Nov १५, २०१७ १६:५७ Asia/Kolkata

हमने आपको बताया था कि हालिया कुछ दशकों के दौरान जो वैज्ञानिक प्रगति हुई है उसके कारण ईरान ने भी विज्ञान की दृष्टि से उल्लेखनीय प्रगति की है।

  वर्तमान समय में विज्ञान और तकनीक की दृष्टि से ईरान, संसार में प्रगति करने वाले देशों की सूचि में पहुंच चुका है।  परमाणु विज्ञान, नैनो टेकनालाजी, अंतरिक्ष और इसी प्रकार के आधुनिक विज्ञान में तेज़ी से प्रगति कर रहा है।  ईरान ने जो प्रगति की है उसके पीछे उस इस्लामी संस्कृति का हाथ है जिसका वह अनुसरण करता है। 

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( इस्लाम में ज्ञान को विशेष महत्व प्रदान है।  पवित्र क़ुरआन में ऐसी बहुत सी आयतें हैं जो यह दर्शाती हैं कि इस्लाम धर्म में ज्ञान और ज्ञानी को विशेष महत्व प्राप्त है।  ज्ञान के महत्व के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजनों के भी बहुत से कथन मौजूद हैं।  पवित्र क़ुरआन में एक स्थान पर ईश्वर उन लोगों को विशेष चरण में पहुंचाने का वादा करता है जिन्होंने ज्ञान प्राप्त किया है।  क़ुरआन कहता है कि ईश्वर का भय भी उन्हीं लोगों में पाया जाता है जो ज्ञानी होते हैं।  ईश्वर के निकट उसके वे दास ही विशेष स्थान रखते हैं जिन्होंने ज्ञान अर्जित किया है।  ईश्वर ने लोगों को ज्ञान का महत्व समझाते हुए एक स्थान पर क़लम की क़सम खाई है।  पवित्र क़ुरआन की पहली आयत में पढ़ने का आदेश दिया गया है।  ईश्वर ने अपने दूतों को धरती पर भेजने का एक कारण लोगों को शिक्षित करना बताया है।  इन सब बातों से हमें यह पता चलता है कि ईश्वर के निकट ज्ञान का क्या महत्व है।  इससे हमको यह पाठ मिलता है कि हमें अपने जीवन में अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करें।

पवित्र क़ुरआन, जहां पर लोगों से ज्ञान अर्जित करने की सिफ़ारिश करता है वहीं पर यह भी कहता है कि हे लोगों तुम सृष्टि में सोच-विचार या चिंतन-मनन किया करो।  ईश्वर कहता है कि हे लोगों तुम धरती, आकाश, पशु-पक्षियों, वनस्पतियों और सृष्टि में पाई जाने वाली चीज़ों में बारे में सोच विचार करने के साथ ही साथ, इतिहास से भी पाढ लेने का प्रयास करो  देखों कि तुमसे पहले वालों का क्या अंजाम हुआ?  कुछ आयतों में इस बात को प्रशनसूचक शब्दों के माध्यम से पेश किया गया है।  लोगों से कहा गया है कि वे अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर अपनी बुद्धि को सोचने के लिए प्रेरित करें।  पवित्र क़ुरआन के हिसाब से ज्ञान प्राप्त करने के बाद दूसरा चरण चिंतन और सोच-विचार का है।)

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पवित्र क़ुरआन के अतिरिक्त पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में ज्ञान और ज्ञानी के महत्व को समझाया गया है।  पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों में ज्ञान के साथ ही साथ ज्ञानी की भी प्रशंसा की गई है।  उनके कथन में ज्ञानी को ईश्वरीय दूतों की श्रेणी में रखा गया है।  आप कहते हैं कि हर वह व्यक्ति जो ज्ञान प्राप्त करे और ईश्वर को प्रसन्न करने के उद्देश्य से उस ज्ञान को दूसरों तक पहुंचाए, ईश्वर उसको 70 पैग़म्बरों जैसा सवाब देगा।  वे कहते हैं कि ज्ञान हासिल करके मनुष्य, सीधे रास्ते को पहचान सकता है और इस प्रकार वह ईश्वर के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है।  ज्ञान प्राप्त करने वाले को ईश्वर के मार्ग में युद्ध करने वाले से भी श्रेष्ठ बताया गया है।  वे कहते हैं कि शहीद की तुलना में ज्ञानी अधिक श्रेष्ठ है।  पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं कि मैंने जिब्राईल से पूछा कि ईश्वर के निकट शहीद श्रेष्ठ है या ज्ञानी तो उन्होंने कहा कि उसके निकट हज़ार शहीदों के मुक़ाबले में एक ज्ञानी, ईश्वर के निकट अधिक महत्व का स्वामी है।  इसका कारण यह है कि ज्ञानी, ईश्वरीय दूतों की शिक्षाओं को भी फैलाते हैं।  यही कारण है कि आपके एक कथन में मिलता है कि ज्ञानी को देखना, ईश्वरीय दूतों के दर्शन के समान है और उनके दर्शन करना, सवाब का काम है।  पैग़म्बरे इस्लाम के कथनानुसार जो व्यक्ति ज्ञान अर्जित करता है उसके प्रायश्चित के लिए पेड़-पौधे, सूरज, चांद , सितारे, हवाएं, बादल और समुद्र् सभी दुआ करते हैं।  ईश्वर के अन्तिम दूत कहते हैं कि जो भी ज्ञानी का सम्मान करता है वह ऐसा ही है जैसे उसने मेरा सम्मान किया।  जिसने मेरा सम्मान किया वह ऐसा है जैसे उसने ईश्वर का सम्मान किया और जो ईश्वर का सम्मान करता है वह स्वर्ग में जाएगा।

पैग़म्बरे इस्लाम ने ज्ञान और ज्ञानियों के महत्व के बारे में न केवल बातें कही हैं बल्कि व्यवहारिक रूप में उन्होंने अपने जीवन में भी एसा किया है।  बद्र युद्ध के बंदियों को स्वतंत्र करने के लिए उन्होंने यह शर्त रखी थी कि बंदी, मुसलमानों को शिक्षा दे जिसके बाद वे स्वतंत्र कर दिए जाएंगे।  इस्लाम ने आरंभ से ही ज्ञान अर्जित करने में महिला या पुरुषों पर कोई रोक नहीं लगाई बल्कि इस काम के लिए मुसलमानों को प्रेरित किया है।  साथ ही यह भी कहा है कि ज्ञान अर्जित करने के लिए यदि परेशानियां उठानी पड़ें तो परेशानियां उठाते हुए ज्ञान अवश्य अर्जित करो।  पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि ज्ञान की प्राप्ति हर मुसलमान के लिए आवश्यक है।  यह सब बातें इसकी परिचायक हैं कि इस्लाम धर्म में धार्मिक दृष्टि से ही ज्ञान अर्जित करने को कहा गया है और इसको उपासना की श्रेणी में रखा गया है।

हालांकि यह बात सही है कि इस्लाम की आत्मा, ईश्वर की उपासना में है इसीलिए उपासना पर धर्म में बहुत बल दिया गया है।  लेकिन पैग़म्बरे इस्लाम का मानना है कि ज्ञान प्राप्त करना, मात्र उपासना करने की तुलना में अधिक महत्व का स्वामी है।  इस बारे में वे कहते हैं कि उपासकों की तुलना में ज्ञानियों का महत्व वैसा ही है जैसे तारों की तुलना में चौदहवीं का चांद।  पैग़म्बरे इस्लाम के अनुसार ज्ञान अर्जित करके मनुष्य उचित ढंग से ईश्वर की उपासना कर सकता है।

इस्लाम में तो ज्ञान के अर्जित करने पर विशेष बल दिया गया है और उसको ईश्वर की उपासना की भूमिका भी बताया गया है किंतु मध्य युगीन काल में चर्च ने ज्ञान प्राप्त करने पर प्रतिबंध लगा दिया था।  ईसाई धर्मगुरूओं का मानना था कि ज्ञान की प्राप्ति, उपासना के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है।  इसको उस समय भ्रष्ट बताया गया था।  गिरजाघरों के पादरियों का मानना था कि ज्ञान प्राप्त करके कोई मनुष्य सही उपासना नहीं कर सकता और वह भ्रष्ट हो जाता है अतः ज्ञान की प्राप्ति अवैध और वर्जित कर दी गई।  इसके विपरीत इस्लाम में आरंभ से ही ज्ञान की प्राप्ति पर बल दिया गया और यह कहा गया है कि जितना हो सके अपने जीवन में ज्ञान अर्जित करो।  पैग़म्बरे इस्लाम का एक कथन है कि जन्म से लेकर मृत्यु तक हर समय ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहो।

यही ज्ञान और शिक्षा जहां पर बहुत महत्व रखते हैं वहीं पर यह बात भी ध्यान योग्य है कि यदि इसका दुरूपयोग किया जाए तो यह हानिकारक भी सिद्ध हो सकता है।  इस हिसाब से ज्ञान और विज्ञान एसे चाकू के समान है जिससे आपरेशन भी किया जा सकता है और हत्या भी।  यही जहां पर मानव जाति के कल्याण का कारण बन सकता है वहीं पर उसके विनाश का भी कारण बन सकता है।  ऐसे में मनुष्य को उस ज्ञान की ओर बढ़ना चाहिए जो स्वयं उसके और मानवजाति के लिए लाभदायक हो हानिकारक न हो।