इस्लाम और मानवाधिकार- 56
जैसा कि हमने आपको बताया था कि इस्लाम धर्म, लोक परलोक में मनुष्य के कल्याण का एक संपूर्ण व समग्र कार्यक्रम है जिसमें इंसान के व्यक्तिगत, सामाजिक, शारीरिक व मानसिक आवश्यकताओं के सभी पहलुओं को दृष्टिगत रखा गया है।
इस्लाम धर्म में पड़ोसियों के बारे में भी अत्यंत महत्वपूर्ण आदेश दिए गए हैं। ईश्वर ने क़ुरआने मजीद में एक दूसरे के प्रति मुसलमानों के अधिकारों और कुछ गुटों विशेष कर पड़ोसियों के साथ भलाई के बारे में कई अहम आदेश दिए हैं। सूरए निसा की आयत नंबर 36 में कहा गया है और अपने निकट व दूर के पड़ोसी के साथ भलाई करो।

अच्छे पड़ोसी के महत्व से हर कोई अवगत है और इसका इन्कार नहीं किया जा सकता क्योंकि एक ओर ईश्वर की ओर से मनुष्य की सृष्टि समाजिक व सामूहिक जीवन के आधार पर की गई है और सभी मनुष्य एक दूसरे की मदद से आवश्यकता मुक्त नहीं हैं और आपसी सहयोग के बिना जीवन जारी नहीं रख सकते और दूसरी ओर सामूहिक जीवन के लिए एक दूसरे के साथ रहना ज़रूरी है अतः वह समाज जो इंसानों से बनता है उसमें लोगों का एक साथ रहना ज़रूरी है ताकि वे जीवन की समस्याओं को दूर कर सकें। एक साथ रहने का अर्थ पड़ोस है जिसमें निकट और दूर दोनों तरह के पड़ोसी शामिल हैं।
सामाजिक जीवन में पड़ोसी, रिश्तेदारों से भी अहम होता है क्योंकि संभव है कि मनुष्य के रिश्तेदार उसके पास न हों लेकिन पड़ोसी हमेशा इंसान के साथ होता है और पड़ोसी एक दूसरे के साथ जीवन बिताते हैं, एक दूसरे के सुख-दुख में शामिल रहते हैं और रात दिन के हर भाग में एक दूसरे के लिए उपलब्ध रहते हैं। यह वह चीज़ है जिसे हर व्यक्ति समझता है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम पड़ोसियों के आपसी व्यवहार को मनुष्य के कल्याण व आराम में प्रभावी बताते थे और अपने अनुयाइयों से सिफ़ारिश करते थे कि वे रहने क लिए ऐसे स्थान का चयन करें जहां उन्हें अच्छे पड़ोसी मिलें। एक बार उनके एक साथी ने उनसे पूछा कि मैं घर ख़रीदना चाहता हूं आपके विचार में मैं किस मुहल्ले में घर ख़रीदूं? पैग़म्बे इस्लाम ने किसी विशेष मुहल्ले का नाम लिए बिना कहाः सबसे पहले पड़ोसी को देखो और फिर घर ख़रीदो, पहले मित्र चुनो, फिर यात्रा करो।
इसी तरह पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से कहा गयाः हे पैग़म्बर! अमुक औरत हराम दिनों को छोड़ कर हर दिन रोज़ा रखती है और रात, उपासना व प्रार्थना में बिताती है लेकिन वह अपने पड़ोसियों को ज़बान से तकलीफ़ पहुंचाती है। पैग़म्बर ने फ़रमायाः उसके रोज़े, उपासना और रात भर जाग कर प्रार्थना का कोई लाभ नहीं है और वह नरक में जाएगी। उनसे कहा गयाः एक दूसरी औरत है जो दिन की केवल अनिवार्य नमाज़ें पढ़ती है और सिर्फ़ रमज़ान के रोज़े रखती है लेकिन पड़ोसियों को नहीं सताती। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहाः जो कोई अपने माल व सम्मान के प्रति पड़ोसी के डर से अपने घर का दरवाज़ा बंद कर ले उसका पड़ोसी ईमान वाला नहीं है।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से पूछा गयाः एक पड़ोसी पर दूसरे पड़ोसी का अधिकार क्या है? उन्होंने कहाः एक पड़ोसी पर दूसरे पड़ोसी का सबसे कम अधिकार यह है कि अगर वह उससे ऋण मांगे तो उसे ऋण दे, अगर मदद मांगे तो उसकी मदद करे, कोई चीज़ उधार मांगे तो उसे प्रदान करे, अगर उसे आर्थिक मदद की ज़रूरत हो तो उसकी आर्थिक मदद करे, अगर उसे आमंत्रित करे तो उसके निमंत्रण को स्वीकार करे, अगर वह बीमार पड़ जाए तो उसे देखने जाए, अगर वह मर जाए तो उसकी शव यात्रा में भाग ले, अगर उसे कोई भलाई मिले तो उस पर ख़ुश हो, ईर्ष्या न करे, अगर उसे कोई दुख पहुंचे तो वह भी उसके दुख में दुखी हो, अपने घर की इमारत को अधिक ऊंचा न करे कि उससे पड़ोसी को यातना हो और उसके घर में प्रकाश और हवा के आने जाने में बाधा हो, अगर कोई चीज़ ख़रीद कर अपने घर ले जा रहा है तो ख़रीदे गए फलों में से उसे भी भेंट करे चाहे पड़ोसी को उसकी ख़रीद के बारे में पता हो या न हो अगर यह पता हो कि पड़ोसी के पास अमुक फल नहीं हैं या फिर ख़रीदी गई चीज़ को इस प्रकार लपेट कर घर में ले जाए कि पड़ोसी और उसके बच्चे उसे न देखें।

फिर पैग़म्बर ने फ़रमायाः जो मैं कहा रहा हूं उसे ध्यान से सुनो। पड़ोसी का हक़ कोई भी पूरा नहीं करता सिवाय उन अत्यंत कम लोगों के जो ईश्वरीय दया के पात्र हों और ईश्वर ने मुझसे पड़ोसी के बारे में इतनी अधिक सिफ़ारिश की कि मुझे लगा कि इंसान के वारिसों में पड़ोसी भी शामिल है।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के इस समग्र बयान में ऐसे तीन विषय हैं जो अन्य विषयों की तुलना में अधिक अहम हैं। पहला विषय, पड़ोसी के माल व सम्मान की रक्षा है। मूल रूप से हर इंसान का घर उसके लिए आराम, शांति व सुरक्षा का स्थान होता है। अगर यह स्थान असुरक्षित हो जाए तो कहा जा सकता है कि उसने अपने सबसे सुरक्षित ठिकाने को खो दिया है। यह शांति व सुरक्षा हर इंसान का मूल अधिकार है जिसका अन्य लोगों के हाथों हनन नहीं होना चाहिए। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम कहते हैं कि अगर पड़ोसी इस प्रकार जीवन बिताए कि उसके दूसरे पड़ोसी की सुरक्षा ख़तरे में पड़ जाए तो वह अच्छे और ईमान वालों के पंक्ति से निकल जाता है।
आजके समाज में एक कठिन समस्या जीवन बिताने के लिए सुरक्षित स्थान की तलाश है। इस समस्या में दुनिया के अधिकतर देश ग्रस्त हैं और कहा जा सकता है कि बड़ी हद तक यह समस्या हल नहीं हो सकी है। पश्चिमी सभ्यता ने फ़्लेटों में रहने का चलन शुरू किया और उसे इसके कुप्रभावों को भी झेलना पड़ा। खेद की बात है कि इस समय अधिकतर देश भी इसी राह पर चल पड़े हैं और वे इसके ख़तरनाक व नकारात्मक परिणामों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की हदीस में दूसरा अहम विषय ऊंची इमारत बनाने और पड़ोसी के घर तक पहुंच बनाने के बारे में है। हम जानते हैं कि जब हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को पैग़म्बर बना कर भेजा गया, उस समय ऊंची ऊंची इमारतों का चलन नहीं था या कम से कम हेजाज़ और मक्के में ऐसी इमारतें नहीं थीं लेकिन पैग़म्बर का धर्म और उनकी शिक्षाएं सार्वभौमिक व सर्वकालिक हैं। इसी लिए उन्होंने अपनी दूरदृष्टि से इस बात की सूचना दी कि किसी व्यक्ति का घर ऐसा नहीं होना चाहिए कि उससे पड़ोसी का घर ताज़ा हवा और धूप व प्रकाश से वंचित हो जाए और पड़ोसी के घर में होने वाली बातें उसकी आंखों के सामने आ जाएं। यह इस्लामी शिक्षाओं की समग्रता और इस्लाम धर्म की सत्यता का एक प्रमाण है।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की हदीस में जिस तीसरे विषय की ओर ध्यान आकृष्ट कराया गया है वह यह है कि इंसान जो कुछ अपने घर के लिए ख़रीदता है उसका एक भाग अपने पड़ोसी को भी मदद के रूप में दे, अगर उसके पास वह चीज़ न हो। विशेष कर छोटे बच्चे जो उसे देख रहे होते हैं उनका दिल चाहता है कि उन्हें भी वह चीज़ मिल जाए। अगर इंसान उस चीज़ का कुछ भाग अपने पड़ोसी को नहीं दे सकता या नहीं देना चाहता तो वह उसे इस तरह अपने घर में ले जाए कि पड़ोसी उसे न देख पाए क्योंकि पैग़म्बर स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि अगर उसका दिल बड़ा न हो और वह पड़ोसी को न दे तो फिर उस चीज़ को छिपा कर ले जाए। यह एक अहम मनोवैज्ञानिक विषय है जिसके पड़ोसी के संबंध में पालन की पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने सिफ़ारिश की है।

जो कुछ कहा गया वह एक स्वस्थ और बुराई रहित समाज के गठन के लिए ज़रूरी है क्योंकि ये नैतिक बुराइयां, समाज के स्वास्थ्य को ख़तरे में डालती हैं और इन क़ानूनों व अधिकारों की छाया में ही समाज के विभिन्न वर्गों के बीच आपसी विश्वास व सम्मान पैदा होता है। इस्लाम ने आम लोगों के बीच आपसी विश्वास को नुक़सान पहुंचाने और न्याय की मज़बूत इमारत के आधारों को हिलाने वाली बातों से रोका है और इस इमारत को मज़बूत बनाने वाली बातों की सिफ़ारिश की है। इस संबंध में जिन बातों की सिफ़ारिश की गई है उनमें से एक संबंधों में निष्ठा है। लोगों के बीच संबंध विशेष कर पड़ोसियों के साथ संबंध हर प्रकार की चालबाज़ी और धूर्तता से दूर रहते हुए निष्ठा पर आधारित होने चाहिए। धोखा और लोगों के विश्वास से ग़लत लाभ उठाना, बहुत से नैतिक विकारों और समाजों के पतन का कारण है। समाजों का पतन, व्यक्तिगत और नैतिक बुराइयों से ही शुरू होता है और फिर धीरे धीरे पूरे समाज में फैल जाता है और समाज को सही मानवीय मार्ग से हटा देता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन हैः सबसे बुरे लोग वे हैं जो लोगों की अमानत की रक्षा पर विश्वास नहीं रखते और अमानत में ख़यानत से नहीं डरते।