मार्गदर्शन- 70
आज़ादी या स्वतंत्रता वह चीज़ है जो मानव की आंतरिक अभिलाषा है।
वास्तव में स्वतंत्र व्यक्ति वह है जो ज़रूरतमंदों की आवश्यकताओं की पूर्ति करता हो और लोगों से अलग न रहे। उस व्यक्ति को स्वतंत्र नहीं कहा जा सकता जो सबकुछ छोड़कर एकान्त में जाकर जीवन व्यतीत करे। पश्चिम की उदारवादी व्यवस्था में आज़ादी का अर्थ होता है मनमानी। पश्चिम में पूरी स्वतंत्रता के साथ भौतिक वस्तुओं से निरंकुश उठाने को आज़ादी कहा जाता है।
इस्लाम की दृष्टि से केवल शारीरिक रूप में स्वतंत्र रहने को आज़ादी नहीं कहते बल्कि वास्तविक आज़ादी आत्मा की आज़ादी है। जब मनुष्य की आत्मा भौतिक आनंदों से दूर होती है तो उसमें विभिन्न प्रकार की विशेषताएं उत्पन्न हो जाती हैं। पहली बात तो यह है कि ऐसे में वह ईश्वर को बहुत अच्छे ढंग से समझती है। जो व्यक्ति पूरी तरह से स्वतंत्र हो जाता है वह यथासंभव लोगों की सहायता करने में आनंद लेता है। उसके भीतर त्याग की भावना कूट-कूटकर भरी होती है। ऐसा व्यक्ति दूसरों की भलाई में स्वयं को भी न्योछावर करने के लिए तैयार रहता है। ये सबकुछ वास्तविक स्वतंत्रता का परिणाम है।
वे लोग जो भौतिकता में डूबे हुए होते हैं और भौतिक वस्तुओं के प्रयोग को ही सबकुछ समझते हैं उनकी दृष्टि में दूसरों का कोई महत्व नहीं होता। एसे लोगों की नज़रों में दूसरों का महत्व केवल उस समय तक है जबतक वे उसकी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक हैं। यदि एसा नहीं है तो फिर वे उनके लिए महत्वहीन हैं। यह एक अटल वास्तविकता है कि शारीरिक रूप से स्वतंत्रता का अर्थ होता है भौतिक वस्तुओं से अधिक से अधिक लाभ उठाना। एसे में त्याग और समर्पण अपना अर्थ खो बैठते हैं। यही कारण है कि पश्चिम और इस्लाम के दृष्टिगत आज़ादी के दृष्टिकोणों में बहुत अंतर है।
इस्लाम में जिस आज़ादी का उल्लेख किया गया है वह बहुत ही व्यापक है जबकि पश्चिम की आज़ादी केवल भौतिका तक ही सीमित है। पश्चिमी आज़ादी में बहुत से समाज के कुछ मामलों को शामिल कर लिया गया है। आज़ादी के बारे में ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता कहते हैं कि वह आज़ादी जो नैतिक मूल्यों और धार्मिक नियमों के साथ न हो वह मनमानी का कारण बनती है और दूसरों के अधिकारों के हनन का माध्यम बन जाती है। एसे में वह स्वतंत्रता या आज़ादी जिसमें धार्मिक और नैतिक मूल्यों को अनेदखा किया जाए वह बहुत सी बातों में बाधा का कारण बनेगी जैसाकि हम वर्तमान समय में पश्चिम में देख रहे हैं।
यदि हम देखें तो पता चलेगा कि स्वतंत्रता, आदिकाल से ही मानवजाति की आंतरिक कामना रही है। लंबे समय में दास, अपने स्वामियों से स्वतंत्र होने के प्रयास कर रहे हैं। अत्याचारग्रस्त, अत्याचारियों से पीछा छुड़ाने में लगे हुए हैं। शोषित वर्ग स्वयं को शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए प्रयासरत है। इन बातों से पता चलता है कि आज़ादी, वास्तव में हर व्यक्ति का मूल अधिकार है। यह एसा मौलिक अधिकार है जिसे प्राप्त करने में मानव को तरह-तरह की बाधाओं का सामना रहा है। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि इस्लाम में जो स्वतंत्रता की बात कही गई है वह ख़ुद इस्लाम की देन है यह पश्चिम से आयात किया गया कोई विषय नहीं है बल्कि इस्लामी शिक्षाओं और इस्लामी महापुरूषों के जीवन में यह स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। वे कहते हैं कि आज़ादी तो इस्लामी धरोहर के समान है। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि आज़ादी के बारे में पवित्र क़ुरआन, पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में बहुत कुछ कहा गया है।
आज़ादी के बारे में ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि मनमानी को आज़ादी समझना बहुत बड़ी ग़लती है। आज़ादी और मनमानी दो अलग बाते हैं। वे कहते हैं कि आज़ादी के कुछ नियम हैं। आज़ादी के नाम पर मनमानी को वे विषाक्त भोजन की संज्ञा देते हैं जो हानिकारक होता है। उनका कहना है कि आज़ादी का अर्थ यह नहीं है कि जो जी में आए वही करते रहो। आज़ादी इसे नहीं कहते। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि आज़ादी, जो ईश्वर की महान अनुकंपा है उसके कुछ नियम भी हैं। नियमों के बिना कोई आज़ादी अर्थपूर्ण नहीं है। वे कहते हैं कि यदि समाज में कोई मादक पदार्थों को दूसरों में बांटे तो एसे में निश्चेत होकर बैठा नहीं जा सकता क्योंकि इससे कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि परिवार तबाह होते हैं।
वरिष्ठ नेता कहते हैं कि यदि कोई आज़ादी की आड़ में कला, साहित्य, धन-दौलत या अन्य चीज़ों का दुरूपयोग करके लोगों की आस्था को ठेस पहुंचाए, उन्हें दिगभ्रमित करे या फिर क्रांतिकारी इस्लामी जनता के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न करे तो एसे में यह कहकर चुप नहीं रहा जा सकता कि आज़ादी है जो जी में आए करो। वे कहते हैं कि इस प्रकार की आज़ादी दुनिया के किसी भी हिस्से में प्रचलित नहीं है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि वे देश जो आज़ादी के दावे करते हैं वहां पर एसा कुछ नहीं है। वहां पर भी कुछ रेड लाइन्स हैं जिन्हें पार नहीं किया जा सकता। जो भी उस रेड लाइन को पार करने का प्रयास करेगा उससे कड़ाई से निबटा जाता है।
आप देखिए कि योरोप में किसी को “होलोकास्ट” के बारे में बोलने का कोई अधिकार नहीं है। होलोकास्ट के बारे में कुछ कहना या होलोकास्ट से इन्कार, पश्चिम में एक बहुत बड़ा पाप है। जो भी एसा करेगा उसे निश्चित रूप में दंडित किया जाएगा। हालांकि यह भी स्पष्ट नहीं है कि होलोकास्ट की वास्तविकता है क्या? वास्वत में एसी कोई घटना है या नहीं। अगर है तो फिर वह किस रूप में थी? लेकिन आज़ादी का दावा करने वाले होलोकास्ट के मामले में बहुत सख़्त हैं। यह उनके लिए रेडलाइन है। इसे कोई भी पार नहीं कर सकता अन्यथा उसे दंड भुगतना होगा। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि एसे में हमसे क्यों इस बात की आशा की जा रही है कि हम अपनी इस्लामी शिक्षाओं की रेड लानइ को पार करें?
आज़ादी के बारे में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं कि आज़ादी और भौतिक वस्तुओं से आनंदित होना दो अलग बाते हैं जिनको एक-दूसरे के समान नहीं कहा जा सकता। वे कहते हैं कि जो लोग भौतिकता का प्रचार व प्रसार करते हैं वे वास्तव में पश्चिमी संस्कृति को बढ़ावा देते हैं। रही बात आनंदित होने की तो बहुत से लोग दूसरों पर अत्याचार करके आनंदित होते हैं, कुछ लोग दूसरों का माल छीनकर उसे ख़र्च करने से आनंदित होते हैं, कुछ मादक पदार्थों के सेवन से खुश होते हैं, कुछ लोगों को अश्लीलता बहुत पसंह है तो क्या आज़ादी के नाम पर इस प्रकार के लोगों को अनेदखा किया जाना चाहिए? नहीं समाज में रहते हुए एसा नहीं किया जा सकता।
इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार मनुष्य, स्वभाविक रूप में अच्छाई और बुराई दोनों को समझता है। मनुष्य की सृष्टि इस प्रकार से की गई है कि वह बड़ी सरलता से अच्छाई और बुराई को समझ सकता है। ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सूरे शम्स की आठवीं आयत में चांद-सूरज, दिन और रात तथा धरती और आकाश की क़सम खाने के बाद इंसान की क़सम खाते हुए कहता है कि उसने मनुष्य को अच्छाई और बुराई दोनों के बारे में बता दिया है। इस प्रकार से मनुष्य अपने जीवन में अच्छाई या बुराई चुनने के लिए स्वतंत्र है। इस्लामी शिक्षा के अनुसार मनुष्य को इसलिए स्वतंत्र बताया गया है क्योंकि उसके भीतर अच्छाई और बुराई को पहचानने की क्षमता पाई जाती है और वह मर्ज़ी से कोई भी रास्ता चुन सकता है।
अच्छाई और बुराई की पहचान करने में सक्षम होने के साथ ही साथ मनुष्य एक बुद्धिमान प्राणी है। बुद्धिमान होने के नाते भी वह अच्छाई और बुराई को सरलता से समझ सकता है। जानकारों का कहना है कि बुद्धि के आधार पर की गई पहचान, वास्तविक पहचान होती है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि बुद्धि होने के कारण इंसान, अच्छाई और बुराई की परख में सक्षम है और अपनी भलाई के हिसाब से रास्ता तै कर सकता है। अब वह अपनी बुद्धि के आधार पर स्वतंत्रता को समझकर उसे अपना सकता है। एसे में यह कहा जाना चाहिए कि मनुष्य की अंतरात्मा और बुद्धि, उसकी आज़ादी के दो मूल स्तंभ हैं।
ईरान की इस्लामी क्रांति का नारा था स्वतंत्रता, स्वावलंबन और इस्लामी लोकतंत्र। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई वास्तविक आज़ादी के बारे में कहते हैं कि इस्लाम में आज़ादी का आधार एकेश्वरवाद है। वे कहते हैं कि एकेश्वरवाद कोई नारा नहीं है बल्कि हृदय की गहराई से ईश्वर को मानना है और हर प्रकार के अनेकेश्वरवाद को नकारना। कुरआन के सूरे आले इमरान की आयत संख्या 64 में कहा गया है कि किसी को भी ईश्वर का भागीदार न बनाओ बल्कि किसी को भी उसका शरीक न बनाओ। अर्थात केवल एकेश्वर को ही मानो दूसरे किसी अन्य को नहीं। आयत में बताया गया है कि तुम किसी भी स्थिति में किसी एसे का अनुसरण न करो जिसका मार्ग ईश्वर की ओर न जाता हो बल्कि उसका अनुसरण करो जिसका रास्ता ईश्वर की ओर जाता हो। वास्तव में जिसने संसार में अनेकेश्वरवाद को छोड़ दिया और एकेश्वरवाद को अपना लिया उसने बहुत ही मज़बूत रास्ता अपनाया है। यही वास्वतिक आज़ादी है। अर्थात एकेश्वर को अपनाकर तुम अनेकेश्वर की बुराइयों से बच गए यही वास्तविक स्वतंत्रता है।