Dec १६, २०१७ १६:५९ Asia/Kolkata

न्याय ऐसा विषय है जिस पर न सिर्फ़ आसमानी धर्मों बल्कि ग़ैर आसमानी धर्मों ने भी बल दिया है।

इस्लाम में न्याय पर बहुत बल दिया गया है जैसा कि पवित्र क़ुरआन की 29 आयतें न्याय के बारे में उतरी हैं। इसी प्रकार अत्याचार के बारे में पवित्र क़ुरआन में लगभग 290 आयते हैं और इन आयतों का भी किसी न किसी तरह न्याय से संबंध है। इस तरह मुसलमानों की आसमानी किताब पवित्र क़ुरआन में न्याय की अहमियत स्पष्ट है। सच तो यह है कि इस्लामी समाज में न्याय का बीज क़ुरआन ने बोया है और इसे समाज में फैलाने की कोशिश में है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई न्याय की अहमियत के बारे में कहते हैं, “सारी कोशिशों व संघर्ष का लक्ष्य यह है कि समाज में न्याय क़ायम हो। अगर न्याय क़ायम हो गया तो इंसान को उसका अधिकार मिल जाएगा, मानवीय प्रतिष्ठा भी हासिल होगी। लोगों को आज़ादी और अधिकार मिल जाएंगे।”

वरिष्ठ नेता कहते हैं, “न्याय ऐसी चीज़ नहीं है कि किसी और चीज़ से उसकी भरपायी की जाए।”

न्याय में सामाजिक न्याय वह आयाम है जिसकी परिधि में समाज के सभी लोग आते हैं। पूरे इतिहास में न्याय क़ायम करने के लिए बहुत कोशिशें हुयीं और बहुत सी क्रान्तियां आयीं। इतिहास के पाठ लेने योग्य पन्नों को पढ़ने से इस सच्चाई का पता चलता है कि न्याय किसी एक विशेष समूह, या किसी एक राष्ट्र या देश की इच्छा नहीं है बल्कि इतिहास में पूरी मानवता की स्वाभाविक इच्छा रही है।

ईरानी राष्ट्र भी शाही व विश्व साम्राज्य के अत्याचार से मुक्ति पाने के लिए 1979 में इस्लामी क्रान्ति लाया ताकि समाज में ईश्वरीय आदेश लागू हो, अत्याचार व भेदभाव ख़त्म हो और न्याय की सुगंध आत्मा महसूस करे। समाज में न्याय क़ायम करना इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी अलैह के बड़े उद्देश्य में था और अब इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता इसी उद्देश्य की प्राप्ति की कोशिश में हैं।

इस बारे में वरिष्ठ नेता कहते हैं, “आज इस्लामी व्यवस्था में - ऐसी व्यवस्था जो इस्लाम के नाम पर इस देश में गठित हुयी है- किस चीज़ की अहमियत अधिक और उसके संबंध में संवेदनशीलता अधिक होनी चाहिए? वह न्याय है।”

वरिष्ठ नेता का मानना है कि समझदारी और युक्ति के ज़रिए समाज में न्याय क़ायम किया जा सकता है।             

ईरान में इस्लामी क्रान्ति के शुरु से समाज के विभिन्न वर्गों के कल्याण और उन्हें सार्वजनिक सुविधाओं से संपन्न करने के लिए बहुत कोशिश हुयी लेकिन अभी इस दिशा में और कोशिश की ज़रूरत है। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई देश के अधिकारियों से अनुशंसा करते हैं, “न्याय के क्षेत्र में बहुत काम हुआ है लेकिन संतोषजनक नहीं है। हम न्याय को व्यापक स्तर पर क़ायम करना चाहते हैं न कि सिर्फ़ स्वीकार्य योग्य स्तर पर। नहीं। हम न्याय को व्यापक स्तर पर क़ायम करना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि समाज में अत्याचार का कहीं नामो निशान न हो। अभी इस चरण तक पहुंचने के लिए बहुत रास्ता तय करना बाक़ी है। इसलिए इस दिशा में और कोशिश होनी चाहिए। हमें न्याय और नैतिकता को प्रचलित करना होगा और अपने समाज को वास्तविक रूप में इस्लामी बनाएं। इसके लिए कोशिश, आस्था, सद्कर्म और ईश्वर के मार्ग में संघर्ष की ज़रूरत है। सिर्फ़ ज़बान को नसीहत से दुनिया के किसी क्षेत्र में न्याय क़ायम नहीं होगा।”

वरिष्ठ नेता बल देते हैं, “देश के अधिकारियों पर एक अहम ज़िम्मेदारी यह है कि समाज में न्याय को वास्तविक अर्थ में लागू करें ताकि लोग न्याय को महसूस करें। फ़ैसलों में न्याय, देश के मूल स्रोतों के वितरण में न्याय, देश की सुविधाओं से सभी लोगों के लाभान्वित होने में न्याय।”

न्याय की स्थापना कठिन काम है। वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई की नज़र में न्याय की स्थापना के लिए उपयोगी, धर्मपरायण और बुद्धिमान लोगों को कोशिश करना चाहिए। वरिष्ठ नेता न्याय, अध्यात्म और तार्किकता के बीच निकट संबंध मानते हुए कहते हैं कि वे लोग न्याय की स्थापना के योग्य होते हैं जो अध्यात्म व तार्किकता से संपन्न होते हैं।

ईरान में न्यायपालिका पर न्याय की स्थापना और पीड़ित को अत्याचारी से अधिकार दिलाने की ज़िम्मेदारी है लेकिन इसके साथ ही वरिष्ठ नेता का यह भी मानना है कि उच्च पदस्थ अधिकारियों के व्यवहार व क्रियाकलाप का भी न्याय की स्थापना में असर होता है। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई का इस बारे में मानना है कि उच्च पदस्थ अधिकारियों में नैतिकता व धर्मपरायणता समाज में न्याय क़ायम करने में प्रभावी होती है। वरिष्ठ नेता इस विषय की व्याख्या में एक अहम बिन्दु की ओर इशारा करते हैं और वह कुलीन तंत्र है। वरिष्ठ नेता की नज़र में अगर देश के अधिकारी कुलीन वर्ग जैसा ठाठ बाट अख़्तियार करेंगे तो समाज में न्याय का रंग फीका पड़ जाएगा। वरिष्ठ नेता का मानना है कि देश के अधिकारियों को विशिष्टता हासिल करने के बारे में नहीं सोचना चाहिए।                     

वरिष्ठ नेता कुलीन तंत्र और न्याय के बीच संबंध की व्याख्या में कहते हैं, “जो चीज़ समाज में न्याय की प्रक्रिया की रफ़्तार को कम करती है वह देश के उच्च पदस्थ अधिकारियों की ओर से कुलीन वर्ग के ठाठ बाट का प्रदर्शन है। कुलीन वर्ग के ठाठ बाट के प्रदर्शन में दो तरह की बुरायी निहित है। उसकी दूसरी बुरायी पहली वाली से ज़्यादा ख़तरनाक है। एक यह कि कुलीन वर्ग जैसी ठाठ बाट का प्रदर्शन फ़ज़ूल ख़र्ची है। मेरी मुराद हलाल ठाठ बाट है। अर्थात वह ठाठ बाट जिस पर हलाल मार्ग से हासिल किया हुआ पैसा ख़र्च हो। ठाठ बाट के नतीजे में समाज में संपत्ति का न्यायपूर्ण बटवारा नहीं होता और सार्वजनिक संपत्ति व ईश्वरीय नेमतें बर्बाद होती हैं। लेकिन इसकी दूसरी बुराई और अधिक ख़तरनाक है वह यह कि समाज में इसका प्रचलन हो जाता है अर्थात सभी एक दूसरे से ठाठ बाट के लिए प्रतिस्पर्धा करने लगते हैं। इस मार्ग में पहले दर्जे के अधिकारियों का बहुत बड़ा रोल है। टीवी का बहुत बड़ा रोल है। हमारे और आपके स्वभाव का भी बहुत बड़ा रोल है।” जी हां जिन लोगों का मन सांसारिक मोहमाया में डूबा हुआ है, वे न्याय को लागू नहीं कर सकते।

इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह भी कुलीन वर्ग के ठाठ बाट को तनिक भी पंसद नहीं करते थे। वे हमेशा वंचित व कमज़ोर वर्ग के अधिकारों का समर्थन करते रहे। वरिष्ठ नेता इमाम ख़ुमैनी की इस विशेषता की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, “सभी को ठाठ बाट भरी ज़िन्दगी से मना करते थे। बारंबार कमज़ोर वर्ग की वफ़ादारी पर भरोसा करने पर बल देते थे। यह बात इमाम अक्सर कहा करते थे। जनकोष के सही ढंग से उपयोग और फ़ुज़ूल ख़र्ची से मना करते थे। यह भी मूल निर्देशों में से एक है। सामाजिक न्याय, वंचित वर्ग का साथ देना, ठाठ बाट से दूर रहना इमाम ख़ुमैनी की मुख्य विशेषताएं थीं।”                           

ठीक है कि न्याय की स्थापना अधिकारियों की मुख्य ज़िम्मेदारी है लेकिन आम लोगों को भी चाहिए कि वे न्याय की स्थापना की मांग करें। इस्लाम में न्याय की मांग करना व्यक्ति के कर्तव्यों में गिनाया गया है। अत्याचारी के अत्याचार पर ख़ामोशी अर्थात अत्याचार को क़ुबूल करने की इस्लाम में निंदा की गयी है। न्याय की मांग की अहमियत के बारे में वरिष्ठ नेता कहते हैं, “न्याय की मांग करना बहुत ज़रूरी है। इसके कई आयाम हैं। सिर्फ़ ज़बान से मांग करना काफ़ी नहीं है, बल्कि इसके लिए कोशिश करनी चाहिए।” वरिष्ठ नेता न्याय को दिनचर्या का हिस्सा होने पर बल देते हुए कहते हैं, “न्याय हर जगह हर दम मसहूस हो। बुद्धिजीवी, अधिकारी, आम लोग और ख़ास तौर पर नई नस्ल न्याय को मुख्य विषय समझे।”

इन दिनों छात्र संगठन न्याय के विषय ख़ास तौर पर सामाजिक न्याय पर पैनी नज़र रखे हुए हैं। वे अधिकारियों की जीवन शैली व स्वभाव पर नज़र रखे हुए हैं और वे अधिकारियों के व्यवहार व चरित्र को न्याय की कसौटी पर परखते हैं। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने छात्र संगठनों में ख़ास तौर पर न्याय की मांग करने वाले संगठन के इस तरह के व्यवहार का स्वागत करते हुए उसके नाम संदेश में कहा है, “प्रिय जवानो! न्याय की स्थापना की मांग करना हमेशा ईश्वरीय दूतों और उनके सच्चे अनुयाइयों का व्यवहार रहा है। आज और हमेशा इस ध्वज के तहत संघर्ष ईश्वरीय दूतों के सच्चे अनुसरण की निशानी है”

जी हां न्याय की मांग करना और अत्याचार को सहन न करना ईश्वरीय दूतों की सुंदर शिक्षाओं में शामिल है। आज मानवता के अंतिम मोक्षदाता हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के प्रकट होने का इंतेज़ार करने वाले, इसीलिए तो इंतेज़ार कर रहे हैं कि जब वे आएंगे तो पूरी दुनिया में न्याय क़ायम करेंगे। ऐसा न्याय जो सही पीड़ित व विस्थापित लोगों को जंग, रक्तपात, भूख और पीड़ा से मुक्ति दिलाएगा और पूरी मानवजाति को परमसुख का तोहफ़ा देगा। वरिष्ठ नेता हज़रत महदी अलैहिस्सलाम के प्रकट होने की उम्मीद और दुनिया में न्याय की स्थापना की ओर इशारा करते हुए देश के अधिकारियों से कहते हैं, “आज की दुनिया में जो अत्याचार के ध्रुव पर घूम रही है, अगर हम अपने यहां न्याय को क़ायम रखें तो राष्ट्रों के मन यहां तक कि ग़ैर मुसलमान राष्ट्र शुद्ध इस्लाम की ओर उन्मुख होंगे क्योंकि सभी न्याय के भूखे हैं।”

 

 

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