मानव तस्करी- 1
अमेरिकी सरकार ने ईरान के खिलाफ निराधार आरोपों के क्रम को जारी रखते हुए अब उसमें मानव तस्करी का भी नया आरोप जोड़ दिया है।
अमेरिकी विदेशमंत्रालय ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में ईरान का नाम उन देशों की सूची में शामिल कर दिया है जिन पर मानव तस्करी का आरोप है। अमेरिकी विदेशमंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान मानव तस्करी को समाप्त करने के लिए न केवल कम से कम मापदंड पर ध्यान नहीं दे रहा है बल्कि इस संबंध में उसने कोई प्रयास नहीं किया है। अमेरिका ने इस चीज़ को बहाना बनाकर कुछ सीमितताएं भी ईरान पर लगा दी हैं।
मानव तस्करी एक बुरी व खतरनाक चीज़ है और उसने सीधे तौर पर इंसान की प्रतिष्ठा को लक्ष्य बनाया है। इस्लामी गणतंत्र ईरान ने सदैव इंसानों की प्रतिष्ठा और उनके अधिकारों पर ध्यान दिया है और यह बात सदैव उसके लिए महत्वपूर्ण रही है। इसी कारण ईरान की संसद मजलिसे शुराये इस्लामी ने भी मानव तस्करी से मुकाबले के लिए एक कानून पारित करके समस्त रूपों में उससे मुकाबले पर बल दिया है। साथ ही इस कानून में मानव तस्करी करने वालों के लिए दंड का प्रावधान है। कुछ कार्यक्रमों में हम मानव तस्करी के बारे में चर्चा करेंगे। सदा की भांति आज भी कार्यक्रम में हमारे साथ रहिये।
संयुक्त राष्ट्रसंघ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं में गैर कानूनी और चुपके से की जाने वाली कार्यवाही को मानव तस्करी मानता है। लोगों के स्थानांतरण के लिए जो कार्यवाही अंजाम दी जाती है वह आम तौर पर विकासशील और आर्थिक दिशा में प्रगति करने वाले देशों से की जाती है और उसका लक्ष्य यौन शोषण और मज़दूरी कराके भारी मुनाफा कमाना होता है। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने इस बात की पुष्टि की है कि प्रतिवर्ष विश्व में लगभग 30 लाख बार मानव तस्करी होती है। इनमें से 56 प्रतिशत एशिया से और 10 प्रतिशत लैटिन अमेरिका से होती है जबकि 9 प्रतिशत का संबंध मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीक़ा से है।
सवाल यह उठता है कि मानव तस्करी का स्रोत कहां है? क्यों और किस प्रकार उन देशों ने स्वयं को मानव तस्करी के घिनौने कार्य से अलग कर लिया है और दूसरों पर मानव तस्करी का आरोप लगा रहे हैं जो हज़ारों निर्दोष लोगों की तस्करी के जिम्मेदार हैं और हज़ारों महिलाओं व लड़कियों की तस्करी के लिए भूमि प्रशस्त कर दी।
संयुक्त राष्ट्रसंघ के श्रम संगठन ILO की रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष लगभग 42 लाख लोगों की तस्करी की जाती है और तस्करों को इससे 32 अरब डालर का गैर कानूनी मुनाफा होता है।
लगभग 30 लाख तस्करी होने वाले इंसानों में से 50 प्रतिशत अमेरिका और यूरोप पहुंचते हैं। इस तस्करी का लक्ष्य यौन शोषण करना और कुछ कठिन काम कराना होता है। रोचक बात है कि छुट्टी के बिना हफ्तों और कई - 2 घंटों तक कठिन कार्य कराये जाते हैं और उसके बदले में मजदूरी भी नहीं दी जाती है।
प्रतिवर्ष विकासशील देशों से लगभग 25 लाख लोगों की तस्करी की जाती है जिनमें आधे बच्चे होते हैं। इसमें से एक लाख से अधिक लोगों की तस्करी अमेरिका होती है जो मुख्य रूप से मैक्सिको, चीन और वियतनाम जैसे देशों के लोग होते हैं और मानव तस्करी के इस घिनौने व्यापार से जो अरबों डालर का मुनाफा होता है उसमें से आधे का संबंध अमेरिकियों से होता है।
मानव तस्करी के राष्ट्रीय अध्ययन केन्द्र NHTRC ने भी इस बात की पुष्टि की है। ज्ञात रहे कि इस केन्द्र का दायित्व मानव तस्करी के खिलाफ संघर्ष करना है।
यूरोपीय संघ की आंतरिक नीति आयोग की कमिश्नर सिसिलिया मैलमश्ट्रोम ने एक जर्मन समाचार पत्र “डी वोल्ट” से साक्षात्कार में कहा है कि यूरोप में भी मानव तस्करी होती है। वह कहती हैं बड़ी मुश्किल से इस बात पर विश्वास किया जा सकता है किन्तु यूरोपीय देशों में दसियों हज़ार लोगों को वस्तुओं की भांति खरीदा- बेचा जाता है। यह कटु वास्तविकता है कि इंसानों का व्यापार हमारे आस- पास हर स्थान पर है और जो हम सोचते हैं उससे बहुत अधिक हमारे निकट है।
अमेरिका में आधिकारिक संस्थाओं के शोध दर्शाते हैं कि कानूनी उम्र से कम की प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक लड़कियों का व्यापार यौन शोषण के लिए होता है। यहां तक अमेरिका की राजधानी वाशिंग्टन में भी यौन शोषण के लिए लड़कियों का व्यापार होता है और उनमें से कुछ की उम्र लगभग 13 साल होती है।
मानवाधिकार की रक्षा के बारे में अमेरिका का जो दावा है वह वास्तविकता के बिल्कुल विरुद्ध है। अमेरिका ऐसी स्थिति में मानवाधिकारों की रक्षा का दावा कर रहा है जब उसने बच्चों के अधिकार कन्वेन्शन और महिलाओं साथ होने वाले भेदभाव के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले जैसे विभिन्न अंतरराष्ट्रीय कन्वेन्शनों की सदस्यता तक स्वीकार नहीं की है। इसके बावजूद अमेरिकी विदेशमंत्रालय प्रतिवर्ष विभिन्न देशों में मानवाधिकार की स्थिति के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित करता है। मानवाधिकार आयोग की घोषणा के अनुसार अमेरिका ने किसी क्षेत्रीय मानवाधिकार आयोग व संगठन की सदस्यता भी स्वीकार नहीं की है और अगर किसी कन्वेन्शन का सदस्य बना भी है तो अमेरिकी कांग्रेस ने उसकी पुष्टि नहीं है। यह उन वास्तविकताओं का एक भाग है जिन्हें अमेरिका अवास्तविक रिपोर्टें प्रकाशित करके भी नहीं छिपा सकता। अमेरिकी दावों के खिलाफ इस्लामी गणतंत्र ईरान उन देशों में से है जिसने वर्षों पहले मानव तस्करी से मुकाबले के लिए संसद में कानून बनाया।
ईरानी संविधान की धारा 156 में स्पष्ट रूप से और धारा 8 में परोक्ष रूप से अपराधों को रोकने पर ध्यान दिया गया है और यह विषय अपराधों को रोकने में ईरान की भूमिका व गम्भीरता का सूचक है।
दूसरी ओर इस्लामी गणतंत्र ईरान ने मानव तस्करी रोकने और इस संबंध में विश्व समुदाय के साथ चलने की दिशा में 2004 में गम्भीर प्रयास आरंभ किया।
इस्लामी गणतंत्र ईरान ने अफगानी और गैर अफगानी लाखों लोगों को जो अपने यहां शरण दे रखी है वह ईरान के प्रयास का मात्र एक भाग है और स्वतंत्र यूरोपीय व अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने ईरान के इस क़दम की प्रशंसा भी की है।
ईरान में शरणार्थी मामलों में संयुक्त राष्ट्रसंघ की उच्चायुक्त सिवान्का दानापाला ने 20 जून को अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी दिवस पर ईरान के पवित्र नगर मशहद में आयोजित विशेष कार्यक्रम में स्पष्ट किया कि इस्लामी गणतंत्र ईरान शांतिप्रेम और मानव दोस्ती की भावना के साथ सदैव अंतरराष्ट्रीय समझौतों से बढ़कर शरणार्थियों की सेवा में रहा है।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अमेरिकी विदेशमंत्रालय ने राजनीति से प्रेरित जो रिपोर्ट प्रकाशित की है उसका लक्ष्य इस्लामी गणतंत्र ईरान की छवि को बिगाड़ कर पेश करना है। इस्लामी गणतंत्र ईरान के बारे में अमेरिका निराधार दावा एसी स्थिति में कर रहा है जब ईरान इस्लाम की उच्च शिक्षाओं के साथ एसे बेहतरीन संविधान का स्वामी है जिसमें मानवाधिकारों का पूरा -पूरा ध्यान रखा गया है। स्पष्ट है कि अमेरिकी सरकार मानवाधिकार के हनन का निराधार आरोप दूसरों पर मढ़कर स्वयं को बरी नहीं कर सकती।