माना जाता है।

अब्दुल्लाह अंसारी ने मोतज़ेला और अशअरी विचारधारा के जवाब में एक किताब लिखी है जिसका नाम है ज़म्मुल कलाम। यह किताब उन्होंने निशापूर में लिखी थी। कहा जाता है कि इस किताब को लिखने और दर्शनशास्त्र जैसे बौद्धिक विषयों का विरोध करने के कारण वे अधिक समय तक निशापूर में नहीं रह सके। इसके कारण उन्हें कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और वे निशापूर छोड़ने पर विवश हुए।

उनकी एक अन्य पुस्तक का नाम है, मुख़्तसर फी आदाबिस्सूफ़िया वस्सालेकीन अत्तरीकुल हक़। सन 1960 में यूरकूई के प्रयासों से इसे क़ाहिरा में प्रकाशित किया गया। अब्दुल्लाह अंसारी ने इमाम अहमद हंबल की विशेषताएं भी लिखी हैं जो बग़दाद के पुस्तकालय में मौजूद है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य पुस्तकों को अब्दुल्लाह अंसारी से ही संबन्धित बताया जाता है जिनके नाम इस प्रकार हैं। मोनाजात-नामे, नसायेह, ज़ादुलआरेफ़ीन, कंज़ुल सालेकीन, क़लंदर-नामे, मुहब्बतनामे और हफ़्त हेसार।

अब्दुल्लाह अंसारी के महत्वपूर्ण कार्यों में से एक कार्य सुल्लमी की पुस्तक तबक़ातुस्सूफ़िया का फ़ारसी भाषा में अनुवाद है। यह किताब फ़ारसी साहित्य के इतिहास में, तबक़ातुस्सूफ़िये हेरवी के नाम से मशहूर है। इसकी प्रमुख विशेषता यह है कि इस पुस्तक के माध्यम से उस काल में प्रचलित हेरवी शब्दों को सरलता से समझा जा सकता है।


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